वो जश्न, वो रतजगे, वो रंगीनियाँ कहाँ
आये निकल वतन से, हम भी यहाँ कहाँ
महबूब मेरा चाँद, मेरा हमनवां कहाँ
इस बेहुनर शहर में, कोई कद्रदां कहाँ
कोई बुतखाना,परीखाना, कोई मैक़दा नहीं
ढूँढें इन्हें कहाँ और अब जाएँ कहाँ कहाँ
बस रहे खेमों में, हम जैसे हैं जो लोग
फिर सोचेंगे जाएगा, ये कारवाँ कहाँ
जाना था तुमको भी तो, उस दूसरी गली
ज़बरन चले आये तुम भी, यहाँ कहाँ !