Thursday, January 7, 2010

दहेज़ में धोखा ....




मांग तो थी मोटर साईकिल की ....ये मिला  ....कैसी है...???

सुरेन्द्र "मुल्हिद" के सौजन्य से...


पंखों में अपने वो भी  डंक छुपाने लगीं हैं  




आरज़ूओं के समंदर इतने छोटे हो गए हैं
कि ख्वाहिशों की बूंदें नज़र आने लगी हैं

अब हम कहाँ  हँसते  हैं पहले की तरह
दुखती सी है इक रग जो सताने लगी है 

तितलियों से भी दूर ही रहते हैं हम सुनो
पंखों में अपने वो भी  डंक छुपाने लगीं हैं 

कर डाला तुमने चाक गिरेबाँ ही हमारा
पर यादें बढ़के मरहम अब लगाने लगीं हैं

रुका  हुआ मुसाफ़िर , मुसाफ़िर कहाँ जी  
ख़ुद राहें भी उनसे तो अब कतराने लगीं हैं

क्यूँ देखें राह नाख़ुदा का कह दो तुम 'अदा'
जब लहरें ख़ुद अब रास्ता  दिखाने लगीं हैं


20 comments:

  1. क्यूँ देखें राह नाख़ुदा का कह दो तुम 'अदा'
    जब लहरें ख़ुद अब रास्ते दिखाने लगीं हैं

    -बहुत खूब..बेहतरीन!

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  2. दहेज़ में साइकिल है , बाईक है या रिक्शा है ...??
    ये दहेज़ किसने दिया किसको दिया ..?

    तितलियाँ पंखों में डंक छुपाती है ...इस ख्याल से ही दहशत होती है ...
    बेचारी तितलियाँ तो आंसू बहाना ही नहीं जानती ...
    चाक गिरेबान यादों के मरहम से संभल जायेंगे ...??
    हाँ...ठीक ही है ...जब लहरें खुद रास्ता दिखाती हों तो नाखुदा का इतंजार क्यों ...!!

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  3. छई छप छई...छपाक छई
    पानियों पे छींटे उड़ाती हुई लड़की
    देखी है हमने
    आती हुई लहरों पे जाती हुई लड़की...

    जय हिंद...

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  4. कर डाला तुमने चाक गिरेबाँ ही हमारा
    पर यादें बढ़के मरहम अब लगाने लगीं हैं

    bahut khoob....!!!!!!

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  5. रुका हुआ मुसाफ़िर , मुसाफ़िर कहाँ जी
    ख़ुद राहें भी उनसे तो अब कतराने लगीं हैं

    ये मुसाफ़िर क्या मैं हूँ, बस यही सोच रहा हूँ।

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  6. दहेज के लालची लोगों के लिये एकदम उपयुक्त वाहन है!

    तितलियों से भी दूर ही रहते हैं हम सुनो
    पंखों में अपने वो भी डंक छुपाने लगीं हैं


    आज के जमाने का असर है!

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  7. चाक गिरेबाँ ...... नगमा जेरे जमी है दफ्न मगर

    हैरा है इस वीराने क नाम गुलिस्ता आज भी है.

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  8. ये दहेज वाला सनसनीखेज टाइप शीर्षक क्यों?
    वैसे बाइक अच्छी लगी । कितने में बिक रही है? सुमनवा का बियाह तय हुआ है, हमरे जिम्मे यह सामान तय किया गया है, सो दाम पूछ रहे हैं।

    ग़ज़ल सुन्दर है। इसकी लय /धुन आप की फेवरिट है जिस पर आप पहले भी रच चुकी हैं।

    जाने क्यूँ लगा कि सहायक क्रिया, सर्वनाम और एकाक्षरी शब्दों की प्रूनिंग कर दूँ लेकिन फिर सहम गया कि कैंची चलाना आया नहीं और बागों के वृक्ष सँवारने की सोचने लगे !

