ये फोटो ओट्टावा में टूलिप फेस्टिवल का है....
कल जो टूटे थे रिश्ते, आज वो लगते झूठे हैं
प्रीत डगर के काँटों से, मेरे पाँव के छाले फूटे हैं
शिकवों का दस्तूर नहीं, ना है गिलों का कोई रिवाज़
नेह की वो सारी कोंपल, बस कागज़ के गुल-बूटे हैं
कई रतजगे काटे हैं, हर ख़्वाब को दिल से पाला है
पल भर को मेरी आँख लगी, कोई ख़्वाब का लश्कर लूटे है
सोच लिया था तेरे नाम की, सारी निशानी मिटा देंगे
पर दिल के पत्थर पर आकर, तेरी याद के खंज़र टूटे हैं
झीनी सी वो ख़ामोशी 'अदा', और पाँव से लिपटी तन्हाई
मुझे गुमसुम से कुछ राह मिले, पर जाने क्यूँ वो रूठे हैं
फिल्म : अभिलाषा
संगीतकार : राहुल देव बर्मन.
गीतकार : मजरूह सुल्तानपुरी
आवाज़ : लता
लेकिन यहाँ ...स्वप्न मंजूषा 'अदा'
वादियाँ मेरा दामन रास्ते मेरी बाहें
जाओ मेरे सिवा तुम कहाँ जाओगे
वादियाँ मेरा दामन ...
जब हँसेगी कली रंग वाली कोई 2
और झुक जायेगी तुमपे डाली कोई
सर झुकाए हुए तुम मुझे पाओगे
वादियाँ मेरा दामन रास्ते मेरी बाहें
जाओ मेरे सिवा तुम कहाँ जाओगे
वादियाँ मेरा दामन ...
चल रहे जहाँ इस नज़र से परे २
वो डगर तो गुज़रती है दिल से मेरे
डगमगाते हुए तुम यही आओगे
वादियाँ मेरा दामन रास्ते मेरी बाहें
जाओ मेरे सिवा तुम कहाँ जाओगे
वादियाँ मेरा दामन ...
सुंदर शेर और प्यारी आवाज ।
ReplyDelete12वीं मेँ साथ पढ़ने वाली को याद दिला दिया आज आपने ।
ReplyDeleteशिकवों का दस्तूर नहीं ना है गिलों का कोई रिवाज़
ReplyDeleteनेह की वो सारी कोंपल बस कागज़ के गुल-बूटे हैं
....
सोच लिया था तेरे नाम के सारी निशानी मिटा देंगे
पर दिल के पत्थर पर आकर तेरी याद के खंज़र टूटे हैं
........
बहुत गहरे भाव हैं या कहें घाव हैं
मान गए आपको
और हाँ गीत बहुत सुन्दर लगा
कमाल की ग़ज़ल है और चित्र मुझे लगा कोई पेंटिंग है.. गाना नहीं सुन पाया अभी.. पर ये तस्वीर क्यों जला दी इतनी अच्छी??? :P
ReplyDeleteकमाल की ग़ज़ल है और चित्र मुझे लगा कोई पेंटिंग है.. गाना नहीं सुना पाया अभी.. पर ये तस्वीर क्यों जला दी इतनी अच्छी???
ReplyDeleteसुन्दर।
ReplyDeleteबेहतरीन गज़ल..बहुत साल बीते ट्यूलिप फेस्टीवल देखे.
ReplyDeleteअगले साल देखेंगे अब!! :)
फोटो में आग? और इतना उम्दा गीत!
बहुत सुरीला गीत सुनाया ।
ReplyDeleteटुलिप गार्डन देखकर दिल बाग़ बाग़ हो गया ।
लेकिन ------
समझ नहीं आया ।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति। बधाई, आभार।
ReplyDeletesabhi kuchh shaandaar ji....
ReplyDeletekunwar ji,
शिकवों का दस्तूर नहीं ना है गिलों का कोई रिवाज़
ReplyDeleteनेह की वो सारी कोंपल बस कागज़ के गुल-बूटे हैं
खूबसूरत गज़ल...
बहुत सुंदर जी
ReplyDeleteअगर टुलिप गार्डन देखना हो तो होलेंड मै देखे
ReplyDeleteटूलिप फेस्टिवल से आपकी सदा आई है....कहीं नहीं जाना हमें
ReplyDeleteवाह ट्यूलिप फ़ेस्टिवल की तस्वीर तो ऐसी है जैसे कोई पोस्टर हो!! बहुत सुन्दर.
