आज सोचे कुछ अलग हो जावे... बस इसी बहाने पहुँच गए बचपन में...जब हमारे घर गाय बियाई थी...
सुबह-सुबह ग्वाला आता था गाय दुहने और हम होते थे, उनके पीछे पीछे ...नन्हा सा बछड़ा और हमरा हाथ उसकी गर्दन पर सहलाता हुआ...ग्वाला का नाम था 'करुवा'...अब करुवा गाय दुह रहा था ..हमको मालूम था कि कुछ दिन तक उ गाय का दूघ हम लोग नहीं पी सकते हैं ..नई बियाई थी न..उसके दूध से 'खिरसा' बनेगा....
हम बस लटके रहे बछिया के साथ और देखते रहे गाय दुहना, कि अच्च्क्के हमरा मन कैसा-कैसा तो हो गया देख कर...दूध की जगह लहू की धार निकल गयी थी....करुवा रुक गया ..का जानी का किया फिर दुहने लगा और अब दूध ही निकला...
लेकिन उ लहू की धार हमरे मन में अइसन बैठी की बस हमरा दूध पीना बंद..और जो ऊ दिन हमरा दूध पीना बंद हुआ उ आज तक बंद ही है...
इ बात हम सोचते-सोचते अब बुढ़ाने लगे हैं, आज कल शाकाहार की बड़ी तेज़ हवा चल रही है, तो सोचे कि आज बोल ही देवें....
सोचिये...कोई भी जानवर हो या मनुष्य, दूध किसके लिए देता है ??? पक्की बात है प्रकृति ने हर जानवर या मनुष्य को दूध जैसी चीज़ दी है, तो उसी जीव के बच्चे के लिए ही दी है, किसी दूसरे जानवर के लिए नहीं। गाय किसके लिए दूध देती है...??? अपने बच्चे के लिए ही न !!, लेकिन हम मनुष्य उस बछडे के मुँह से दूध छीन कर पी लेते हैं क्या यह सही है ?
क्या यह पाप नहीं है ???
भगवान् ने हम मनुष्यों को भी, माँ का दूध दिया है लेकिन एक उम्र तक के लिए ही....अगर दूध पीना इतना ही ज़रूरी होता तो, हर माँ सारी उम्र दूध देती और हम सब सारी उम्र दूध पीते.. लेकिन ऐसा नहीं है....इसका मतलब यह हुआ कि दूध सिर्फ एक उम्र तक ही ज़रूरी है...फिर भी हम दूध पीते हैं, वो भी किसी और जानवर का और किसी और के हिस्से का दूध छीन कर...
अब आते हैं इस बात पर कि क्या वो दूध सही है हमारे शरीर के लिए....गौर कीजिये....यह दूध गाय या भैंस या किसी भी जानवर का है ...उस दूध में उस जानवार के जीवाणु हैं और उसी प्रजाति के लिए होने चाहिए, हम मनुष्यों के लिए नहीं। गाय के दूध में प्रोटीन, मानव दूध प्रोटीन से भिन्न होता है, गाय या भैंस के दूध में मिलने वाले हारमोंस का मनुष्य के शरीर में कोई काम नहीं है, लेकिन हम उसे जान-बूझ कर अपने शरीर में डाल लेते हैं, क्या यह हमारे स्वस्थ्य के लिए ठीक होता होगा...?? आप बताइए आप क्या सोचते हैं ???
अब बात करते हैं...क्या गाय या भैंस का दूध....शाकाहार है ???
मैं एक बात कभी स्वीकार नहीं कर पाई, वो है...'दूध' को शाकाहारी मानना...दूध एक जैविक पदार्थ है...वो पशु के शरीर से निकाला जाता है, उसका सीधा संपर्क एक जानवर से है...उसमें उस जीव के रक्त के अंश हैं, बैक्टेरिया है, हारमोंस हैं, वसा है...फिर भी उसे शाकाहारी के नाम पर हर मांगलिक अवसर पर प्रयोग में लाया जाता है...जबकि भारत को छोड़ कर बाकी जितने भी देशों में मैं गई हूँ इसे ..'मांसाहार' माना जाता है...दही की बात करें तो, बिना बैक्टेरिया के दही का जमना ही नहीं हो सकता, और क्योंकि वो बैक्टेरिया नज़र नहीं आ रहे इसका अर्थ यह हरगिज़ नहीं कि, वो हैं ही नहीं ...
मेरे विचाए से दूध शाकाहार नहीं है, दूध में काफी मात्रा में, एनिमल फैट होता है, जो सैचुरेटेड फैट के रूप में होता है, और वसा का अर्थ है, चर्बी या तेल, जो उसी जानवरके शरीर का होता है, उनमें जो सैचुरेटेड वसा होती है, वो मनुष्य के शरीर के वसा से भी भिन्न होगी, तो कहने का अर्थ यह हुआ कि हमारे शरीर में इन जानवरों के शरीर से जीवाणु, हारमोंस, प्रोटीन्स, रक्त के अंश और वसा सीधे-सीधे चले जाते हैं, फिर भी हम कहते हैं कि दूध शाकाहारी है ....
और अगर कोई ज़बरदस्ती कहे कि दूध शाकाहार है तो क्यूँ और कैसे भला ????
सोचिये और आप जवाब दीजिये न.....
तो हो गए तीन प्रश्न ...
१. क्या किसी जानवर के बच्चे के हिस्से का दूध उससे छीन कर हम मनुष्यों का पीना सही है ?
क्या Animal Protection Act इसके लिए काम करेगा...?
२. दूध पीने से क्या दूसरे जानवर के जीवाणु, हारमोंस, बैक्टेरिया, वसा इत्यादि हमें नुक्सान पहुंचा सकते हैं ?
३. क्या दूध वास्तव में शाकाहार है ??
१. क्या किसी जानवर के बच्चे के हिस्से का दूध उससे छीन कर हम मनुष्यों का पीना सही है ?
ReplyDeleteक्या Animal Protection Act इसके लिए काम करेगा...?
२. दूध पीने से क्या दूसरे जानवर के जीवाणु, हारमोंस, बैक्टेरिया, वसा इत्यादि हमें नुक्सान पहुंचा सकते हैं ?
३. क्या दूध वास्तव में शाकाहारी है ??
परोपकाराय बहन्ती नद्याः, परोपकाराय फलन्ति वृक्षाः
परोपकाराय दुहन्ति गावः, परोपकारार्थ मिदं शरीरं
यदि आपकी भांति सोचा जाये तो शायद जैव चक्र प्रभावित होगा साथ ही अन्योंयाश्रितता समाप्त हो जाये जो देर सबेर बड़े दुष्प्रभाव को जन्म दे. संतुलन और नियंत्रण का सिद्धांत भी प्रभावित हो जाये. लेन देन चाहे विचारों का हो या वस्तुगत स्वस्थ और ग्राह्य हो तभी हम जिंदा हैं .अन्यथा क्यों कहते *एक चना भाड़ झोंक सकता है* मैंने पहले भी कहा था मेरा अस्तित्व आप से है . हम सब एक दुसरे के पूरक हैं . २@ एक बात और डिस्कवरी चैनल में प्रकाशित किया गया था कि सब जगह सूक्ष्म जीव होते हैं चाहे भोजन हों या शारीर का खुला या बंद भाग आप समय निकालकर वह एपिसोड देखें . शायद मैं गलत नहीं हूँ . आपने प्रश्न किया इसलिए मैंने अपनी धारणा बतलाई जो मैंने पढ़ा या जाना .
