वो जश्न, वो रतजगे, वो रंगीनियाँ कहाँ
आये निकल वतन से, हम भी यहाँ कहाँ
महबूब मेरा चाँद, मेरा हमनवां कहाँ
इस बेहुनर शहर में, कोई कद्रदां कहाँ
कोई बुतखाना,परीखाना, कोई मैक़दा नहीं
ढूँढें इन्हें कहाँ और अब जाएँ कहाँ कहाँ
बस रहे खेमों में, हम जैसे हैं जो लोग
फिर सोचेंगे जाएगा, ये कारवाँ कहाँ
जाना था तुमको भी तो, उस दूसरी गली
ज़बरन चले आये तुम भी, यहाँ कहाँ !
वो जश्न वो रतजगे, वो रंगीनियाँ कहाँ
ReplyDeleteआये निकल वतन से, हम भी यहाँ कहाँ
जाना था तुमको भी तो, उस दूसरी गली
ज़बरन चले आये तुम भी, यहाँ कहाँ !
वतन की खुशबू से सनी यादों की लड़ी लड़ी और लम्बी लड़ी .
यादों की लड़ी जब आपस में लड़ी तो ये लड़ी बनी...
Deleteआपका आभार
वाह जी बहुत बढ़िया
ReplyDeleteअब क्या कहें जी :)
Deleteबहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति .
ReplyDeleteजाना था तुमको भी तो, उस दूसरी गली
ReplyDeleteज़बरन चले आये तुम भी, यहाँ कहाँ !
बहुत खूबसूरत नाज़ुक से अहसास...
आपको पसंद आया ...
Deleteअच्छा लगा जान कर ..
धन्यवाद
जबरदस्त लिखा है जी।
ReplyDeleteआपका कोमेंट भी कम ज़बरदस्त नहीं है ..:)
Deleteइसके लिए बहुत आभारी हैं हम ..
बहुत खूब..हम भी ठहरे है..यहाँ कहाँ..
ReplyDeleteवोई तो ...!
Deleteयहाँ, वहाँ, जहाँ, तहाँ . मत पूछो कहाँ कहाँ :)
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ReplyDeleteLAAIKIYE...
Deleteजाना था तुमको भी तो, उस दूसरी गली
ReplyDeleteज़बरन चले आये तुम भी, यहाँ कहाँ !wah.....
Shukriya
Deleteभारत चले आयो....
ReplyDeleteवाह क्या बात है....
ReplyDeleteअब आपकी पनाह में आये हैं जानेजां,
अब तक भटक रहे थे जाने कहाँ कहाँ |
वाह जी वाह!
ReplyDeleteवैसे हमसे कोई ऐसा कहे तो हम तो यही कह देंगे- हम त जबरिया ऐबै यार , हमार कोई का करिहै! :)