वैसे तो हम अपने काम से काम रखती हूँ, या तो कविता लिखती हूँ या फिर गीत गाती हूँ, और इन दोनों कामों में बहादुरी ही ज़रुरत नहीं होती, लेकिन पिछले दो दिनों से एक काम और कर दिया हूँ 'बहादुरी', एक-दो आलेख पढ़े जिनमें 'आँचल पायल' का बात किये थे लोग, हमहूँ सोचे अरे इ तो fantastik बात है, दुनो चीज़ हमको भी बहुते पसंद है, बस कूद गए 'पायल की झंकार रस्ते-रस्ते' गाते हुए, अब कोई ज़रूरी थोड़े ही है कि सबको हमरा गीत पसंदे आ जाए बस, नहीं आया पसंद, और हमरी लुटिया डूब गयी 'नारी' ब्लाग पर, इ बात में कौनो पिरोब्लेम नहीं है, उ अपने घर खुस हम अपने घर, लेकिन सोचे कि जाते-जाते गुड बाय भी कह दें, और हमरे बुद्धि से जो बात जेतना समझे कह दें, ताकि कोई तरह का मन में मैल न रहे, अब हुआ का कि हम ठहरे महिला, जब बोलने लगे तो इतना बोल दिए, कि सोचे अब पोस्ट से जाबर टिप्पणी का ठीक लागी....???? ता काहे नहीं पोस्टवे बना देवल जाय, एक बात और इ चक्कर में हम गाना भी तो नहीं रिकॉर्ड किये ना...
तो इ हम धर रहे हैं हमरा पक्ष....
रचना जी, हमारे सुर अलग हैं, आप जो कह रही हैं मैं नहीं समझ रही हूँ, मैं जो कह रही हूँ आप नहीं समझ रही हैं...
अच्छा किया आपने 'नारी' से मेरी 'सदयस्ता' निरस्त कर दी ..क्यूंकि जब हमारे विचार एक नहीं हैं तो बात एक जैसी कैसे हो सकती है.....
लेकिन शिष्टाचार का तकाजा है कि जिस तरह प्रेम से आपने मुझे नारी के साथ जुड़ने के लिए आमंत्रित किया था उसी तरह मेरी सदस्यता समाप्त करने की बात भी ईमेल से बता देती तो थोडा professional लगता...
लेकिन कोई बात नही ..मैं इसे अन्यथा नहीं ले रही हूँ....
आपकी टिप्पणी को कई बार पढ़ा है और सच पूछिए तो बात मुझे समझ नहीं आ रही है.....
आपने कहा कि नारी को शरीर की परिभाषा में न बांधा जाए, शरीर को भूलना होगा, नर-नारी में जो भेद है उसका मुख्य धरातल ही शरीर है, उसे कैसे भूल सकती हैं...???
हाँ ये कह सकती हैं, कि शरीर के अलावा हम सभी बातों में पुरुषों से सामान हैं, बल्कि कुछ बातों में हम पुरुषों से बेहतर हैं...जैसे सहनशक्ति, धीरज, intution इत्यादि...
नारी अधिकार की बात मैं भी करती हूँ और आप भी फर्क सिर्फ इतना है, मैं अधिकार के साथ-साथ कर्तव्य की भी बात करती हूँ, इसका कारण शायद यह हो सकता है कि मैं अधिकार से पहले कर्तव्य को स्थान देती हूँ, आपने कपड़े के चयन जैसी बात को लेकर एक मुद्दा बनाया, जो मुझे बहुत ही बचकाना महसूस हुआ, साड़ी पहनना, ऐसा बताया गया है नारी ब्लॉग पर जैसे कोई सजा है, साड़ी तो वैसे भी अब लुप्तप्राय है........
महिलाओं के उत्थान की बात करना और इसके लिए सतत प्रयत्न करना बहुत अच्छी बात है....इसमें हर तबके की महिलाओं के परेशानियों का समन्वय होना चाहिए.....
कपड़ों का चयन : उच्च वर्ग की महिला के लिए एक तरह की समस्या होगी.....माध्यम वर्ग की महिला के लिए दूसरी किस्म की समस्या होगी और इक गरीब महिला जिसे दो जून कि रोटी नसीब नहीं होती उसके लिए क्या साडी और क्या पैंट....??
कुछ मुद्दे हो सकते हैं...:
वैचारिक स्वतंत्रता का....
आत्मनिर्भरता का....
शिक्षा का.....
नारी प्रताड़ना उन्मूलन का...
स्वयं- सुरक्षा का
दहेज़ विरोधी का
कुपोषण का
समान वेतन का
सामान रोजगार का
promotion में समानता का
नौकरी में maternity leave में बढ़ोत्तरी हो
maternity लीव के लिए बच्चों की संख्या न देखी जाए, हर बच्चे के जन्म में छुट्टी मिले...
इतने सारे मुद्दे हैं कि लिस्ट हमेशा छोटी हो जायेगी, न कि कपड़ों के चुनाव में अपना समय नष्ट करें, कितनी अजीब बात है, इतने सशक्त माध्यम का उपयोग ऐसी छोटी चीज़ के लिए किया जा रहा है, क्या हुआ अगर साडी पहन कर रसोई में, गर्मी में ९ लोगों के लिए खाना बना लिया तो, अगर वही महिला अच्छी शिक्षा ले ले तो खाना बनाने की ज़रुरत ही नहीं होगी, खाना बनाने वाली रख सकती है.......
अपनी काबिलियत का लोहा मनवा ले, तो किसकी मजाल कि कोई उसे रोके, कि वो क्या पहनेगी, कपड़े भी उसके होंगे और चुनाव भी, वैसे भी महानगरों में तो, एकल परिवार की इतनी परंपरा है, कि सभी औरतें अपने ही हिसाब से कपड़े पहनती हैं, हाँ जब कभी सास-ससुर मिलने आते हैं तब दो-चार दिनों के लिए हाफ पैंट से साड़ी या सूट पहनती हैं....
यह भी कहा आपने, कि कोई नर्स अपना स्कर्ट पहन कर या डॉक्टर अपना कोट पहन कर वही अनुभव करती है जो मैं अपना आँचल सर पर रख कर महसूस करती हूँ, तो यही कहूँगी आप मेरी बात नहीं समझ पायी....
