Sunday, November 1, 2009
'रीढ़ की हड्डी' है कि नहीं ....??
सुना कि २९ अक्टूबर को राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटिल गयी थीं लन्दन, महारानी एलिजाबेथ से कॉमनवेल्थ खेलों के लिए 'बैटन' या 'बेतोन' लेने के लिए....
क्या हो रहा है....??
क्या हम दिमागी तौर पर इतने ज्यादा गुलाम हो गए हैं कि अपने इतिहास को ही भूल गए हैं.......???
आज तक किसी भी देश के 'हेड ऑफ़ स्टेट' ने इस लकुटी को महारानी से लेने कि जहमत नहीं कि.... कॉमनवेल्थ के अर्न्तगत ५३ देश आते हैं जिसमें से एक 'नौरु; भी है....आज तक उनके यहाँ से भी कोई नहीं आया ..इस 'बैटन' या 'बेतोन' या 'लकुटी' को लेने लन्दन .....
बहुत ज्यादा वितृष्णा होती है जब यह सुनते हैं कि श्रीमती पाटिल के पास समय नहीं है हुसैनीवाला आने के लिए ...जहाँ भगतसिंह और राजगुरु कि यादें हैं...उन्हें समय नहीं मिला है जालियांवाला बाग़ देखने का ........लेकिन लन्दन में महारानी के दरबार में शीश झुकाना उन्होंने बहुत जरूरी समझा.......जैसे और देश भेजते हैं अपने नुमाइंदे ...भारत से भी कोई चला जाता.......क्या जरूरी था 'राष्ट्रपति' को जाना ? सुना है कि 'ड्यूक ऑफ़ विंडसर' के द्वारा 'पटेलों' पर भद्दा सा मज़ाक वो सुन चुकी हैं....और इस घटिया मज़ाक पर प्रतिभा जी को कोई खेद भी नही हुआ...
मुझे नहीं मालूम वो मज़ाक क्या था...अगर आप जानते हैं तो कृपा करके बताइयेगा........
उसपर से तुर्रा ये कि हमारे महा-महीम कपिल देव जी ने भी दिल खोल कर बताया है कि उन्हें कितना अभिमान हुआ अपना नाम आगंतुकों की लिस्ट में देख कर.....मुझे समझ में ये बात नहीं आती कि खासियत क्या है महारानी एलिजाबेथ में......??? इसके अलावा कि उनके पूर्वजों ने पूरी दनिया में जी भर के अत्याचार और लूट-खसोट किया है .. इसके अलावा और किया क्या है ?? कुछ भी तो नहीं .....फ़िर भी ये महारानी हैं क्यूँ.....??
आज जब अमेरिका पूरी दुनिया में 'प्रजातंत्र' की तुरही बजा रहा है....इन महारानी को किस बात के लिए सिंघासन में विराजमान रखा जा रहा हैं....क्यूँ ..क्यूँ ...??? जबकि पूरे विश्व में सबसे ज्यादा सत्ता की लोलुपता दिखा कर अपनी 'कॉलोनियों' का जमावाडा इन्होने ही किया है......घटिया राजनीति का खेल इन्होने ने ही सैकड़ों वर्षों तक खेला है...
इन्होने हमारे भारत को तो पूरे २०० साल तक बर्बरता से लूटा है ......क्या यह इतनी जल्दी भूलनेवाली बात है ?? इनके 'Divide and Rule' का खामियाजा हम हर दिन भर रहे हैं....हमारे बीच जो 'हिंदू-मुस्लिम' वैमनस्य का बीज वो बो गए थे आज वो पेड़ बन कर ...न जाने कितने कहर ढा रहा है....फ़िर भी इनके दरबार में 'दरबारी' बनने में ये लोग फक्र महसूस करते हैं.......क्या हम भारतीयों का आत्मसम्मान रसातल में चला गया है....?? क्या हम भारतीय वाकई रीढ़ की हड्डी विहीन हैं ? ........
होना ये चाहिए कि हमें आज......इन महारानी और उनके पिछ्लगुओं से ''जलियावाला बाग़' के काण्ड का मुआवज़ा और हिसाब लेना चाहिए......उनसे हमारा 'कोहीनूर' हीरा वापस माँगना चाहिए......उनसे हमें माफ़ी चाहिए पूरी दुनिया के सामने .....उन सभी बातों के लिए जो उन्होंने पूरे २०० साल तक हमारे साथ किया है....न कि उनके दरबार में मत्था टेकना चाहिए......
