भारत का गौरवशाली इतिहास...!! जहाँ बलिदान की इतनी गाथाएं हैं..कि सितारों की गिनती तक कम पड़ जाए...अगर हम अपने इतिहास की विवेचना करने बैठें तो महिलाओं के बढ़-चढ़ कर योगदान देखने को मिलेंगे, फिर चाहे वो संस्कृति हो , परंपरा, राजनीति, अर्थव्यवस्था, युद्ध , शांति या कुछ और , कोई भी विधा अछूती नहीं रही है नारी स्पर्श से...
चित्र : कस्तूरबा गाँधी
अगर हम अपने स्वतंत्रता संग्राम की ही बात करें तो अनगिनत महिलाओं का नाम मानसपटल पर प्रतिबिंबित होता है जो बहुत सक्रीय रहीं ....सबसे पहली महिला जिनका नाम ही स्वतंत्रता का पर्याय बन गया है वो हैं 'श्रीमती कस्तूरबा गांधी' ....
कस्तूरबा गाँधी, महात्मा गांधी के स्वतंत्रता कुमुक की पहली महिला प्रतिभागी थीं...निरक्षर होते हुए थी, कस्तूरबा गाँधी का अपना एक दृष्टिकोण था ...उन्हें आजादी का मोल, और महिलाओं में शिक्षा की महत्ता का पूरा भान था....स्वतंत्र भारत के उज्जवल भविष्य की कल्पना उन्होंने ने भी की थी और हर कदम पर अपने पति मोहनदास करमचंद गाँधी जी का साथ निभाया ....गांधी जी के सारे अहिंसक प्रयास इतने कारगर नहीं होते अगर 'बा' जैसी आत्मबलिदान की प्रतीक उनके गुट में नहीं होती... कस्तूरबा ने अपने नेतृत्व के गुणों का परिचय भी दिया था जब-जब भी गाँधी जी जेल गए थे ....वो स्वाधीनता संग्राम के सभी अहिंसक प्रयासों में अग्रणी बनी रहीं...
चित्र : विजयलक्ष्मी पंडित
राष्ट्रीय आन्दोलन में सक्रीय योगदान करने वाली महिलाओं में कुछ चमकते नाम हैं...विजय लक्ष्मी पंडित, सुचेता कृपलानी, सोरोजिनी नायडू, एनी बेसेंट, और सैकड़ों हज़ारों नाम....
वैसे इस आन्दोलन में सभी महिलाएं अहिंसा की ही तरफदार थीं , ऐसा नहीं था ... कुछ ऐसी भी थीं जिनके तौर तरीके पूरी तरह से क्रांतिकारी थे....उनमें से कुछ नाम हैं...खुर्शीद बहन, लाडो रानी, अरुणा आसिफ अली, और सबसे ज्यादा अग्रणी रहीं शहीद भगत सिंह की सहयोगी 'दुर्गा भाभी' और मैडम कामा ..
चित्र : मैडम कामा , तिरंगे के साथ
मैडम कामा की कहानी सबसे ज्यादा रोचक है ..उन्होंने गाँधी जी से भी पहले स्वतंत्रता आन्दोलन शुरू कर दिया था ...और सन १९०७ में ही सरदार सिंह राणा के साथ मिलकर भारत का तिरंगा फहरा दिया था...और यह काम उन्होंने अन्तराष्ट्रीय समाजवादी सम्मलेन, स्टुटगार्ड, जर्मनी में किया था....साथ ही गौरव की बात यह रही कि वहां सम्मिलित सभी अतिथियों ने खड़े होकर और झंडे को सलामी देकर इसका सम्मान भी किया था....
मैडम कामा ने बर्तानिया सरकार के हिंसक हथकंडों का इस्तेमाल करने पर बहुत कड़ी आलोचना की थी और ब्रिटिश सरकार को जवाब उन्हीं की भाषा में देने पर विश्वास करने लगीं थी ..वो खुलेआम स्वीकार भी करतीं थीं कि बर्तानिया सरकार ने ही उन्हें हिंसक रुख अपनाने को विवश किया था....उनके इन विचारों का भगत सिंह और उनके साथियों पर काफी गहरा असर भी हुआ था....मैडम कामा को 'क्रांतिकारियों की माँ' भी कहा जाता था...
