अगर पति की मृत्यु हो जाए तो, पति की सम्पति की वारिस पत्नी ही होती है...
यूँ तो कौन स्त्री कभी चाहेगी विधवा होना लेकिन कभी कभी नियति के कुचक्र का प्रहार किसी पर हो ही जाता है..और तब जब कभी कोई विधवा हो जाती है, तो हमारा समाज उसके साथ कैसी बेइंसाफी करता है साथ ही स्वार्थी तत्व किस तरह बलात, कमजोर विधवा के ऊपर कानून लाद कर अपना स्वार्थ सिद्ध करने की कोशिश करते हैं ...यह संस्मरण इसी बात को बताता है ...और इस समाज को आईना भी दिखाता है.....
विभा नाम है उसका...व्यवसायी परिवार की लड़की है ....माँ बाप ने अच्छा खासा दान-दहेज़ देकर उसका विवाह पटना के श्री सत्यपाल प्रसाद के साथ कर दिया....विभा भी ससुराल आकर और अपने पति का सानिध्य पाकर बहुत खुश थी...ससुराल में ..सास-ससुर, जेठ-जेठानी और एक 'परित्यक्ता' ननद और उसका एक बेटा साथ रहते थे.....घर में जेठ और ननद की ही चलती थी.... ननद बहुत खुश नहीं रहती थी...'परित्यक्ता' का जीवन जीना भारतीय समाज में कठिन तो है चाहे कितना भी जीवन यापन भत्ता मिलता हो....
विभा के सर पर मुसीबतों का पहाड़ उस दिन टूटा, जिस दिन उसके पति सत्यपाल की मृत्यु जीप एक्सिडेंट में हुई....पति के इस आकस्मिक निधन से विभा की दुनिया तो बस उजड़ ही गयी....शादी के मात्र २ साल में ही हाथों कि मेहंदी उतर गयी...विभा के कोई संतान भी तो नहीं थी कि अपना कुछ दिल लगा लेती...
विभा का पति बहुत ही काबिल इंसान था...वो हर मामले में अपने बड़े भाई से बेहतर था...उसने अपने बड़े भाई से ज्यादा संपत्ति अर्जित कि थी ...वो घर का कमाऊ पूत था....और अब उसकी पूरी कमाई बंद हो गयी जिससे घर की परिस्थिति में फर्क पड़ने लगा....लेकिन विभा के व्यक्तिगत खर्चे तो थे ही ...जाहिर था अब वो खर्चे परिवार के अन्य सदस्यों को खलने लगे थे...
विभा और बाकि लोगों में एक और फर्क था.....विभा शिक्षित थी और समझदार भी..जबकि उसके जेठ के परिवार में शिक्षा के प्रति लोग उदासीन थे...इसलिए विभा की समझदारी की बातें उन्हें समझ में नहीं आती थी...
धीरे-धीरे विभा के प्रति लोगों का रवैय्या बदलने लगा, उसके सारे गहने सास के कब्ज़े में चले गए, दिन-प्रतिदिन के व्यक्तिगत खर्चों के लिए वो मोहताज हो गयी और विभा आभाव की प्रतिमूर्ति बन कर रह गयी...
बात इतने पर ही ख़त्म नहीं हुई थी, जब-जब भी विभा ने अधिकार के लिए ज़बान खोलने की कोशिश की उसे पूरे परिवार के आक्रामक रवैय्ये का सामना करना पड़ा...आये दिन मार-कुटाई भी शुरू हो गयी...
मेरी ससुराल भी पटना में ही है और विभा वहाँ मेरी पड़ोसन है ....मैं कुछ साल पहले , कुछ दिन के लिए गयी थी अपने ससुराल....बस यूँही एक दिन पड़ोस में पहुँच गयी विभा के घर ... .पूरे घर का माहौल ही अजीब था....विभा को देखा ....आभा विहीन थी वो...मन में एक टीस सी उठी थी....और दाल में कुछ काला भी, बस मैं उससे बात करने की जोगाड़ में जुट गयी...
