यह सब कुछ अक्षरश सत्य है, सब कुछ मेरे साथ घटित हुआ है, मैं इस घटना को शब्दों का जामा पहनाने की कोशिश कर रही हूँ,
************************************************************************************

आग कि तरह यह खबर पूरे मोहल्ले में फ़ैल चुकी थी, जब तक मैं घर पहुंची मेरे भाई और माँ-पिताजी गली के मुहाने पर आ चुके थे, मेरे भाई भी सिंह जी से भिड़ने के लिए तैयार थे लेकिन मोहल्ले वालों ने उन्हें पकड़ रखा था, सब पुलिस को बुलाने कि बात कर रहे थे लेकिन सबसे पहले मरियम को डाक्टर की जरूरत थी, माँ-पिताजी मुझसे बहुत ज्यादा नाराज़ थे, मैंने उनसे कहा नाराज़ बाद में होना पहले डाक्टर के पास लेकर जाना ज़रूरी है, हम सभी मरियम को लेकर हास्पिटल पहुँच गए, उसके कानों में स्टिच लगेगा ऐसा डाक्टर ने बताया, डाक्टर हमारे जान-पहचान के थे, उन्होंने पुछा ये चोट कैसे आई, मैंने साफ़ साफ़ बता दिया की गोली चलायी गयी थी हमपर, उन्होंने कहा ये तो पुलिस केस है, इसे अगर मैं हाथ लगाऊँ तो मुझे बहुत प्रॉब्लम हो जायेगी, मेरे मिन्नत करने से वो मान गए की मैं स्टिच तो कर दूंगा लेकिन आपको थाने में रिपोर्ट करनी ही होगी, मैंने कहा डाक्टर साहब आपने तो मेरे मुंह की बात छीन ली, मैं थाने में जाने की सोच ही रही थी, मरियम के कानो का स्टिच हो गया, हमलोग घर वापस आ गए, मरियम को ज्यादा चोट नहीं आई थी लेकिन अगर दो-चार सूत भी इधर-उधर होता तो उसे लाश में तब्दील होते वक्त नही लगता...और यह एक संगीन बात थी.., अब तो घर में सभी लोटा-पानी लेकर मेरे पीछे पड़ गए, किसी को भी मेरे सिंह जी के घर जाने का आईडिया पसंद नहीं आया, और जब मैंने कहा कि थाना जाना है कम्प्लेन करने तो माँ-पिता जी कहने लगे क्या फायदा, थाना प्रभारी भी तो उन्ही का आदमी है लेकिन मुझे कम्प्लेन तो करनी ही होगी, दूसरी बात रिकॉर्ड में आना भी ज़रूरी है कल को कुछ भी ऐसा-वैसा हो गया तो कम से कम हमारे पास कुछ तो सबूत होगा, इतना तो समझ में आ ही गया कि मामला बहुत ही संगीन है, इस तरह गोली चल जाना कोई मजाक नहीं है , अब हम लोगों को खुद को बचाना होगा, मुझे थाने में रिपोर्ट करवानी ही होगी, मैंने वापस आकर मोहल्ले के लड़कों से पुछा कि क्या कोई थाने से आया था उन्होंने कहा कि खबर तो कर दिया था लेकिन कोई आया नहीं है
दूसरे दिन मैं मरियम को लेकर थाने पहुँच गयी, उसकी पट्टियाँ बंधी ही थी और उसको बुखार भी था ...., सुबह के लगभग ९:३० बज रहे थे, मैं पहले भी आ सकती थी लेकिन इतना तो पता ही होता है, सरकारी दफ्तर है पता नहीं साहब कब तशरीफ़ लायें, खैर हम पहुँच गए थाने, मैं अपने साथ दोनों पिस्तौल और गोलियां भी ले गयी थी जो हमारे घर सिंह जी छोड़ गए थे, मैंने थाने के अन्दर प्रवेश किया, बहुत ही अजीब लग रहा था कभी सोचा भी नहीं था कि मुझे थाने जैसी जगह में भी जाना पड़ेगा, मेरे भाई मेरे साथ जाने कि जिद्द कर रहे थे लेकिन मैं उन्हें लेकर जाना नहीं चाहती थी, वैसे भी युवकों को देख कर रही सही सहानुभूति भी ख़तम हो जाती है, फिर चाहे वो बेगुनाह ही क्यों ना हो वो सबको गुनाहगार ही दीखते है, शायद यह हमलोगों कि मानसिकता है, महिला के प्रति लोग थोडा नर्म बर्ताव रखते हैं, मैं यही सोच रही थी किसी भी हाल में मेरे किसी भी भाई का नाम पुलिस के पास नहीं जाना चाहिए क्या भरोसा है पुलिस वालों का, हाँ तो मैं सुबह साढ़े नौ बजे सुखदेव नगर थाना पहुँच गयी, अन्दर गयी तो पुलिस कि वर्दी में फाइलों के बीच एक सिपाही या जो भी रहे होंगे मिले, उन्होंने मुझसे पुछा, हाँ मैडम क्या बात है, मैंने कहा कि मुझे रिपोर्ट लिखानी है एक आदमी के अगेंस्ट, उसने अपनी नोटबुक निकाल ली, हाँ मैडम किसके खिलाफ लिखानी है मैंने