मैं सिनिअर सॉफ्टवेर इंजिनियर/प्रोजेक्ट मेनेजर हूँ, माना कि मेरा uniform नहीं है, लेकिन मैं मीटिंग्स में अंग्रेजी सूट पहन कर जाती हूँ (क्यूंकि मीटिंग्स में clients के सामने हमें यहाँ के हिसाब से ही रहना होता है) उस वक्त कि भावना और मंदिर में साड़ी पहनने की भावना में कोई तुलना नहीं है, मैं तो उस भावना की बात कर रही थी, जब वही नर्स या डाक्टर मंदिर जाती है, इसलिए आपका इस तरह तुलना करना कोई मायने नहीं रखता है.....
आपको एक बात और बतानी है...कि यहाँ ऑफिस में ड्रेस कोड हैं, लेकिन मैंने अपनी साड़ी के लिए challenge कर दिया और मेरी साड़ी इन्हें स्वीकार करनी पड़ी, इसलिए गर्मी में साड़ी पहन कर ही, ऑफिस जाना होता है, गर्मी का अर्थ है ...जुलाई...में..
वैसे भी रचना जी समय बदल गया है, अब हमें और आपको कोई क्या रोकेगा, हम आप तो अपनी मर्जी से अपना जीवन जीते हैं, और जहाँ तक नयी पीढ़ी का सवाल है, वो ज्यादा उन्मुक्त है.......
आपकी टिप्पणी में बलात्कार, जैसे हादसे का भी जिक्र है...यह सच है, ऐसे हादसों के ज़ख्म पूरी उम्र रह जाते हैं, और इस नरक को दुनिया में, सिर्फ और सिर्फ बलात्कार की शिकार नारी ही झेलती है, मैं आपकी बात की इस पीड़ा से पूर्णतः सहमत हूँ, लेकिन फिर भी यही कहूँगी, कपड़ों के चुनाव का अधिकार मिलना इस समस्या का समाधान नहीं है, न ही बराबरी का अधिकार मिल जाने में है, इसका समाधान इसमें भी तुरंत नही है कि हम पुरुषों को बदल जाने की अपील करें, पुरुष वर्ग बदल जाए, इससे अच्छा और क्या हो सकता है, लेकिन वो बदलते हैं या नहीं ये उन पर निर्भर है, बदलेंगे भी तो कब बदलेंगे, और कितना बदलेंगे नहीं मालूम इसलिए बेहतर है, महिलाएं ही इसका समाधान ढूँढें, ऐसी घटनाओं के प्रति बचपन से, लड़कियों को सचेत रहना बताना होगा...माएँ ये काम घर पर अपनी बेटियों से, बात-चीत कर के कर सकती हैं, अपने बचाव के कुछ गुर सीख लें, जहाँ तक हो सके उत्तेजित करने वाले, वस्त्र न पहनें, कहीं भी आना जाना करें तो जांच-पड़ताल कर लें इत्यादि, बहुत सारी बातों का ख्याल रख कर इस रिस्क को कम किया जा सकता है, इस तरह की जानकारी आप अपने ब्लॉग पर भी दे सकती है, इस पर एक अच्छी चर्चा की जा सकती है, और पुरुषों से भी स्त्री-सुरक्षा पर विचार लिए जा सकते हैं....और सबसे बड़ी बात, ईश्वर न करे किसी के साथ भी ऐसा हो, लेकिन अगर ऐसा हो भी जाता है...तो स्वयं के अन्दर हीन भावना हरगिज भी आने ना दें, हमेशा यह ख्याल रखें कि किसी भी दुर्घटना की तरह यह भी एक दुर्घटना है, जिस तरह, हाथ या पांव टूट जाये तो, कुछ दिनों के बाद उसे ठीक हो ही जाना होता है, इसे भी एक घाव की तरह ठीक हो ही जाना चाहिए, और इसके लिए घरवालों से भी सहयोग की अपेक्षा है, आपका ब्लॉग भी ऐसी बलात्कार पीड़ित महिलाओं को, आत्मबल स्थापित करवाने जैसी कोई सेवा प्रदान कर सकता है.....
रचना जी, आपका सशक्त ब्लॉग इन सब मुद्दों पर बहुत कुछ कर सकता है, ज़रुरत है बस ज़रा सा दृष्टिकोण बदलने की, आपको बहुत सी गुणी, तेजस्विनी महिलाओं का साथ है, बस अब कुछ कर ही डालिए, जिससे कहीं कुछ तो बदल जाए, मेरी शुभकामना आपके साथ है....
सस्नेह...'अदा'
अदा जी,
ReplyDeleteआपको सैल्यूट, अभी बस इतना ही...
बाकी चार-पांच घंटे बाद विस्तारित टिप्पणी दूंगा...
जय हिंद...
इस पोस्ट को पढ़ा, बहुत ध्यान से पढ़ा। बेहतर दृष्टिकोण का परिचय भी मिला। बस यही कह सकता हूँ कि गीत, गजल और बेहतरीन गायिकी के अतिरिक्त भी बहुत संभावनाएं हैं बहन मंजूषा में। शुभकामना।
ReplyDeleteसादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
"लेकिन शिष्टाचार का तकाजा है कि जिस तरह प्रेम से आपने मुझे नारी के साथ जुड़ने के लिए आमंत्रित किया था उसी तरह मेरी सदस्यता समाप्त करने की बात भी ईमेल से बता देती"
ReplyDeleteऐसा तो होना ही चाहिये था। क्या अब सामान्य शिष्टाचार भी भुलाया जा चुका है?
Shyamal sumanji se ittefaaq rakhti hun!
ReplyDeleteTasveer me naaree aur saaree dono sundar hai...!
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ReplyDeleteरचना जी,
ReplyDeleteआमंत्रण किसने भेजा मुझे उससे कोई वास्ता नहीं...ब्लॉग आपका है हम तो बस इतना जानते हैं....और हर दिन ४-५ एमैल्स भी आप ही भेजतीं है तो....हम तो यही समझेंगे न...की आपने हमें बुलाया और आपने ने ही हटाया.....इसलिए....आपकी सफाई की कोई आवश्यकता ही नहीं थी......
अब देखिये न रेल दुर्घटना होती है तो रेल मंत्री क्यूँ इस्तीफा देते हैं...ट्रेन तो वो नहीं चला रहे थे....????
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ReplyDeleterachna is no more the moderator
ReplyDeleteमुझे लगता है नारी ब्लॉग निरंतर असहिष्णु होता जा रहा है -नैसर्गिक न्याय का भी यह तकाजा नहीं है की किसी को बिना अपना पक्ष प्रस्तुत करने का मौक़ा दिए ,बिना उसे सुने एकतरफा फैसला सुनाया जाय !मुझे लगता है नारी ने जो अभियान शुरू किया था उसकी धार ऐसे अविवेकी निर्णयों के चलते कुंद पड़ती जायेगी !चूंकि रचना जी और नारी ब्लॉग एक दुसरे के समानार्थी हो गये हैं इसलिए यहाँ हो रहे फैसलों के पीछे सहज ही उन पर ध्यान जाता है ! मुझे यह भी लगता है जो मुद्दे अदा जी ने गिनाये हैं वे निश्चित ही महत्वपूर्ण हैं और उन्हें प्राथमिकता देनी चाहिए!