चित्र : दुर्गा भाभी और उनके पुत्र साची
दुर्गावती और सुशीलादेवी दो बहनें थीं ...ये दोनों बहनें भुगत सिंह और उनके साथियों की सक्रीय सहयोगी थीं....दुर्गावती ..दुर्गाभाभी के नाम से मशहूर हुईं ...१८ दिसम्बर १९२८ को भगत सिंह ने इन्ही दुर्गा भाभी के साथ वेश बदल कर कलकत्ता मेल से यात्रा की थी...
दुर्गाभाभी क्रांतिकारी भगवती चरण बोहरा की धरमपत्नी थीं...दुर्गाभाभी के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण दिन वो था जिस दिन ..सरदार भगत सिंह और सुखदेव ने १७ दिसंबर १९२८ को सान्डर्स को मौत के घाट उतारने के बाद, आगे की योजना की सलाह लेने दुर्गाभाभी के पास आये...और दुर्गा भाभी की ही सलाह मान कर, १८ दिसम्बर १९२८ को सरदार भगत सिंह ने एक अंग्रेज की वेशभूषा में , दुर्गाभाभी और उनके बच्चों के साथ कलकत्ता मेल में वो ऐतिहासिक यात्रा की थी...यह यात्रा जो हमेशा के लिए इतिहास के पन्नों में चिन्हित हो गयी...
लाडो रानी जुत्सी और उनकी दो पुत्रियों, जनक कुमारी जुत्सी और स्वदेश कुमारी जुत्सी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन में भरपूर हिस्सा लिया....लाडो रानी ने महिला सत्याग्रहियों की एक अलग मुहीम चलायी थी ...उन्होंने महिला सत्याग्रहियों की एक टोली भी बनायीं थी ... जो लाल पायजामा , हरी कमीज और सफ़ेद टोपी पहनतीं थी...एवं जो विशेषकर पंजाब लाहौर में कार्यरत थी..लाडो रानी बहुत ही निर्भीक और कट्टर राष्ट्रभक्त थीं..तथा पूरी तरह गांधीवाद में विश्वास रखतीं थीं..,,
चित्र : अरुणा असफ अली
अरुणा आसिफ अली एक दृढ और तेजस्वी व्यक्तित्व की मालकिन थी ..उनका नाम १९४२ के आस-पास प्रकाश में आया.. वो अहिंसा को सम्मान देतीं थी लेकिन विश्वास नहीं...उनका नजरिया गाँधीवादी होते हुए भी अलग था..बाद में वो दिल्ली की महापौर बनी ..वो बहुत कुशल वक्ता थीं...
चित्र : डॉ.कैप्टन लक्ष्मी सहगल
कुछेक नाम और भी हैं...जैसे एम्. एस. सुब्बालक्ष्मी, जो एक कलाकार होते हुए भी आज़ाद हिंद फौज में सक्रीय रहीं, वो नेता जी सुभाष चन्द्र बोस की बहुत विश्वासपात्र थीं और उनके साथ कंधे से कन्धा मिला कर चलतीं रहीं...
डॉ.कैप्टन लक्ष्मी सहगल भी एक ऐसा ही ज्वलंत नाम है....१९३८ में लक्ष्मी सहगल ने डाक्टरी की पढ़ी पूरी की ओर १९४० में वो सिंगापुर चली गयीं...उन्होंने सिंगापूर से ही स्वतंत्रता संग्राम में अपना योगदान श्री सुभाष चन्द्र बोस की 'मुझे खून दो मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा ' आदर्श के झंडे तले किया...
डॉ.कैप्टन लक्ष्मी सहगल भी एक ऐसा ही ज्वलंत नाम है....१९३८ में लक्ष्मी सहगल ने डाक्टरी की पढ़ी पूरी की ओर १९४० में वो सिंगापुर चली गयीं...उन्होंने सिंगापूर से ही स्वतंत्रता संग्राम में अपना योगदान श्री सुभाष चन्द्र बोस की 'मुझे खून दो मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा ' आदर्श के झंडे तले किया...
