Monday, November 9, 2009
बेतलेहेम से बनारस तक....!!
आस्था और अध्यात्म का शहर 'बनारस'..!!
कहते हैं दुनिया के किसी भी कोने में हम रहें ...मुक्ति 'बनारस' में ही मिलती है....शायद यही वजह है कि ईसा मसीह को भी 'बेतलेहेम से बनारस' आना पड़ा.....मुक्ति के लिए..
ईसा मसीह ने १३ साल से ३० साल तक क्या किया, यह रहस्य की बात है..
इस अन्तराल ईसा मसीह का जीवन कहाँ बीता यह लोगों को मालूम नहीं है..
क्या ईसा मसीह ही सेंट ईसा (Saint Issa) थे और भारत आये थे?
निकोलस नोतोविच (Nicolas Notovitch) एक रूसी अन्वेषक था, उसने कुछ साल भारत में बिताये, बाद में, उन्होने फ्रेंच भाषा में 'द अननोन लाइफ ऑफ जीज़स क्राइस्ट' (The unknown life of Jesus Christ) नामक पुस्तक लिखी है।
निकोलस के मुताबिक यह पुस्तक हेमिस बौद्घ आश्रम (Hemis Monastery) में रखी पुस्तक (The life of saint Issa) पर आधारित है।
उस समय हेमिस बौद्घ आश्रम लद्दाक के उस भाग में था जो कि भारत का हिस्सा था। हांलाकि इस समय यह जगह तिब्बत का हिस्सा है।
१३ से १४ वर्ष की उम्र के दरमियान नाज़रेथ के जीज़स आध्यात्म की तलाश में तीर्थ पर निकल गए और आ पहुंचे भारत जहाँ नाजरेथ के जीज़स 'ईसा', धर्मगुरु और इस्रायल के मसीहा या रक्षक बन गए...
ईसा मसीह सिल्क रूट से भारत आये थे और यह आश्रम इसी तरह के सिल्क रूट पर था
उन्होंने यहां अपना समय बौद्घ धर्म से प्रेरित होकर इसके बारे में पढ़ने में बिताया, और उसके बाद बौद्घ धर्म की शिक्षा दी।
हिमालय की वादियों में जीज़स को योग की दीक्षा मिली और सर्वोच्च अध्यात्मिक जीवन भी, ......यही उन्हें 'ईशा' नाम भी मिला जिसका अर्थ है, 'मालिक' या स्वामी...हालाँकि ईश्वर के लिए भी इन शब्दों का विस्तृत रूप उपयोग में लाया जाता है ...जैसे कि 'ईश उपनिषद' ......में 'ईश', 'शिव' के लिए भी कहा गया है....
अगले कुछ वर्षों तक हिमालय की वादियाँ जीज़स के लिए दूसरा घर बन गईं ....इस दौरान उन्होंने आज के शहर ऋषिकेश की गुफाओं में आराधना की.....गंगा के तट, हरिद्वार में भी उन्होंने कई वर्ष व्यतीत किये....
फिर ....जीज़स ने बनारस की यात्रा की...... वही 'बनारस' जो भारत के अध्यात्म का ह्रदय है...जो शिव की नगरी और गहन वैदिक अध्ययन का केंद्र है.....यहाँ जीज़स ने स्वयं को सर्वोच्च योग साधना में डूबो दिया..और उपनिषदों जैसे महान ग्रंथों के तत्व-विचार में लीन हो गए....
जीज़स ने पवित्र जगन्नाथ पूरी की यात्रा की, जो उस समय बनारस के बाद शिव की दूसरी नगरी थी...जहाँ उन्होंने गोवर्धन मठ की सदस्यता ग्रहण की और मठ के जीवन को आत्मसात किया ......
यहाँ उन्हें योग औए दर्शनशास्त्र पूर्णरूप से संलग्न मिले.....और अंततोगत्वा सार्वजनिक रूप से वो सनातन ज्ञान का विस्तार करने लगे......