ReplyDeleteलेखनी प्रशस्त है, बांधती है, भाषा पठनीय है।
ReplyDeleteरचना said...
ReplyDeletedear ada
i think you are mistaken , suman is the blog moderator not me and she might have removed you . i am not moderatin naari blog for last fw months and if i might have sent any mail about naari group its because i am using that platform as suman is still not able to
i think it was probably she who might have intvited you in the first place an not me
hope this clarifies
regds
सुमन जिंदल said...
ada
you are right i am the owner of naari blog but not the moderaeteor and i dont send mails to any one , its thru the group that mails are forwarded to all members
November 26, 2009 7:35 AM
सुमन जिंदल said...
ada
besides this i just read your post and i hv seen that the post you are talking about probably is not writen by me but another member , i would appreciate if you could please update you post and renquish me for the charges that you have put on me
@Rachna ji and Suman ji,
Now I am really confused ...
You both claim that none of you are the moderator of the blog...so the million dollar question is 'WHO THE HELL IS ???'
@Suman ji,
I am not playing any BLAME game here...You are totally mistaken...
This entire post is written in response to the comment given by Rachna ji....
You are simply not in the picture, so please you just relax......
इस तरह की असहज स्थिति से बचने के लिए पहले शामिल किए जाने वाले सदस्य का मौखिक साक्षात्कार लेकर उसकी विचारधारा जान लेनी चाहिए और जब वह कम्युनिटी ब्लॉग के खांचे में फिट बैठे तभी उसे भर्ती किया जाना चाहिए । साथ ही पूरा एजेन्डा साफ हो कि बिना कारण बताए कभी भी आपको बाहर का रास्ता दिखाया जा सकता है ।
ReplyDeleteबिना कारण बताए निकालने से स्वाभाविक है कि कोई भी अपमानित महसूस करेगा ।
@नारी ब्लोग
ReplyDeleteशायद मेरी बात नारी ब्लोग वालो को अच्छा ना लगे लेकिन तब पर भी कहना उचित सा लगता है । सबसे पहले तो मेरा यही कहना है कि आपको नारी ब्लोग से जोड़कर कोई बहुत बड़ा उपकार नहीं कर दिया था , और वहाँ से आपको निकालकर अपनी कायरता का परिचय दिया है नारी ब्लोग नें। नारी ब्लोग का सर्वप्रथम जो लक्ष्य है वह है कि कैसे और औरतो को भ्रमीत किया जाये और उनको राग मे राग अलापने को कहा जाये । अदा दीदी आपने ऐसा नहीं किया जिससे उन्हे शायद यह महशूश हुआ होगा कि ये तो सच्चाई का साथ दे रही है और ये हमारे शान के खिलाफ है ।
मैं बहुत दिंनो से इस ब्लोग को पढ़ रहा हूँ और जहाँ तक मैं इन्हे जान पाया हूँ वह यह कि ये लोग व्यक्तिगत झूझंलाहट से ग्रस्त है और इनकी ये मंसा है कि कैसे लोगो को इसी क्रम में शामिल किया जाये और अपने को मजबूत बनाया जाये । अरे मैं तो कहता हूँ कि कोई भी औरत पुरुष की बराबरी कर ही नहीं सकती और नहीं कोई पुरुष औरत की । ये सच्चाई है जिसने इसे माना वह तो सफल हुआ और जिन्होने नहीं माना वह अपने को हमेशा अकेले ही पाया । नारी ब्लोग आप कहाँ-कहाँ समानता करेंगी , कहीं भी नहीं कर सकती और कहाँ-कहाँ नहीं कर सकती ये मैं ये आपको यहाँ नहीं बता पाऊंगा , और शायद वह मेरे मुंह से अच्छा भी ना लगे , क्योंकि मैं काफी छोटा हूँ इसलिए ऐसी बाते नहीं करना चाहता ।
@नारी ब्लोग
ReplyDeleteआपको एक घटना बताता हूँ अपने यहाँ की , वाराणसी मे एक लड़की है उसे भी पुरुषो के समान बनने को बहुत शौक चर्याया था , जिसके लिए उसने अपना sex परिवर्तन करवा लिया । कुछ दिंन तो सामान्य चले , लेकिन बाद में उसे एहसास हुआ की उसने कितनी बड़ी गलती की है । उसने sex परिवर्तन तो करा लिया परन्तु शारीरीक क्षमता नहीं बढ़ पायी , उसके क्रिया कलाप महिलाओं जैसे ही थे , वह पुरुषो जैसे बहुत से कामों मे असहज महशुश करती थी । और अन्त में फिर उसने sex परिवर्तन लरवा लिया और औरत बन गयी । कहने का तातपर्य यह है कि जो प्रकृति ने बनाया है उसे आप कभी नहीं बदल सकती है ।
ohh God !!!...i hate this...i really really hate this.....नारी ब्लॉग का यह कदम बिलकुल ही उचित नहीं है...विचारों में असामानतायें हो सकती हैं...और यही, किसी भी कम्युनिटी की खूबसूरती भी है...परिवार में भी कोई दो लोग एक जैसा कहाँ सोचते हैं?...किसी ब्लॉग से जुड़ने का अर्थ यह नहीं है कि सब लोग एक सुर में ही बोलें...वैसे मुझे ब्लॉग जगत में ज्यादा दिन नहीं हुए हैं...मैंने नारी ब्लॉग के ज्यादा पोस्ट्स पढ़े भी नहीं हैं....पर अगर अदा जी की किसी बात से असहमति थी तो आप अपनी राय दें,असहमति जताएं ...यह नहीं की उनकी सदस्यता ही समाप्त कर दें.
ReplyDeleteयह बेहद अफसोसजनक है.
part 2
ReplyDeleteखैर आगे मंटो साहब लिखते हैं कि " मैंने सोचा औरत जंग के मैदान में मर्दों के कंधे से से कन्धा मिला कर लड़ने का पहाड़ काटे या अफसाना-निगारी करते-करते इस्मत चुग़ताई बन जाये लेकिन उसके हाथों में कभी मेहंदी रचनी ही चाहिए, उसकी बाँहों में चूड़ी की खनक आनी ही चाहिए. मुझे अफ़सोस है कि उस वक़्त अपने दिल में मैंने कहा, " ये तो कमबख्त बिलकुल औरत निकली."
