Saturday, November 21, 2009

पंख मेरे झड़ रहे हैं ....


आज कोई गाना नहीं है बजाने को...रात रेकॉर्डिंग ही नहीं कर पाए......
लेकिन कल बहुत ही सुन्दर सा गाना होगा आप लोगों की नज़र.....पक्का !!
फिलहाल ये कविता....दोबारा छाप रहे हैं हम.....

हम खुद से बिछड़ रहे हैं
हालात बिगड़ रहे हैं

अब कहाँ उड़ पायेंगे
पंख मेरे झड़ रहे हैं

तूफाँ कुछ अजीब आया
हिम्मत के पेड़ उखड़ रहे हैं

महफूज़ मकानों में बसे थे
वो मकाँ अब उजड़ रहे हैं

हमसफ़र साथ थे कई
पर आज बिछड़ रहे हैं

आईना है या हम हैं 'अदा'
अक्स क्यूँ बिगड़ रहे हैं ??

13 comments:

  1. "तूफाँ कुछ अजीब आया
    हिम्मत के पेड़ उखड़ रहे हैं"

    कविता में तो ठीक है किन्तु वास्तविक जीवन में हिम्मत के पेड़ को नहीं उखड़ने देना है।

    ReplyDelete
  2. Bahut hi umda gazal ban padi hai Di..
    तूफाँ कुछ अजीब आया
    हिम्मत के पेड़ उखड़ रहे हैं
    ye to bada hi sundar sher laga
    aur ye kya mahfooz shabd ka aaj aapne aur maine dono ne istemaal kiya.. like brother like sister.. :)
    Jai Hind...
    :)

    ReplyDelete
  3. हम खुद से बिछड़ रहे हैं
    हालात बिगड़ रहे हैं

    खुद को बिछ्ड़ने से रोकिये

    ReplyDelete
  4. अब कहाँ उड़ पायेंगे
    पंख मेरे झड़ रहे हैं

    इतने साधारण शब्दों में इतनी बेहतरीन बात तो दी आप ही कह सकती हो..सच्ची..

    ReplyDelete
  5. हालत भले बिगड़ जाएँ मगर हम खुद को संभाले रहें ! क्यों ?

    ReplyDelete
  6. हम खुद से बिछड़ रहे हैं
    हालात बिगड़ रहे हैं


    :-(

    बी एस पाबला

    ReplyDelete
  7. हमसफ़र साथ थे कई
    पर आज बिछड़ रहे हैं
    बहुत बारीक एहसास है इस रचना में

    ReplyDelete
  8. आप की कविता अच्छी लगी, ओर यह लम्बी गर्दन वाले जानवर ने परेशांन कर दिया, जिस का नाम खोज निकाला ओर इस distorted gazelle का घर भी.
    धन्यवाद

    ReplyDelete
  9. अब कहाँ उड़ पायेंगे
    पंख मेरे झड़ रहे हैं

    SUNDAR* * * * * *
    धन्यवाद

    ReplyDelete
  10. अदा जी,
    बधाई, आपके एक-एक शब्द की विवेचना करने वाला मिल गया है महफूज़...

    महफूज़ मियां...सारी तारीफ आप ही कर दोगे तो हम क्या भुट्टे भूनेंगे...

    जय हिंद...

    ReplyDelete
  11. behtreen rachnaa...
    badhaai...

    ReplyDelete