परसों एक टिप्पणी विशेष को मैंने मुद्दा बनाया था और आप लोगों से उस पर आपके विचार जानना चाहा था......शायद में अपनी बात ठीक तरीके से रख नहीं पायी थी...इसलिए बात भटक कर व्यक्तिगत आक्षेप पर पहुँच गयी...मैंने बहुत स्पष्ट रूप से कहा था की...यह टिप्पणी व्यक्ति विशेष द्वारा सखेद हटाई जा चुकी है.....और अब दोषारोपण का कोई तर्क नहीं बनता ....फिरभी कुछ लोगों ने उक्त टिप्पणी पर अपना रोष भी व्यक्त किया...और कुछ ने अत्यधिक रोष व्यक्त किया जैसे की 'अर्क्जेश जी' ....अत्यधिक रोष में लिखी गयी टिप्पणी भी निसंदेह 'नारी' के पक्ष की बातों से लबरेज़ थी लेकिन भाषा में संयम की कमी स्पष्ट दृष्टिगत था मैं किसी को भी कोई सीख देने की चेष्टा नहीं कर रही हूँ.....बस एक सामान्य शिष्टाचार की ही बात कर रही हूँ...अगर मेरी बात से किसी को ज़रा सी भी दुःख पहुँच रहा है.....ख़ास करके 'अर्क्जेश जी' से मैं कर-वद्ध क्षमाप्रार्थी हूँ....
बात करते हैं मुद्दे की तो इस विषय पर मिझे सिर्फ हिमांशु जी से ही टिप्पणी मिली ...जिसमें उन्होंने अपना मंतव्य दिया....और किसी ने भी..इस विषय पर कुछ भी नही कहा ......कुछ ही देर में मेरी पोस्ट अपना ध्येय खो चुकी थी ..बात उस चर्चा से विलग होकर बिलकुल अलग पटरी पकड़ने लगी थी ...इसलिए ब्लॉग moderation जैसी सुविधा का लाभ उठाते हुए मैंने वो पोस्ट रद्द कर दी ....लेकिन मुद्दा अब भी वहीँ बरकरार है...इसीलिए नए सिरे से उसी चर्चा को लेकर पुनः उपस्थित हूँ....
उक्त टिप्पणी को मुद्दा बनाने का मेरा एकमात्र मकसद था इसप्रकार के दृष्टिकोण को समझना और कुछ बहुत ही ज्वलंत मुद्दे को सामने लाना ......जैसे ...हमारे समाज में शादी-शुदा स्त्री ज्यादा सम्मानित मानी जाती है और तलाक-शुदा कम....जब की तलाक शुदा महिला शायद शादी-शुदा से ज्यादा संस्कारी हो सकती है.......लेकिन समाज की यह मानसिकता क्या उचित है...? अगर नहीं तो क्यूँ न हम इसी मंच पर इसे बदलने की पहल करें....
अत्यधिक प्रसन्नता के साथ सूचित कर रही हूँ की ९९.९% लोगों ने 'नारी' के प्रति ह्रदय से अपना सम्मान व्यक्त किया....अपने जीवन में उनकी महत्ता को स्वीकारा है...कुल मिला कर जो बात समझ में आई है वो ये की स्थिति उतनी भयावह नही है जितनी लोगों को लगती है....'नारियों' को positive mentality के mode में आना होगा..... परुष वर्ग बदल रहा है..या यूँ कहें बहुत हद्द तक बदल गया है..(मैं तालेबान की बात नहीं कर रही हूँ ) ....और इस बदलाव के लिए पुरुषों को due credit देना ही होगा.......नारियों से अपील है...एक बार रुक कर पीछे मुड़ कर कल को देखें ...फिर सोचें हमने क्या पाया है....यकीनन आपको ख़ुशी होगी.....उस ख़ुशी को चखिए फिर आगे बढिए.....और फिर ख़ुद को थोड़ा और बदलिए.....लोग आप को देख कर खुद ही बदल जायेंगे......
यहाँ मैं कुछ टिप्पणी के अंश डाल रही हूँ जो कल आई थी..कुछ टिप्पणी बहुत लम्बी हैं, कुछ मुद्दे से अलग हैं...और कुछ आक्षेप......इसलिए सभी टिप्पणी नही हैं यहाँ ..
कुछ टिप्पणी बहुत ही मेहनत से लिखी गयी थी और सारगर्भित थी जैसे श्री प्रकाश पाखी जी ने अपने अनुभव के साथ अपने विचार व्यक्त किये थे ...बस लम्बी होने के कारण उसे नहीं डाल पाई हूँ.....प्रकाश जी आपका ह्रदय से धन्यवाद...
