Wednesday, November 11, 2009

कब से...


बस डर जाते हैं जब वो आते हैं धप से
वाकिफ़ हैं हम हर तूफाँ से कब से

किया वार छुपकर मेरे दोस्तों ने
सब देखा है इस दिल दीवाने ने कब से

अब ये तो बता दो उतारूँ कहाँ मैं
ये काँधे पे रखा जनाज़ा है कब से

न रोने की फुर्सत न हँसने की फितरत
बना दिल ये शोला बताएँ क्या कब से

चुराया है तुमने क्यूँ नज़रें बताओ
तकाजे को उठ गई निगाहें ये कब से

बता कर तो जाते नहीं आओगे तुम
सदी बीती हमको बिठाये हो कब से

18 comments:

  1. "किया वार छुपकर मेरे दोस्तों ने"

    सुन्दर!

    हमें तो अपनों ने मारा गैरों में कहाँ दम था
    मेरी कश्ती वहाँ डूबी जहाँ पानी कम था

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  2. वाह सुन्दर अभिव्यक्ति!

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  3. बता कर तो जाते नहीं आओगे तुम
    सदी बीती हमको बिठाये हो तब से
    वाह क्या खूब कहा, इस पर एक शेर पेश हे
    तुम इतनी देर लगाया न करो आने में
    कि भूल जाये कोई इन्तिज़ार करना भी

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  4. न रोने की फुर्सत न हँसने की फितरत
    बना दिल ये शोला बताएँ क्या कब से


    वाह...वाह ...क्या बात है ... बहुत खूब
    बहुत सुन्दर ग़ज़ल
    आभार


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  5. बता कर तो जाते नहीं आओगे तुम
    सदी बीती हमको बिठाये हो तब से
    बहुत खूब

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  6. अब ये तो बता दो उतारूँ कहाँ मैं
    ये काँधे पे रखा जनाज़ा है कब से


    is she'r ki gahari vedanaa ka kya kahanaa... bahut khubsurati se baat ko rakhaa hai aapne ... kya khub alfaaj diye hain aapne......

    badhaayee

    arsh

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  7. दीदी चरण स्पर्श
    रचना तो बहुत अच्छी लगी। परन्तु प--पपपप------पपपप------ परन्तु ये लाईंन समझ ना आयी

    अब ये तो बता दो उतारूँ कहाँ मैं
    ये काँधे पे रखा जनाज़ा है कब से

    ये है किसके लिए।

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  8. इस कविता में कोई प्रतीक्षा है या कुछ भार उतार देने की कशिश ?

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  9. बता कर तो जाते नहीं आओगे तुम
    सदी बीती हमको बिठाये हो कब से.....
    जबाब नही ... बहुत सुंदर आप की गजल के सारे शेर एक से बढ कर एक

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  10. हलके से शिल्प से हटे हुए.. खूबसूरत ख़याल...
    लाजवाब गजल कहने की शानदार कोशिश..

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  11. बता कर तो जाते नहीं आओगे तुम
    सदी बीती हमको बिठाये हो कब से...
    किसी ने ऐसी जुर्रत की कैसे ...और आप उसके इन्जार में बैठी ही क्यूँ हैं ...अपना लीजिय ना नए ज़माने का दस्तूर ...तू नहीं और सही ...और नहीं और सही ...
    हा हा हा हा
    बहुत सुन्दर कविता ...दिल से लिखी ...दिल तक पहुंची ...!!

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  12. इंतेहा हो गई इंतज़ार की,
    आई न कुछ ख़बर मेरे यार की...
    है ये पता, बेवफ़ा वो नहीं,
    फिर क्या वजह हुई इंतज़ार की...

    जय हिंद...

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  13. अरे मिथिलेश बाबु,
    काहे इतना डर रहे हो...कौनो मर्डर-उर्डर का बात नहीं लिखे हैं हम...
    ये शेर मेरे ही लिए है...किसी और का जनाज़ा नहीं अपना ही जनाज़ा ढोए हम खड़े हैं.....बस..और येही पूछ रहे है की देखिये...अब हम थक गए हैं...बताइयेगा कहाँ धरें इसको.....

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  14. किया वार छुपकर मेरे दोस्तों ने
    सब देखा है इस दिल दीवाने ने कब से

    बहुत खूब ...सच लिखा है आपने ..सुन्दर गजल

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  15. Hello,

    बता कर तो जाते नहीं आओगे तुम
    सदी बीती हमको बिठाये हो कब से

    Fantastic climax!
    And the entire creation is awesome :)

    These last two lines are the best part.

    Regards,
    Dimple
    http://poemshub.blogspot.com

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  16. बता कर तो जाते नहीं आओगे तुम
    सदी बीती हमको बिठाये हो कब से

    "Chor ke jaiyenge wo aisi kahan umeed thi,
    koi jhoothi humse wo takrara to karte"

    adaid aapki sabse latest wali kavita main hji kuch kami lag rahi thi aur dar raha tha ki kahin aage bhi ye haal na ho,
    lekin jaise jaise match aage badha aap form main aa gaye...

    waise 1-2 hafte se aap logon ke blog main comment nahi kar pa raha tha to pachan tantra main kuch gadbad si lag rahi thi.
    Ab lag raha hai Comments ke loose motion ho gaye hain...

    Question:Zara mera pehla comment dekhna kab kiya tha?
    Answer:
    बता कर तो जाते नहीं आओगे तुम
    सदी बीती हमको बिठाये हो कब से

    Bachwa.

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