Friday, July 16, 2010

दर्द विछोह पर्याय हैं मेरे....

दूर जाना यूँ माँ से है
जाँ का जाना जानो
झुकते हैं कभी बिछते हैं
मानो या न मानो
याद की कलसी
फिर छलकी है  
आँख का आँचल भीगा है
ये दुनिया क्या समझेगी
तुम धैर्य की चादर तानो
मैं बेटी
किस्मत मेरी है 
दूरी की ही जाई
दर्द विछोह पर्याय हैं मेरे
मान सको तो मानो....!!




2 comments:

  1. बहुत सुन्दर और मार्मिक कविता है

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  2. बहुत सुंदर भाव युक्त कविता

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