Friday, January 1, 2010
एक चिट्ठी अलबेला जी के नाम...
आदरणीय अलबेला जी कि पोस्ट यहाँ पढ़ें ,http://albelakhari.blogspot.com/2009/12/blog-post_8281.html#comments
आदरणीय अलबेला जी,
आप कलम के धनी व्यक्ति हैं...आपकी कई रचनाएँ तारीफ के काबिल रही हैं...
हम सबके ह्रदय में आपके प्रति अपार सम्मान है...
आपको कलम की ताकत का भी भरपूर भान है और शायद यही वजह है की आपने यह रचना रच डाली...
कलम की मार तलवार की मार से भी गहरी होती है....
आपकी इस रचना ने कई लोगों को मारा है.....एक उसे जिसे आपने निशाना बनाया....दूसरा आपको और तीसरी हम जैसी कई महिला ब्लोग्गर को....
शायद आपने भी देखा होगा...की हम महिलाएं अब बहुत कम आती हैं आपके ब्लॉग पर....आना चाहकर भी नहीं आ पातीं हैं.....शायद आपको कोई फर्क नहीं पड़ता होगा ...लेकिन मुझे पड़ता है...मैंने शुरू से आपको अपना बड़ा भाई माना है...कई बार आपसे कह भी चुकी हूँ...लेकिन एक छोटी बहन कैसे आ सकती आपके ब्लॉग पर...मुझे आप बता दीजिये...??
अब स्तिथि ऐसी हो गयी है कि ब्लॉग्गिंग से विरक्ति सी हो रही है....सोचा था कि देश-विदेश के विद्वानों से कुछ सीखने को मिलेगा...कुछ हम अपनी कहेंगे कुछ उनकी सुनेगे...लेकिन सब गुड गोबर लग रहा है...
मेरे बेटे कि उम्र का मिथिलेश यौन संबंधों कि बात करता है....और आप लोग उसे रोकने कि बजाय ..उसको प्रोत्साहित करते हैं.....
अब हालत ये हो रही है की अपने बच्चों तक को ब्लॉग दिखाते हुए डर लगता है....पता नहीं कब कहाँ क्या नज़र आ जाए..और कोई कह ही दे की तुम तो बहुत तारीफ करती हो सबकी देखो क्या लिखते हैं तुम्हारे बड़े भाई...छोटे भाई...
हो सकता है आप सब लोग सच कह रहे होंगे...लेकिन इतना वीभत्स और इतनी अमर्यादित भाषा कौन झेल पायेगा...??
विरोध करने में भी शालीनता तो होनी ही चाहिए.....किसी एक की मूर्खता के कारण सब को शर्मिंदा करना कहाँ का न्याय है....!!
मैं स्वयं 'उनकी' कोपभाजन बन चुकी हूँ....और विरोध भी कर चुकी हूँ लेकिन शालीनता के दायरे में रह कर.....
आज पहली जनवरी है ..मुझे खुश होना चाहिए लेकिन चाह कर भी नहीं हो पा रही हूँ.....
बता दीजिये आप सब लोग क्या मैं गलत हूँ ??
Labels:
एक चिट्ठी अलबेला जी के नाम...
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
कभी कभी न चाहते हुए भी ऐसा हो जाता है कि हम दूसरे के प्रभाव में बह जाते हैं और उसी के लहजे में जवाब देने पर उतारू हो जाते हैं। वैसे तो भाई अलबेलाजी का सेंस आफ़ ह्यूमर ज़बरदस्त है ही तो उन्होंने कुछ अधिक ही इसका लाभ उठाया। वैसे, अब वे भी महसूस कर रहे होंगे कि सभी ब्लागर्स की राय क्या है। अब आप अपना मूड ठीक कीजिए और लग जाइये अपनी रचनाधर्मिता पर। नववर्ष की शुभकामनाएं॥
ReplyDeleteदीदी चरण स्पर्श
ReplyDeleteअच्छा लगा आपको देखकर कि आपने ऐसे मुद्दे को सामने रखा । मुझे नहीं लगता कि अलबेला जी की ऐसी कोई चाहत होगी कि उनके इस कविता से कोई आहत हो । मैं सच बातऊं मुझे समझ नहीं आया कि उनकी इस कविता को लेकर इतना बवाल क्यों है । हाँ मैं इस बात से इनंकार नहीं करता कि कुछ पोस्टे उनकी व्यस्क टाईप की थी , परन्तु इसे कहना जरा मुश्किल हैं। आपकी चिन्ता बिल्कुल जायज है ।
रही मेरी बात तो मेरी हमेशा से यही कोशिश रहती है कि कोई अपना मुझसे ना रुठे , और ना ही मैंने कभी ये चाहा कि कोई मेरे लेख से आहत हो या दुःखी हो । माफी चाहूँगा कि मैंने आप का दिल दुखाया , साथ ही हो सकता और बहुतो का , शायद इतनी कम ऊम्र में ऐसे लेख नहीं लिखने चाहिए , वो भी जहाँ माँ , बड़ी दीदी और बड़े भाई हों । एक बार फिर से सभी से माफी चाहता हूँ , और साथ ही मै अपने इस लेख " जब टिप्पणी मात्र से यौनिक उत्पीड़न हो सकता है तो यौनिक सम्बन्ध क्यों नहीं , ब्लोगर द्वारा नई खोज" को अपने ब्लोग से डिलीट कर रहा हूँ। क्षमा याचना
baihtar hae kii is post ko aaap bhi turanr delet kar den.
