Saturday, October 27, 2012

ज़बरन चले आये तुम भी, यहाँ कहाँ ! (Repeat)


वो जश्न, वो रतजगे, वो रंगीनियाँ कहाँ 
आये निकल वतन से, हम भी यहाँ कहाँ

महबूब मेरा चाँद, मेरा हमनवां कहाँ 
इस बेहुनर शहर में, कोई कद्रदां कहाँ 

कोई बुतखाना,परीखाना, कोई मैक़दा नहीं 
ढूँढें इन्हें कहाँ और अब जाएँ कहाँ कहाँ 

बस रहे खेमों में, हम जैसे हैं जो लोग 
फिर सोचेंगे जाएगा, ये कारवाँ कहाँ 

जाना था तुमको भी तो, उस दूसरी गली
ज़बरन चले आये तुम भी, यहाँ कहाँ !

18 comments:

  1. वो जश्न वो रतजगे, वो रंगीनियाँ कहाँ
    आये निकल वतन से, हम भी यहाँ कहाँ

    जाना था तुमको भी तो, उस दूसरी गली
    ज़बरन चले आये तुम भी, यहाँ कहाँ !

    वतन की खुशबू से सनी यादों की लड़ी लड़ी और लम्बी लड़ी .

    ReplyDelete
    Replies
    1. यादों की लड़ी जब आपस में लड़ी तो ये लड़ी बनी...
      आपका आभार

      Delete
  2. बहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति .

    ReplyDelete
  3. जाना था तुमको भी तो, उस दूसरी गली
    ज़बरन चले आये तुम भी, यहाँ कहाँ !
    बहुत खूबसूरत नाज़ुक से अहसास...

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपको पसंद आया ...
      अच्छा लगा जान कर ..
      धन्यवाद

      Delete
  4. Replies
    1. आपका कोमेंट भी कम ज़बरदस्त नहीं है ..:)
      इसके लिए बहुत आभारी हैं हम ..

      Delete
  5. बहुत खूब..हम भी ठहरे है..यहाँ कहाँ..

    ReplyDelete
    Replies
    1. वोई तो ...!
      यहाँ, वहाँ, जहाँ, तहाँ . मत पूछो कहाँ कहाँ :)

      Delete
  6. जाना था तुमको भी तो, उस दूसरी गली
    ज़बरन चले आये तुम भी, यहाँ कहाँ !wah.....

    ReplyDelete
  7. वाह क्या बात है....

    अब आपकी पनाह में आये हैं जानेजां,
    अब तक भटक रहे थे जाने कहाँ कहाँ |

    ReplyDelete
  8. वाह जी वाह!

    वैसे हमसे कोई ऐसा कहे तो हम तो यही कह देंगे- हम त जबरिया ऐबै यार , हमार कोई का करिहै! :)

    ReplyDelete