मुझे सख्त एतराज़ हैं राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल की इस हरक्कत पर......
श्रीमती प्रतिभा पाटिल और कपिल देव को भारत का इतिहास पढ़ना बहुत ज़रूरी है......साथ ही दोनों की जांच होनी चाहिए उनकी 'रीढ़ की हड्डी' है कि नहीं ....??
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Aise hi jabardast aalekh likhne chahiye Di, main to in mahila ko Kabhi apna Rashtrapati n=manta hi nahin, kahne me sharm aati hai(aaj se nahin usi din se jab se ye bani thi aur iske khilaf ke sare aapradhik mamlon ki jaanch band ho gayee thi). Yahan par Jab Shree APJ Kalaam ji aaye to logon ne bade garv se kaha ki 'Ex Indian Presidentt is here', lekin iske aane pe sabne yahi kaha ki 'Pratibha Patil is coming' isi baat se logon ke dil me iske samman ka pata chalta hai. Bina kisi uplabdhi ke jinhe sirf congress ki chaploosi se desh ka sabse bada pad mil jaye unse aur asha hi kya kar sakte hain. khar wo 'patel' wala joke to majak hi tha myjhe bhi usme kuchh naslwaad nahin laga bas media ko masala chahiye tha mil gaya. Duke ne ek Industrialist ke baiz pe patel likha dekh ke bola tha ki 'aaj tumhare parivaar ke kafi log yahan par maujood hain Mr.Patel', ho sakta hai ye baat aapattijanak ho lekin kaise main nahin samjha.
ReplyDeletekuchh logon ko ye hi aapatti hai ki sare Patel ko 1 pariwar kyon bol diya?
Jai Hind
"रीढ़ की हड्डी"(?) वो क्या होता है? कभी पहले भी थी? अरे जब सच्चे लोकतन्त्र की आदत ही नहीं पड़ी अब तक देश में, तो विदेशों में कैसे पड़ेगी… इधर भी तो महारानी और युवराज से आगे नहीं देख पाते, वैसा ही आचरण उधर भी है… रीढ़ की हड्डी होती तो अफ़ज़ल को फ़ांसी न चढ़ा दिये होते अब तक?
ReplyDeleteहोना ये चाहिए कि हमें आज......इन महारानी और उनके पिछ्लगुओं से ''जलियावाला बाग़' के काण्ड का मुवाजा और हिसाब लेना चाहिए......उनसे हमारा 'कोहीनूर' हीरा वापस माँगना चाहिए......उनसे हमें माफ़ी चाहिए पूरी दुनिया के सामने .....उन सभी बातों के लिए जो उन्होंने पूरे २०० साल तक हमारे साथ किया है....न कि उनके दरबार में मत्था टेकना चाहिए......
ReplyDeleteमुझे सक्त एतराज़ हैं राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल की इस हरक्कत पर......
श्रीमती प्रतिभा पाटिल और कपिल देव तो भारत का इतिहास पढ़ना बहुत ज़रूरी है......साथ ही दोनों की जांच होनी चाहिए उनकी 'रीढ़ की हड्डी' है कि नहीं ....??
shrimati nahi lagaunga main is 10 janpath ke chaaploos ke naam ke aage.. aaj desh aur desh ke sabse mahatvapoorn pad beche ja rahe hain.. khud ko aazadi dilane walon ka uttaradhikaari batane wale aaj desh ke thekedaar ban gaye hain.. ek kalam sahab bhi hamare rashtrapati the, aur ek ye rubber stamp hai jo muhar lagane se pahle 10 janpath phone lagati hai... agar thodi bhi iccha janta ki chalti is jantantra mein to kalam ta-umra hamare rashtrapati bane rahte...
jai hind...