एक दिन दोपहर जब ज्यातर लोग घर से बाहर थे और जो घर में थे वो भी सो रहे थे ...मैं अन्दर चली गयी....और विभा का हाथ पकड़ कर ले आई अपने घर....मेरी सास को पसंद नहीं आया था उसका मेरे घर आना...लेकिन मुझसे कुछ कह नहीं पायीं.....
विभा से बात करके मुझे पता चल गया कि लाखों कि सम्पति की वारिस विभा को कितनी प्रताड़ना भरे दिन देखने को मिल रहे हैं...और इसमें उसकी सास उसकी ननद और उसके जेठ सबका हाथ है....
विभा की गला दबा कर हत्या करने की भी कोशिश की गयी थी जिसमें ...टांगें सास ने पकडे थे हाथ ननद ने और गला दबाने का उपक्रम जेठ ने किया था...वो तो भला हो ससुर का जो इसमें उनका साथ नहीं दे पाए....
विभा की कोई संतान नहीं है...वो उस घर से निकलना भी नहीं चाहती अगर वो ऐसा करेगी तो संपत्ति से हाथ धो बैठेगी.....जो भी समय मुझे दस-पंद्रह दिन में मिला उसको ढाढस, और संघर्ष करने का साहस बनाये रखने की प्रेरणा देती रही....मेरे पति के रिश्ते के जीजा लगते हैं हजारीबाग के एस .पी . थे उन दिनों ..Mr सुबर्नो उनसे बात करवा दी...जिससे हिम्मत बनी रहे विभा की....कल ही बात की उससे.....नए साल की बधाई देने ले लिए फ़ोन किया था...कह रही थी कुछ भी नहीं बदला है दीदी.....सब कुछ वैसा ही है....आप फ़ोन करते रहा कीजिये....अच्छा लगता है आपसे बात करना......
और मैं सोच रही हूँ इस हक की लड़ाई में विभा जीतेगी या हारेगी..यह तो समय ही बताएगा...लेकिन एक बात स्पष्ट है....की मध्ययुगीन प्रवृतियां आज भी हमारे समाज में कहीं-कहीं व्याप्त हैं ...क्या हम सचमुच ख़ुद को प्रगतिशील, नीतिवान, ईमानदार आधुनिक कहने का हक रखते हैं...???
हिन्दू उतराधिकारी अधिनियम १९५६ के प्रावधानों के तहत विधवा अपने पति के हिस्से की पुश्तैनी संपत्ति तथा पति की अर्जित संपत्ति की उत्तराधिकारी है...
विभा के बारे में जान कर बहुत दुःख हुआ ..लालच हर रिश्ते को कलंकित कर जाता है ...लोग अपना अंजाम कैसे भूल जाते है ..आखिरकार ऐसा बुरा वक़्त किसी पर भी , कभी भी आ सकता है ....मगर क्या किया जाए जब सरे रिश्ते नाते संपत्ति के इर्द गिर्द ही घूमते हो ...
ReplyDeleteआपने एक दुखिया की परेशानी को समझा और उसका दुःख कम करने में उसकी मदद की ...आपकी सहृदयता को दर्शाता है ....
क्या नारी सशक्तिकरण के ठेकेदार इस घटना पर कुछ कहेंगे या उनका सशक्तिकरण सिर्फ गृहस्थी के बंटवारे तक ही सिमित है ...!!
ओह दुखद
ReplyDeleteविभा की कहानी हिला देने वाली है...जब तक देश में एक भी विभा है, किस मुंह से हम विकसित होने का दावा कर सकते हैं...वाराणसी और मथुरा में जबरन भेजी गई बंगाल की विधवाओं का कोई दर्द महसूस करे तो कलेजा मुंह को आ जाता है...
ReplyDeleteजय हिंद...
ऐसी किसी महिला से रु-ब-रु होने का मौका तो नहीं मिला,पर विभा के दुखो का अंदाजा बखूबी लगा सकती हूँ....पति के मौत के बाद औरत की ज़िन्दगी जैसे रुक सी जाती है और बस एक एक पल अपनी मौत के इंतज़ार के सिवा उसके जीवन में कुछ नहीं होता,खासकर अगर कोई संतान भी ना हो.