फ़्रांस में जोर्ज सा ने निस्वानियत (नारीत्व) का हसीन मलबूस उतार कर तसन्नो (कृत्रिमता) की ज़िन्दगी अख्तियार की. पोलिस्तानी मूसीकार शो पीस से लहू थुकवा थुकवा कर हीरे मोती जरूर पैदा करवाए लेकिन उसका जौहर उसके पेट में दम घुट कर मर गया.
ये सब मंटो ने कहा है. पता नहीं वे कितने प्रगतिशील थे ?
नारी ब्लॉग दीर्घायु हो. अदा जी मैं भी कुछ कहानियां लिखता हूँ वे स्त्री पुरुष के जटिल सम्बंधों के आस पास मंडराती है और मेरा कोई ऐसा अजेंडा भी नहीं है जो किसी को सीमाओं में बांधता हों. आप मेरे साथ लिखिए मुझे ख़ुशी होगी.
part 1
ReplyDeleteमुझे बहुत से प्रगतिशील लेखक याद आते हैं उनमे सआदत हसन मंटो और इस्मत चुग़ताई ये मुझे दोनों बेहद प्रिय हैं. इनका जिक्र आपकी पिछली और ताजा पोस्ट के सन्दर्भ में आवश्यक है क्योंकि यहाँ लेखन के माध्यम से नारी मुक्ति की बात की जा रही है. मैं समझता हूँ कि स्त्री को बंधन मुक्त करने करने की मुहीम वाले इतने ज़हीन तो होंगे ही कि इस्मत के लेखन की विचारधारा को याद कर सकें. उन्हें शायद इस बात से भी नाइत्तेफाकी भी न होगी कि मंटो क्रांति के प्रतीक थे.
वर्ष २००७ में शब्द क्रम पत्रिका में मंटो का एक संस्मरण था " मगर अफसोस कि इस्मत ने..." इसी में मंटो साहब लिखते हैं कि कहानी लिहाफ पर बात करते समय मैं जवाब में कुछ कहने वाला ही था कि मुझे इस्मत के चेहरे पर वही सिमटा हुआ हिजाब नज़र आया जो आम घरेलू लड़कियों के चेहरे पर नागुफ्ती (तथाकथित अश्लील ) शै का नाम सुन कर नमूदार हुआ करता है. जब इस्मत चली गयी तो मैंने दिल में कहा, " ये तो कमबख्त बिलकुल औरत निकली. "
यानि मंटो साहब ने देखा कि एक प्रगतिशील लेखिका आम भारतीय नारी की तरह शरमाती है
@अर्कजेश जी,
ReplyDeleteमुझे दुःख तक नहीं हुआ और आप अपमान कि बात कर रहे हैं...!!!!
वैसे भी मैं उनके अजेंडा में फिट नहीं बैठती...जिस कम्युनिटी ब्लॉग के दो लोगों में ही ताल मेल नहीं उस ब्लाग से खुद को जोड़ना ...मेरे लिए कोई गर्व कि बात नहीं है...आप खुद ही देखिये ...इनके कमेंट्स..
आपसे सहमत हूँ...किसी को सदस्य बनाने से पहले उस सदस्य के बारे में जान लेना अच्छा ही होगा...लेकिन उससे भी पहले कम्युनिटी ब्लॉग खोलने वालों कि भी योग्यता का पता होना लाजमी है...
और ऐसे ब्लॉग वही खोलें जिनके पास ऐसी certification हो ...
ऐसे ब्लोग्स कि जिम्मेवारी बहुत ज्यादा होती है....आप mass से deal करते हैं ...उनसे जुड़े मुद्दों को समझना और सही दलील और हल पेश करना बहुत अलग बात होती है...
इसलिए सदस्यों से पहले ब्लॉग स्वामियों की योग्यता जी परख ज़रूरी है...
और मैं इस बात से सहमत नहीं की किसी को बिना कारण बताये बाहर का रास्ता दिखाया जाय....कारण तो बताना ही होगा क्यूंकि इस तरह के मुद्दों में हमेशा दो पक्ष होते हैं...और जबतक दूसरा पक्ष स्पष्ट न हो ...एकतरफा निर्णय नहीं लिया जा सकता है...मैं इसलिए ये कह सकती हूँ क्यूंकि कनाडा में कम्युनिटी सर्विस का थोडा बहुत अनुभव मुझे भी है...
आपकी टिपण्णी के लिए आभारी हूँ..
"लेकिन शिष्टाचार का तकाजा है कि जिस तरह प्रेम से आपने मुझे नारी के साथ जुड़ने के लिए आमंत्रित किया था उसी तरह मेरी सदस्यता समाप्त करने की बात भी ईमेल से बता देती"
ReplyDelete-सहमत!
dee; simply i salute u for ur stand..!
ReplyDeleteऔर हाँ; सामान्य शिष्टाचार...तो होना ही चाहिए था...सहमत हूँ..!
अदा जी,
ReplyDeleteअब आप नारी ब्लाग से अलग हैं, यह अच्छी बात है। नारी ब्लाग से जुड़े रचनाकारों को इस हादसे से कुछ तो सीखना चाहिए।
कोई सामुहिक ब्लाग पर जा कर लिखे या स्वयं अपने ब्लाग पर इस से क्या फर्क पड़ता है। यदि सही लिखा है तो वह बोलेगा।
बहुत हीं सशक्त लेखन दीदी……………………
ReplyDeleteअदा जी,
ReplyDeleteये नारी ही है जो चाहे तो राष्ट्रपति बन जाए, प्रधानमंत्री बन जाए, स्पीकर बन जाए, विदेश
सचिव बन जाए, पेप्सीको जैसी कंपनी की सीईओ बन जाए...आईसीआईसीआई बैंक की
चेयरमैन बन जाए...एक बार ठान ले तो क्या नहीं कर दिखाती नारी...इतना कुछ करने के
बाद भी घर के बगीचे को संवारने वाली माली भी वही होती है...क्या एक पुरुष ऑफिस
की ज़िम्मेदारियां उठाने के साथ अच्छा होममेकर बन सकता है...शायद नहीं...
नारी ड्यूटी के लिए यूनिफॉर्म को भी उसी गरिमा के साथ पहनती है जैसे कि घर में बड़े-बूढ़ों के आगे
सिर पर पल्लू लेती है...ये भारतीय संस्कार ही है जो दुनिया भर में हमें एक अलग
स्थान दिलाते हैं...अगर ये संस्कृति, ये रिश्तों का सम्मान हमारे साथ न हो तो
दुनिया में हमें पूछेगा ही कौन...हम भी अंकल, आंट में ही सारे रिश्तों की इतिश्री कर
लेते...ये हमारा देश ही है जहां जींस के साथ भी हाथ में चूड़ा और माथे पर बिंदिया
मिल जाती है....इट्स हैप्पन ओनली इन इंडिया...