.जबकि भारत को छोड़ कर बाकी जितने भी देशों में मैं गई हूँ इसे ..'मांसाहार' माना जाता है..
ReplyDeletebharat mein shakahari hai..to kam se kam apne liye to shakahaari hi hai
मांसाहारी सकल जग, खाता पशु प्रोडक्ट ।
ReplyDeleteकुछ देशों में व्यर्थ ही, लागू उल्टा एक्ट ।
लागू उल्टा एक्ट, कपूतों खून पिया है ।
हाड़-मांस खा गए, कहाँ फिर भेज दिया है ।
फिर से माँ को ढूँढ, दूध की चूका उधारी ।
मथुरा में जा देख, खाँय ना मांसाहारी ।।
जब एनीमल प्रोडक्ट खाने से नहीं कोई गुरेज़
Deleteफिर गुड खावें गुल्गुल्ले से कहते करो परहेज़
कितनी दवाओं में होता है, नीरीह एनिमल पार्ट
आदि काल से आयुर्वेद भी था इसमें एक्सपर्ट
पाषण युग में खेत नहीं थे, तब का खाते थे पुरखे ?
आज भी जो रहते बर्फ, मरु में, क्या रहेंगे भूखे ?
जिसको जो रुचता है खाने देवो अपनी देखो लल्ला
सामिष, निरामिष की काहे की बिन बात का हल्ला
कोई उल्टा एक्ट नहीं है सब सीधा है मेरी मईया
वो दूध को सामिष कहते हैं और मांस को भी सामिष भईया
एक समाचार पढ़ा था -
Deleteबिधवा माँ को बीटा मथुरा छोड़ आया था-
और दूसरी खबर-
बिध्वाओं का अंतिम संस्कार भी नहीं किया जाता -
टुकड़े टुकड़े कर के चीलों के खाने के लिए छोड़ दिया जाता है- मथुरा से ही यह खबर भी-
उधर ही इशारा था -
त्वरित कुंडली शायद भाव स्पष्ट नहीं कर पाई-
क्षमा -
अर्थ का अनर्थ हो गया ||
सादर -
इस ब्लॉग पर अबतक २५०० काव्यमयी टिप्पणियां हैं लिंक सहित कभी कभी आते रहिये-
काफी संवेदन शील विषय है आपकी बात से तार्किक रूप से सहमत लेकिन इस मांसाहार को जानवर को मारकर खाने वाले मांसाहार के बराबर मानने को तैयार नही
ReplyDeleteबहुत ही सही आलेख ....
ReplyDeletehttp://kuchmerinazarse.blogspot.in/2012/10/blog-post_29.html
दीदी मेरे ख्याल से आपने इस पोस्ट में जिस बात पर जोर देना चाह है वो ये है की दूध पिने वाला एक शाकाहारी न होकर एक माँसाहारी होता है और आपके अनुसार इसका कारन ये है की दूध में एक जीवित प्राणी के अंश होते है . अगर में सही हूँ तो जवाब देवे में कुछ पूछना चाहूँगा ,.................
ReplyDeletejeevit praanee to dal kaa daanaa va pattee bhee hotee hai bhaaee....har koshikaa jeevit hote hai.... maans ek alag vastu hai....
Deleteआपने अच्छा उलझा दिया... अपुन को तो दूध पीना अच्छा लगता है...
ReplyDeleteगाय या भैंस का बच्चा तो कुछ दिन ही दूध पीता है... इसके बाद भी वो दूध देती रहती है, संभवतः वह हमारे लिए ही देती होगी... क्योंकि दुनिया में सब कुछ मेरा मेरे लिए ही वाली स्थिति नहीं है बल्कि मेरा बहुत कुछ तेरे लिए वाली स्थिति भी है...
अब तक ऐसा सुना नहीं है कि गाय भैंस का दूध मनुष्यों के लिए हितकर नहीं है, बल्कि गाय के दूध को तो अमृत माना गया है, डॉक्टर भी सलाह देते हैं कि यदि किसी मां को दूध नहीं बन रहा हो तो उसके नवजात को गाय का दूध पिलाया जा सकता है.
ati-sundar ....
Delete1-आप ध्यान से देखिये ...घोसी प्रायः पहले गाय /भेंस के बच्चे को दूध पिलाता है तभी वे दूध देती हैं ...यहाँ तक की बच्चे की मृत्यु के उपरांत भी नकली बच्चे को जब तक पशु के नज़दीक खड़ा नहीं किया जाता वे ढूढ़ नहें देतीं ..... बच्चे के मृत्यु के उपरांत भी वे दूध देती रहती हैं ...यदि दूध न निकाला जाय तो वे रुग्ण होजाती हैं, अतः वह बच्चे का दूध छीनना नहीं .... अतिरिक्त दूध का प्रयोग किया जाता है .... आजकल विदेशी एवं धन्धेखोरों के बारे में नहीं कहा जा सकता ....
ReplyDelete2-दूध पीने से यदि दूसरे जानवर के हारमोंस, प्रोटीन, बेक्टीरिया यदि हानिकारक होंगे तो मांसाहारी तो एक दम जहरीला होना चाहिए, इसीलिये तो दूध को अच्छी तरह उबालकर पीते हैं
--- आपको पता होना चाहिए सारे हार्मोस, अधिकाँश प्रोटीन आदि अन्य प्राणियों से ही बनती है, अधिकतर आधुनिक दवाएं भी .. हारमोंस, विटामिन आदि अलग अलग प्राणियों के अलग अलग नहीं होते अपितु वे एक निश्चित तत्व हैं ...सभी के लिए सामान,
3-- दूध निश्चय है शाकाहार नहीं है ....... शाकाहारी लोग तमाम ऐसी वस्तुएं खाते हैं जो शाक नहीं हैं, सिर्फ पत्तियों को ही शाक कहा जाता है ...मूली,गाजर, आलू , काजू , फल आदि शाक नहीं है, गुड, तेल देशी घी भी शाकाहार नहीं है .....वस्तुतः यह शब्द शाकाहारी न होकर मूलतः सामिष ( मांसाहारी ) एवं निरामिष ( मांस न खाने वाले ) है .....वास्तव में वेज ...नॉन-वेज शब्द हे गलत है और वही सब भ्रांतियों की जड़ ...
---- परन्तु दूध व् घी भी निश्चय ही मांसाहार नहीं है ,,, वे मांस से उत्पन्न वस्तु नहीं हैं , उन्हें प्राणी-उत्पाद तो कहा जा सकता है परन्तु मांसाहार नही ---- कहीं भी कोइ भी जो यह कहता है वह अज्ञानी व भ्रमित है.....
