सृष्टि मेरी गोद में ...
जब भी मेरी गोद में
मेरा शिशु होता है
तुम नगण्य हो जाते हो
कहाँ नज़र आते हो तुम मुझे ??
मेरी गोद धरा बन जाती है
और पूरी सृष्टि उसमें समाती है
मत बुलाया करो मुझे
अर्थपूर्ण आँखों से
यह विनय नहीं
आदेश है
मैं अपनी सृष्टि के
यथार्थ में
तुम्हारा प्रतिबिम्ब देख सकती हूँ
लेकिन तुम्हें नहीं
तुम्हें भी मेरी आँखों में
वही दिखेगा
मेरा शिशु
मैं माँ हूँ ना ...!!
मार्मिक और शानदार अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteकिसी भी स्त्री के लिए मातृत्व से बढ़कर कोई ओहदा कोई पदवी नहीं है ...और जब उसकी गोद में उसके अपने ही अंश से निर्मित ईश्वर की अनुपम कृति होती है तो वह स्वयं उस ईश्वर का स्थान ले लेती है ...
ReplyDeleteऔर ऐसे में किसी नजर की कोई गुस्ताखी उसे बर्दाश्त नहीं ...
हालाँकि बदलते समय के साथ बधुती महत्वाकांक्षाओं ने कही कही इस भावना का मजाक भी बनाया है ....मगर यह ज्यादा देर और ज्यादा दूर तक चलने वाला नहीं है ....
मां के मन की कोमल भावनाएं कितनी खूबसूरती से उतर आई है आपकी कलम से ....मुग्ध कर दिया है आपने ...बहुत बढ़िया .....
बधुती .....बढती
ReplyDelete"मेरी गोद धरा बन जाती है
ReplyDeleteऔर पूरी सृष्टि उसमें समाती है"
धरा में समायी हुई सृष्टि!
'अतिशयोक्ति अलंकार'!
इसे "सारी बिच नारी है कि नारी बिच सारी है .." जैसे ही "सृष्टि में धरा है कि धरा मे सृष्टि है" जैसे ही 'सन्देह अलंकार' भी मानने का भी मन कर रहा है।
Writing comments in English. I'm not on my lappy and hate writing Hindi in Roman script.
ReplyDeleteSimilar comment I've made on Himanshuji's blog. After reading your free verses, I'm tempted to declare death of 'chhand'. U also must be realising that feelings and emotions often get choked under system of 'chhand'.
बहुत खूब, कवि का एक नया अंदाज !
ReplyDeleteदीदी चरण स्पर्श
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत रचना लगी , शब्दो से खेलना तो कोई आपसे सिखे ।
माँ की ममता को एक माँ से बेहतर कोई नहीं समझ सकता .........बहुत बढ़िया प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत ही प्यारी कविता है।
ReplyDeleteअद्भुत भाव लिए कमाल की रचना है ये आपकी...बहुत बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteनीरज
बहुत खूब, कवि का एक नया अंदाज !
ReplyDeleteवाह अदा माँ के वात्सल्य का इस से सुन्दर रूप और क्या हो सकता है बधाई इस रचना के लिये
ReplyDeleteमां की महिमा अनंत है । पुरूष सृष्टि को नहीं समझ सकता, क्योंकि उसमें मूलत: जन्म देने की शक्ति नहीं है । लेकिन मां जो जन्म देती है, सृष्टि को समझती है । लेकिन माँ में अधिकार भाव नहीं होता । जिस दिन मां में सृष्टि का अहम या अधिकार भाव आ गया उस दिन मां मां न रहकर उत्पादक हो जाती है ।
ReplyDeleteWah!Sach aisahi lagta hai!
ReplyDeleteek behtreen abhivyakti.
ReplyDeleteबहुत खूब अदा जी
ReplyDeleteमैं मेरी सृष्टि के
यथार्थ में
तुम्हारा प्रतिबिम्ब देख सकती हूँ
लेकिन तुम्हें नहीं
ह्रदय की आंतरिक भावनाओ को दर्शाती गहरी रचना
सादर
प्रवीण पथिक
9971969084
विराट अनुभू्ति !
ReplyDeleteमुग्ध हूँ इस कविता पर ।
सच कहा....माँ बस माँ होती है..