बहुत जल्द ही जीज़स लोगों में लोकप्रिय हो गए ....वो विचारक और उपदेशक के रूप में बहुत सफल रहे...लेकिन कुख्याति ने बहुत जल्द उनको कोपभाजन बना लिया.....इसका मुख्य कारण था ........वो वेदों का ज्ञान हर सतह के लोगों को देने में विश्वास करते थे ...जिनमें निम्न वर्ग के लोग भी आते थे.....जो अन्य मठाधीशों को मंज़ूर नहीं था...फलतः उनकी हत्या की साजिश रची जाने लगी.....
जीज़स को अपनी हत्या की साजिश का भान हो गया था इसलिए उन्होंने जगन्नाथपुरी छोड़ना श्रेयष्कर समझा ...और पुनः हिमालय की ओर रवाना हुए....इस्रायल लौटने से पूर्व उन्होंने बहुत सारा समय.....एक बौद्ध मठ में बिताया.....जहाँ उन्होंने गौतम बुद्ध के निर्वाण पर अध्ययन किया..
पश्चिम कि ओर यात्रा शुरू करने से पहले भारत के गुरुओं ने जीसस को कुछ स्पष्ट निर्देश दिए थे .....जीसस को मालूम थे कि इस्रायल पहुँच कर ........कुछ दिनों में उनकी मृत्यु अवश्यम्भावी है......इसलिए भारत में उनका भला चाहनेवालों गुरुओं ने उनसे करार किया था कि हिमालय से चंगा करने वाला द्रव्य उनको दिया जाएगा और ....यह द्रव्य उनको भेज कर स्पष्ट निर्देश दिया गया था कि जब भी ...ऐसा प्रतीत हो उनकी मृत्यु अब निश्चित है.....कोई भी उनका शिष्य जो बहुत ही विश्वासपात्र हो यह द्रव्य उनके शीश पर डालता रहे.......और अगर आप बाईबल पढें तो क्रूस से उनके पार्थिव शरीर क उतारने के बाद मेरी मग्दलेन ने लगातार तीन दिनों तक इसी द्रव्य को प्रयोग ईसा मसीह के शरीर पर किया तब जब उन्हें 'टूम्ब' में रखा गया था.....और वही से वो तीसरे दिन जी उठे थे ....
ऐसा मानना है कि अपने जीवन के अंत में ईसा मसीह स-शरीर स्वर्ग चले गए थे ...लेकिन संत मैथ्यू और संत जोन, दोनों जो की ईसाई मत के प्रचारक थे, साथ ही प्रत्यक्षदर्शी भी थे, ने कभी भी ऐसी कोई बात बात नहीं कही......क्योंकि उन्हें मालूम था, उनसे अलग होकर ईसा मसीह स्वर्ग नहीं......भारत आये थे....
ईसा मसीह के स्वर्गारोहण कि बात सिर्फ संत मार्क और संत लुके ने ही कही है......जबकि दोनों ही उस समय वहां उपस्थित नहीं थे.......
और सच्ची बात भी यही है कि ......वो भारत ही आये थे...हाँ यह हो सकता है कि उन्होंने अपने योग का प्रयोग किया हो ...ऊपर उठ कर यहाँ तक आने के लिए जो कोई नयी बात नहीं थी.....तब योगी ऐसा किया भी करते थे.......
२ री शताब्दी के लिओन के संत इरेनौस द्वारा भी इस बात की पुष्टि की गई है कि ईसा मसीह ने ३३ वर्ष कि आयु में अपना शरीर नहीं त्यागा था ...उनका कहना है कि ईसा मसीह ने पचास से ऊपर अपनी ज़िन्दगी जी थी दुनिया छोड़ने से पहले......जब कि उनको सलीब पर ३३ साल कि उम्र में टांगा गया था...इसका अर्थ यह होता है कि .....क्रुसिफिक्शन के बाद २० वर्षों तक वो जीवित रहे ...हालाँकि संत इरेनौस कि इस दलील ने कई ईसाई मठाधीशों को बहुत परेशान किया है.....आज भी वेटिकन ने धर्म कि राजनीति का खेल खेलते हुए ......ईसा से सम्बंधित न जाने कितने तथ्यों को छुपाया हुआ है.......