आपकी बात सही है, जीवन चक्र ज़रूर बिगड़ जाएगा अगर शेर घास खाना शुरू कर दे और बकरी मांस खाना। आज आप किसी दूध पीने वाए से कहें कि यह एक एनिमल प्रोडक्ट है, इसे सामिष कहते हैं, तो एक हज़ार कारण वो बता देंगे कि कैसे यह सामिष नहीं, निरामिष है, एक से एक तर्क देने पर उतारू हो जायेंगे, क्योंकि वो इसे छोड़ना नहीं चाहते, इसलिए साबित करते हैं कि जी नहीं वो प्योर वेजिटेरियन हैं, जबकि शुद्ध शाकाहारी जैसी कोई चीज़ है ही नहीं, आयुर्वेद में भी चक्र संहिता, अन्तंगा हृयम संहिता में अनेकों अनेक ऐसी रेसेपिस हैं दवाओं की जिनमें पक्षियों और जानवरों के मांस और रक्त का उपयोग किया जाता है, तो आप उन दवाओं को क्या कहेंगे ?
ReplyDeleteमनुष्य का सबसे आधारभूत अधिकार है जीवित रहना, पाषण युग में जब खेत नहीं थे हमारे पूर्वज शिकार पर ही आश्रित थे, या कंद मूलों, फल-पूलों पर, इस हिसाब से देखा जाए तो हम सभी माँसाहार परिवार से ही आते हैं। आज भी उत्तरी ध्रुव जो बर्फ से ढका हुआ है, वहां रहने वाले माँस ना खाएं तो जीवित ही नहीं रहेंगे।
किसी का सामिष-निरामिष होना कई बातों पर निर्भर करता है जैसे :
1. अधिकतर लोगों का शाकाहारी होना या मांसाहारी होना आम तौर पर पारिवारिक परम्परा होती है, जो शाकाहारी परिवार में जन्म लेता है वो शाकाहारी ही होता है, और जो मांसाहारी परिवार में जन्म लेता है वो मांसाहारी। बचपन से खाने की बात होती है, जो आदत बन जाती है, हाँ कुछ लोग इसमें अपने सूझ बूझ से फेर बदल कर लेते हैं।
2. जीवन में कौन किस परिवेश में रहने लगे इस पर भी निर्भर करता है, अगर कोई ऐसी जगह नौकरी या व्यवसाय के कारण चला जाए जहाँ मांस ही उपलब्ध हो तो फिर जीवित रहने के लिए उसे खाना ही पड़ेगा। ऐसा मैं इसलिए कह रही हूँ क्योंकि कई भारतीय परिवारों को जानती हूँ यहाँ कनाडा में, जो आज से 40-50 साल पहले आये हैं, उनकी यह एक बहुत बड़ी मजबूरी थी, उन्होंने यहाँ आकर मांसाहार अपनाया है, आज तो फिर भी समय बदल चुका है हमारे पास हर तरह के चोईस हैं हम अपने विवेक से चुन सकते हैं। लेकिन ऐसे भी स्थान थे/हैं जहाँ कोई चोइस नहीं होता। मैंने स्वयं अपनी मर्ज़ी से निरामिष को अपनाया है, लेकिन जो खाते हैं मैं उनकी इच्छा का सम्मान करती हूँ ,
अब बात ज़रा विषय से हटकर ....क्योंकि कई जगहों पर अज कल हिन्दू धर्म में माँसाहार और जीव हत्या की बात देख रही हूँ ...यह जवाब उनके लिए है ...कोशिश करुँगी एक पोस्ट लिखने की ...
माँस खाना हिन्दू धर्म में कोई नयी बात नहीं है, आदि काल से मांस खाया जा रहा है, अब लोग उसे नहीं माने तो बात अलग है लेकिन ऐसा ही है। कितने ही ऐसे उदहारण हैं, जिसमें राजा-महाराजा शिकार पर जाते थे, राजा दशरथ को ही लें, वो शिकार पर गए थे और उन्होंने गलती से श्रवन कुमार को मार दिया था, अब मुझे ये बताइए की आखिर वो शिकार पर क्यों जाते थे ? जानवर मारने ही न ...और मार कर उनका क्या करते थे ? ज़रूरी है कि, घर पर लाते थे, वो घर में पकता होगा और सभी मिल कर खाते ही थे ...और अगर सिर्फ अपने शौक के लिए जानवरों का शिकार करते थे तो फिर यह निरीह जीवों की हत्या ही कहलायेगा, इसलिए ये सब कहना की हिन्दू धर्म में जीवहत्या या मांसाहार नहीं था बहुत ही बेतुकी बात है।
हाँ आपको अगर गलत लगता है तो आप मत खाइए, लेकिन ये कहना की जो खाते हैं वो बहुत गलत करते हैं,या वो लोग अच्छे नहीं हैं, ये सही नहीं है। जिस तरह मैं कहती हूँ कि दूध पीना सामिष है, आप माने तो सही नहीं मने तो आपकी मर्ज़ी, मैं आपकी इच्छा का सम्मान करती हूँ ....
@जिस तरह मैं कहती हूँ कि दूध पीना सामिष है, आप माने तो सही नहीं मने तो आपकी मर्ज़ी, मैं आपकी इच्छा का सम्मान करती हूँ ....