ReplyDeleteअलबेला जी की पोस्टो के शीर्षक कभी कभी हद से पार हो जाते है . लेकिन लोग पढते है और वह लिखते है . और जो बाज़ार मे बिकता है वह बेच रहे है .
ReplyDeleteअदा जी..जानती हूँ आप बहुत आहत है लेकिन कहीं न कहीं आप भी इस सिलसिले को आगे ही बढ़ा रही है ये पोस्ट डालकर...
ReplyDeleteबहुत से लोग (शायद उनमें से एक मैं भी हो सकती हूँ)आजकल ऐसा लिख और टिप्पणी कर रहे है जिससे बहुत से लोगो का दिल दुखा है।
जो हुआ सो हुआ.. आइये इस नए साल में सब भूलकर एक दूसरे को माफ करे और आगे इस तरह की बातें न हो ये मिलकर कोशिश करे।
शुभकामनाएँ....
आप की संवेदनशीलता छू गई। कुछ बातों की उपेक्षा ही ठीक होती है लेकिन हम कर नहीं पाते - चेतना जाग उठती है। कहीं तो विराम देना ही होगा - ब्लॉग जैसे त्वरित और मुक्त माध्यम पर रचयिता और पाठक के पास बस एक नैतिक जोर ही है और कुछ नहीं।
ReplyDeleteगन्दगी तो हर जगह है लेकिन हम तो साफ चल ही सकते हैं।
मुझे याद आता है कि वर्ड प्रेस पर मैंने एक ब्लॉग ब्लॉक करवाया था। परिस्थितियाँ दु:खदायी हो जाती हैं - हम पड़ते हैं, घिरते हैं और निकल कर पुन: चल पड़ते हैं। अधिक नहीं लिख पा रहा सम्भवत: पूरे प्रकरण से कहीं अभी तक...
छोड़िए, आज मेरे गद्य ब्लॉग की अतिथि पोस्ट पढ़िए और देखिए मेरे पद्य ब्लॉग पर गद्य ने क्या गुल खिलाया है !
आप को बहलाने की कोशिश कर रहा हूँ। आप समझ भी गई होंगीं लेकिन फिर भी ....
अच्छा बताइए अगली ग़जल कब पोस्ट कर रही हैं? देखिए, मोबाइल से नेट जोड़ कर टिप्पणी करना एक लक्जरी है लेकिन फिर भी...
शायद आप समझ गई होंगीं।
हम तो आपके लेख और अन्य रचनाएं पढ़ना चाहते हैं। कृपया इस तरह के निर्णय न ही लें। आपको नव वर्ष 2010 की हार्दिक शुभकामनाएं।
ReplyDeleteकभी-कभी गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर की पंक्तियां काफी प्रेरित कर जाती हैं ... जोदी केउ तुम्हार डाक शुने ना आशे तबे एकला चोलो रे।
आपका बहुत आभार अदाजी ,
ReplyDeleteयदि आज आप ये पोस्ट नहीं लिखती तो कल सुबह मुझे यह सब लिखना ही पड़ता ...
मुझे आश्चर्य होता है कि महिला ब्लोगर्स को माँ और बहन बोलने वाले भाई और बेटे इतने असभ्य शब्दों का प्रयोग कैसे कर सकते हैं ...इनके द्वारा प्रयोग की गयी असभ्य भाषा क्या उन तमाम महिला ब्लोगर्स के मुंह पर तमाचा नहीं है जो इनसे माँ और बहन की तरह स्नेह रखती हैं या फिर मां और दीदी इनके लिए ये सिर्फ शब्द है ..भावनाओं से कोई मतलबही नहीं है ...