फिर भी मानने वाले मानते हैं की वो अपनी माता और पत्नी 'मेरी मग्द्लेन' के साथ भारत ही आये....बाद में उनकी एक पुत्री भी हुई थी 'सारा' ........कहा जाता है उनकी माता मरियम की कब्र आज भी कश्मीर में है......
और सच्चाई भी यही है कि चाहे वो किसी भी धर्म के हों.........धर्म गुरुओं तक तो अपनी मुक्ति कि लिए 'बनारस' की शरण में आना ही पड़ता है...और कोई रास्ता नहीं है ...!!!
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अदा जी बहुत ही दिलचस्प जानकारी ले आईं हैं आप...अब सच क्या है ये तो पता नहीं पर इसे पढ़ कर एक सुखद अनुभूति अवश्य हुई. आपकी मेहनत को सलाम.
ReplyDeleteसुन्दर ज्ञानवर्धक लेख!
ReplyDeleteभारतभूमि सदा से ही विश्व के अन्य देशों के लिये ज्ञान का स्रोत रहा है। कहा तो यह भी जाता है कि ईसा मसीह ने नालन्दा विश्वविद्यालय में रह कर शिक्षा भी प्राप्त की थी।
यह तो बहुत रोचक है ,अभी तक अज्ञात मेरे लिए ! बनारस ज्ञान के खोजियों और विचारों के विनिमय का अभीष्ट स्थल रहा है ! गौतम बुद्ध,.शंकराचार्य से लेकर अनेक ज्ञानी पुरुष आये और धन्य हुए !
ReplyDeleteकोई आश्चर्य नहीं यदि जीसस भी आये हों ! इस सत्यान्वेषण के लिए बधायी !
बहुत रोचक और सार गर्भित पोस्ट...इस जानकारी के लिए आपका आभार...
ReplyDeleteनीरज
bahut achchci lagi yeh jaankari...
ReplyDeleteदीदी चरण स्पर्श
ReplyDeleteक्या बात है आजकल खूब लग के लिख रही है । बड़ी अच्छी जानकारीं दी है आपने। बहुत-बहुत बधाई आपको। और आप ने मेरा सर गर्व से उचा कर दिया, हम बनारस के जो ठहरे।
एक शोध परक आलेख है बहन मंजूषा। अच्छा लगा पढ़कर, नयी जानकारियाँ भी मिलीं।
ReplyDeleteशुभकामना।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
बहुत सुंदर और सारगर्भित पोस्ट.
ReplyDeleteरामराम.
एक बेहतरीन रचना के लिए बधाई। इतनी जानकारी से भरे आलेख प्रस्तुत करने के आपके प्रयासों की जितनी भी तारीफ की जाए कम है।
ReplyDeleteअदा जी, सुली पर चढने से पहले तो पता नही लेकिन सुना है सुली से उतरने के बाद उन के अनुयाईयो ने उन्हे दुर कही भेज दिया था रातो रात ओर वो फ़िर किसी तरह भारत आ गये कशमीर मै ओर उन की कब्र आज भी पाकिस्तान की तरफ़ बाले कशमीर मै है, टुटी फ़ुटी हालात मै लेकिन वहां रहने वाले आज भी वहा दीपक जलाते है, अब कितना सही है यह पता नही राम जाने
ReplyDeleteधन्यवाद
मुझे बहुत ख़ुशी हो रही है की मैं आपके ब्लॉग पर कमेन्ट कर रहा हूं,क्यूंकि आप सिर्फ अच्छी लेखिका ही नहीं एक ज्ञाता भी हैं मुझे ख़ुशी होगी अगर आप मुझे अपना आर्शीवाद दें........आपने जो भी लिखा पावन नगरी के बारे मे पढ़कर बहुत शांति मिली
ReplyDeleteमाफ़ी चाहूंगा स्वास्थ्य ठीक ना रहने के कारण काफी समय से आपसे अलग रहा
अक्षय-मन "मन दर्पण" से
काफी जानकारियाँ जुड़ी. बहुत बहुत आभार इस आलेख के लिए. बेहतरीन आलेख.
