Saturday, July 3, 2010

कल जो टूटे थे रिश्ते आज वो लगते झूठे हैं ....



ये फोटो ओट्टावा में टूलिप फेस्टिवल का है....

कल जो टूटे थे रिश्ते, आज वो लगते झूठे हैं
प्रीत डगर के काँटों से, मेरे पाँव के छाले फूटे हैं

शिकवों का दस्तूर नहीं, ना है गिलों का कोई रिवाज़ 
नेह की वो सारी कोंपल, बस कागज़ के गुल-बूटे हैं

कई रतजगे काटे हैं, हर ख़्वाब को दिल से पाला है 
पल भर को मेरी आँख लगी, कोई ख़्वाब का लश्कर लूटे है

सोच लिया था तेरे नाम की, सारी निशानी मिटा देंगे
पर दिल के पत्थर पर आकर, तेरी याद के खंज़र टूटे हैं

झीनी सी वो ख़ामोशी 'अदा', और पाँव से लिपटी तन्हाई
मुझे गुमसुम से कुछ राह मिले, पर जाने क्यूँ वो रूठे हैं


फिल्म  : अभिलाषा
संगीतकार : राहुल देव बर्मन.
गीतकार : मजरूह  सुल्तानपुरी
आवाज़ : लता

लेकिन यहाँ ...स्वप्न मंजूषा 'अदा'

वादियाँ मेरा दामन रास्ते मेरी बाहें
जाओ मेरे सिवा तुम कहाँ जाओगे
वादियाँ मेरा दामन ...

जब  हँसेगी कली रंग वाली कोई 2
और झुक जायेगी तुमपे डाली कोई
सर झुकाए हुए तुम मुझे पाओगे
वादियाँ मेरा दामन रास्ते मेरी बाहें
जाओ मेरे सिवा तुम कहाँ जाओगे
वादियाँ मेरा दामन ...

चल रहे जहाँ इस नज़र से परे २
वो डगर तो गुज़रती है दिल से मेरे
डगमगाते हुए तुम यही आओगे
वादियाँ मेरा दामन रास्ते मेरी बाहें
जाओ मेरे सिवा तुम कहाँ जाओगे
वादियाँ मेरा दामन ...



30 comments:

  1. सुंदर शेर और प्यारी आवाज ।

    ReplyDelete
  2. 12वीं मेँ साथ पढ़ने वाली को याद दिला दिया आज आपने ।

    ReplyDelete
  3. शिकवों का दस्तूर नहीं ना है गिलों का कोई रिवाज़
    नेह की वो सारी कोंपल बस कागज़ के गुल-बूटे हैं
    ....
    सोच लिया था तेरे नाम के सारी निशानी मिटा देंगे
    पर दिल के पत्थर पर आकर तेरी याद के खंज़र टूटे हैं
    ........
    बहुत गहरे भाव हैं या कहें घाव हैं
    मान गए आपको

    और हाँ गीत बहुत सुन्दर लगा

    ReplyDelete
  4. कमाल की ग़ज़ल है और चित्र मुझे लगा कोई पेंटिंग है.. गाना नहीं सुन पाया अभी.. पर ये तस्वीर क्यों जला दी इतनी अच्छी??? :P

    ReplyDelete
  5. कमाल की ग़ज़ल है और चित्र मुझे लगा कोई पेंटिंग है.. गाना नहीं सुना पाया अभी.. पर ये तस्वीर क्यों जला दी इतनी अच्छी???

    ReplyDelete
  6. बेहतरीन गज़ल..बहुत साल बीते ट्यूलिप फेस्टीवल देखे.


    अगले साल देखेंगे अब!! :)


    फोटो में आग? और इतना उम्दा गीत!

    ReplyDelete
  7. बहुत सुरीला गीत सुनाया ।
    टुलिप गार्डन देखकर दिल बाग़ बाग़ हो गया ।
    लेकिन ------
    समझ नहीं आया ।

    ReplyDelete
  8. बहुत सुन्दर प्रस्तुति। बधाई, आभार।

    ReplyDelete
  9. sabhi kuchh shaandaar ji....

    kunwar ji,

    ReplyDelete
  10. शिकवों का दस्तूर नहीं ना है गिलों का कोई रिवाज़
    नेह की वो सारी कोंपल बस कागज़ के गुल-बूटे हैं

    खूबसूरत गज़ल...