हमने ना जाने कितनी चाटुकारिता की तब हम कहीं जाकर राज्यपाल बन पाए। फिर एक दिन अचानक हमारी मेडम को राष्ट्रपति के लिए कोई नाम नहीं मिला जिसके पास कोई सी भी हड्डी वड्डी नहीं हो, तब हमारा खयाल आया और हम रातों-रात राष्ट्रपति बन गए। हमने कभी देश भी नहीं घूमा था तो अब पद आने पर हमें लगा कि कोई भी मौका आए हम विदेश जाकर ही आएंगे। वैसे भी हमारे पास कोई काम तो यहाँ है नहीं, जब हमारे प्रधान मंत्री जी के पास ही काम नहीं है तो हमारे पास क्या होगा? बेचारे माँ-बेटे दोनों ही लगे रहते हैं। अब हम इंग्लैण्ड क्या घूम आए आपको हमारी रीड की हड्डी ढूंढनी पड़ गयी। अरे हमारे यहाँ तो इस नस्ल का कोई भी प्राणी नहीं है।
ReplyDeleteअदाजी आप लिखती अच्छा हैं, आपको हम अगली बार पदमश्री के लिए नामांकित कर देंगे लेकिन ऐसी बाते दोबारा मत लिखना।
"होना ये चाहिए कि हमें आज......इन महारानी और उनके पिछ्लगुओं से ''जलियावाला बाग़' के काण्ड का मुवाजा और हिसाब लेना चाहिए......उनसे हमारा 'कोहीनूर' हीरा वापस माँगना चाहिए......उनसे हमें माफ़ी चाहिए पूरी दुनिया के सामने .....उन सभी बातों के लिए जो उन्होंने पूरे २०० साल तक हमारे साथ किया है..."
ReplyDeleteहोना तो चाहिये किन्तु कैसे होगा? कौन करेगा? हमें राष्ट्रगीत के रूप में आज तक जार्ज पंचम की स्तुति गवाने वाले ये राजनीतिबाज?
स्वतन्त्रता पा जाने के बाद भी आज तक हम मानसिक गुलामी ही कर रहे हैं।
शान्तं शान्तं अदा जी -यह भयंकर लेखनी तो पहली बार देखी आपकी -सुलगती और धधकती .
ReplyDeleteपर बात पते की है ! है कोई गैरतमंद ?
कभी दिखी यह रीढ की हड्डी फिर आज के सन्दर्भ में कैसे उम्मीद की जा सकती है.
ReplyDeleteआपका यह तेवर अलग सा दिखा
जिस प्रकार आपकी भाबनायें,केवल राश्ट्रप्रति का केवल कोमनवेल्थ के लिये बेटन लेने ब्रिटेन की महारानी के पास गयीं थी,ऐसे ही मेरी भाबनाये आहत हुई हैं ।
ReplyDeleteअंग्रेज़ चले गये मगर्………………… फ़िलहाल तो बेटे को विधायक बनाने की कसरत शुरू थी अब उसे मंत्री बनाने मे समय बीतेगा,फ़ुरसत मिलेगी तो पढेंगे ना भारत का इतिहास,फ़िलहाल तो अपना वर्तमान और भविष्य बनाने से फ़ुरसत नही है।बहुत सही लिखा आपने।सलाम करता हूं आपको और आपकी कलम की धार को।
ReplyDeleteसिर्फ़ बैटन ले कर आ गई..गलत बात है ..होना तो ये चाहिये था कि सब पूछ कर आती कि राष्ट्रमंडल खेलों मे किस अंग्रेज को कौन सा मेडल देना है...वैसे यदि अभी भी देश उनको ही सौंपे दिया जाए..तो हर्ज का है..ई सब भी चोर ..और ऊ सब भी डकैत...इससे ज्यादा की अपेक्षा भी नहीं है उनसे,,..
ReplyDeleteyeh ek aisi rashtrapati hai ......... jo pehle indira gandhi ki baawarchi thi..... ab baawarchi kya jaane ..itihaas..........kya bhugol aur dharm..? yeh aisi rashtrapati hai... jisko rashtrapati bolne bhi sharm aati hai....
ReplyDeleteiske upar to mere chaaron kutte bi na m**ten..... bechare bahut standard ke hain aur itihaas bhi jaante hain.... aur apni beizzati to katai nahi sah sakte....
हिन्दी चिठठाकारीता फले-फुले!!
ReplyDeleteआपका लेखन प्रकाश की भॉति
दुनिया को आलोकित करे!!!!