Deleteप्रत्येक की अपनी मर्जी व इच्छा पर चुप तो रह सकते है पर उनकी प्रत्येक मर्जी व इच्छा का सम्मान करना जरूरी नहीं। अन्यथा उचित अनुचित का भेद ही समाप्त हो जाएगा।
दूध अगर अत्याचार व क्रूरता से प्राप्त किया जाता है तो क्रूर हिंसा है किन्तु सामिष नहीं, जिन्हें सम्भावित हिंसा का संशय हो वे निरामिष लोग इसका हिंसा व क्रूरता के कारण परित्याग कर सकते है। किन्तु इस आधार पर सामिष नहीं समझ सकते। दूध पशु की हत्या करके प्राप्त नहीं किया जाता जबकि मांस हत्या के बाद ही प्राप्त होता है।
बेशक दूध प्राणीजन्य है किन्तु अगर इसी खोज में निकले तो वो कौन सा पदार्थ अणु-परमाणु होगा जिसका प्रयोग किसी जीवित प्राणी मनुष्य आदि ने अपनी काया आदि के लिए ग्रहण न किया हो व त्याग न किया हो। उस दृष्टि से तो प्रत्येक पदार्थ प्राणीजन्य सिद्ध हो जाएगा है। हारमोंस, प्रोटीन, बेक्टीरिया आदि सब। इसलिए निरामिष का उद्देश्य प्रकट मांस नहीं उस मांस से जुडी हत्या, प्राणांत व क्रूर भाव उपजती उपजाती हिंसा है। चुंकि मांस बिना हिंसा के प्राप्त नहीं किया जा सकता और कसाई भाव के बिना हत्या सम्भव नहीं। क्रूरता और हिंसा के संयोग के कारण ही अभक्ष्य है। आप कहेंगे कि कभी प्रयोगशाला में मांस बनाया जा सकेगा, पहली बात तो उसमें भी बीज रूप में हिंसा विद्यमान होगी, और दूसरा जब होगा तब ही उसकी विधि व्याख्यायित हो वही ठीक है। अतः साफ है हिंसा व क्रूरता प्रेरित होने के कारण वह सही नहीं है। जो खाते है आखिर वे सही कहलाना ही क्यों चाहते है? वे जो है सो रहे, सम्मान किस बात का? वे इसे अन्तर आत्मा से उचित ही मानते है तो किसी के गलत कहने से उन्हें क्या फर्क पडता है? सत्य को तो चाहिए बिना परवाह बिना विचलन दृढता से चलता रहे।
बर्फिले प्रदेश व रण के वातवरण में मनुष्य पैदा ही नहीं हुआ था, वे प्रदेश मनुष्यों नें जाकर आबाद किए, जाने वालों को मांसाहार से कोई परहेज नहीं था। उन्हें कहने से भी वे शाकाहारी बनने से रहे। यह तो बेतुकी बात है कि क्योंकि उन्हें शाकाहार उपलब्ध नहीं इसलिए सभी को मांसाहारी हो जाना चाहिए।
दवाओं में भी ऐसी दवाओं से अवश्य बचना चाहिए जो दवाएं हत्या हिंसा के प्रसार को उकसाती हो।
राजा महाराजा का आचार ही हिन्दु धर्म नहीं है। हिन्दू धर्म में जीवहत्या या मांसाहार नहीं था, किन्तु हिन्दु भूमि में मांसाहार होने से यह निश्चय कैसे कर लिया कि वह सब धर्म में था। यहां के जीवन व्यवहार में हो सकता है किन्तु यह धर्म का हिस्सा कभी नहीं रहा। फिर भी विकृतियाँ कहाँ नहीं आती? इसका अर्थ यह नही कि बस विकार ही धर्म है।
मैं लोगों के दूध को निरामिष कहने वालों की इच्छा का सम्मान कर रही हूँ, लेकिन उसे निरामिष नहीं मान रही हूँ। जहाँ तक क्रूरता का प्रश्न है, गाय को दूध देने के लिए प्रेरित किया जाता है, फिर वो बस बच्चे को थन से लगा कर या फिर इंजेक्शन देकर, गाय को अगर अपने आप दूध देने के लिए छोड़ दिया जाए और देखा जाए की वो कब तक दूध दे सकती है, तो अपने आप ही पता चल जाएगा। लेकिन ऐसा नहीं होता, बच्चादे का इस्तेमाल होता है, ताकि गाय दूध दे, जैसे ही दूध थन में आ जाता है, बच्चादे को तुरंत माँ से अलग कर दिया जाता है। अगर बच्चादा बड़ा हो गया है और गाय का दूध कम होने लगता है तो इंजेक्शन दूसरा हथियार होता है। जिसे दे दे कर दूध निकाला जाता है। कभी कभी तो बछड़े की खाल में भूसा भर कर भी गाय को भ्रम दिलाया जाता है कि यह उसका जीवित बछड़ा है। मेरी नज़र में ये क्रूरता की अति है, लेकिन लोग मानेंगे ही नहीं।
Deleteमाँस खाने मात्र से कोई क्रूर है ऐसा कैसे कहा जा सकता है। पश्चिम में 99% लोग मांसाहारी हैं, लेकिन उनकी प्रवृति क्रूर नहीं है, बल्कि भारतीयों से कहीं ज्यादा संवेदनशील हैं। जितने भी NGO हैं पूरी दुनिया में और जो भी मानवीय काम कर रहे हैं, सबको अनुदान पश्चिम से ही मिलता है। जितनी संवेदनशीलता इनमें देखने को मिलती है, उतनी अभी देखना बाकी है भारतीयों में। माँस खाना सिर्फ भोजन है। ईश्वर ने मनुष्य को इस योग्य बनाया है कि वो हर हाल में एडाप्ट कर सके। ये कहना कि बर्फीले देशों में मनुष्य का जन्म ही नहीं हुआ गलत होगा, मनष्य का जन्म हर जगह हुआ है, बर्फ में, मरूभूमि में, मनुष्य हर जगह गया है, उसने खुद को हर परिस्थिति के लायक बनाया है।
राजस्थान में ऊँट का मांस खाया जाता है/था , उसके पेट में जो पानी होता है, विषम परिस्थियों में उसे भी पिया जाता है/था। इसका अर्थ यह नहीं कि यह क्रूरता थी/है ।
जापान बहुत छोटा सा डेल्टा है, वहां ज़मीन की कमी है, खेती के लिए ज्यादा ज़मीन नहीं है, वहां का मुख्य भोजन मछली है क्यूंकि यही वहां उपलब्ध है, तो क्या वहां के लोग क्रूर हो गए??
दूर क्यूँ जाना मुम्बई में ही मुख्य भोजन अधिकतर लोगों का मछली है, बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था मत्स्य व्यापार पर ही टिकी हुई है, केरल में भी मछली बहुतायत से खायी जाती है, इसका अर्थ हुआ की इन सभी जगहों में रहने और खाने वाले क्रूर प्रवृति के हुए ??? गोवा का मुख्य भोजन समुद्री जीव जंतु ही हैं, क्या हम ये कहेंगे कि यहाँ के वाशिंदों की प्रवृति क्रूर है। बल्कि जितने झमेले उत्तर प्रदेश, बिहार, दिल्ली, हरियाणा में होते हैं उतने इन प्रदेशों में नहीं होते, जबकि सबसे ज्यादा शाकाहारी इन्हीं जगहों में आपको मिलेंगे।
बच्चादे=बछड़े
Deleteहिन्दू धर्म में मांसाहार वर्जित नहीं है, अगर ऐसा होता तो देवी छिन्नमस्तिका, काली, भैरव इत्यादि देवी देवताओं की पूजा बलि देकर नहीं की जाती, और बलि जानवरों की ही दी जाती है। बहुत से स्थानों में रथ यात्रा के दौरान आज भी बलि दी जाती है, अब आप कहें ये हिन्दू धर्म में नहीं है तो फिर ये देवी-देवता किस धर्म में हैं ??
Deleteबुद्ध धर्म और जैन धर्म का हिन्दू धर्म से अलग होने का सबसे बड़ा कारण भी यही था ...बलि प्रथा
मैने क्रूरता से दूध पाने को हिंसा कहा ही था.
Deleteमाँस खाने मात्र से कोई क्रूर है ऐसा मैने कहा भी नही, मैने मात्र यह कहा है कि क्रूर भाव लाए बिना माँस प्राप्त नहीँ किया जा सकता. क्रूरता व सम्वेदनशीलता मन के परिणाम होते है और मन की भावनाएँ किसी भी एकसमान परिवेश,राष्ट्रियता, जाति धर्म मेँ व्यक्ति व्यक्ति मेँ भिन्न हो सकती है. मैने विदेशियोँ से भारतीयोँ की न तो तुलना की, न श्रेष्ठता बताई फिर यह सब क्योँ? हो सकता है विदेशियोँ मेँ उत्कृष्ट सम्वेदनशीलता हो, और होगी भी तभी तो 'वीगन','पीटा', 'द वेजेटरियन सोसायटी' आदि निरामिष आन्दोलन विदेशो मेँ स्थापित और बहुप्रसारित हुए. ये सभी उन पश्चिम के 99% मांसाहारियोँ मेँ से बाहर निकल पडे. इसलिए सम्वेदनशीलता तो है ही, जब प्रखर और प्रकट बनती है व्यक्ति पशुहिंसा से विमुख होकर् सात्विकता की ओर ही बढता है.