चित्र : सरोजिनी नायडू
सरोजिनी नाइडू, विजय लक्ष्मी पंडित, सुचेता कृपलानी ये भी कुछ ऐसे नाम हैं जो भारत के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अपनी जगह बना चुके हैं...
सरोजिनी नायडू को स्वतंत्रता संग्राम में 'भारत की कोकिला' कहा गया, वो अत्यंत संवेदनशील और नाज़ुक मिजाज़ महिला थीं ..उन्होंने अपने कवि हृदय से स्वतंत्रता संग्राम में योगदान किया ...
चित्र : राजकुमारी अमृतकौर
राजकुमारी अमृतकौर..कपूरथला की रहनेवाली ..१६ वर्षों तक उन्होंने गाँधी जी के लिए सचिव के रूप में काम किया ...अनेकों बार जेल गयी और असंख्य बार लाठी खायी.... आज़ादी के बाद वो भारत की पहली स्वास्थ्य मंत्री बनीं...
चित्र : दुर्गाबाई देशमुख
स्वतंत्रता संग्राम में एक और नाम महत्वपूर्ण है ...नाम है दुर्गाबाई देशमुख....इन्होने गाँधी जी के नमक सत्यग्रह में भी हिस्सा लिया था ..आयरन लेडी के नाम से प्रसिद्धि पायीं थी इन्होने ...बर्तानिया अधिकारियों को इनसे १९३० में ज़बरदस्त मुंहकी खानी पड़ी थी ...इन्होने 'आंध्र महिला' नामक एक पत्रिका का सम्पादन भी किया था...
और ना जाने कितने नाम हैं जिन्हें हमें याद करना चाहिए और श्रद्धा सुमन अर्पित करना चाहिए...लेकिन उससे भी ज्यादा ज़रूरी है, यह समझना कि ना सिर्फ़ स्वतंत्रता के संघर्ष अपितु जीवन के हर संघर्ष सिर्फ़ पुरुषों का ही विशेषाधिकार नहीं है....महिलाओं ने हमेशा बढ़-चढ़ कर भाग लिया है और सफलता प्राप्त करतीं रहीं हैं ....हमारी नारियां आज भी हर क्षेत्र में अग्रणी हैं और आगे भी रहेंगी ...कब कौन रोक पाया है इन्हें जो अब रुकेंगी...??
स्वतन्त्रता संग्राम में नारियों का सहयोग अमूल्य है ...घर के पुरुषों के इस संग्राम में कूदने पर वे घर में रहकर अपनी पूरी जिम्मेदारियन निभाती रही बल्कि घर से बाहर आकर भी इस रणक्षेत्र में पुरुषों के कंधे से कन्धा मिलकर सक्रिय रही ....यूँ तो इन वीर नारियों के योगदान को भुलाया ही नहीं जा सकता मरार इस प्रविष्टि के जरिये फिर से नारियों की शक्ति को नमन किया ...!!
ReplyDeleteमां तुझे सलाम . यह सही है कि नारी का सम्मान सफ़लता की कुन्जी है .
ReplyDeleteस्वतंत्रता संग्राम की इन विभूतियों को नमन...
ReplyDeleteमातृभूमि की सेवा करने वाली सुपुत्रियों में महारानी लक्ष्मीबाई का योगदान अविस्मरणीय है...
इसी तरह नेताजी सुभाष चंद्र बोस की इंडियन नेशनल आर्मी के लिए बंदूक उठाने वाली कैप्टन लक्ष्मी सहगल की बहादुरी को कौन भुला सकता है...
अदा जी, आप को शोधपरक लेख के लिए साधुवाद...
जय हिंद...
सभी को नमन!!
ReplyDeleteसंग्रहणीय आलेख!!