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जय ब्लोग- विजय ब्लोग
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अदाजी!
फिर से आता हू। पढकर कुछ लिखुगा क्यो कि
यह भी मेरे पसन्द का विषय है।
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हे प्रभू यह तेरापन्थ को पढे
अणुव्रत प्रवर्तक आचार्य तुलसी
मुम्बई-टाईगर
बहुत अच्छा और सटीक लिखा है.
ReplyDeletevah adaji
ReplyDeletechlaiye apni kalm ki paini dhar ham aapke sath hai .
कोई कमेन्ट नहीं...
ReplyDeleteहमारी राष्ट्र पति कौन है वो बताने के लिए धन्यवाद...
बाकी हर एरे गैरे मंत्री की भी पोस्ट डालनेंगी तो हम कमेन्ट नहीं दे सकेंगे ..
जब हम किसी को जानते ही नहीं तो........!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
अदा की इस रंग बदलती अदाओं के क्या कहने ....कभी शोला कभी शबनम ...
ReplyDeleteरीढ़ की हड्डी ...क्या शब्द चुनकर लाई हो ...यदि यही होती तो ...क्या क्या नहीं होता ...लम्बी सूची बन जायेगी ...वैसे क्या हमारा संविधान सुदृढ़ रीढ़ वाले राष्ट्रपति निर्वाचित करने की इजाजत देता है .....??
साथ ही तारीफ करनी होगी डॉ.श्रीमती अजीत गुप्ता जी की, जिन्होंने बहुत ही सुन्दर टिप्पणी दी है प्रतिभा पाटिल की आवाज़ बन के....
ReplyDeleteजय हिंद.
राजकीय सम्मान के साथ ब्रिटेन की शाही मेहमाननवाजी का लुत्फ उठाते हुए क्या राष्ट्रपति जी महारानी से ये मांग कर सकती थीं कि हमारा कोहेनूर हीरा वापस लौटा दो...या जलियांवाला कांड के लिए ब्रिटेन माफी मांगे...अग्रेजों से हमे भौतिक आज़ादी तो मिल गई लेकिन मानसिक तौर पर गुलामी का ये भूत हमारे नेताओं के दिमाग से नहीं गया...
ReplyDeleteजय हिंद...
डॉ.श्रीमती अजित गुप्ता जी,
ReplyDeleteआपकी लाजवाब टिपण्णी के लिए बहुत आभारी हूँ....बहुत ही करारी चोट दी है आपने, काफी संतुलित और सही...धन्यवाद...
माननीय राष्ट्रपति महोदया,
मुझे मेरे पद्मश्री में नामांकन की प्रतीक्षा रहेगी और....वादा करती हूँ....उसके बाद कभी भी ऐसा नहीं लिखूंगी...बस एक बार पद्मश्री मेरे नाम हो जाए.....देखिये भूलियेगा मत....हा हा हा हा
वाह !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
ReplyDeleteब्रिटेन से हम क्या मांगें इससे ज्यादा बड़ा सवाल ये है कि हम जो अब खोते जा रहे हैं उसे कैसे बचाएं ये नेता इतना तो सोच नहीं पा रहे पुरानी चीजें क्या खाके लौटा लाएंगे। वैसे मेरी सोच में कोहिनूर लाने की बात हमें रोमांचित भले करती हो दरअसल बदले जमाने में अगर हमारी आर्थिक-सामरिक ताकत इतनी हो कि कोई हमारी तरफ आंख उठाकर न देख सके तो, समझिए पूरा देश ही कोहिनूर हो गया।
ReplyDelete.
ReplyDelete.
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अदा जी,
एक अच्छा मुद्दा उठाया आपने, बदलते वैश्विक परिदॄश्य में भारत को राष्ट्रमंडल का सदस्य बने रहने का कोई लाभ या आवश्यकता है?... इस पर भी एक बहस की जरूरत है आज...
और हाँ, कोई यह भी तो कह सकता है कि महामहिम राष्ट्रपति महोदया ने खेल प्रेमी होने के कारण लन्दन जाना मंजूर किया होगा।
मैं जानता हूँ कि मेरी ओर से यह लगभग बर्र के छत्ते को छेड़ना जैसा होगा पर मैं और मेरे जैसे तमाम लोग मानते हैं कि अपनी तमाम गलतियों और कमियों के बावजूद यह अंग्रेज कौम ही थी जिसने दुनिया और खासतौर पर हमको निम्न विचार दिये:-
सबके लिये एक सा न्याय...