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  9. हा-हा-हा-हा-हा-हा-हा-हा
    हा-हा-हा-हा-हा-हा-हा-हा
    हा-हा-हा-हा-हा-हा-हा-हा
    हा-हा-हा-हा-हा-हा-हा-हा
    हा-हा-हा-हा-हा-हा-हा-हा
    हा-हा-हा-हा-हा-हा-हा-हा

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  10. आरज़ूओं के समंदर इतने छोटे हो गए हैं

    कि ख्वाहिशों की बूंदें नज़र आने लगी हैं



    तितलियों से भी दूर ही रहते हैं हम सुनो
    पंखों में अपने वो भी डंक छुपाने लगीं हैं

    कर डाला तुमने चाक गिरेबाँ ही हमारा
    पर यादें बढ़के मरहम अब लगाने लगीं हैं
    अदा जी,
    बहुत खूबसूरत ग़ज़ल कही है....पहला शेर बहुत अच्छा लगा....ख्वाहिशों की बूंदे ..

    एक बात पूछनी है.....ख्वाहिश और आरज़ू के अर्थ में क्या अंतर है...स्पष्ट करना चाहती हूँ ..मैं थोड़ा कनफुजिया रही हूँ ...आशा है आप ज़रूर बतायेंगी

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  11. तितलियों से भी दूर ही रहते हैं हम सुनो
    पंखों में अपने वो भी डंक छुपाने लगीं हैं

    कर डाला तुमने चाक गिरेबाँ ही हमारा
    पर यादें बढ़के मरहम अब लगाने लगीं हैं \वाह लाजवाब । ये दहेज की क्या सनसनी है? क्या चोरी की बाईक दहेज मे? हा हा हा

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  12. "आरज़ूओं के समंदर इतने छोटे हो गए हैं"
    पहले दिल, फिर दिलरुबा, फिर दिल के मेहमां हो गए :)

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  13. क्यूँ देखें राह नाख़ुदा का कह दो तुम 'अदा'
    जब लहरें ख़ुद अब रास्ता दिखाने लगीं हैं

    khubsurat khyal...or kamal ka sheershak :)

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  14. सोच रहा हूँ.. ये बाईक फायनेंस करवा लु.. बहुत महँगी होगी ना.. :)

    तितलियों से भी दूर ही रहते हैं हम सुनो
    पंखों में अपने वो भी डंक छुपाने लगीं हैं


    बदलती दुनिया को नोटिस कर लिया आपने.. इस नज़र को सलाम

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  15. @संगीता स्वरुप जी,
    आरज़ू और ख्वाहिश ..देखे तो एक ही बात है लेकिन...मेरे ख़याल से
    आरज़ू उसे कहते है जिसकी चाह इंसान पूरे दिल से करता है....और ख्वाहिश उस इच्छा को कह सकते हैं....जो अगर पूरी हुई तो ठीक नहीं तो न सही...
    मैं इन दोनों में यही फर्क समझती हूँ...बाकि मुझसे ज्यादा गुनी लोग हैं ही कोई न कोई बता देवे तो मेहेरबानी....!

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  16. तितलियों से भी दूर ही रहते हैं हम सुनोपंखों में अपने वो भी डंक छुपाने लगीं हैं

    सुन्दर अभिव्यक्ति...

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  17. वाह जी, ये तो टू इन वन है। यानि साइकल भी और मोटर भी। फिर शिकवा कैसा ?

    क्यूँ देखें राह नाख़ुदा का कह दो तुम 'अदा'
    जब लहरें ख़ुद अब रास्ता दिखाने लगीं हैं

    बहुत खूब।

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  18. रुका हुआ मुसाफ़िर , मुसाफ़िर कहाँ जी
    ख़ुद राहें भी उनसे तो अब कतराने लगीं हैं
    बेहतरीन। बधाई।

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  19. bahut bahut shukriya adaa ji, aarzoo ka matlab yani ki shiddat se chaahna hua....

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  20. log har mod pe ruk ruk ke sambhalte kyon hain,
    itna darte hain to ghar se nikalte kyon hain....

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