बहुत दिनों के बाद आज कविता लिखना चाहा ....
बस कुछ लिख दिया है...देखिये...
वाणी, समीर जी, पाबला जी बस गा दिया है....बताइयेगा कैसा लगा...
अब कैसे मैं कलम उठाऊं नाम लिखा ना जाए
हाल-ए-दिल कैसे कह दूं जो सलाम लिखा ना जाए
ज़ज्ब हुईं हैं रूह में मेरी जाने कितनी नज्में
खुद ही ग़ज़ल हुए हैं और कलाम लिखा ना जाए
धूप खड़ी है कोने में और रात दौड़ती भागे
लौट आये हैं पंछी फिर भी शाम लिखा ना जाए
चुने ख्यालों ने कितने ही हर्फ़ थे बिखरे-बिखरे
सोच के घोड़ो पर हमसे तो लगाम लिखा ना जाए
दिल में देखो आज 'अदा' के हिज्र का मौसम छाया
निकल गए हैं रंजो-ग़म तमाम लिखा ना जाए
फिल्म : अनपढ़
संगीतकार : मदन मोहन
गीतकार : रजा मेहंदी अली खान
आवाज़ : लता
लेकिन यहाँ आवाज़ हैं...स्वप्न मंजूषा 'अदा'
आप की नज़रों ने समझा, प्यार के काबिल मुझे
दिल की ऐ धड़कन ठहर जा, मिल गई मंज़िल मुझे
आप की नज़रों ने समझा
जी हमें मंज़ूर है, आपका ये फ़ैसला \- २
कह रही है हर नज़र, बंदा\-परवर शुकरिया
हँसके अपनी ज़िंदगी में, कर लिया शामिल मुझे
आप की नज़रों ने समझा ...
आप की मंज़िल हूँ मैं मेरी मंज़िल आप हैं \- २
क्यूँ मैं तूफ़ान से डरूँ मेरे साहिल आप हैं
कोई तूफ़ानों से कह दे, मिल गया साहिल मुझे
आप की नज़रों ने समझा ...
पड़ गई दिल पर मेरी, आप की पर्छाइयाँ \- २
हर तरफ़ बजने लगीं सैकड़ों शहनाइयाँ
दो जहाँ की आज खुशियाँ हो गईं हासिल मुझे
आप की नज़रों ने समझा ...
ज़ज्ब हुईं हैं रूह में मेरी जाने कितनी नज्में
ReplyDeleteखुद ही ग़ज़ल हुए हैं और कलाम लिखा न जाए
अदाजी आप तो खुद ही गज़ल हैं कलाम हैं और कविता भी हैं लिखने की भी जरूरत नहीं आपका नाम ही काफी हओ अपको पढने के लिये बधाई इस कविता और गीत के लिये
बहुत ही सुन्दर ...आज तो यही काफी था! उस पर गीत माधुर्य का तडका !
ReplyDeleteअजी हम भी गुणग्राहक है ,भले ही छुटभैये ही सही ! बस समीर जी वाणी जी और पाबला जी के ही अनुमोदन
की चाह ?
बहुत सुन्दर गज़ल!
ReplyDeleteस्व. मदनमोहन जी की धुन अपनी मधुर आवाज में सुनाने के लिये शुक्रिया!
धूप खड़ी है कोने में और रात दौड़ती भागे
ReplyDeleteलौट आये हैं पंछी फिर भी शाम लिखा न जाए
चुने ख्यालों ने कितने ही हर्फ़ थे बिखरे-बिखरे
सोच के घोड़ो पर हमसे तो लगाम लिखा न जाए
waah behtarin,nirmalaji se ehmat hai ji.
अब देख तो ...तेरे गीत और ग़ज़ल किस तरह आदत में शुमार हो गए हैं ....अभी बिना वक्त ऑनलाइन होना पड़ा ....
ReplyDeleteहाल - ए- दिल कैसे कहूँ कि सलाम लिखा ना जाये ....
क्या जरुरत है कुछ लिखने की ....
जो दोस्त हैं उन्हें कहने की क्या जरूरत
जो दोस्त नहीं हैं उन्हें कहने से क्या ...
बहुत खुबसूरत बन गयी है ग़ज़ल .....!!