कहा "श्री जगदीश सिंह", उसने पुछा कौन जगदीश सिंह, मैंने अपने मोहल्ले का नाम बता दिया, उसने खुली हुई नोटबुक या डायरी जो भी होती बंद कर दी, कहने लगा मैडम जी इसके लिए तो आपको साहब से बात करनी होगी, साहब से क्यों बात करनी होगी आप रिपोर्ट तो लिखिए, मैंने मरियम कि और दिखा कर कहा, देखिये इसे पूरे सर में पट्टी बंधी है, इस पर गोली चलायी है उनलोगों ने, मुझपर भी गोली चलाई है गयी हैं, दो हफ्ते पहले ४ लोग हमारे घर आ गए थे हमें मारने पिस्तौल लेकर, हमारे पास उनकी पिस्तौल भी है, लेकिन फिर कुछ सोच कर मैं चुप हो गयी, वो सब ठीक है मैं आपकी बात समझ रहा हूँ लेकिन मैं कुछ नहीं कर सकता हूँ, उसने फिर कहा, अच्छा मुझे एक बात बताइए कि अगर मैं 'जगदीश सिंह' का नाम नहीं लेती तो आप रिपोर्ट दर्ज करते या नहीं ? उसने कुछ भी नहीं कहा, और अब तो वो मुझे बात करने से भी कतराने लगा, मैं समझ गयी अब कुछ नहीं होगा, फिर भी मैंने पुछा कौन साहब जिनसे मुझे मिलना होगा, जी थाना प्रभारी बिक्रमादित्य सिंह, मैंने कहा ठीक है, उनसे ही बात करवा दीजिये, मैडम वो तो हैं नहीं अभी, अच्छा कब तक आयेंगे? पता नहीं मैडम आप वेट कर लीजिये, हमारे पास और चारा भी क्या था, हम बैठे रहे घंटों, इस बीच श्री बिक्रमादित्य जी का फ़ोन भी आया ऑफिस में क्यूंकि मैंने उनके अर्दली से कहते हुए सुना ' सर एक मैडम बैठी है बहुत देर से 'जगदीश सिंह' का रिपोर्ट कराना चाहती हैं, उधर से क्या जवाब मिला मालूम नहीं, हालाँकि अर्दली ने पूरी कोशिश कि थी धीमें बात करने कि, लेकिन फ़ोन का कनेक्शन का हाल आपको पता ही है ना चाहते हुए भी मजबूर कर देता है ऊँची आवाज़ में बात करने के लिए, हम भी ठान कर गए थे कि आज काम करवा ही जायेंगे, तो जनाब हम बैठे रहे और बैठ रहे, पता नहीं कितने घंटे,इतनी देर तक हमें बैठे देख कर उस अर्दली को भी हम पर दया आने लगी, मैडम आप कल आ जाइएगा, साहब पता नहीं कब तक पहुंचेगे, मैंने भी कहा कोई बात नहीं इस जनम में तो आ ही जाना चाहिए उनको, वो कुछ नहीं बोला , लेकिन वह समझ गया कि सामने जो बैठी है टेढी खीर है,
आखिरकार श्री बिक्रमादित्य सिंह जी कि गाड़ी परिसर में दाखिल हुई, वो गाड़ी से उतारे और धडधाडते हुए अन्दर घुस गए, हम पर नज़र डालने कि ज़रुरत ही नहीं समझी, उनके अन्दर पहुँचते ही अर्दली ने उन्हें बताया कि बाहर एक मैडम सुबह से बैठी हुई है, मुझे और मरियम को सब कुछ सुनाई पड़ रहा था, अर्दली ने आगे बताया कि मैडम और उनके साथ जो आई हैं उनपर जगदीश सिंह ने गोली चलाई है और....
"ठीक तो किया है " बीच में ही थाना प्रभारी श्री बिक्रमादित्य सिंह खुद बोल पड़े, उनका अर्दली पूरी बात भी नहीं बता पाया, जगदीश सिंह ने हमपर गोली चला कर
"ठीक किया है" इस बात को एक थाना प्रभारी के मुंह से सुनना मुझे गंवारा नहीं था, मैं जान गयी थी कि यहाँ कुछ नहीं होगा, बिना इजाज़त मैं श्री बिक्रमादित्य सिंह के केबिन में घुस गयी और बोल पड़ी , सिंह जी मैं सुबह से एक घायल लड़की को लेकर बैठी हुई हूँ और आपने बिना हमारी बात सुने फैसला कर लिया कि हमारे साथ आपके मित्र जगदीश सिंह ने जो भी किया वह ठीक किया, तो मैं आपको बता दूँ कि अब आपसे मैं कोई भी बात नहीं करुँगी, अब मेरी बात आपके अफसर से होगी, और एक बात जब इस तरह कि बात आप करते हैं तो कृपया दरवाजा बंद रखा करें, तब कमसे कम लोगों को आपकी असलियत का पता नहीं चलेगा, आप लोग विश्वास कीजिये इस अकस्मात बोली कि बौछार ने श्री बिक्रमादित्य सिंह कि बोलती बंद कर दी , वो मेरा मुंह ताकते रह गए थे, मैंने मरियम, कि बांह पकड़ी और दनदनाती हुई निकल गयी, पिस्तौल गोली उनको दिखाने का अब कोई औचित्य भी नही था....लिहाजा मैं सब अपने साथ ले आई...