शील के साथ भी वूमेन लिब का एजेंडा चलाया जा सकता है....इंदिरा नूई, चंदा कोचर और
निरूपमा राव इसकी जीती जागती मिसाल हैं...सिगरेट के कश लगाने या हाथ में जाम थामने से कोई लिबरेट नहीं हो जाता बल्कि वो खुद को ही धोखा देता है...पुरूषों को नीचा दिखाने से खुद कोई ऊंचा नहीं हो जाता...जिस तरह हाथ की पांचों उगलियां बराबर नहीं होती...इसी तरह सभी
पुरुषों को एक ही पैमाने से हांकना भी उचित नहीं है...
जय हिंद...
अदा जी मेरे पास शव्द नही कि आप के इन लेखो की तारीफ़ किन शव्दो मै करू, समझ मै नही आता, आप ने बिलकुल सही ओर सच लिखा है ओए आप के एक एक शाव्द से सहमत हुं.
ReplyDeleteधन्यवाद
मैं एक औद्योगिक संस्थान में हूँ जहाँ कदम कदम पर बताया जाता है कि Safety First सुरक्षा प्रथम्। और उसे ही सामान्य जीवन में भी अपनाने का आग्रह किया जाता है।
ReplyDeleteमहामहिम राष्ट्रपति, विमान में साड़ी पहन कर जा सकती थीं, किन्तु सुरक्षा के लिहाज़ से उन्होंने वायु सेना का सुरक्षा सूट अपनाना ज़्यादा बेहतर समझा। उन्होंने वायु सेना के नियमों का सम्मान किया, लिहाज किया, अपनी सुरक्षा की न कि अपनी सत्ता का हवाला दिया।
मुद्दे से थोड़ा हटा जाए तो मुझे इंतजार रहेगा उस कथित महिला का जो, यहीं ब्लॉग जगत पर पुरूषों जैसे टॉपलेस होकर अपने मोहल्ले में टहलने, पान की दुकान पर ठहाके लगाने की बात करती है। शर्त यही है कि वह महिला विक्षिप्त या अर्ध विक्षिप्त न हो
लेकिन जिस धड़ल्ले से पोस्ट व टिप्पणियाँ लिख कर हटाई जाती है, वैसे ही मेरी बात का संदर्भ हटाया भी जा सकता है।
एक सामूहिक ब्लॉग से किसी की सदस्यता निरस्त करने के पहले किसी तरह का शिष्टाचार न निभाना, बौख़लाहट का प्रतीक ही है।
वैसे यह रह्स्य तो अब भी बना हुया है कि आखिर नारी ब्लॉग का मॉडेरेटर कौन है? तत्संबंध में उस ब्लॉग पर भी कुछ नहीं लिखा हुया।
एक सामूहिक ब्लॉग का मालिक भी होता है, हैरानी हुई
बी एस पाबला
जब प्रकृ्ति ने ही स्त्री-पुरूष के बीच जो कुछ असमनताएँ पैदा की हैं तो भला आप उन्हे कैसे बदल सकते हैं । स्त्री-पुरूष तो चुम्बक के दो विपरीत ध्रुवों के समान है...जो कि विपरीत होने के कारण ही आपस में जुडते हैं...लेकिन ये भली नारियाँ दोनों को समानता के चक्कर में एक दूसरे से परे धकेलने में लगी हुई हैं...आपका कहना बिल्कुल सही है कि अधिकार से पहले कर्तव्यों का निर्वहन करना आना चाहिए...लेकिन इन लोगों को अधिकार तो सभी चाहिए...बस कर्तव्यों की बात मत करें ।
ReplyDeleteखुद पर काबू रखते हुए जिस शालीनता से आपने अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की है ...काबिले तारीफ़ है ....
ReplyDeleteमेरे मुंह की बात छीन लेना ..ये तो आपकी हमेशा की आदत है ...अभी दो तीन दिन से दिमाग में यही चल रहा था ...अधिकार और कर्तव्य ....हमेशा अधिकार की बात ही करते रहना क्या उचित है ...उससे पहले कर्त्तव्य के बारे में भी सोचना चाहिए...देश की जो दुर्गति हुई है संवैधानिक अधिकारों को प्राप्त करने और कर्तव्यों को बिसराने में ...वही कुछ परिवार नामक संस्था के साथ भी होगा ....
विचारों से सहमत और असहमत हुआ जा सकता है ...मगर आपसी संबंधों पर इसका असर नहीं आना चाहिए ....
kya hai ye NAREE masla ? Kya koi organization hai?
ReplyDeletehurt feel mat kariyega mujhe naheelagata kiye worth hoga ?
अदा जी,
ReplyDeleteयही तो फ़र्क है एक काबिल इंसान के सोचने और अपनी बात को रखने में ...सच कहूं तो मुझे तो कोई हैरानी नहीं हुई ...क्योंकि आपकी स्पष्टवादिता के कारण देर सवेर ये तो होना ही था ....
कुछ इस तरह के प्रयास जैसा कि उस ब्लोग द्वारा किये जाने की कोशिश करना बताया जाता रहा है सिर्फ़ इन्हीं वजहों से निर्रथक सा होकर रह जाता है..
और रही बात विचारों से सहमति कि ..तो क्या अब भी बताने की जरूरत है कि ..पक्ष विपक्ष में कौन कितना है....
किशोर जी,
ReplyDeleteक्या कहूँ कितनी अभिभूत हुई हूँ...
आपकी कहानियों में आपके साथ लिखने का आमंत्रण तो ऐसा ही है जैसे hollywood की फिल्म में लीडिंग रोल की ऑफर हो ..जिसके मैं काबिल नहीं हूँ...
लेकिन बहुत ही अच्छा लगा....अच्छा लगा देख कर कि मेरे कितने अपने हैं जो मेरे साथ खड़े हो गए...
धन्यवाद...
मिथिलेश,
ReplyDeleteमेरा सबसे छोटा और सबसे प्यारा भाई...
कैसे लड़ पड़ा मेरे लिए...
मन को छोप गया तुम्हारा निश्छल प्यार..
खूब खुश रहो....
खुशदीप जी,
ReplyDeleteकितनी सारी अच्छी बातें आपने कह दीं..
आपको दिल से thank you ....