आभार, इन वीरांगनाओं की कुछ अतिरिक्त जानकारियों के लिए
ReplyDeleteबी एस पाबला
आप ने एम एस सुब्बलक्ष्मी का चित्र लगाया है जिनका सम्बन्ध कर्नाटक संगीत परम्परा से रहा है। मीरा फिल्म के लिए उनके गाए भजन और सुप्रभातम बहुत लोकप्रिय रहे हैं।
ReplyDeleteउन्हें भारत रत्न भी मिला।
क्या वाकई उन्हों ने आजाद हिन्द फौज में भाग लिया था? कहीं ऐसा तो नहीं कि किसी और सुब्बलक्ष्मी से भ्रम हुआ हो ?
चेक कर लीजिए।
बाकी संकलन अच्छा है। आभार।
गिरिजेश जी,
ReplyDeleteये वही एम् एस सुब्बलक्ष्मी हैं.....
मैं इनकी एक-दो और भी तस्वीर डाल रही हूँ...
आज की पोस्ट "नारी ब्लाग" की सी लगी.
ReplyDeleteइन वीरांगनाओं को नमन .. इनके बारे में पोस्ट लिखने के लिए आपको धन्यवाद !!
ReplyDeleteअरे महराज, मैं एम एस सुब्बुलक्ष्मी और आजाद हिन्द फौज के सम्बन्ध के बारे में कह रहा था। ये वही सुब्बुलक्ष्मी थीं या कोई और ?
ReplyDeleteजहाँ तक मुझे पता है वो कोई और थीं।
एक संग्रहणीय पोस्ट जिसे बहुत समय तक याद रख पाऊंगा ,
ReplyDeleteअजय कुमार झा
बहुत ही ज्ञानवर्धक जानकारी!
ReplyDeleteआज जबकि लोग हमारे क्रान्तिकारी वीरों और वीरांगनाओं को भूलते जा रहे हैं ऐसे में इस जानकारी का महत्व और भी बढ़ जाता है!
अभी भी काफी कम कहा है आपने अदा जी....
ReplyDeleteसभी जानकारियाँ अच्छी लगीं...
ख़ास कर दुर्गा भाभी का चित्र देखना बहुत अच्छा लगा...
सिर्फ नाम ही सुना था उनका अब तक..
नारियों का योगदान कहीं कम नहीं। वास्तव में उन के आत्मविश्वास का गला यह व्यवस्था बचपन में ही घोट देती है। नहीं तो हर क्षेत्र में वे आगे हैं।
ReplyDeleteHello,
ReplyDeleteWhat a collection... and a great info.
I salute all the great leaders who gave us an independent India.
Good work done!
Regards,
Dimple
जी कभी तो यह सच था ही -यत्र नार्यस्तु ....
ReplyDeleteगौरव के प्रतीक नाम !
ReplyDeleteइन विभूतियों की परिचय-प्रस्तुति का आभार !
कौन भूल सकता हैं इन महान नारियों के योगदान को...एक साथ सबका स्मरण दिलाने के लिए आप बधाई की पात्र हैं,अदा जी..और ऐसी दुर्लभ तस्वीरें देख बस जी खुश हो गया.
ReplyDeleteजानकारियों से भरा लेख अदा जी , एक बात और, अभी आपकी पिछली पोस्ट देख रहा था, लगता है मैं अपनी बात ठीक से नहीं रख पाया था, आशय मेरा कुछ और ही था! खैर, कंफ्यूजन के लिए क्षमा !
ReplyDeleteअदा जी ! इतनी गोरवशाली गाथाओं और खुबसूरत चित्रों के लिए आभार ..हम और हमारा इतिहास कभी इनके कार्यों को भुला नहीं पायेगा....सभी को नमन
ReplyDeleteगिरिजेश जी,
ReplyDeleteहो सकता है आप सही हों इसलिए मैं उन तस्वीरों को हटा रही हूँ...
फिर से तलाश करुँगी और डालूंगी...
इस कन्फुसियन के लिए माफ़ी चाहती हूँ..
खुशदीप जी,
ReplyDeleteआपने कैप्टन लक्ष्मी सहगल जी का ज़िक्र किया था...मैंने उनका भी छोटा सा परिचय दे दिया है....
आपकी आभारी हूँ..