ReplyDeleteएक ऐसी ही विधवा महिला पर लिखी मेरी कहानी,पिछले महीने ही रेडियो स्टेशन से प्रसारित हुई है...कभी सुनवाउंगी अपने ब्लॉग पर और लिख कर पोस्ट भी करुँगी क्यूंकि रेडियो पर समय सीमा बस १० मिनट की होती है,काफी एडिट करना होता है,सुनकर तुम्हे विभा की कहानी ही लगेगी.
विभा की कहानी पढ़कर बहुत दुःख हुआ साथ ही हमारे लोगों की मानसिकता पर भी दुःख होता है . आपने कहानी के माध्यम बहुत अच्छी बात उठाई है .आपको शुभकामनायें !!
ReplyDeleteसंवेदनशील रचना।
ReplyDeleteअदा जी,
ReplyDeleteआपको इस तरह की बात कथा.लेख आदि की तरह लिखनी चाहिए थी...
सोचिये तो...
इस तरह से ब्लॉग पर विभा का पूरा हवाला देकर लिखना ठीक है क्या....???
आप के या वाणी गीत जी के यहाँ टिप्पणी के लिए क्लिक करने पर साथ ही किसी गेम के प्रचार का पॉप अप खुल रहा है। ऐसा क्यों?
ReplyDelete_________________
अदा बहन! मुझे यह बहुत अच्छा लगता है कि तुम अपने ब्लोग में अक्सर गम्भीर मुद्दों को उठाती हो। जहाँ तक विभा का सवाल है, मेरे विचार से तो सबसे पहले उसे अपने लिये कहीं और रहने की व्यवस्था करके किसी काबिल वकील के माध्यम से कानूनन अपना हक माँगना चाहिये। यदि वह ऐसा नहीं करती है तो स्वयं ही खुद के प्रति अन्याय करती है। ऐसा करने में उसे कठिनाइयाँ तो बहुत आ सकती हैं किन्तु यदि कोई यदि ठान ले तो कठिनाइयाँ उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकतीं। "मन के हारे हार है मन के जीते जीत"!
ReplyDeleteऔर यह कहानी सिर्फ विभा की ही नहीं बल्कि प्रत्येक उस व्यक्ति की है जो कमजोर है। यह संसार बहुत ही स्वार्थी है और अपने स्वार्थ के लिये कमजोरों पर अत्याचार करती है।
विभा की दर्दभरी कहानी सुनकर दिल कुछ अजीब सा हो गया क्यों ऐसा होता है क्या मानवीय संवेदनाएँ मर जाती हैं, अगर संपत्ति उसकी है तो क्यों नहीं वो कानून की सहायता लेकर "ऐसे" घर वालों को सबक नहीं सिखाती, और अपनी संपत्ति अपने कब्जे में ले ले, "ऐसे परिवार का भी होना न होना" सब बराबर है, तो होने से अच्छा है कि न होना।
ReplyDeleteशायद मेरी बात से असहमति हो परंतु मेरे विचार तो यहीं हैं, ये आपकी मानवीय संवेदना दिखाता है कि अपनी सास के पसंद न आने पर भी आपने उसे मदद दी और जीवन जीने के लिये आत्मबल संबल बढ़ाया। प्रणाम है आपको।
लेकिन एक बात स्पष्ट है....की मध्ययुगीन प्रवृतियां आज भी हमारे समाज में कहीं-कहीं व्याप्त हैं ...क्या हम सचमुच ख़ुद को प्रगतिशील, नीतिवान, ईमानदार आधुनिक कहने का हक रखते हैं...???
ReplyDeleteहालात बद से बदतर हो गये हैं ,हमारे समाज का यह भयावह चेहरा है.