अरे बाबा साथ खड़े मत खड़े होइएगा...बहूऊउत लम्बे हैं आप...
और हम बहुत ठिंगने......हा हा हा
प्यारे श्रीश,
ReplyDeleteअच्छा लगा तुम आये...
आज तुम्हारी दीद को वास्तव में तुम लोगों की ज़रुरत थी...
श्यामल भैया, अवधिया भैया,
ReplyDeleteआप दोनों का आशीर्वाद बस ऐसे ही बना रहे...
समीर जी,
ReplyDeleteआपका साथ हमेशा ही रहता है....तो आक भला कैसे नहीं रहता..
बहुत बहुत शुक्रिया...
पाबला जी, राज जी, दिनेश जी, शर्मा जी, मनोज जी, अपनत्व जी,shama jim
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद मेरा साथ देने के लिए और मेरा हौसला बढ़ने के लिए...
वाणी,
ReplyDeleteतेरे को thank you बोलने से अच्छा है मैं कूएं में कूद जाऊं....
तेरे पास कोई मेरा साथ देने के आलावा कोई option है क्या ???
अरविन्द जी,
ReplyDeleteह्रदय से आभारी हूँ आपकी..
रश्मि जी,
ReplyDeleteआपके प्रति कैसे आभार व्यक्त करूँ समझ नहीं आ रहा है....न्याय के प्रति आपकी आस्था से बहुत प्रभावित हुई हूँ...
सच, बहुत अपनी लगीं आप...
धन्यवाद..
चन्दन बचवा,
ReplyDeleteआ गए न अपनी दीदी के समर्थन में....
खुश रहो...
अदा जी सिर्फ़ इतना ही कि...हम तो आपके साथ नहीं हैं .......आपमें ही हैं कहीं ...तो आगे क्या कहें ..आपका कहा सुना देखा पढा ..सब हमारा है ...कौपीराईट भी हमारे ही पास है ...
ReplyDeleteअरे बाप रे झा जी,
ReplyDeleteहमरा तो मुँहे न खप गया....
अब हम का कहें.....
अब जैसन लोगन से रोज-रोज पाला पड़ रहा है कौनो भरोसा नहीं...कब कौन मुसीबत कने से आजाये ..तो आपका साथ का रिजर्भेसन हम अभिये कर देते हैं...ठीक...
भागिएगा मत ...!
अच्छा किया आपने 'नारी' से मेरी 'सदयस्ता' निरस्त कर दी ..क्यूंकि जब हमारे विचार एक नहीं हैं तो बात एक जैसी कैसे हो सकती है.....
ReplyDeleteअदा जी, अब यहां पर तो शिष्टाचार की बात ही खतम हो गयी है, संगठन का प्रथम सुत्र ही है,
संगच्छधव्म, संवदध्वम, संवोमनांसि जानताम,
जब विचारों की समानता ही नही रही, आगे निभाना मुस्किल है, आप भी नमस्ते कहें
जय हिंद
महफूज़ अली said...
ReplyDeleteभाई..... अपना तो यह विश्वास है कि..... गाडी और नारी.... दोनों बिना लात खाए चालू नहीं होतीं..... इसलिए दोनों को लात मार के ही start करना पड़ता है.....अभी किसी लड़की को ज्यादा भाव दे दो.... तो देखो.... सर पे बैठ कर धान बीनने लगेगी.... इसलिए नारी मुक्ति का रास्ता भी मर्दों से ही हो के जाता है.... मर्दों का सहारा नहीं होगा तो नारी कि इज्ज़त दो कौड़ी कि भी नहीं है..... इसलिए शादी-शुदा औरत कि इज्ज़त ज्यादा होती है.... जबकि तलाकशुदा को खुद नारी भी नहीं स्वीकार करती.....
Gali ke upar se boundry paar aur ye sixer ! :))))))))
"रचना जी ....आपका शसक्त ब्लॉग इन सब मुद्दों पर बहुत कुछ कर सकता है....ज़रुरत है बस ज़रा सा दृष्टिकोण बदलने की......आपको बहुत सी गुणी, तेजस्विनी महिलाओं का साथ है.....बस अब कुछ कर ही डालिए.....जिससे कहीं कुछ तो बदल जाए......मेरी शुभकामना आपके साथ है....
ReplyDeleteसस्नेह...'अदा'"
अदा जी, आपने बिलकुल सही सन्देश दिया है..
कुछ लोग जानबूझ कर अपनी लेखकीय प्रतिभा रूपी छेनी और तर्कों(कुतर्कों) के भार रूपी हथोड़े से सही रास्ते को भी बिगाड़ते रहते हैं. समाज हित में सही मुद्दों को उठाने के बजाय
जातिगत कुंठा से ग्रसित होकर दुसरे को अपमानित करने का बहाना ढूंडते हैं. इसके बाद समर्थन प्राप्त करके स्वयं को जबरदस्ती महिमामंडित करते हैं. कुछ ब्लोगों पर ऐसा होता साफ़ दिख रहा है.
ऐसे ही कृत्यों पर सभ्य समाज को शर्मिंदगी महसूस होती है. चाहे वो अपना गाँव चौपाल हो या तकनीक से सज्जित अपना वैश्विक गाँव चौपाल (ब्लॉग जगत) हो. नुक्सान पुरे समाज का ही होता है.
एक बात और आपने वस्तुस्थिति को समझते हुए अपने सहज विवेक और कर्त्तव्य बोध से स्पष्ट भी कर दिया की नारी जैसे जिम्मेद्दार ब्लॉग के पीछे Objective, Moderator और Admin आपस में ही confused हैं.
कृपया अपने इस पोस्ट को लेकर मन में दुविधा न पालें. कभी कभी ऐसी स्थिति बन जाती है की एक नारी को नारी के विरुद्ध जवाब देना जरुरी हो जाता है. सिर्फ अपने बचाव के लिए नहीं वरण समस्त नारी जगत के रक्षा के लिए. आपने अपना कर्त्तव्य उच्चतम आदर्श के साथ मर्यादित रहकर सफलता पूर्वक निभाया है.
दीदी आपको सलाम.
अदा जी, तकरीबन दो साल से ब्लागजगत पर हूँ और अपनी कुल पोस्ट से दोगुना तो रोज टिप्पणियां ही देता हूँ परन्तु अफ़सोस कि आपको आज ही पढ़ पाया. इधर से गुजरते हुए कुछ अनबन सी देखी तो हम भी तमाशबीन बन गए लेकिन ज्यादा देर तमाशबीन न बने रह सके.