लोकतंत्र...
भारत जैसे रजवाड़ों, निजामों, रियासतों, और नवाबों के राज में बंटे भुभाग को एक नेशन-स्टेट होने का सपना और आत्मविश्वास...
हाशिये पर रह रही जातियों को समानता का अधिकार...
आधुनिक शिक्षा व्यवस्था...
प्रशासनिक व्यवस्था का लौह ढांचा...
सती प्रथा का उन्मूलन...
एक ईमानदार, सशक्त, सेक्युलर और अराजनीतिक सेना...
निम्न और मध्य वर्ग को उंचे उठने के अवसर...
काफी कुछ और जुड़ सकता है इस लिस्ट में...
अदाजी, एक ओजस्वी पोस्ट के लिए बधाई. मुद्दा सामयिक है और महत्त्वपूर्ण भी, आपने अच्छी तरह से उठाया, धन्यवाद.
ReplyDelete@ प्रवीण शाह जी,
जूता हमें दिनभर कील-कांटो, कंकर पत्थर, सर्द-गरम से बचाता है लेकिन शय्या पर जाते हुए हम उसे नीचे ही छोड़ देते हैं साथ लेकर नहीं सोते.और जूते को बरतते हुए भी हम यह भूल नहीं सकते कि वह किसी जीव कि चमड़ी खींचकर ही बना है.
रीढ़ : ई कौनो किसम का केंचुआ होत हई?
ReplyDeleteक्या हम भारतीयों का आत्मसम्मान रसातल में चला गया है....?? क्या हम भारतीय वाकई रीढ़ की हड्डी विहीन हैं ? ........
ReplyDeleteइन वाक्यों में से क्या शब्द और प्रश्न वाचक चिन्ह हटा दीजिये।
प्रवीण जी, लिस्ट चाहे जितनी लंबी करें, ये सब भ्रामक बातें तो योरपीय लेखकों की हैं, अंग्रेजों के भारत में राज्य से पहले का इतिहास पढें , ये सारी लिस्ट असभ्य, असांस्कृतिक अंग्रेजों ने भारतीयों से सीखी ,इंग्लेंड लेगए, फिर भारत से लूट-खसोट के धन से, अपने पक्ष में किताबें आदि लिखवा कर भारतीयों को बरगलाकर उन्हें गुलाम बनाया,कंचन-कामिनी के सहयोग से संस्कृति नष्ट करके देश पर अधिकार करके पुनः हमें ही वही पाठ अंग्रेजी में पढाने लगे |
ReplyDeleteBahut khoob!!!
ReplyDeleteभाई प्रवीण शाह की टिप्पणी का उत्तर मैंने अपनी नवीन पोस्ट अंग्रेजी खूनी पंजे के अन्तर्गत दिया है। आप सब उसे पढ़े और अंग्रेजों के असली चेहरे को देखे।
ReplyDeleteअरे छोड़िये अदा जी ! क्या सवाल ले बैठीं आप भी " रीड़ की हड्डी ही नहीं है.?..ये भी कोई सवाल हुआ भला?.....अरे छोड़िये कोहिनूर और लूटा हुआ खजाना ....वो अपने इतिहास की किताबों में खुले आम हमारे शिवाजी को बहशी लुटेरा ,अपनी ही माँ बहनों की इज्जत लुटने वाला और..भगत सिंह को आतंकवादी कहते हैं ...तब हमारा स्वाभिमान नहीं जागता....तो इन चापलूसों को राजनीति में उनके तलुबे चाटने में क्या बुरा लगेगा.
ReplyDeleteaapki baton se main puri tarah sahmat hun....mere blog par aapka swagat hai
ReplyDeleteअदा जी,
ReplyDeleteक्या बात कह दी आपने..
प्रवीण जी को भारत का इतिहास पढना बहुत ज़रूरी है..इन अंग्रेजो के पास क्या है ? कुछ भी तो नहीं.
जो अपने माँ-बाप के नहीं होते वो किसी के क्या होंगे. ??
