फ़िज़ूल के न कोई भी सवाल कीजिये
कीजिये अजी कुछ तो कमाल कीजिये
देखिये बह गया सड़क पे लाल-लाल
कुछ सफ़े अब खून से भी लाल कीजिये कीजिये अजी कुछ तो कमाल कीजिये
देखिये बह गया सड़क पे लाल-लाल
क्यूँ छुपी हुई उम्मीद क्यूँ डरे हुए बदन
चीखती सी रूह है बवाल कीजिये
जग गई है हर गली जग गया वतन
बंद आखें खोलिए मशाल कीजिये
थामिए अब हाथ में बागडोर हुजूर
प्रान्तवाद को यहीं हलाल कीजिये
कोई 'राज' छू न पाए आस्तीन को
वो जहाँ खड़ा रहे भूचाल कीजिये
चुप न अब बैठिये कह रही 'अदा'
लेखनी को आज ही कुदाल कीजिये
Bahut khub Adaji, shayad blog ke naam ke sath hi sath aap aur main hamvichar bhi lagati hai...kuch hi samay purv post meri yeah karuti aapko pasand aae...
ReplyDeletehttp://kavyamanjusha.blogspot.com/2010/01/blog-post_21.html
कल समाचारों में ये सब देखा ...मन बहुत दुखी हुआ ...
ReplyDeleteये लोग देश को कहाँ ले कर जायेंगे ....संवैधानिक अधिकारों के ऐसे सार्वजनिक हनन की जितनी भर्त्सना की जाए ...कम है ...
http://swapnamanjusha.blogspot.com/2010/01/blog-post_09.html
आपकी इस पोस्ट पर हिंदी विरोध के विरोध में कुछ कमेंट्स हैं ....हिंदी पर क्षेत्रीय भाषा की वरीयत पर क्या वे लोग अपने विचार प्रकट करना चाहेंगे ...!!
मर्म को छू गयी यह कविता और लेखनी को कुदाल करने के कई प्रतीकात्मक अर्थ हैं , वाह !
ReplyDeleteजब तक ऐसे सिरफिरों को जेल की अंधेरी बदबूदार कोठरियों में डालकर औकात नहीं दिखा दी जाती, ये इसी तरह सब की छाती पर चढ़कर मूंग दलते रहेंगे...लेकिन ये काम करे कौन...इसके लिए तो सरकार भी मर्द होनी चाहिए न...
ReplyDeleteजय हिंद...
कॉलेज की रजत जयन्ती पर भोर की ठंड में टिठुरते हुए कुल जमा 14 छात्रों ने सोम ठाकुर, नीरज जैसों को सुना था।
ReplyDeleteआज उन 'दिव्य' क्षणों की याद आ रही है। ठिठुरन है और रजाई में दुबका लैप टॉप पर इन पंक्तियों का आनन्द ले रहा हूँ।
भारत भू की दु:खद त्रासदी को बयाँ करती कविता पर 'आनन्द' कहना अजीब लग रहा है। कांग्रेसी खेल है, जनता को भी मजा आता है, 62 सालों से आ रहा है।
मैं तो कल्पना कर रहा हूँ कि मंच पर इसे प्रस्तुत किया जा रहा है और अनुभूतियों की लाली क्षितिज पर छिटक रही है ....
sach me kuch hona hee chahiye . aasteen ke razo par kudaal chalana chahiye
ReplyDeleteएक शे'र कहा था काफी पहले...इन राज साहिब के ऊपर...
ReplyDeleteअभी आपकी रचना के साथ तस्वीरिं भी देखीं तो याद आ गया...
सियासत से नहीं हूँ मैं, न मुझ से ये सियासत है
मैं क्या जानूं लगा देते हैं कैसे आग पानी में...
"चुप न अब बैठिये कह रही 'अदा'
ReplyDeleteलेखनी को आज ही कुदाल कीजिये"
एक सामयिक एवं सार्थक आह्वान!
चुप न अब बैठिये कह रही 'अदा'
ReplyDeleteलेखनी को आज ही कुदाल कीजिये
लाजवाब - आपकी तो है ही - हम सभी को भी प्रयास करना चाहिए
प्रासंगिक रचना ।
ReplyDeleteरचते हुए मन में जो आया होगा उसका अनुमान कर रहा हूँ । कई बार मन उद्विग्न हुआ होगा, अभिव्यक्ति लड़खड़ायी होगी, भावना के अनगिन रूप बन रहे होंगे - सब कुछ बाहर आना आवश्यक था न, इसलिये !
’बन्द आँखे खोलिये मशाल कीजिये’ और ’लेखनी को आज ही कुदाल कीजिये’ के मध्य डूब रहा हूँ, उतरा रहा हूँ ।
रचना का आभार ।
चुप न अब बैठिये कह रही 'अदा'
ReplyDeleteलेखनी को आज ही कुदाल कीजिये
-लगे हैं जी!!
चुप न अब बैठिये कह रही 'अदा'
ReplyDeleteलेखनी को आज ही कुदाल कीजिये,
आपने रच दिया,
अब इनकी जड़ खो्द के ही मानेगे।
देखना तभी मेरे देश के भाग्य जागेगें।
कोई 'राज' छू न पाए आस्तीन को
ReplyDeleteवो जहाँ खड़ा रहे भूचाल कीजिये
चुप न अब बैठिये कह रही 'अदा'
लेखनी को आज ही कुदाल कीजिये
जनता ही भेड़-बकरियों के झुण्ड जैसी है , कुछ नहीं हो सकता !
वाह !!ये अदा खूब है !
ReplyDeleteहम तो लेखनी को कुदाल कर लेंगे लेकिन सरकार तो राज को महाराज बनाने पे तुली है, उसका क्या करें।
ReplyDeleteचुप न अब बैठिये कह रही 'अदा'
ReplyDeleteलेखनी को आज ही कुदाल कीजिये
laakh take ki baat..kar to rahe hain par kuch hoga lagta nahi.
जोश जगाती कविता. सुन्दर है.
ReplyDeleteऑस्ट्रेलिया का क्या ख्याल कीजिये ,
ReplyDeleteमुंबई में ही भारतियों का हाल देखिये।
दुर्भाग्यपूर्ण हालात।
आप की कविता पढी साथ मै चित्र देखा, पता नही यह चित्र कहां का है, लेकिन यह जानवर अपने ही लग रहे है.... इन लोगो को पकड कर समुंदर मै फ़ेंक देना चाहिये, इंसानिया कहा गई,,, आप की मार्मिक कविता के लिये धन्यवाद
ReplyDelete.वाह वाह....क्या बात है...बहुत अच्छी कविता जोश से भरी हुई
ReplyDeleteहम तो लेखनी को कुदाल कर लेंगे लेकिन सरकार तो राज को महाराज बनाने पे तुली है, उसका क्या करें।
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