Wednesday, November 4, 2009
बाहुबली की बेटी....(भाग--२)
और दिनों की अपेक्षा आज , ज्यादा देर हो गयी सबको खिलाते-पिलाते, मैं जय को बीच-बीच में देख लेती थी, तीनों भाई गप्प करते जाते और खाते जाते, मेरे दीमाग में आँधी चल रही थी, मैं आज की बात इनको बताऊँ या नहीं बताऊँ, मुझे इतना पता है अगर इन तीनों में से एक भी घर में होता तो आज उमा वापिस नहीं जाती और सुबह हम सब लाशों में बदल चुके होते, हाँ मेरे पिता जी को अगर बताऊँ तो वो बहुत खुश होंगे यह मैं जानती थी, मेरे लिए जय से बात करना बहुत जरूरी था, बस मैं मौका देख कर बात करना चाहती थी, अगर बाकी दोनों भाइयों को पता चला तो भ्रात्रिप्रेम जाग उठेगा, वैसे भी एक बॉडी-बिल्डर है दूसरा वेट-लिफ्टर , और इस समय मुझे इन दोनों की आवश्यकता नहीं थी, खाना खाकर सब अपने-अपने कमरे में चले गए, मैंने जय के कमरे का रुख किया, वो मच्छरदानी गिरा कर सोने ही जा रहा था, मुझे देख बैठ गया, मैं भी पलंग पर बैठ गयी, मैं समझ नहीं पारही थी की यह बात शुरू कैसे करूँ, मुझे चुप देख कर जय बोला 'क्या बात है दीदी' ? मैंने कहा बात तो है , अच्छा यह बताओ उमा को कब से जानते हो ? जय का चेहरा कनपट्टी तक लाल हो गया, बोला कौन उमा ? मुझे गुस्सा आ गया, मैंने कहा देखो बेकार बातों के लिए टाइम नहीं है, पता है आज वो घर आई थी, जय को जैसे किसी ने करेंट छुआ दिया हो, उछल कर वो खडा हो गया, यहाँ आई थी ? यहाँ.....? हाँ बाबा यहाँ आई थी और यहाँ से जाना ही नहीं चाहती थी, जय को जैसे झटके पर झटके लग रहे थे बोला क्या पागल तो नहीं है वो ? मेरा गुस्सा अब आसमान छूने लगा था, जय यह सब क्या है, तुम जानते हो जगदीश सिंह को पता चलेगा तो क्या होगा ? हमलोग सब ख़तम हो जायेंगे, जय ने मेरा हाथ थाम लिया 'दीदी तुम बेकार में डर रही हो ऐसा कुछ भी नहीं होगा' मेरा मन किया एक थप्पड़ उसके मुंह पर रसीद दूँ , लेकिन मैंने खुद को ज़ब्त कर लिया, ठीक है कल बात करेंगे अभी तुम सो जाओ, मैं सारी रात सो नहीं पायी, मुझे मालूम है जय भी नहीं सो पाया होगा,
दूसरे दिन जय मेरे सामने आने से हिचकिचाता रहा, वो मुझसे आँखें मिला नहीं पा रहा था, उसे यह भी लग रहा होगा शायद घर में सबको पता चल गया है, लेकिन मैंने किसी से भी कुछ नहीं कहा था, और मेरे समझ से यह बात उसे बताना बहुत ज़रूरी था, मौका पाकर मैंने उसे बता दिया की घर में किसी को मालूम नहीं है , वह अब काफी आश्वस्त नज़र आ रहा था, मैंने उससे साफ़-साफ़ कह दिया देखो हमारे घर में उतनी परेशानी नहीं होगी, हम सबको मना सकते हैं इस रिश्ते के लिए लेकिन हमको नहीं लगता है सिंह जी तैयार होंगे, इसलिए भलाई इसी में है की इस रिश्ते को यही इसी वक्त ख़त्म करो, उसका चेहरा अवसाद से भर गया, बहुत ही कातर नज़रों से उसने मुझे देखा, उसकी वो आँखें मेरी आखों से चिपक गयीं, मैं भूल ही नहीं पा रही थी, एक मन करता 'बात करने में क्या हर्ज़ है' दूसरा कहता पागल हो, जिंदा रहना है या नहीं ? और सबसे बड़ी बात जय तो सबसे छोटा था, उसके दोनों बड़े भाइयों की शादी तो अभी हुई ही नहीं, चलो मेरी तो हो गयी थी और मैं भी इसलिए माँ के पास थी क्योंकि मेरे पति ६ महीनों के लिए फ्रांस गए हुए थे, खैर इसी उधेड़-बुन में २ हफ्ते बीत गए, इस बात की याद भी थोड़ी धुंधली हो गयी और सबका जीवन सामान्य चलने लगा, मरियम भी वापस आ चुकी थी और मुझे थोड़ी राहत भी मिल गई थी घर के कामों से..