November 27, 2009 5:20 AM
जी.के. अवधिया said...
हमारी संस्कृति में आरम्भ से ही नारी को सम्मान मिलता आया है। हाँ मध्ययुग में अवश्य ही, विदेशी शासन से प्रभावित होकर, नारी को हेय दृष्टि से देखा गया किन्तु उस युग के समाप्त होने के बाद नारी ने पुनः अपनी प्रतिष्ठा प्राप्त कर ली।
वास्तव में नारी और पुरुष एक दूसरे के पूरक हैं। एक के बिना दूसरे का जीवन अपूर्ण है। यह भी सत्य है कि कुछ मामलों में नारी कमजोर होती है और कुछ मामलों में पुरुष।
सामान्य मनःस्थिति वाला पुरुष या नारी सदैव एक दूसरे को सम्मान ही देते हैं।
November 27, 2009 5:35 AM
हिमांशु । Himanshu said...
निःसन्देह नारीत्व का सम्मान न हो, तो पुरुष के पुरुषत्व का बहुत कुछ अप्रासंगिक हो जाता है ।
इस बात से पूर्णतया असहमत भी हूँ कि तलाकशुदा नारी सम्मान के योग्य न समझी जाय ! यह प्रक्रिया अकेले नारी की पहल पर नहीं होती/ नहीं हो सकती ।
जी०के०अवधिया जी ठीक कहा - "सामान्य मनःस्थिति वाला पुरुष या नारी सदैव एक दूसरे को सम्मान ही देते हैं।"
November 27, 2009 5:42 AM
श्रीश पाठक 'प्रखर' said...
ईकार के बिना शिव भी शव हैं..
हाँ; दी..! आपकी पोस्ट के बहाने थोड़ी सी चर्चा तिर्यक हो चली थी...ठीक समय पर हस्तक्षेप किया आपने. नर-नारी, दोनों अपनी-अपनी विभिन्नताओं/विशिष्टताओं के साथ लिए जाने चाहिए. यदि कहीं चूक हुई है/हो रही है,, तो विमर्श और परस्पर व्यवहार से उसमे सुधार आ जाना चाहिए. नारी विमर्श 'पुरुष' से अलग होने या उसे खारिज कर देने का विमर्श नहीं है. नारी विमर्श दर असल एक कच्ची और बेकार सोच के खिलाफ है जो नारी को 'मनुष्य' होने का गौरव भी छीन लेती है. कर्तव्य और अधिकार का सुन्दर संतुलन साधना है स्त्री के लिए भी और पुरुषों के लिए भी. इस संतुलन की कसौटी दोनों मिलके तय करेंगे..अपनी-अपनी सीमायें और विशिष्टता महसूसते हुए...बिना इस शाश्वत तथ्य को भुलाए कि दोनों को दोनों की अनिवार्य और शाश्वत जरूरत है.....!!!
आभार दी..! एक चर्चा को फिर से पटरी पर लाने के लिए...!
27, 2009 5:56 AM
अजय कुमार झा said...
मैं अपनी माता जी, घर की सभी बडी बूढी महिलाओं, बहन छोटी बडी, पत्नी, बिटिया , साथ में काम करने वाली सहकर्मी महिलाओं और आस पास जो भी संपर्क या संबंध में है उनका सम्मान करता हूं ,स्नेह करता हूं ...और इसके अलावा कुछ नहीं कर पाता ...सोचता हूं कि यदि सब सिर्फ़ यही कर सकें तो ..स्थिति बदल जाएगी न ...मुझे तो ऐसा ही लगता है ..
अजय कुमार झा
November 27, 2009 6:05 AM
shikha varshney said...
नारी और पुरुष एक दुसरे के पूरक है और एक दुसरे के बिना अधूरे.न पुरुष नारी की बराबरी कर सकता है न नारी पुरुष की...अवधिया जी ने एकदम ठीक कहा है
सामान्य मनःस्थिति वाला पुरुष या नारी सदैव एक दूसरे को सम्मान ही देते हैं।
November 27, 2009 6:01 AM
गिरिजेश राव said...
