Monday, July 19, 2010

है निग़ाह मेरी झुकी-झुकी, ये ग़ुरूर मेरा हिज़ाब है ...


ये थका-थका सा है जोश मेरा, ये ढला-ढला सा शबाब है 
तेरे होश फिर भी उड़ गए, मेरा हुस्न क़ामयाब है 

ये शहर, ये दश्त, ये ज़मीन तेरी, हवा सरीखी मैं बह चली 
तू ग़ुरेज न कर मुझे छूने की, मेरा मन महकता गुलाब है 

ये कूचे, दरीचे, ये आशियाँ, सब खुले हुए तेरे सामने 
है निग़ाह मेरी झुकी-झुकी, ये ग़ुरूर मेरा हिज़ाब है
 


7 comments:

  1. ये कूचे, दरीचे, ये आशियाँ, सब खुले हुए तेरे सामने
    है निग़ाह मेरी झुकी-झुकी, ये ग़ुरूर मेरा हिज़ाब है
    wakai ye laazwaab hai

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  2. क्या अदा जी,
    हम तो तारीफ़ करने के लिये भी तरस गये थे।
    किताब, सिनेमा जैसे अभिव्यक्ति के साधनों से ब्लॉग इसीलिये भी बेहतर लगते हैं क्योंकि इसमें त्वरित रेस्पांस ले दे सकते हैं। कमेंट बॉक्स फ़ोर खोल दिया आपने, इसका आभार अलग से।
    पोस्ट बहुत शानदार, लेकिन शिकायत भी है कि इतनी छोटी रचना क्यों डालती हैं आप(तारीफ़ ही लग रही है न ये भी?
    सदैव आभारी।

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  3. "मेरा मन महकता गुलाब है" -- waah!!
    Khoob kahi hai aapne...

    Regards,
    Dimple

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  4. आपके हसीं रुख पर नया नूर है,
    मेरा दिल मचल गया मेरा क्या कसूर है...

    जय हिंद...

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  5. @ ओ खुशदीप जी..
    ये विम्मी जी की फ़ोटू नहीं है ..
    हां नहीं तो...!!

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  6. ये कूचे, दरीचे, ये आशियाँ, सब खुले हुए तेरे सामने है निग़ाह मेरी झुकी-झुकी, ये ग़ुरूर मेरा हिज़ाब है

    BAHUT HI SUNDER PANKTIYA HAI....

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