ReplyDeleteनारी ब्लाग की कई पुरानी पोस्टें पढ़ी और लगता है कि नारी की मूलभूत समस्याओं-शिक्षा, स्वावलंबन, आत्मविश्वाश आदि को भुलाकर पुरुषों और पश्चिमी संस्कृति के प्रत्येक दुर्गुण यथा- मदिरापान, धूम्रपान, कम कपडे पहनना, देर रात तक पार्टी करना और सामाजिक नियमों और संस्कारों को धता बताना आदि को ग्रहण करने को ही नारी मुक्ति और समानता का साधन मान लिया गया है.
जो कुछ आपने कह दिया वह यदि कोई पुरुष ब्लागर लिखता तो अब तक उसकी दुर्गति हो चुकी होती परन्तु आपने सच कहने का साहस दिखाया (भले ही इस साहस को कुछ लोग पचा न सके) इसके लिए साधुवाद. आशा है भिन्न विचार रखने वाली नारियां भी आक्रोश भुलाकर ठन्डे मन से आपके पक्ष पर भी विचार करेंगी.
ada ji
ReplyDeletebahut hi gahan mudda ban gaya hai magar ek sarthak mudda hai aur aapka prayas sarahniya hai vaise khushdeep sahgal ji ne jo kaha main usse poori tarah sahmat hun.
ये तो अजीब गड़बड़ झमेला ह्हओ...पूरा प्रकरण समझ में आया भी और नहीं भी। अच्छा होता जो आप उस टिप्पणी का लिंक भी दे देतीं....
ReplyDeleteलेकिन इतना तो सही है कि अगर आपको आमंत्रण मिला था उस कम्यूनिटी ब्लौग के ज्वाइन करने का तो यूं हटा देना....आपने तो फिर भी बहुत ही संयमित पोस्ट लिखा है जवाब में।
अदाजी, आप भी कीचड में पत्थर फ़ेंक रही हैं. रचना से ज्यादा फ़्रस्ट्रेटेड औरत
ReplyDeleteदुनियां मे आपको कहीं नही मिलेगी. किसी पर भी कीचड उछालने में इसको
आनंद आता है. कोई भी भला आदमी इसकी छाया तक से दूर रहना चाहता है.
आप किसी से भी पूछ लिजिये.
आप नाहक अपना समय खराब कर रही हैं इसके बारे में पोस्ट लिखकर. ऐसे
लोगों के बारे मे क्या पोस्ट लिखना?
अब देखिये..जब ये हिंदी ब्लागिंग छोड चुकी हैं तो यहां क्यों ऐसी तैसी कराने
आती हैं? और क्युं यहां अंग्रेजी झाड रही है? क्या यह हिंदी का अपमान नही है?
मेरा आपसे विनम्र निवेदन है कि इनको इतना भाव मत दिजिये...ये इस काबिल
नही है. अजय झाजी से बेहतर इसको कौन जानता होगा...या जो आज के स्थापित
और मठाधीश ब्लागर हैं उनको जरा फ़ोन लगाकर इसकी औकात पूछें...वो बतायेंगे
आपको इस जाहिल की हकीकत.
और बहुत से तो इस के बारे मे बात बःइ नही करना चाहते इस लिये यहां कमेंट
करने से बच रहे हैं..और अफ़्सोस मैं भी उनमे से हूं....पर इसलिये नही कि डरता हूं,
बल्कि इसलिये कि इस जाहिल औरत के कौन मूंह लगे...इसको और कोई काम धंधा
तो है नही.
RS
(Raman Singh)
अरे
ReplyDeleteतीन चार दिन बाहर गई तो देखा बहुत कुछ हलचल हो गई कितु आपका आलेख पढ़कर सब कुछ समझ में आ गया |बहुत ईमानदारी से स्त्री विमर्श को सार्थक किया है आपने \ कुछ हमारे जैसो के मन में हीथा वो सब आपने स्पष्ट कर दिया अपनी जादुई लेखनी से |मै तो अभिभूत हूँ इस पोस्ट पर |आपकी और वानिजी कि पोस्ट एक दूसरे कि पूरक है समय मिले तो वहा टिप्पणी पढने का कष्ट करे |
आपने जो मुद्दे लिखे है उनपर विचार तो करना ही है साथ ही उनको क्रियान्वय भी कर सके सब मिलकर तो शायद कुछ किया सकता है स्त्री विमर्श के लिए |वैसे स्त्री बहुत सक्षम है और इसीलिए उन्नति के नए कीर्तिमान स्थापित कर रही है उसमे कोई चूड़ी ,बिंदी पायल साडी रूकावट नही है |
प्रिय रचना जी, प्रिय अदा जी एवं सभी भाई बहनों को इस बाबा जी का प्रणाम . एक मर्मान्तक दुःख से गुजर रहा हूँ फिर भी स्वभाव नहीं छूटता टिपण्णी दर्ज करने चला आया हूँ ... हम जिस समय को जी रहे हैं बहुत ही कठिन चुनौतियों से भरा समय है जिनका सामना करने के लिए बहुत बहुत ऊर्जा चाहिए, संयम चाहिए ... सहिष्णुता सौम्यता शालीनता स्त्री के नैसर्गिक गुण हैं ... मैंने सुना है स्त्री के गुण यदि पुरुष में आ जायें तो उसे संत बना देते हैं और पुरुष के गुण यदि स्त्री में आ जायें तो कहर ढा देते हैं... सवाल स्त्री पुरुष का नहीं है सवाल समग्र मानव जीवन के हैं ... मौजूदा ढाँचे में न स्त्री सुरक्षित है न पुरुषं अभी इसी महीने में मेरे मंझले बेटे की शादी थी उसकी चिता को आग दी है मैंने... अभी पिछले दिनों पूना से ऐसी ही एक और दुर्घटना की खबर मिली है... मेरे मोहल्ले में एक और लड़की ने फंदे में झूल कर जान दे दी ... क्यों हो रहा है ये सब ? जो दर्द मैं झेल रहा हूँ ईश्वर न करे किसी और को झेलना पड़े ... लेकिन हम जिस रह पर हैं वहां कभी भी कुछ भी हो सकता है ... इसलिए मेरा निवेदन है छोटी छोटी बातों में ऊर्जा नष्ट न करें समय की चुनौतियों को देखिये उनके समाधान को लेकर चिंतन करिए
ReplyDeleteआदरणीय श्याम जी,
ReplyDeleteमेरा प्रणाम स्वीकार करें,
kuch क्षणों पहले ही आपकी टिपण्णी पढ़ी हैं.....और आपके अपार दुःख से भी अवगत हुई हूँ......और आपको लिखने बैठ गयी....