उस दिन भी गोधूलि का ही समय था, घर में, माँ, पिता जी, मैं और मरियम थे, हमेशा की तरह मेरे तीनो भाई घर से नदारत थे, मैं ऊपर के कमरों में चादर बदल रही थी, नीचे आँगन में मुझे कुछ अजीब सी आवाजें सुनाई पड़ रही थीं, उसे ना तो आप शोर कह सकते हैं ना ही यह कह सकते हैं की वह शोर नहीं है, कुछ अजनबी सी आवाजें थीं, मेरे कान उधर ही लगे हुए थे और अब तक मैं सीढियों से उतरने की जगह तक आ चुकी थी, नीचे आंगन में दो अजनबी और एक परिचित 'सिंह जी' पिस्तौल ताने हुए खड़े थे, सबने वही कुरता पायजामा पहना हुआ था, मुंह में पान और आँखों में वहशत, एक ने मेरे पिता जी की कनपट्टी पर पिस्तौल तान रखी थी, एक ने माँ की कनपट्टी पर, सिंह जी मरियम को पिस्तौल दिखाया हुआ था, मरियम उस बदमाश के पाँव पड़ रही थी ' हमलोगों को छोड़ दीजिये', सिंह जी मुझे देखते ही जोर-जोर से बोलने लगे, तुमरा भाई कहाँ है ? जल्दी बताओ नहीं तो तुम्हरे बाप की खोपडी में अभी छेद कर देंगे' , मैंने सीढियाँ उतरते-उतरते कहा वैसे हमको मालूम नहीं है उ कहाँ है, लेकिन अगर मालूम होता तो आप का समझते हैं, हम बता देते ? सिंह जी चिल्लाने लगे खबरदार नीचे नहीं उतरो नहीं तो अभी गोली मार देंगे, तुम्हारे भाई के सह पर हमरी बेटी हमसे बतकही करती है, आज छोडेंगे नहीं, और तुम वहीँ खड़ा रहो नहीं तो हम गोली मार देंगे, लेकिन मैं कहाँ रुकने वाली थी जब मेरे माँ-बाप पर बन्दूक तनी हो तो मेरे रुकने का प्रश्न ही नहीं उठता है, मैं सारी सीढियाँ फुर्ती से उतर गयी और ठीक सिंह जी के सामने खड़ी हो गयी चिल्ला कर कहा 'आप मारते क्यों नहीं हैं मारिये ना ? इतने में मरियम सिंह जी का पैर पकड़ कर रोने लगी 'नहीं दीदी को छोड़ दीजिये,' मैंने मरियम से कहा 'खबरदार जो तुमने इनके पाँव को हाथ लगाया, लेकिन मरियम सिंह जी के पैरों से ऐसी लिपटी की वो गिरने-गिरने को हो गए ....उनको जल्दी से दीवार पकड़ना पड़ा.. उनका ध्यान पिस्तौल से हट कर खुद को सम्हालने और मरियम को लाथियाने में चला गया, मेरे लिए यही मौका था और मैंने एक ही झटके से पिस्तौल सिंह जी के हाथों से छीन ली, अब पिस्तौल मेरे हाथ में थी, और निशाना सिंह जी, वैसे भी मरियम सिंह जी के पाँव से बिलकुल चिपक गयी थी वो हिल ही नहीं पाराहे थे, बाकि के दो लोग भी सकपका गए, मौका देखकर मेरे पिताजी ने भी जिसने उनकी कनपट्टी पर पिस्तौल सटा रखा था, हाथ से मार कर पिस्तौल गिरा दिया, बाजी उलटती देख वो लोग धमकी देते हुए दौड़ते हुए भाग गए, उनको भागते हुए मोहल्ले के लोगों ने देखा, उन्हीं में से किसी ने मेरे तीनों भाईयों को खबर कर दिया, वो भी भागे-भागे घर आये, जय को तो काटो तो खून नहीं वाली हालत हो गयी थी, पिताजी को कुछ पता था ही नहीं और आज जब मालूम हुआ तो वो बिफर गए थे, माँ लगी मुझे डाँटने तुमको बहादुरी दिखाने की क्या ज़रुरत थी अगर वो गोली चला देता तो ? मैंने बिलकुल लापरवाह अंदाज में कहा चला देता तो चला देता, अगर हम नीचे आकर उससे नहीं उलझते तो ज़रूर चला देता, मरियम को मैंने कृतज्ञता और प्रेम से अपने से चिपका लिया, काफी रात हो गयी थी लेकिन हम सबकी नींद उड़ चुकी थी, सबकी जान को अब खतरा था, लेकिन उस दिन जो संतोष मुझे मिला 'सिंह जी' को भागते हुए देख कर उसके विवरण के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं, ऐसा लगा किसी ने प्राण-वायु मेरे कण-कण में फूंक दिया हो ओर अब मैं कहाँ चुप बैठने वाली थी....