मनुष्य खुद को बर्फ में, मरूभूमि में किसि भी हालातोँ मेँ स्वयँ को ढाल सकता है यह सत्य है लेकिन इसका क्या मतलब है? सभी को उन कठिन परिस्थितियोँ से गुजरना ही चाहिए, सभी को उनका आहार एडाप्ट कर लेना चाहिए? बात उनके आहार पर चली थी, पता नही किसने उन्हे हर काल् मेँ शाकाहारी परिस्थिति मेँ ढलने को कहा?
मैँ राजस्थान की मरूभूमि से ही हूँ मैने तो यहाँ ऊँट को खाया जाना आम नही देखा, आम क्या कभी कभार भी नही देखा. शायद आप अरब आदि की मरूभूमि अथवा उस सँस्कृति की बात कर रही हो अथवा कोई एक आध किस्सा मरूभूमि मेँ मार्ग भटके मनुष्य की जिजीविषा का हो.
@ काली, भैरव इत्यादि देवी देवताओं की पूजा बलि
मैने विकार की बात की ही थी, समय समय वाममार्गी व उन्ही के समान हिँसामार्गी आदि का अस्तित्व रहा ही है. यह वैदिक धर्म मेँ आए गए विकार ही थे, शुद्ध स्वरूप को ही सनातन कहा जा सकता है. माँस मदिरा मैथुन आदि पाँच मकारो को मानने वाले, कल्याण के देव महादेव और शक्ति माँ का पूजन करते थे, क्या कर सकते है. इसलिए कुछ विकृति के कारण 'हिन्दू धर्म' को दोषित नही कहा जा सकता.
sahi kaha aapne aisi samvedansheelta yahan ke (pashchim) mansahaariyon mein hi milegi, bharat shakaahaariyon se bhara pada hai lekin aisi samvedansheelta se ot-prot koi society abhi tak yahan nahi pahunchi hai...dekhte hain kab tak ye kaam hota hai :)
Deleteपश्चिम से आए तो बहुत थे तुर्क, यवन, अरब, अफगान, पुर्तगाली अँग्रेज.....भारी सम्वेदनशीलताएँ लेकर...
Deleteशायद भारतीयोँ मे या तो ग्रहण शक्ति नही थी, या फिर सम्वेदनाअओँ के कलश पहले से ही छलक रहे थे :) तब शायद यही समझा गया कि 'कथित सम्वेदनशीलता का स्थायित्व' सामिष आहार शैली मे है,और उसे अपनाया गया.
जब वे वीगन या निरामिष सोसायटी बनाते है तब कहाँ माँसाहारी रह पाते है।
Deleteअदा जी आपने मेरी टिप्पणी पढी - नहीं --- आपको सामिष व निरामिष शब्द का अर्थ नही पता----- पहले ही कहा जाचुका है दूध ..प्राणी उत्पाद है --शहद आदि की भाँति परन्तु वह न तो मांस है, न मांस से बनता है , तो सामिष क्यों हुआ,,,
Delete------दूध प्राप्ति में कोइ क्रूरता नहीं है .... गाय धाय की भाँति दूध उपलब्ध कराती है ..इसीलिये उसे माता कहा जाता है ..यदि गाय का दूध निकाला नही जाएगा तो वह रोगी होजायागी ,,, ऐसा ही स्त्रियों में भी होता है ,,,मांसाहार तो स्पष्ट क्रूरता है ...चाहे वह मजबूरी वश हो
Falatoo kee samvedansheelataa ke liye sthaan nahen hai bharat ke paas ... sosaaity aadi-- faalatoo logon ke kaam hain.... bhaarat men to har jagah shaakaahaar prachalit hai society kyaa karegee....
Deleteसुज्ञ जी,
Deleteमेरा एक बहुत ही छोटा सा प्रश्न है ....
हमारे कई देवता (शंकर), ऋषि-मुनि (गौतम, परशुराम) मृगछाला पहने हुए नज़र आते हैं। वो उनको कैसे प्राप्त होता था, बिना किसी का वध किये हुए ?
माँ सीता ने मृगछाला ही माँगा था ष्ट्री राम से, और श्री राम निकल भी गए थे लाने ...इस बात के लिए श्री राम ने मना नहीं किया था कि ये जीव हत्या है, उन्होंने इस बात के लिए मना किया था कि यह स्वर्णमृग स्वाभाविक नहीं है। ये जीव हत्या की श्रेणी में आता है या नहीं ?
रामायण हिन्दू धर्म के आधारों में से एक है। इस बात से आप इनकार नहीं कर सकते।
डॉ . गुप्ता,
Deleteसही कहते हैं आप, हम भारतीयों के लिए संवेदनशीलता फ़ालतू की चीज़ ही है। सिर्फ शाकाहारी होना ही काफी है।
ष्ट्री=श्री
Deletevartani ki galati hui hai kshamaprarthi hun..
अदा जी,
Deleteप्रश्न छोटा सा है उत्तर विस्तृत हो जाता है। तथापि कुछ मुद्दे लिखता हूँ यदि बात पहुँचे… :)
1- धर्म-कथाएँ बहुत ही प्रचीन युग की है, आवश्यक नही हूबहू घटनाक्रम आज हमारे समक्ष हो।
2- महापुरूषों के कृत्व और कारण को उसी अभिप्राय में समझना हमारे लिए सम्भव ही नहीं।
3- समय काल परिस्थिति अनुसार भाष्य और व्याख्याओं में अन्तर आना स्वभाविक है।
4- यकिन से तो नही कह सकते किन्तु मृगछाला स्वभाविक मृत्यु से भी प्राप्य हो सकती है।
5- इस युग में चित्रों मूर्तियों में दर्शाए परिधान और मुद्राएं सदाकाल की नहीं है।
6- उनके प्रत्येक कार्य अनुकरणीय नहीं है, आज्ञा और उपदेश धर्म के आधार होते है। उनके चार चार हाथों में आयुद्ध है तो इसका अर्थ यह नही कि हिन्दु धर्म का पालन करने वाले सभी को आयुद्ध धारण करने चाहिए, भगवान परशुराम ने क्षत्रियों का नाश किया इसका तत्पर्य यह नहीं कि फोलोअर को परशु लेकर निकल पडना चाहिए। :) नरसिंहा अवतार यदि अपने नाखूनों से अधर्मी का सीना चीर दिए तो सभी को अपनी धारणा अनुसार अधर्मी को देखते ही सीना चीरने निकल पड़ना चाहिए…।
7- सभी महापुरूष भी हत्या या जीवहिंसा हो जाने के बाद प्रायच्छित अवश्य करते है, इसी से ज्ञात होता है कि वह कार्य क्षमा-प्रायच्छित के लायक था, अनुकरणीय नहीं था। और हिन्दु धर्म जीवहिंसा के आदेश तो रत्ति भर भी नहीं है।
सुधार……
Deleteहिन्दु धर्म में जीवहिंसा के आदेश तो रत्ति भर भी नहीं है।
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तथापि धर्म का आधार कथा-वस्तु से अधिक उसमें प्रस्तुत आध्यात्म और दर्शन होता है।
अदा जी .... आपकी बाते हास्यास्पद है । आपको धर्म का, व धर्मशास्त्रो का इतना ही ज्ञान है जितना कि रेगिस्तान के सूखे रेत में तेल होता है । आपने जो हिन्दू धर्म , शास्त्र व ऋषि मुनि भगवान आदि पर आक्षेप लगाए है, उनके उत्तर अगले कमेंट मे दे रहे है .........
