आज कोई गाना नहीं है बजाने को...रात रेकॉर्डिंग ही नहीं कर पाए......
लेकिन कल बहुत ही सुन्दर सा गाना होगा आप लोगों की नज़र.....पक्का !!
फिलहाल ये कविता....दोबारा छाप रहे हैं हम.....
हम खुद से बिछड़ रहे हैं
हालात बिगड़ रहे हैं
अब कहाँ उड़ पायेंगे
पंख मेरे झड़ रहे हैं
तूफाँ कुछ अजीब आया
हिम्मत के पेड़ उखड़ रहे हैं
महफूज़ मकानों में बसे थे
वो मकाँ अब उजड़ रहे हैं
हमसफ़र साथ थे कई
पर आज बिछड़ रहे हैं
आईना है या हम हैं 'अदा'
अक्स क्यूँ बिगड़ रहे हैं ??
"तूफाँ कुछ अजीब आया
ReplyDeleteहिम्मत के पेड़ उखड़ रहे हैं"
कविता में तो ठीक है किन्तु वास्तविक जीवन में हिम्मत के पेड़ को नहीं उखड़ने देना है।
nice
ReplyDeleteइतनी छोटी बहर और इतने सुंदर कलाम। कमाल कर दिया आपने।
ReplyDelete------------------
सिर पर मंडराता अंतरिक्ष युद्ध का खतरा।
परी कथाओं जैसा है इंटरनेट का यह सफर।
Bahut hi umda gazal ban padi hai Di..
ReplyDeleteतूफाँ कुछ अजीब आया
हिम्मत के पेड़ उखड़ रहे हैं
ye to bada hi sundar sher laga
aur ye kya mahfooz shabd ka aaj aapne aur maine dono ne istemaal kiya.. like brother like sister.. :)
Jai Hind...
:)
हम खुद से बिछड़ रहे हैं
ReplyDeleteहालात बिगड़ रहे हैं
खुद को बिछ्ड़ने से रोकिये
अब कहाँ उड़ पायेंगे
ReplyDeleteपंख मेरे झड़ रहे हैं
इतने साधारण शब्दों में इतनी बेहतरीन बात तो दी आप ही कह सकती हो..सच्ची..
हालत भले बिगड़ जाएँ मगर हम खुद को संभाले रहें ! क्यों ?
ReplyDeleteहम खुद से बिछड़ रहे हैं
ReplyDeleteहालात बिगड़ रहे हैं
:-(
बी एस पाबला
हमसफ़र साथ थे कई
ReplyDeleteपर आज बिछड़ रहे हैं
बहुत बारीक एहसास है इस रचना में
आप की कविता अच्छी लगी, ओर यह लम्बी गर्दन वाले जानवर ने परेशांन कर दिया, जिस का नाम खोज निकाला ओर इस distorted gazelle का घर भी.
ReplyDeleteधन्यवाद
अब कहाँ उड़ पायेंगे
ReplyDeleteपंख मेरे झड़ रहे हैं
SUNDAR* * * * * *
धन्यवाद
अदा जी,
ReplyDeleteबधाई, आपके एक-एक शब्द की विवेचना करने वाला मिल गया है महफूज़...
महफूज़ मियां...सारी तारीफ आप ही कर दोगे तो हम क्या भुट्टे भूनेंगे...
जय हिंद...
behtreen rachnaa...
ReplyDeletebadhaai...