आपकी आवाज़ बहुत प्यारी है
ReplyDeleteगाना सुनकर आनंद आ गया
धूप खड़ी है कोने में और रात दौड़ती भागे
ReplyDeleteलौट आये हैं पंछी फिर भी शाम लिखा न जाए
बहुत सुन्दर !
अनिल कांत जी से पूरी तरह सहमत...
ReplyDeleteउनकी बात को ही मेरे जज़्बात भी समझिए...
जय हिंद...
ये बहुत गलत है भई , सबकुछ लिखे भी जा रहीं हैं और कह रही हैं कि लिखा ना जाये , सबकुछ किए भी जाये रही हैं और कह रही हैं कि किया ना जाये । यहाँ सब पागल दिख रहें है क्या आपको , कि इतना साफ झूट भी न पकड़ पायें । खैर कविता आपने बहुत बढीया लिखी है , लाजवाब व उम्दा । गाने के बारे में क्या कहूँ हर बार एक ही शब्द , समझ लेना आप ।
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत. शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
कमाल की ग़ज़ल और गीत...सुभान अल्लाह...
ReplyDeleteनीरज
achcha laga is geet ko gane ka aapka ye prayaas.
ReplyDeletefilhaal......aapki aawaaz ke tilism se hi nahi nikal paaya hooN..bahut bahut achhaa gaaya...swar aur taal dono ka khoob hayaal rakkhaa hai,,,,rupak ko nibhaa paana koi aasaan kaam thode na hai...!!
ReplyDeleteaapki nazm numa gzl bahut gehre bhaav liye hue hai...kathya meiN shaili ki vishisth`taa ghul-mil-si
gayi hai...lehjaa chust hai...baandhe rakhtaa hai....
aur khaas baat ye k aaj ki kavitaa jaisi kaheeN duroohtaa nahi dikhti
ye sb aapki rachnasheeltaa ko hi to pramaanit karte haiN
धूप खड़ी है कोने में और रात दौड़ती भागे
लौट आये हैं पंछी फिर भी शाम लिखा न जाए
ye sher apni misaal aap hai,,,
abhivaadan svikaareiN.
ज़ज्ब हुईं हैं रूह में मेरी जाने कितनी नज्में
ReplyDeleteखुद ही ग़ज़ल हुए हैं और कलाम लिखा न जाए
ये तो आपने हमारा ही हाल कह दिया.....कब से नहीं हुई है हमारी भी गजल....!!!!!
धूप खड़ी है कोने में और रात दौड़ती भागे
लौट आये हैं पंछी फिर भी शाम लिखा न जाए
ekdam alag,,,,bilkul nayaa..
maqtaa भी achchaa है....
shaayad printing mistake है......NAAAA ke bajaay NA type ho gayaa है aapse...
net prob hai....
hindi me angreji aa gayi hai ..
मदन मोहन जी का संगीत मोह लेता है ।
ReplyDeleteadaji
ReplyDeleteab kya khe ?
aapki har ada nirali hai bahut sundar gajal aur utnahi madhur geet .
aapne meri frmaish poori nahi ki .
आपने थोड़ा नहीं पूरा लिखा है. मैं फिर से दोहराता हूँ.
ReplyDeleteअब कैसे मैं कलम उठाऊं नाम लिखा ना जाए
हाल-ए-दिल कैसे कह दूं जो सलाम लिखा ना जाए
ज़ज्ब हुईं हैं रूह में मेरी जाने कितनी नज्में
खुद ही ग़ज़ल हुए हैं और कलाम लिखा ना जाए
धूप खड़ी है कोने में और रात दौड़ती भागे
लौट आये हैं पंछी फिर भी शाम लिखा ना जाए
चुने ख्यालों ने कितने ही हर्फ़ थे बिखरे-बिखरे
सोच के घोड़ो पर हमसे तो लगाम लिखा ना जाए
दिल में देखो आज 'अदा' के हिज्र का मौसम छाया
निकल गए हैं रंजो-ग़म तमाम लिखा ना जाए
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waah!
जुबाँ खामोश है तारिफ़ में कुछ कहा न जाये
हम हुए लाजवाब आगे कुछ लिखा न जाये
ज़ज्ब हुईं हैं रूह में मेरी जाने कितनी नज्में
ReplyDeleteखुद ही ग़ज़ल हुए हैं और कलाम लिखा ना जाए
sundar!!!
aur geet - ati sundar!!! ab sunte hain is ati sundar geet ko aapki aawaaz mein...