ReplyDeleteमुझसे एक बार मेरी माँ ने पूछा था,'संसार में सबसे मधुर बोली किसकी होती है?...मैं,..कोयल..पपीहा...पता नहीं क्या क्या अंदाज़ा लगा गयी और ममी ने बोला.."नहीं...सबसे मधुर बोली अपने संतान की होती है"
मातृत्व इतना बेबस नहीं होता की वो अनुनय-विनय करे अपने ममत्व की रक्षा हेतु, परन्तु फ़िर भी वो साम-दाम-दंड-भेद की hierarchy को follow करता ही है. और इस कविता की शायद सबसे बेहतरीन अभिव्यक्ति यही है, जो प्रकट रूप से कह रही है. aDaDi बेहतरीन रचानों की kitty में आपके ब्लॉग में एक रचना और जुड़ गयी. एक प्रेमिका का, अथवा एक भक्तिन का क्रमशः प्रेमी और इश्वर से अधिक अपने पुत्र को चाहना न केवल इश्वर प्रदत देन है, न केवल क्षम्य है, अपितु एक पवित्र पूजनीय विचार है. और कहीं न कहीं इसमें कुंती जैसों द्वारा किये गए "कथित अपराध" या "Biasness" का खुला और काफी हद तक जायज़ समर्थन भी है.
ReplyDeleteबेहतरीन Post!!
Rather One of your best poem.
उत्तम!
ReplyDeleteपढ़ते पढ़ते सीधे दिल में उतार गयी ये रचना ......... शब्द आयी हैं मेरे पास ........... बस भाव हैं दिल के, ज़ज्बात हैं जो शब्दों में नही उतारे जा सकते ......... ऐसी रचनाएँ कविता नही गाथा होती हैं ........
ReplyDeletemaa ke ehsaaso ki itni khoobsurat abhivyakti
ReplyDeletebahut khoob
-Sheena
बहुत बढ़िया! मेरी दुनिया है माँ...
ReplyDeleteसबसे पहले नज़र पड़ी ..पेंटिंग पर..
ReplyDeleteबहुत बहुत सुन्दर लगी....
उसके बाद ये उतनी ही सुन्दर कविता पढने को मिली....
जैसे सोने पे सुहागा....
दोनों एक से बढ़ कर एक....एक दुसरे को और भी पूर्णता प्रदान करती हुईं...
सबसे नीचे वाली ब्लैक एंड व्हाइट तस्वीर भी काफी अच्छी है....
पर कविता से ज्यादा नहीं....
यथार्थ में
ReplyDeleteतुम्हारा प्रतिबिम्ब देख सकती हूँ
लेकिन तुम्हें नहीं
तुम्हें भी मेरी आँखों में
वही दिखेगा
मेरा शिशु
मैं माँ हूँ ना ...!!
बहुत प्यारी और कोमल अभिव्यक्ति....सुन्दर शब्दों का समायोजन....बधाई
मां तो है मां, मां तो है मां,
ReplyDeleteमां जैसा दुनिया में है कोई और कहां,
जय हिंद...
उफनाया ममत्व ,उफ़!
ReplyDeleteअदा जी, पता नहीं इस भूल भुलैया में किस ब्लाग से होते हुये आप के ब्लाग पर पहुंचा। एक या दो सिटिंग में आपकी सारी पोस्ट्स पढ डालीं। सच कहूं तो कवितायें अपने ऊपर से जाती हैं लेकिन इतना अहसास करवा जाती हैं कि कुछ गहरी बातें हैं जो कही गईं हैं, पूरी तरह समझ न आये तो कसूर अपना ही है। आपकी लेखनी के कायल हो चुके हैं। सबसे अच्छी बात संतुलन की है जो आपने परंपराओं में व आधुनिकताओं में दिखाया है, नहीं तो लोग या तो इस पार होते हैं या सिर्फ उस पार। अच्छी चीजें इधर भी हैं, उधर भी जरूर होंगी और ऐसा ही बुरी चीजों के साथ है। प्राय: हम नकारात्मक चीजों को जल्दी ग्रहण करते हैं लेकिन आप अपनी बात जिस संतुलित ढंग से रखती हैं, काबिले तारीफ है भले ही वह असहमति क्यूं न हो। अनुभव में आपसे बहुत छोटा हूं व आपकी पोस्ट्स देखकर टिप्प्णी करने से अपने आप को रोक नहीं सका। चिट्ठी को तार समझते हुये इस तारीफ को आपकी सभी पोस्ट्स की प्रशंसा समझा जाये, ऐसा निवेदन है, और हां कभी शैल जी या आपकी आवाज में फ़िल्म ’बेमिसाल’ का गाना ’किसी बात पर मैं किसी से खफा हूं, अगर सुनवा सकें तो आपका बहुत आभारी रहूंगा। फरमाईश को अन्यथा न लीजियेगा, पता नहीं क्यूं पहली बार ही आपके ब्लाग पर आकर बहुत अपनापन सा लगा इसीलिये ये गुस्ताखी कर रहा हूं।
ReplyDeletehridaysparshi hai yah kavita !!
ReplyDeleteOh my God!!
ReplyDeleteWhat a rocking composition...
Last lines are amazing and that picture is so nice... emotional :)
Regards,
Dimple