Delete@अदा जी ---- मृगछाला जो आपको ऋषि मुनीयो शिव आदि के पास दिखाई थी आपने केवल उसे चित्र में देखकर ही मृग की खाल मान लिया ? वो बुनकरो द्वारा तैयार की जाती थी , ऐसा वेदार्थ पारिजात आदि कई ग्रंथो मे स्पष्ट वर्णित है , इसके अतिरिक्त ये मृग को मारकर उसकी खाल से बनाई जाती थी ऐसा वर्णन किसी भी वैदिक ग्रंथ में नहीं है । केवल चित्रकारों के बनाए चित्रो से ही आपने ये सत्यबोध प्राप्त किया वाह । दूसरा ------- दशरथ जी के शिकार की बात तो - आपके घर मे डेंगू के मच्छर हो और आप उन्हे मार दे तो क्या वो हिंसा या पाप कहलाएगा ? वो हिंसक पशु थे जो मनुष्य की फसल को ही नहीं बल्कि स्त्री वृद्ध बालको आदि पर भी नियमित आघात किया करते थे, ऐसे एक उत्पाती पशु को ही महाराज दशरथ मारने गए थे, रामायण यही कहती है । अब आपकी मुख्य बात --- सीता जी ने मृगछाला मांगी थी और श्री राम ने इसलिए उस जानवर को मारा था ? :) देखो इस प्रसंग को जाकर वाल्मीकि रामायण मे पढ़िये आप ताकि ऐसी हास्यास्पद बात न कहे आगे से ---- रामायण के अनुसार ---- माता सीता मृग के साथ खेलना, उसे लाड़ करना आदि चाहती थी व उसे वनवास की समाप्ती पर अयोध्या भी ले जाना चाहती थी , उनके ऐसे निवेदन पर श्री राम उस हिरण को जीवित ही पकड़ने गए थे न कि शिकार करने , किन्तु जब उन्हे स्पष्ट हुया कि वह मृग नहीं अपितु मायावी राक्षस है जो छल कर रहा है , तब उन्हौने बाण चलाया ..... । आप शास्त्रो या भगवान या धर्म पर ऐसी टिप्पणी करने से पहले उनमे ही जाकर देखा कीजिये । चित्र देखकर और टीवी मे रामायण देखकर यही हाल होता है ।
Deleteसनातन वैदिक धर्म के मूल ग्रंथो वेद , उपनिषद, ब्राह्मणग्रंथ, दर्शन ग्रंथ आदि किसी भी आर्ष ग्रंथ में न तो पशु की हत्या का आदेश है न ही मांसभक्षण का , इसके विपरीत सभी प्राणियों से प्रेम करने, उनकी रक्षा करने , मांस न खाने के आदेश असंख्यों भरे पड़े है । फिर भी ऐसे अज्ञानी जिन्हौने धर्म को जाना ही नहीं, जिन्हौने कभी शास्त्रो के पन्ने पलटकर नहीं देखे, वृथा जीभ हिलाकर कुछ भी कपोलकल्पित अज्ञान उड़ेला करते है। और ये जानवरो को काटकर मांस नोचने वाले, हड्डीया चूसने वाले पापी नराधाम , अपने इस कुकर्म को सही साबित करने के लिए , कैसे कैसे बेतुके तर्क दिया करते है । गाय का दूध मांसाहार है , फल मांसाहार है :) इनकी मूर्खता का तो कहना ही क्या ...। फेसबूक यू एल आर छोड़ रहे है यहा.... जो जो बौद्धिक व्यभिचारी है ... वो आकर इस पर बहस कर ले .... उनकी मूर्खता का उन्हे बोध अवश्य हो जाएगा। जय श्री राम ।
Deleteसचिन शर्मा जी,
Deleteवाल्मीकि रामायण के 'अरण्यकाण्डे त्रिचत्वारिंश: सर्ग:' के १९ वें सर्ग में यह लिखा है
जीवनं यदि तेभ्येति ग्रहणम् मृगसत्तम:।
अजिनं नरशार्दूल रुचिरं तु भविष्यति
अर्थात, सीता राम से कहती हैं 'हे पुरुषसिंह ! यदि कदाचित यह श्रेष्ठ मृग जीते-जी न पकड़ा जा सके तो इसका चमड़ा ही बहुत सुन्दर होगा ॥ १९ ॥
आगे २० वें सर्ग में जो है देखिये :
निहतस्यास्य सत्त्वस्य जाम्बूनदमयत्वचि
शष्पबृस्यामं विनितायामिच्छाम्यहमुपासितुम् ||२०॥
अर्थात आगे सीता कहती हैं,
घास-फूस की बनी हुई चटाई पर मरे हुए मृग का स्वर्णमय चमड़ा बिछा कर मैं इसपर आपके साथ बैठना चाहती हूँ
आप कहते हैं हिन्दू ग्रन्थों में जीव हत्या की बात नहीं हैं, टी वी सीरियल देखने का शौक मैं नहीं रखती । आप से भी अनुरोध है अपने ज्ञान का सही तरीके से परिमार्जन करें, वाल्मीकि रामायण का ही अध्ययन आप कर लें तो काफी होगा । वाल्मीकि रामायण के ३१ वें सर्ग में राम जी स्वयं लक्ष्मण से कहते हैं :
मांसहेतोरपि मृगां विहार्थमं च धनविन:
ध्नन्ति लक्ष्मण राजानो मृगयायां महावने
जिसका अर्थ है :
लक्ष्मण ! राजा लोग बड़े-बड़े वनों में मृगया खेलते समय माँस के लिए, मृगचर्म के लिए और शिकार खेलने का शौक पूरा करने लिए धनुष हाथों में लेकर मृगों को मारते हैं ॥ ३१ ॥
जहाँ तक दूध के माँसाहार होने का प्रश्न है, हमारे-आपके नहीं मानने से दूध का केमिकल कॉम्पोजिशन बदल नहीं जाएगा उसमें एनिमल फैट और एन्जाइम्स रहेंगे ही रहेंगे, वैसे आपको बता दूँ दुनिया की बहुत बड़ी आबादी इसे शाकाहार नहीं मानती।
एक बात और अहिंसा की दलील देने आये हैं आप फिर आपकी प्रवृति इतनी ....... :)
@अदा जी .... आपकी बाते हास्यास्पद है । आपको धर्म का, व धर्मशास्त्रो का इतना ही ज्ञान है जितना कि रेगिस्तान के सूखे रेत में तेल होता है ।
Deleteसचिन जी,
कम से कम अपने नाम का कुछ तो मान रखा होता आपने :) इतना भी नहीं मालूम आपको, पूरी दुनिया को तेल रेगिस्तान वाले ही दे रहे हैं, सबसे बड़ा तेल का भण्डार रेगिस्तानों में ही है ।
चलिए अच्छा लगा जान कर मेरी बातों पर आपको कम से कम रोना नहीं आया, किसी को हँसाना बहुत कठिन काम माना जाता है।
@ फेसबूक यू एल आर छोड़ रहे है यहा....