इन्होने हम पर २०० वर्ष राज किया अब हमारे लोग इनपर २००० वर्षो तक राज करेंगे..देखिये न पूरी इंग्लॅण्ड हिन्दुस्तानियों से भर चूका है, बहुत सही हो रहा है.
बहुत ही ओजपूर्ण पोस्ट पढ़ी आपकी. बहुत दिनों के बाद आया हूँ.
और बहुत ख़ुशी हुई है
अदा जी,
ReplyDeleteक्या बात कह दी आपने..
प्रवीण जी को भारत का इतिहास पढना बहुत ज़रूरी है..इन अंग्रेजो के पास क्या है ? कुछ भी तो नहीं.
जो अपने माँ-बाप के नहीं होते वो किसी के क्या होंगे. ??
इन्होने हम पर २०० वर्ष राज किया अब हमारे लोग इनपर २००० वर्षो तक राज करेंगे..देखिये न पूरी इंग्लॅण्ड हिन्दुस्तानियों से भर चूका है, बहुत सही हो रहा है.
बहुत ही ओजपूर्ण पोस्ट पढ़ी आपकी. बहुत दिनों के बाद आया हूँ.
और बहुत ख़ुशी हुई है
waah !
ReplyDeleteaisi hi ozpoorn post ki awashyakta hai indinon.
There is no need to get emotional. Just like you are not resposible what your great grand father did, I don't see how the current Queen is responsible for colonization. 17-19th century period was defined by the stronger kingdoms overtaking weeker ones. That occurred in every part of the world. Stong ruled and weeker got rulled over. Nothing new there. Arabs, Persians all did the same earlier in 11-17th centuries. British were far more sensible colonizer compared to others such as Germans or Japanese (and Arabs, Afgans and Persians - remember slave dynasty in India). It was result of British colonizations that created a country called India otherwise India was just 700 odd kingdoms and there would have been no country called India. As a result of that victory, now Indians can rule them selves otherwise Indians would have been still ruled by Mughals and their offspings and still living in stone age. I don't want to defend the atrocities of colonization period, but all other rulers were equally brutal. British at least set up Universities, Judicial System, Postal System, Telephone System and Policing System - what did the Mughals do in their 400 years of rule except maintaining some big harems in the Forts? In any case, stop blaming British for all ills even after 60 years of independence. So stop getting emotional start think rationally - are you responsbile what your great great father did to someone?
ReplyDeleteThere is no need to get emotional, but the question was why to bend the knees beeing an indepandent country, a trator is traitor & when histoyr will be remembered it wil be said to be same; I think you will relish the 'RABAdee, ras malaaee, kheer ' given with 100 chaabuks (lashes). These developements were ,just time dev. & had to come whosoever be the ruler. Moughals, shershaah sooree etc. too gave many developements to this country, so what? Every roolar does it for its own developement & extention of rularship. Give this country to AMERICANS , they wil make it America & be happy.
ReplyDeleteanonymous ji... there are lots of "what ifs..." and everyone has his/her own view on those.... the important point made through the post is our bowing down to the queen... whether the queen is good or bad for Britain is another debatable issue... but there should not be a division of opinions pertaining to the fact that bowing down of "head of a state" to his/her equivalent in some other country isn't acceptable as long as the two states involved consider themselves independent... hope u understand what i want to say or else just try to be INDEPENDENT for even one day and see what it feels like!!!
ReplyDeletejai hind...
किसी भी राष्ट्र से घ्रणा करना भारत के चरित्र में नही है , यहाँ तक कि अमेरिका से भी नहीं , जो आज इसे धीरे धीरे अपना आर्थिक उपनिवेश बना रहा है ।
ReplyDeleteशरद जी , राजनैतिक चरित्र देश, काल ,आवश्यकतानुसार होते हैं , मूल में अपनी भलाई व ऋत-सत्य होना चाहिए ; अपना वृहद् अहित देख कर तो चींटी आदि मृदु जंतु भी अपना चरित्र बदल देते हैं , अकड़ जाते हैं | भारत भी कई बार यह एकता, कर्मठता दिखा चुका है , रीढ़ होनी चाहिए -सच्चरित्रता , सदाशयता , समुचित ज्ञान की |
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