ReplyDeletekuch kuch pdha tha magar aapke aalekh se vistrat jankari mili isa mseeh ke bhart aane ki bat ko sdiyo se chupaya gya hai
ReplyDeleteitna gyan nahi is sandarbh mein ki koi tippani kar paaun.. par han, post bahut rochak laga.. aur waise bhi, us samay to har koi bharat hi aata tha gyaan prapt karne, koi khaas baat nahi.. its well known fact that we're leaders in education...
ReplyDeleteअदा जी,
ReplyDeleteखूब खोजबीन कर के लिखा है तो निश्चय ही लेख सत्य होगा , हमें क्यूंकि जीसस की जिंदगी के बारे में ज्यादा नहीं पता है, लेकिन इतनी सब जानकारी पाकर अच्छा लगा.....
मुक्ति के लिए किसी भी जगह विशेष तक जाना पड़ता है,,,, और कोई रास्ता नहीं है....
इस बात से एकदम सहमत नहीं हूँ...
बनारस एक बहुत पावन नगरी है,, मानता हूँ...
मगर
मुक्ति कही भी मिल जाती है ...
और या फिर कहीं भी नहीं मिलती....
आशा है मेरी ध्रष्टता के लिए आप मुझे माफ़ करेंगी
ईशा मसीह ने बौध धर्म की शिक्षा दी ...योग सीखा ...बहुत सारी नयी और रोचक जानकारिया दी हैं ...
ReplyDeleteओहो ...तो आजकल बनारस में मुक्ति का मार्ग खोजा जा रहा है ...बनारसियों की संगत भाने लगी है आगत्वल्ल्भा को ..!!
bahut sunder lekh ada ji...
ReplyDeleteबहुत रोचक जानकारी है।अपका बहुत बहुत धन्यवाद और शुभकामनायें
ReplyDeleteहाँ सही है, बहुत पहले एक तिब्बती उपन्यास रचना (अंग्रेजी में तिब्बत व लामाओं के रहस्यों के बारे में ) यह पढा था , आपने वहुत विस्तृत वर्णन एवं जानकारी प्रस्तुत की है , कोटि-कोटि बधाई व आभार |
ReplyDeleteहाँ सही है, बहुत पहले एक तिब्बती उपन्यास रचना (अंग्रेजी में तिब्बत व लामाओं के रहस्यों के बारे में ) यह पढा था , आपने वहुत विस्तृत वर्णन एवं जानकारी प्रस्तुत की है , कोटि-कोटि बधाई व आभार | यह भी सुनागया है कि हिन्दू धर्म व कृष्ण -धारा के प्रभाव में उन्होंने अपने को क्राइस्ट ( कृष्ण का नाम-रूप अनुसार )
ReplyDeleteएवं चक्र व सनातन हिन्दू धर्म के स्वास्तिक को नया रूप देकर क्रिस्चियन धर्म का प्रतीक चिन्ह 'क्रोस ' बनाया | जिसे बाद में दुनिया भर में चिकित्सा व सेवा का प्रतीक रेड -क्रॉस बनाया गया |
कश्मीर में घूमते-फिरते गुलमर्ग के आस-पास भी चिह्न मिले ईसा के कदमों के....उत्सुक हो मैंने इस किताब की तलाश की थी।
ReplyDeleteअच्छी जानकारी मैम!
ज्ञानवर्धक आलेख | इसा मसीह भारत आये थे इस बारे मैं जानता तो था किन्तु इतने विस्तार से नहीं |
ReplyDeleteवैसे भी वेटिकेन कभी भी ये मानेगा नहीं की इसा मसीह भारत आये थे, उनकी पोल खुल जायेगी ....
काशी के बारे में पढ़कर काफी अच्चा लगा ये जानकारी हमने फेसबुक के बनारस की गलियां पेज पर भी पोस्ट की है...
ReplyDeletewww.facebook.com/BanarasKiGaliyan
काशी के बारे में पढ़कर काफी अच्चा लगा ये जानकारी हमने फेसबुक के बनारस की गलियां पेज पर भी पोस्ट की है...
ReplyDeletewww.facebook.com/BanarasKiGaliyan