Deleteसचिन जी,
आपका धन्यवाद !
वैसे ' यू एल आर ' नहीं होता, ये URL होता जिसका फुल फॉर्म है Uniform Resource Locator । 'अधीरता और अज्ञानता सगी बहनें हैं' ।
१ आपके प्रथम प्रश्न तर्क कम भावना पर ज्यादा आधारित है..प्रकृति में फ़ूड चेन है जिसमे शाकाहारी (घास,पत्तियां खाने वाले ) प्राणी खरगोश ,हिरन को खाकर शेर ,चीता जीवित रहते है .यहाँ भावना का स्थान नहीं है. महुष्य को चाहिए की बछड़े के लिए दूध छोड़कर अतिरिक्त दूध अपने लिए उपयोग करे.
ReplyDelete२ मनुष्य में मेटाबोलिक एक्शन के समय सभी वस्तुयों को शारीर के पोषण योग्य बनाया जाता है .अनुपोयोगी वस्तुओं को बाहर कर दिया जाता है.
३ दूध -प्राणी उपज है ,अत: सामिष है, निरामिष नहीं. शाकाहारी (घास,पत्तियां खाने वाले ) प्राणी खरगोश है. जो मनुष्य आलू ,प्याज ,गाजर ,मुली खाते है ,वे निरामिष खाते है. वे शाकाहारी नहीं.
मनुष्य अपने सुविधा अनुसार अंडे को भी निरामिष मान लेते है. इसमें कोई तर्क नहीं .
वाह क्या तर्क है ....खरगोश सिरफ घास खाता है अतः उसका शरीर कैसे सामिष होगया ... वह तो घास से बना है ...शेर आदि का शरीर सामिष है ..उस को खाया जाय यदि असली मांस का शौक है तो
Deleteअभी कुछ समय पूर्व मुझे ये जानकारी हुई है कि समुद्र किनारे रहने वाले ब्राह्मणों में परम्परा से मांस-मछली खाया जाता है.
ReplyDeleteशोभा जी आपका धन्यवाद ..
Deleteजी हाँ,
देवघर के पण्डे इतना मांस खाते हैं कि आप कल्पना नहीं कर सकते , और मांस पकता भी है मंदिर के परिसर में, ये मैं सुनी सुनाई बात नहीं कर रही हूँ, ये मैंने न सिर्फ देखा है बल्कि उनकी रसोई में खाया भी है।
शोभा गुप्ता जी की बात यथार्थ है और देवघर के पण्डे की बात भी यथार्थ हो सकती है.
Deleteकिंतु इन बातोँ से साबित क्या होता है? मेरे ऐसे मुस्लिम मित्र है जो शुद्ध शाकाहारी है. माँसाहारी परम्परा परिवार के होते हुए भी न केवल शुद्ध शाकाहारी रहते है बल्कि अन्य को शाकाहार के लिए प्रेरित भी करते है.
सही कहा सुज्ञ जी --- सत्य तो यही है की मांसाहार ....निरामिष आहार के भाँति ....मन ,वचन, भाव व् कर्म एवं रासायनिक भाव से शुद्ध नहीं होता ....अतः यदि निरामिष भोजन उपलब्ध है तो वही खाया जाना चाहिए,,,, आपत्तिकाले मर्यादा नास्ति ...के अनुसार यदि वह उपलब्ध नही है तो जीवन रक्षा हेतु आप कुछ भी खा सकते हैं,,, सर्प , वानर से लेकर मानव तक,,, परन्तु स्वाद हेतु नहीं ,,,,
DeleteThere is a raging controversy about whether milk is a vegetarian food or non –vegetarian. Skeptics say that since it is an animal origin food it should be designated as non-vegetarian and not consumed after infancy as it is then not required. On the other hand, pro-milk drinkers say that milk is a vegetarian food since it is not procured by killing the animal and does not consist of any animal part. Vegans do not consume any milk or milk based product.
ReplyDeleteWhatever the case, milk is a highly nutritious food and fulfills almost all nutritional requirements of humans.
Read more: Cow's Milk-Vegetarian or Non-vegetarian | Medindia http://www.medindia.net/patients/patientinfo/cowsmilk_veg.htm#ixzz2AiMS3efv
Only veg and non-veg
ReplyDeleteIn the present scheme there are no distinguishing marks for egg and milk products, other than the broad vegetarian and non-vegetarian classifications. As per the present specifications, egg-products would be considered as non-vegetarian, while milk and milk-products are vegetarian and are marked with the green symbol.[1] But there is a common misconception that the brown dot denotes egg-products and that meat-products are distinguished by a red dot.[2] But there is in fact no such provision in the approved standard.
milk comes out of an animal???how can that be veg???it applies same for the eggs too....it comes out of a hen!....so vegans should consume egg too....imagine a world without milk....the poor vegans hav to go without all the dairy products.....no wonder they made the milk an exception....pure vegans dont even consume animal mink...they drink soya milk...
ReplyDeleteVegetarians don’t eat:
ReplyDelete• Meat
• Poultry
• Game
• Fish, shellfish and crustacea
• Slaughterhouse by-products such as gelatine, rennet and animal fats.
Vegetarians do eat:
• Vegetables, pulses, grains, bread, cheese, eggs, fruit, nuts, cereals and seeds....
People who don’t eat red meat but do eat chicken or fish are making a very important first step, but they aren’t vegetarians. We usually call such people meat-reducers.
People who avoid all animal products, including eggs, milk, dairy products and honey as well as meat, poultry and fish are called vegans.
Sharma ji,
DeleteThanks a lot. This may be the Indian perception but not Universal.
I have seen in some countries people consider milk as a NON VEGETARIAN therefore any milk product is considered NON VEG including butter, cheeze etc. They avoid eating these things in their fasting period.
---हाँ ये सब नॉन-वेज हैं परन्तु सामिष नहीं, एग न वेज है न सामिष ...इसी लिए उन्हें खाने वाले एगीटेरियन कहलाते हैं।
Delete----फास्टिंग पीरिअड में नही खाते ,,,अर्थात अंध विश्वासी हैं ...
क्या गाय या भैंस का दूध....शाकाहारी है ???