आदरणीय अदा दीदी चरण स्पर्श
ReplyDeleteबहुत बढिया पढकर , आपने बहुत मेहनत किया होगा इस लेख पर ऐसा पढने मात्र से प्रतित हो रहा है । बेहद सुलझा हुआ और पोस्ट । बधाई स्वीकार करें ।
बहुत सुंदर लेख, इन्ही नारियो ने नारियो का ही नही हर भारतिया का सर ऊंचा किया, इन्हे हम हमेशा नमन करते है, यह जानती थी कि असली आजादी क्या है
ReplyDeleteधन्यवाद
बढ़िया सचित्र नारी के प्रति लिखा आलेख बहुत कुछ कह गया -
ReplyDeleteआपकी सफलताओं के लिए , हमारी दुआएं भी शामिल कर लीजिये
नव वर्ष मंगल मय हो
आपके ब्लॉग पर आकर, आपकी मीठी आवाज़ में आपके गाये गीत सुनना बोनस
जैसा लगता है
स स्नेह
- लावण्या
जहां नारी की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं । 20वीं शताब्दी की भुली-बिसरी नारियों को सचित्र प्रस्तुत कर ब्लॉग-जगत पर एक बेहतरीन कार्य किया है । उम्मीद है इससे भारतीय पुरुषों को कुछ समझ मिले और वे नारी को दोयम दर्जे का ना आंके । तस्वीरें संग्रहणीय हैं ।
ReplyDeleteआभार...
क्या कहूँ..शुक्रिया के अलावा कोई शब्द सूझती भी नही..मगर दुर्गा भाभी का जिक्र कर के भावविभोर कर दिया आपने..स्वाधीनता संग्राम की सबसे उपेक्षित हस्तियों मे मुझे उनका भी एक नाम लगता है..हर नुक्कड़और चौराहे पर मूर्तियों और खानदान के नाम की सड़कों वाले इस देश मे ऐसईए विभूतियों को कोईए जिक्र ही नही..और कितना तो कम लिखा गया उनके बारे मे..कि पेरिस हिल्टन की पुजारन हमारी पीढ़ी को उनका नाम भी नही पता होगा..
ReplyDeleteहाँ. दो नाम और मेरे दिमाग मे आये...रमाबाई और भगिनी निवेदिता के
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ReplyDelete.
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बेहतरीन, संग्रहणीय पोस्ट,
आभार!
बहुत अच्छी पोस्ट सभी नारी शक्ति को हमारा नमन |अगर इसमें आजाद भारत कि नारी शक्ति भी सम्मिलित होती तो "सोने पर सुहागा "|बहरहाल बधाई स्वीकारे सचित्र प्रस्तुतिकरण के लिए |
ReplyDeleteI am just listening your smooth voice from Gazal 'JABSA HAI BAZMA MEIN' at hindyugm. My wife says from bedroom 'is it chitra singh jitu?I have never heard this gazal',I like your voice Swapna. I am a doctor by profession and my passion is writing and reading. Can see my blog at http://www.redroom.com/member/jiturajgor#destination=user
ReplyDeleteसादर अभिवादन! सदा की तरह आज का भी पोस्ट बहुत अच्छा लगा।
ReplyDeleteबांते बीच बीच में बता रही हूँ की दुर्गा दीदी ऐसे करती थीं तब हम ऐसे करते थे asal में हम तीनों भाई बहन साथ में जाते थे तो मज़ा कुछ और ही था.कुलतार सिंग जी के घर से मेरे लिए ताज़ा सफेद मक्खन आता था और न जाने क्या क्या . अब इसके आगे कुछ नहीं लिख सकती
ReplyDeleteबस आभार आभार आभार ...........
very informative article....!
ReplyDeletei m going to share this webpage with some of my friends..!
हम धन्य हैं इनके कृतित्व से...
ReplyDeletenari bin sab soon.....aur kya kahoon...
ReplyDeleteDhanyabad itihas ki jankari aur hindi ke purjor swatantrata par.
ReplyDeleteबहुत ही ज्ञानवर्धक जानकारी!
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