नर नर है
नारी नारी है
।
69
की तरह
घूमता संतुलन
घूमती सिमेट्री
न नर को नारी होना है
और न नारी को नर होना है।
बस ध्यान दीजिए
वर्तुल सममिति में दोनो अपना स्वतन्त्र अस्तित्त्व बनाए हुए हैं
लेकिन कितने एकाकी और कितने अधूरे लगते हैं, यदि उन्हें अलग कर दिया जाय।
इस तरह का जुड़ाव और अधूरापन ही तो सृष्टि को रचता है।
November 27, 2009 6:47 AM
Anonymous said...
yah koi choti bat nahin hai. mahfooz bhai ne kshma mag li theek. lekin aaj bhi adhikansh purush samaj nari ko pair ki jooti samajhne se gurez nahin karta. yah bahut gahre gulamipasand sanskaron ke avshesh hain. naye samaj ki rachna mein inka jadmool se saf ho jana jaroori hai. aakhir purush ka ahnkar hai kis bat ko lekar? nari na ho to aadmi ki keemat do kodi ki nahin. jeevan ka soundary pradhantya nari se hai na ki purush se
November 27, 2009 7:16 AM
वन्दना said...
g k avadhiya ji ne kitne suljhe tarike se nari aur purush ke astitva ko paribhashit kiya hai........mere khyal se uske baad to kahne ko kya bacha.ye ek bahut hi umda prashn aapne uthaya aur sahi tarike se uthaya hai.aapki soch bahut hi pragtisheel hai.
November 27, 2009 7:30 AM
मनोज कुमार said...
यह रचना --- --- समस्या के विभिन्न पक्षों पर गंभीरती से विचार करते हुए कहीं न कहीं यह आभास भी कराती है कि अब सब कुछ बदल रहा है।
November 27, 2009 9:11 AM
एक ख़ास व्यक्ति से......महफूज़ मियाँ......हमने आपका माफीनामा फिर से छाप दिया है.....सभी जानते हैं आप दिल के बहुत अच्छे इंसान हैं....आपकी कवितायें लोगों में नयी उर्जा का संचार करतीं हैं.....कितनो को आपसे प्रेरणा मिलती है......इसे बरकरार रहने दीजिये........बस अब कान पकड़ कर उठक-बैठक लगा ही दीजिये...फिर कभी ऐसी गलती नहीं करेंगे....किसी की भी भावना को ठेस नहीं पहुंचाएंगे आप .....सोच समझ कर टिपण्णी करेंगे.......सबसे वादा कीजिये.....
महफूज़ अली said...
मैं अपने शब्द वापिस लेता हूँ..... वो मैंने गुस्से में कहा था.... पता नहीं क्यूँ मैं इतना short temper हूँ.. ?? मेरा वो मतलब कतई नहीं था.. मैं खुद बहुत सुलझा हुआ इंसान हुआ हूँ..... बस ! इतना हो जाता है कि मैं गुस्से में आपा खो देता हूँ.... जिसका मुझे प्रक्टिकल लाइफ में भी खामियाज़ा भुगतना पड़ता है.... मेरे कमेन्ट खराब लगे हैं और खराब थे..... इसके लिए मैं समस्त नारी जगत से माफ़ी मांगता हूँ.... और वादा करता हूँ कि आइन्दा आपा नहीं खोऊंगा.....मैं समस्त ब्लॉग जगत से माफ़ी मांगता हूँ..... उम्मीद है सब भाई , बहन व दोस्त मुझे ... भाई, दोस्त, बेटा समझ कर माफ़ कर देंगे...... यही समझ लीजियेगा आप सब लोग कि नादानी में एक वाहियात गलती हो गयी....... मैं अपने शब्द वापिस लेता हूँ
महफूज़ साहब ने बड़ी सच्चाई से अपनी गलती मान कर यह साबित कर दिया की वो न सिर्फ एक अच्छे रचनाकार हैं अपितु एक अच्छे इंसान हैं...
यूँ तो ब्लॉग जगत में आक्षेप-प्रत्याक्षेप का बाज़ार हर वक्त गर्म रहता है...हम अपनी सहनशक्ति की कमी दिखाते ही रहते हैं.....लेकिन मैं एक नारी हूँ और शरीर से चाहे मैं निर्बल हूँ लेकिन कुछ गुण है जिसमें मैं आप से कहीं आगे हूँ और वो है सहनशक्ति, धीरज और गरिमा.....और मुझे यह कहते हुए भी ख़ुशी है की उम्र के साथ-साथ मुझमे और मुझ जैसी नारियों में यह सदगुण बढ़ता ही जाता है......जिसने स्वयं को नारी कहा और यह गुण नहीं दिखाया उसे 'नारी' मानने से मुझे इनकार है.....
(वैसे तो मुझे सबके ब्लॉग का लिंक देना चाहिए था लेकिन समयाभाव के कारण नहीं कर पायी...क्षमा चाहूंगी )