ReplyDeleteअदा
काव्य मंजूषा
मांसाहारी सकल जग, खाता पशु प्रोडक्ट ।
कुछ देशों में व्यर्थ ही, लागू उल्टा एक्ट ।
लागू उल्टा एक्ट, कपूतों खून पिया है ।
हाड़-मांस खा गए, कहाँ फिर भेज दिया है ।
फिर से माँ को ढूँढ, दूध की चुका उधारी ।
मथुरा में जा देख, नोचते मांसाहारी ।।
बड़ा संवेदनशील ह्र्दय पाया है आपने, लहू की एक धार देखकर हमेशा के लिये दूध, दही, पनीर वगैरह छोड़ दिया।
ReplyDeleteअच्छा ज्ञानवर्धन हो रहा है, अगली पोस्ट का भी इंतजार रहेगा। जरूर लिखियेगा।
गांधीजी गाय के दूध को गाय का खून कहते थे इसीलिए ता -उम्र उन्होंने बकरी का दूध पीया .भले शुद्ध दूध में मौजूद खाद्य कोलेस्ट्रोल कोशाओं की
ReplyDeleteबढ़वार
के लिए लाज़मी है लेकिन होल क्रीम मिल्क और दुग्ध उत्पाद दिल के लिए अब बहुत मुफीद नहीं माने जाते .मोटा रुल जो एनीमल प्रोडक्ट है मांस (ख़ास
कर
रेड मीट ),अंडा आदि दिल के लिए नहीं अच्छा .
नामचीन दिल के रोगों के माहिर तो मच्छी में मौजूद बेहद प्रचारित और हाइप ओमेगा फेटि एसिड्स को भी निरापद नहीं मानते .सारा जीवन उन्होंने
शाका हार के हवाले कर दिया .आपने जीरो फेट कुकिंग पर सौ से ज्यादा किताबें लिखीं हैं खुद पका के दिखातें हैं .यह आंखन देखि है सुनी सुनाई नहीं है
हमने इण्डिया परिवास केंद्र और इंडिया इंटर -नेशनल सेंटर,नै दिल्ली , में ज़नाब के सेमीनार अटेंड किये हैं .विश्व हृदय दिवस पर विस्तार भाषण सुना है .
हम जीरो फैट की बात नहीं करते 1%,2%फैट युक्त ही भला .खालिस दूध और दुग्ध उत्पाद हृदय की सेहत के लिए अच्छे नहीं माने जातें हैं अब .और
मांसाहार तो कतई नहीं .अलबत्ता जिन्हें जीवन शैली रोग पाले रखने का शौक है खाए शौक से कौन रोकता है .दूध पशु उत्पाद होते हुए भी अपेक्षा कृत
निरापद और सात्विक आहार है . भले स्तन पाई पशुओं का प्राथमिक आहार है लेकिन अब तो होमोसेपियन की माँ ही लड़के स्तन पान करा पाती है बा -
मुश्किल 4 -6 माह आप बछड़े बछियों की बात कर रहीं हैं दुसरे छोर पर मांसाहार के पक्ष में खड़ी दिखलाई देतीं हैं .
बकरी पांति खात है ताकि मोटी खाल ,
जे नर बकरी खात हैं तिनको कौन हवाल .
संत कवि बरसों पहले इशारा कर गए थे -शाकाहार ही भला .
आज अमरीका जुगत निकाल रहा है कैसे गौ मांस को कम कोलेस्ट्रोल युक्त बनाके कैंसर रोग समूह से बचा जाए .विश्व में शाकाहार के प्रति एक चेतना
पर्यावरण पारितंत्रों की सुरक्षा के मद्दे नजर भी आई है .फ़ूड पिरामिड में मांसाहार ज्यादा इनपुट एनर्जी मानता है .
(ज़ारी )
हमारे यहाँ शताब्दियों से इसे सात्विक और निरामिष माना जाता रहा है .मुझे लगता है यदि इससे गाय को हानि हो या उसके बछड़े को वंचित किया जाये तो सामिष कहना भी उचित है.
ReplyDeleteवास्तव में अगर हम भी फ़ास्ट फ़ूड के ही निर्माण की प्रक्रिया और उसमें प्रयुक्त को में देख लें तो कुछ खाना छोड़ दें . या भैस जिसका भी दूध हो बच्चे का पेट काट कर लेट हैं बेचने वाले .घर के जानवर पर हम दया दिखा सकते हैं लेकिन घर वाले उसके भी पूरे पूरे दूध को बछड़े को नहीं पिला सकते हैं। अब गाय दूध देना बंद कर देती है तो उसको घर में बंधने के स्थान पर खुला छोड़ देते हैं।
ReplyDeleteआजकल तो मिल रहे मानव के प्रोडक्ट
ReplyDeleteप्रोडक्शन है दूध का,काजू का प्रोडक्ट ।
काजू का प्रोडक्ट, कर रहा सब मानव ही,
पापड़, घी, मक्खन, अचार एवं रोटी भी ।
न एनीमल प्रोडक्ट न कुछ भी वेजीटेबल,
सब कुछ यारो है मानव प्रोडक्ट आजकल ।।
हरगिज़ नहीं मैंने तओ इस दुनियाँ में किसी भी चीज़ को पूरी तरह शाकाहारी मानती ही नहीं खासकर दूध या उसे बनी बाकी चीज़ें तो ज़रा भी शाकाहारी नहीं कह लानी चाहिए रही बा पहले प्रशन की तो आपकी बात से सौ प्रतिशत सहमत हूँ यह बिलकुल गलत है माँ का दूध केवल उसके बच्चे के लिए ही होना चाहिए बाकी किसी अन्य के लिए नहीं...
ReplyDeleteकोई दुहता भैंस को , कोई दुहता गाय
ReplyDeleteअरे शेरनी को कभी, दुहकर जरा बताय
दुहकर जरा बताय,सदा कमजोर मरा है
जो साधन सम्पन्न, हमेशा हरा-भरा है
बछड़ा भूखा देख - देख कर ममता रोई
बेजुबान का दर्द , भला क्या जाने कोई ||
ये तो ऊंची बहस वाली पोस्ट हो गयी। जय हो !
ReplyDeletesahi hai boss jai ho!!!!!!!!!!!!!
Deleteहां क्या गजब तर्क है दूध चूंकि मांसाहार है तो थोड़ी तो हिंसा हो ही गई है हमसे।
ReplyDeleteफिर तो उस जीव यानी गाय या भैंस को मारकर खाने में भी क्या बुराई है?
और जब उन्हीं को मारकर खा सकते हैं तो फिर किसी इंसान को मारकर भी मांस खाया ही जा सकता है(सुना है चीन में तो अविकसित भ्रूण को खाया ही जाता है।)
फिर तो कोई माई का लाल न होगा हमसे तर्क करने वाला।
और धर्म की दुहाई?
लेकिन तब तो धर्म में या उसके नाम पर और भी बहुत कुछ होता था।
कमाल है। जिस वर्ग को धर्म से सबसे ज्यादा परेशानी रही है। वही इस मामले में धर्म को ढाल बना रहा है?
दुनिया बनाने वाले ये कैसी दुनिया बनाई।
हमका तो समझ ही ना आई ।