अब मैंने पता करना शुरू किया यहाँ का डी.सी कौन है ? डी.सी. थे श्री मदन मोहन झा, उस दिन तो डी.सी. से मिलने जाने का प्रश्न ही नहीं होता था क्योंकि थाने में ही हम बहुत सारा समय गवां चुके थे, मैंने फैसला किया कि मैं दोसरे दिन सुबह जाऊँगी, अगले दिन मैं सात बजे सुबह डी.सी. मदन मोहन झा के आवास/ऑफिस में पहुँच गयी, बाहर संतरी खडा था, मैंने कहा मुझे मिलना है डी.सी. साहब से उसने साफ़-साफ़ मना कर दिया बिना appointment साहब से मिलना नहीं हो सकताऔर वैसे भी साहब अभी सो रहे हैं, ऑफिस में वो दस बजे आते हैं, आप तब आइयेगा और appointment ले लीजियेगा, मेरा दीमाग तो वैसे ही भन्नाया हुआ था, मैं संतरी के लाख रोकने पर भी नहीं रुकी, आपके साहब सो रहे है, हम यहाँ रोज गोली खा रहे हैं और वो सो रहे हैं, कैसे सो रहे हैं, उनको अभी इसी वक्त उठाइए, मुझे अभी बात करनी है, संतरी जितना मुझे बोलता मैडम आप नहीं मिल सकती है, मुझे उतना ही गुस्सा आता जाता, मेरी आवाज़ और ऊँची होती जाती, मैंने वहां बहुत ज्यादा शोर मचा दिया, इतना कि डी.सी.मदन मोहन झा को नींद से जागना पड़ा, वो हाउस गाउन में ही बाहर आगये और संतरी से पुछा 'यह क्या हो रहा है ? कुछ नहीं सर यह मैडम मान ही नहीं रही है, हम बता चुके हैं आप सो रहे हैं, अब मेरी बारी थी,मैंने वही खड़े-खड़े कहना शुरू कर दिया 'सर आप कैसे सो सकते हैं, मुझे बताइए मेरे पूरे परिवार को घर में घुस कर लोग पिस्तौल दिखाते हैं, मौका मिलने पर गोली भी चला दिया, मैं थाना जाती हूँ तो तो थाना प्रभारी श्री बिक्रमादित्य सिंह कहते हैं कि वो गुंडा जो भी कर रहा है ठीक कर रहा है, और आप सो रहे हैं, नहीं सर मैं आपको सोने नहीं दूंगी, आपको इसी वक्त मेरी बात सुननी है , मैं यहाँ से हिलने वाली नहीं हूँ, डी.सी.साहब ने संतरी से कह दिया 'उन्हें अन्दर आने दो', डी.सी. साहब ने खुद ऑफिस खोला, उन्होंने मुझे अन्दर बुलाया बिठाया ,और सारी बात सुनी, मैं अपने साथ दोनों पिस्तौल और गोली भी लेकर गयी थी , मैंने वो सारे ख़त उन्हें दिखाया, यह भी बताया कि जय अब उमा से कोई रिश्ता नहीं रखना चाहता है, हम लोग भी वही चाहते हैं जो जगदीश सिंह चाहते हैं, लेकिन वो ना सिर्फ हमारे परिवार को दहशतज़दा कर रहे हैं बल्कि जान से मारने कि भी पूरी कोशिश कर रहे हैं और इस काम में सुखदेव नगर के थाना प्रभारी श्री बिक्रमादित्य सिंह जी उनका पूरा साथ दे रहे हैं, डी.सी. साहब ने मेरी पूरी बात अपने हॉउस गाउन में ही सुनी, उन्होंने ब्रश भी नहीं किया था, सारी बात सुन कर उन्होंने कहा अब आप इत्मीनान से घर जाइये यह समस्या अब आपकी नहीं रही मेरी पर्सनल समस्या हो गयी है, और एक बात 'आपका यह जूनून ज़िन्दगी में कभी भी कम नहीं होना चाहिए' मैं तो बस नतमस्तक हो गयी, डी.सी साहब मुझे बाहर तक छोड़ने आये, ऑफिस के बाहर संतरी अब भी खडा था, मैं उसे देख कर मुस्कुरायी वो भी मुस्कुराने लगा, मैंने सलाम के लहजे में अपना हाथ उठाया बदले में उसने भी उठाया, वहाँ से निकलते वक्त मेरा पूरा बदन हवा में उड़ने लगा मानो मुझे पंख लग गए हों...
क्रमशः