क्रमशः
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वो तो अब नज़र आ ही रहा है कि आप अब कहाँ चुप बैठने वाली .... :-)
ReplyDeleteदिलचस्प
अगली कड़ी की प्रतीक्षा
बी एस पाबला
बालीवुड की अब तक देखी सारी एक्शन फिल्मे फेल -आगे देखते हैं !
ReplyDeleteजिस घर में बॉडी बिल्डर और वेट लिफ्टर भाई हो ...माँ और बहने आतंकित ही रहती है ...कब किससे झगड़ आये और एक दो सिरों की मरम्मत भी हो जाये ...हाहाहा
ReplyDeleteइस भय और आपके साहस की अनूठी दास्तान पढ़ी ...अगली कड़ी का बेसब्री से इन्तजार है ..!!
धन्यवाद ,
ReplyDeleteआपने कहानी जल्दी आगे बढाई...
आपके साहस के बारे में सोचकर बार बार वो मुश्किल घडी , वो फैसला , वो सीन ,
आँखों के आगे आ रहे हैं...
रोमांचक फिल्म जैसा है सब कुछ...
दिलचस्प
ReplyDeleteअगली कड़ी की प्रतीक्षा!!!
अरे वाह! हम तो समझते थे कि आप सिर्फ कविता, कहानी लिखने वाली हिरनी हैं पर आज पता चला कि आप तो शेरनी हैं!!!
ReplyDeleteबहुत रोचक!
अगली कड़ी की प्रतीक्षा है।
वाह बहुत खुब । बाँधकर रखने में सफल हुयीं आप, अगली कड़ी का इन्तेजार रहेगा।
ReplyDeleteअदा जी,
ReplyDeleteसबसे पहले राजस्थान पत्रिका में कविता छपने के लिए बधाई...
दूसरी बात, आपकी इस थ्रिलर स्टोरी से सबक मिला है कि आगे से आपसे बहस का पंगा भी सोच-समझ कर लेना पड़ेगा...
भईया जान है तो जहान है...
जय हिंद...
पढ रही हूं .. अच्छी चल रही है कहानी !!
ReplyDeleteबहुत शानदार ..आगे का इंतजार है.
ReplyDeleteरामराम.
अगली पोस्ट की प्रतीक्षा रहेगी....
ReplyDeleteAchha hua ki, aapne dobara ye post kiya maine pahle kaa 'save' kiya...ab dobara padh rahee hun..
ReplyDeleteवाह बहुते सुन्दर
ReplyDeleteमैं तो शॉर्ट फिल्म की घात लगाए बैठा था, ये तो फीचर फिल्म हो चली है। चलिए..आगे आगे देखते हैं होता है क्या?
ReplyDeleteDi... Mujhe garv hai ki aap meri di hain... bas aur aage kya kahoon...
ReplyDeleteJai Hind...
चलो, कह रही हो और दिलचस्प वातावरण बनाये हो..तो इन्तजार करते हैं. :)
ReplyDeleteरोचक और मन को छू लेने वाली।
ReplyDeleteअगले भाग का इंतज़ार रहेगा।
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परा मनोविज्ञान- यानि की अलौकिक बातों का विज्ञान।
ओबामा जी, 75 अरब डालर नहीं, सिर्फ 70 डॉलर में लादेन से निपटिए।
वाह बहुत खुब । बाँधकर रखने में सफल हुयीं आप, अगली कड़ी का इन्तेजार रहेगा।
ReplyDeleteअदा जी,
ReplyDeleteइस संस्मरण को, मैंने देखा भी है, पढ़ा भी है, और सुनते भी रहे हैं
एक बार फिर पढ़ कर अतीत में मन खो गया है
आपकी बहादुरी के बारे में सच कर मन गर्व महसूस कर रहा है, और आपलोगों की परेशानियों को सोच कर मन उद्विग्न हो गया है.
आपकी लेखनी के प्रवाह में पाठकों को बहा ले जाने की अपूर्व क्षमता है.
बहुत ही अच्छा लिखती हैं आप.
अदा जी,
ReplyDeleteइस संस्मरण को, मैंने देखा भी है, पढ़ा भी है, और सुनते भी रहे हैं
एक बार फिर पढ़ कर अतीत में मन खो गया है
आपकी बहादुरी के बारे में सच कर मन गर्व महसूस कर रहा है, और आपलोगों की परेशानियों को सोच कर मन उद्विग्न हो गया है.
आपकी लेखनी के प्रवाह में पाठकों को बहा ले जाने की अपूर्व क्षमता है.
बहुत ही अच्छा लिखती हैं आप.
मानना पड़ेगा मैम आपको भी...मैंने तो बड़े-बड़ों को तने हथियार के आगे घिग्घी बंधते देखा है।
ReplyDeletehats off to u. ma'm!