ReplyDeleteये क्या है, अदा जी?
ReplyDeletehnm...
ReplyDeletesunder aawaz...
bahut sundar fhoto aur gjal.
ReplyDeleteबेहतरीन गज़ल
ReplyDeleteबढ़िया छायांकनके साथ आपके गीत और रचना अच्छी लगी!
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteइसे ०४7.0७.10 की चर्चा मंच (सुबह 06 बजे) में शामिल किया गया है।
http://charchamanch.blogspot.com/
बहुत सुन्दर गज़ल है. पर इस दर्द भरी गज़ल पर वाह तो नहीं कह सकती. बहुत से नए नए शब्दों का प्रयोग है..और ये किसको सेंटी किया जा रहा है भाई अपनी तस्वीर जला कर ???
ReplyDeleteमेरी उस फोटो से लोगों को कोई confusion हो गया है...दरअसल मैं Photofunia software में कुछ try कर रही थी ...मुझे ये कुछ अच्छा सा लगा इसलिए डाल दिया ...लेकिन बात कुछ उलटी-पलटी हो गई...
ReplyDeleteसोच लिया था तेरे नाम के सारी निशानी मिटा देंगे
ReplyDeleteपर दिल के पत्थर पर आकर तेरी याद के खंज़र टूटे हैं
कल जो टूटे थे रिश्ते आज वो लगते झूठे हैं
ReplyDeleteप्रीत डगर के काँटों से मेरे पाँव के छाले फूटे हैं ..
--- अदा जी , शब्दशः कह रहा हूँ , शब्दशः मानियेगा भी , कल
और आज के बीच रिश्ते और झूँठ के अर्थ को जिया हूँ ! साक्षात्कृत
हुआ हूँ ! साक्षी हुआ हूँ ! भोक्ता हुआ हूँ ! और अंततः मुक्त भी हुआ हूँ !
कहते हैं न कि कविता लिख जाने के बाद पाठक की - सी हो जाती है !
गाना हर बार की तरह अच्छा रहा .. स्वदेश आइये , आपका यह
प्रशंसक रिकार्डर और कुछ लोकगीत लेकर स्वागत करने का कष्ट(?)
देने से नहीं चूकेगा !
आभार .
@
ReplyDeleteकई रतजगे काटे हैं हर ख़्वाब को दिल से पाला है पल भर को मेरी आँख लगी कोई ख़्वाब का लश्कर लूटे है
क्या बात है !
संशोधन प्रस्ताव *आदत से मज़बूर*
नेह की वो सारी कोंपल - एकवचन
कागज़ के गुल-बूटे हैं - बहुवचन
तेरे नाम के सारी निशानी - के की ज़गह की
अंतिम शेर ऐसा हो तो प्रवाह सुधर जाता है:
झीनी सी खामोश अदा और पाँव से लिपटी तनहाई
गुमसुम से कुछ राह मिले पर जाने क्यूँ रूठे हैं।
गहराई लिये कविता ।
ReplyDeleteसोच लिया था तेरे नाम की सारी निशानी मिटा देंगे
ReplyDeleteपर दिल के पत्थर पर आकर तेरी याद के खंज़र टूटे हैं
झीनी सी वो ख़ामोशी 'अदा' और पाँव से लिपटी तन्हाई
मुझे गुमसुम से कुछ राह मिले पर जाने क्यूँ रूठे हैं
शिकवों का दस्तूर नहीं ना है गिलों का कोई रिवाज़
नेह की वो सारी कोंपल बस कागज़ के गुल-बूटे हैं
laazvaab ,aap bahut sundar likhti hai ,man ko chhoo gayi har baat .
सोच लिया था तेरे नाम की सारी निशानी मिटा देंगे
ReplyDeleteपर दिल के पत्थर पर आकर तेरी याद के खंज़र टूटे हैं
bahut jyada khubsurat likha hai aapne..bahut badhiya
बेवजह तारीफ़ करना अपनी आदत तो नहीं,
ReplyDeleteलेकिन आपकी शोखियों के ये नए अंदाज़ है,
आपकी आंखों में कुछ महके हुए से खाब हैं...
जय हिंद...