सच कहा है कब कौन सी विपदा कैसे मुंह बाए खड़ी है कोई नहीं जानता.....आपके दुःख का अंदाजा भी लगाना मेरे लिए कठिन है... मेरे शब्द आपको धाडस भी बंधाने ही क्या हिम्मत करेंगे....? फिर भी आपके दुःख में सम्मिलित होने आई हूँ.....bahut छोटी हूँ आपसे...और यह कहना चाहती हूँ ....आपके ह्रदय कि शक्ति अतुलनीय है...जिसने इतनी पीड़ा में भी हम जैसे उदंदों को सही मार्ग दिखाने कि चेष्टा कि.....आपको मेरा नमन.....
ईश्वर आपको और आपके परिवार को इस दुःख कि बेला में शक्ति दे...
मेरी प्रार्थना आपके और आपके समस्त परिवार के साथ है.....
दिवंगत को मैं श्रद्धा सुमन अर्पित करती हूँ..
विनीत...
अक्षरसः सहमत!
ReplyDeleteबाकि तो किसी वाद की झंडाबरदारी ही सब समस्यायों की जड़ है !!!
सो आप नारीवादी से मानवतावादी ही बनी रहे !!!!!!!
बाकि तो सब माया है !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
बेहतरीन रचना....
ReplyDeleteबधाई.....
ज़रा सा कमेन्ट है ये.. और इसके मायने.......?
इसका मतलब हर किसी के लिए अलग अलग है...
एक आदमी जो कुछ भी नहीं कहना चाहता.....वो लिखेगा....
एक आदमी, जो इतना कुछ कहना चाहता है ... इतना .... कुछ .......!!!
के वो कुछ भी नहीं कह सकता......वो लिखेगा.....
ऐसे ही औरत होने...और मर्द होने का मतलब हर इन्सां के लिए एक सा नहीं हो सकता.....!!
आप सभी तो जानते हैं....के हर आदमी एक सा नहीं होता....
फिर कैसे हर औरत ....एक सी ही....और हर पुरुष एक सा ही....हो सकता है.....?????
गाडी
के बारे में कोई तजुर्बा नहीं .....
फिर
भी पता है के सभी गाड़ियां जरूरी नहीं के लात खा के ही चलें....
या
तो उस गाड़ी में दिक्कत होगी..या लात मारने का शौक कुछ ज्यादा ही होगा.....
कमेन्ट से काम नहीं चलेगा शायद......
पोस्ट
ही डालनी पड़ेगी
कमेन्ट बस कमेन्ट होते हैं..... हर किसी के लिए उतना मायने नहीं रखते.....!!!!!!!!!!
जितना किसी किसी के लिए रखते हैं......
हमारे कमेन्ट वैसे भी कहाँ छपते हैं....?
अक्सर
ही उलझे उलझे होते हैं....समझ ना आने की वजह से अक्सर ही डिलीट हो जाते हैं...
khair...
अब रचना जी को उनके हाल पे छोडिये...और ..
आपको और सभी पाठकों को ईद मुबारक...
.
ReplyDelete.
.
आदरणीय अदा जी,
आया तो था आपकी 'गाड़ी और नारी' वाली पोस्ट पर, अच्छा वार्तालाप चल रहा था... पर आपने वह पोस्ट ही हटा दी... खैर... आपका निर्णय है...सही ही होगा।
एक अनुरोध जरूर करूंगा, गजल और गीतों के साथ-साथ Food for thought की पोस्टें डालती रहें।
@kishore sir इस्मत चुग़ताई
ReplyDeletewow !!
@ aDaDi....
wo nayi wali post ka kya hua??
aur haan,
"आपने कहा कि नारी को शरीर की परिभाषा में न बांधा जाए ..शरीर को भूलना होगा....नर-नारी में जो भेद है उसका मुख्य धरातल ही शरीर है...उसे कैसे भूल सकती हैं...???
"
sehmat !!
kal madhur se baat ho rahi thi poochta hai, purush aur naari ke beech itna difference kyun hai?
phir khud hi answer de deta hai,
'Harmons' ke karan...
kitna mushkil sawal tha,
aur kitna aasan jawab.
par wahi hai naa bachpan ki aadat. Agar kisi sawal ka aasani se jawab mil jaiye to uska koi aur answer dhoondne lag jaata hoon,
par jo bhi ho reason,
Consequences bade hi weired hain.
Naari ke "samarpan" main chupa purush ka "Purushatva".
kai chezon main (infact ek stage ke baad har concept main) 'logics' aur 'philosophy' ka ghal mel ho hi jaati hai, mil hi jaati hai dono choonki (choonki kahoonga bavzood nahi) dono ek doosre ke antonym hain. chumbak ke alag alag pole ki tarah. waise hi 'naari' aur 'purush' naamak phenomenon main bhi inhein milte dekha hai.
(waise chumabak ke tukde karke dekhe hain?) phir se do pole...
;)
Prem ki tarah.
bade dukh ke saath keh raha hoon ki....
naari kabhi purush nahi ho sakti.
Par usse bhi zayada dukh ke saath (aap kya jaano abla purush ka dukh ;)) keh raha hoon ki....
Purush kabhi naari nahi ho sakta.
As simple (is it??) as that !!
Ab ek sawal (isko apni post ke saath relate karke dekhna): andhon ke cricket main umpire andha kyun nahi hota??
aapke jawab ka intzaar rahega.
यहां बहुत कुछ, कई तरह से, पहले ही कहा जा चुका है लेकिन यह भी सच है कि महिला सशक्तिकरण के बहुत कुछ मुद्दे हो सकते हैं।
ReplyDeleteलिखना बहुत ज़रूरी है .. कहीं भी लिखें .. इसलिये कि जो रचेगा वही बचेगा .. और जो बचेगा वही रचेगा , कोई किसी के लेखक होने का न फैसला कर सकता है न घोषणा .. ऐसा भी नही कि अभिव्यक्ति के माध्यम भी नही है । यह सामूहिकता की परम्परा है तो फिर तानाशाही क्यों ? कुछ चीजें अस्प्ष्ट ही रहेंगी ?
ReplyDeleteअदा जी, आप्की पोस्ट पडी। आपने सहीविचार- वर्णन दिया है । बात नारी-पुरुष की न होकर व्यक्तिगत मानवता, आचरण, संयम की ही है। मिथिलेश दुबे व श्याम १९५० की टिप्पणियां भी सटीक हैं। आज कल नारी उत्थान आदि के नाम पर अमर्यादित कलापों की दुहाई दी जारही है जो नारी के लिये ही खतरनाक है ।
ReplyDeleteगंभीर, प्रभावी चिंतन.
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