विभा का संघर्ष अंतहीन है। सभी स्थानों पर यही हालत है। विभा केवल वहाँ संपत्ति के लिए अपने जीवन को नष्ट कर रही है। उसे उस परिवार से निकलना होगा। पढ़ी लिखी है अपने पैरों पर खड़ा होने और साथ ही संपत्ति में अपने हक के लिए लड़ना होगा। वर्ना (बात कड़वी है) वर्तमान जीवन जीते जीते ही अंत हो जाना है।
ReplyDeleteआपका आलेख सच में सार्थक सामयिक एवं ज़रूरी है
ReplyDeleteआभार-साधुवाद स्वीकारिये जी
बहुत मार्मिक गाथा है विभा की। समाज मे पता नहीं कितनी विभा इसी तरह की ज़िन्दगी जी रही हैं मगर समाज देख रहा है । कब बदलेगा नारी के लिये युग समझ नहीं आता । विभा के लिउए दुया ही कर सकते हैं धन्यवाद्
ReplyDeleteबालिके
ReplyDeleteमेरे आश्रम में आ अच्छा लिखती है
नित्य लेखन कर विश्व में सुयश पा
बालिके
बहुत मर्मस्पर्शी घटना.....काश विभा में हिम्मत बनी रहे और अपनी लडाई खुद लड़ सके ..
ReplyDeleteआपकी संवेदनशीलता का पता चलता है...
Behad achha andaze bayan hai...haan, hamare samaj me aisee kayi 'vibhayen' maujood hain..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार
yahi to rona hai kaise hum kah sakte hain ki hum pragtisheel hain,hamari soch badal chuki hai jabki aaj bhi hum unhi bediyon mein jakde huye hain..........aur ek aurat ke liye to zindagi abhishap ban jati hai jab uska koi sahara na ho aur wo akoot sampatti ki malik ho..........aaj na jaane kitni hi aisi aurtein hongi jinki aisi durdasha ho rahi hai aur sab kuch jante huye bhi koi kuch nhi kar pa raha .........iske liye us ehi himmat jutani padegi aur apni ladayi khud hi ladni hogi varna ye samaj use aise hi kha jayega.
ReplyDeleteअरे मेरा कमेंट तो करटेल हो कर छपा है।
ReplyDeleteदेखिए इस तरह की समस्याएँ स्पेस एज में पहुँचने के बाद भी रहेंगी। इस तरह के परिवारी जन के साथ सहानुभूति का कोई अर्थ नहीं है। प्रोफेशनल पारिवारिक सलाहकारों के साथ बैठ कर 19-20 कर मुआमला सुलझाया जा सकता है।
उस परिवार में कोई तो थोड़ा पॉजिटिव होगा।
अगर बात और बिगड़ी है तो विभा जी को बाहर आना चाहिए। पढ़ी लिखी अकेली औरत के लिए सुरक्षा, छत ,रोटी और कपड़ा प्रशासन, मित्रों और खुद के सहयोग से arrange हो सकते हैं।
चुप चाप झेलना तो हरगिज समाधान नहीं है।
हमार कानून !!!!! जहां एक बलात्कार प्रमाणित करने के लिए २० साल लग जाते है और बलात्कारी आराम से घूमता फिरता है :(
ReplyDeleteधन-सम्पत्ति आज स्वयं मानवता से बड़ी चीज हो गई है । समाज में व्यक्ति बहुत स्वार्थी हो गया है । मुझे इससे क्या लेना ? प्रवृत्ति बढ़ती ही जा रही है । स्वयं महिला महिला की दुश्मन बनती जा रही है । महिलाएँ कानून का दुरुपयोग भी कर रही हैं और कुछ महिलाएँ किसी तरह विभा की तरह किसी तरह जिंदा रहने को लाचार हैं । एक संवेदनशील व्यक्ति इस पूंजी और धन के दुरुपयोग से चिंतीत है ।
ReplyDeleteविभा का दुख ........ ना जाने कितनी विभाओ को मै भी जानता हू
ReplyDeleteबहुत अच्छी पोस्ट
ReplyDeletedi main bhi soch rahi hu.....
ReplyDeleteअत्यन्त दुखद !
ReplyDeleteबहुत मर्मस्पर्शी घटना.....काश विभा में हिम्मत बनी रहे और अपनी लडाई खुद लड़ सके ..
ReplyDeleteआपकी संवेदनशीलता का पता चलता है...