    ReplyDelete
  11. अगर टुलिप गार्डन देखना हो तो होलेंड मै देखे

    ReplyDelete
  12. टूलिप फेस्टिवल से आपकी सदा आई है....कहीं नहीं जाना हमें

    ReplyDelete
  13. वाह ट्यूलिप फ़ेस्टिवल की तस्वीर तो ऐसी है जैसे कोई पोस्टर हो!! बहुत सुन्दर.

    ReplyDelete
  14. hnm...

    sunder aawaz...

    ReplyDelete
  15. बढ़िया छायांकनके साथ आपके गीत और रचना अच्छी लगी!

    ReplyDelete
  16. बहुत अच्छी प्रस्तुति।
    इसे ०४7.0७.10 की चर्चा मंच (सुबह 06 बजे) में शामिल किया गया है।
    http://charchamanch.blogspot.com/

    ReplyDelete
  17. बहुत सुन्दर गज़ल है. पर इस दर्द भरी गज़ल पर वाह तो नहीं कह सकती. बहुत से नए नए शब्दों का प्रयोग है..और ये किसको सेंटी किया जा रहा है भाई अपनी तस्वीर जला कर ???

    ReplyDelete
  18. मेरी उस फोटो से लोगों को कोई confusion हो गया है...दरअसल मैं Photofunia software में कुछ try कर रही थी ...मुझे ये कुछ अच्छा सा लगा इसलिए डाल दिया ...लेकिन बात कुछ उलटी-पलटी हो गई...

    ReplyDelete
  19. सोच लिया था तेरे नाम के सारी निशानी मिटा देंगे
    पर दिल के पत्थर पर आकर तेरी याद के खंज़र टूटे हैं

    ReplyDelete
  20. कल जो टूटे थे रिश्ते आज वो लगते झूठे हैं
    प्रीत डगर के काँटों से मेरे पाँव के छाले फूटे हैं ..

    --- अदा जी , शब्दशः कह रहा हूँ , शब्दशः मानियेगा भी , कल
    और आज के बीच रिश्ते और झूँठ के अर्थ को जिया हूँ ! साक्षात्कृत
    हुआ हूँ ! साक्षी हुआ हूँ ! भोक्ता हुआ हूँ ! और अंततः मुक्त भी हुआ हूँ !
    कहते हैं न कि कविता लिख जाने के बाद पाठक की - सी हो जाती है !

    गाना हर बार की तरह अच्छा रहा .. स्वदेश आइये , आपका यह
    प्रशंसक रिकार्डर और कुछ लोकगीत लेकर स्वागत करने का कष्ट(?)
    देने से नहीं चूकेगा !

    आभार .

    ReplyDelete
  21. @
    कई रतजगे काटे हैं हर ख़्वाब को दिल से पाला है पल भर को मेरी आँख लगी कोई ख़्वाब का लश्कर लूटे है
    क्या बात है !

    संशोधन प्रस्ताव *आदत से मज़बूर*
    नेह की वो सारी कोंपल - एकवचन
    कागज़ के गुल-बूटे हैं - बहुवचन

    तेरे नाम के सारी निशानी - के की ज़गह की

    अंतिम शेर ऐसा हो तो प्रवाह सुधर जाता है:

    झीनी सी खामोश अदा और पाँव से लिपटी तनहाई
    गुमसुम से कुछ राह मिले पर जाने क्यूँ रूठे हैं।

    ReplyDelete
  22. सोच लिया था तेरे नाम की सारी निशानी मिटा देंगे
    पर दिल के पत्थर पर आकर तेरी याद के खंज़र टूटे हैं

    झीनी सी वो ख़ामोशी 'अदा' और पाँव से लिपटी तन्हाई
    मुझे गुमसुम से कुछ राह मिले पर जाने क्यूँ रूठे हैं
    शिकवों का दस्तूर नहीं ना है गिलों का कोई रिवाज़
    नेह की वो सारी कोंपल बस कागज़ के गुल-बूटे हैं
    laazvaab ,aap bahut sundar likhti hai ,man ko chhoo gayi har baat .

    ReplyDelete
  23. सोच लिया था तेरे नाम की सारी निशानी मिटा देंगे
    पर दिल के पत्थर पर आकर तेरी याद के खंज़र टूटे हैं

    bahut jyada khubsurat likha hai aapne..bahut badhiya

    ReplyDelete
  24. बेवजह तारीफ़ करना अपनी आदत तो नहीं,
    लेकिन आपकी शोखियों के ये नए अंदाज़ है,
    आपकी आंखों में कुछ महके हुए से खाब हैं...

    जय हिंद...

    ReplyDelete