क्या ये लोग यह चाहते हैं की सभ्य परिवारों से आई भद्र महिलाएं हिंदी ब्लॉग्गिंग को हाथ जोड़ ले और ब्लोगिंग को इनका कुरुक्षेत्र बना रहने दे ....
माँ की उम्र की महिला के लिए इतने असम्मानजनक शब्दों का उपयोग बहुत ही शर्मनाक है ...
रचनाजी से असहमति हमारी भी है लेकिन विरोध प्रदर्शित करने का तरीका सभ्य और मर्यादित होना चाहिए ...!!
अदा जी,
ReplyDeleteये अलबेला क्या है...????
ब्लॉग..
पोस्ट..
कमेन्ट....
क्या है अलबेला......?????
क्या है जिस का आपने जिक्र किया हुआ है अपनी पोस्ट पर.....?????
अदा जी,
ReplyDeleteपिछले दिनों नेट से चाहे अनचाहे थोडी सी दूरी बनी और देखा कि बहुत कुछ चल रहा है और जैसा कि आपने कहा कि उसे किसी भी सूरत में सु्खद नहीं कहा जा सकता , न ही किसी ब्लोग्गर के लिए न ही हिंदी ब्लोग्गिंग के लिए । मैं किसी भी प्रष्ठभूमि में नहीं जाना चाहता , मगर अब जबकि पिछला साल बीत रहा है तो ऐसे में सिर्फ़ यही कामना कर सकता हूं कि इस घटना और ऐसी किसी भी घटना को दोहराया न जाए तो बेहतर है
इस नए साल पर आपको, आपके परिवार एवं ब्लोग परिवार के हर सदस्य को बहुत बहुत बधाई और शभकामनाएं । इश्वर करे इस वर्ष सबके सारे सपने पूरे हों और हमारा हिंदी ब्लोग जगत नई ऊंचाईयों को छुए ॥
अदा जी,
ReplyDeleteअच्छा लगा आपने असहमति जताई ...अरविन्द जी और रचना जी दोनों ही मेरे मित्र है और मैं दोनों से सहमत -असहमत होती रही हूँ ..विवाद हुए हैं संवाद भी हुए हैं...पर इस तथाकथित कविता में जो भी लिखा गया उसका मुझे उतना दुःख नही हुआ जितना की उन्हें उत्साहित करने वाली टिप्पनिओं में अपने मित्रों का नाम देखकर हुआ .....दूसरी बात जब आपके ब्लॉग पर कोई टिप्पणी कर रहा है जिसमे किसी को अपशब्द कहे जा रहे हैं, और आप उसे प्रकाशित कर रहे हैं तब इसकी आपसे सहमती ही जाहिर होती है माना जा सकता है की वो अपशब्द उन्होंने नही बल्कि आपने कहे हैं..मुझे इन सब का बेहद अफ़सोस और दुःख है...आपकी पहल के लिए आपको धन्यवाद.
मुझे लगता हैं हम अनावश्यक जजमेंटल हो रहे हैं ....
ReplyDeleteएक-एक शब्द मेरे हैं ....न जाने कैसे आपके जहन तक जा पहुंचे ! दिल चाहता है इस पोस्ट को फ्रेम करके रख लूँ !
ReplyDeleteआशा है दिल की गहराईयों से निकले ये शब्द अपनी मंजिल तक अवश्य पहुंचेंगे !
=========================
प्रेम हो, प्रीत हो इस नये वर्ष में
सत्य की जीत हो इस नये वर्ष में
सुर से सुर मिल बने एक ही रागिनी
ऐसा संगीत हो इस नये वर्ष में
=========================
★☆★☆★☆★☆★☆★☆★☆★☆★☆★
Happy New Year 2010
★☆★☆★☆★☆★☆★☆★☆★☆★☆★
.
ReplyDelete.
.
आदरणीय अदा जी,
चलिये देर से ही सही, विरोध के स्वर तो उठे, यही क्या कम राहत की बात है।
समर शेष है , नहीं पाप का भागी केवल व्याध्र,
जो यहाँ तटस्थ(या मौन)थे, समय लिखेगा, उनका भी अपराध।
नववर्ष की शुभकामनाएं॥
आभार!
अदा ,शुक्रिया इस पोस्ट के लिए...मेरी समझ में नहीं आ रहा था...आखिर विरोध जताऊं भी तो कैसे...उस कविता की भाषा ऐसी थी कि एक मिनट भी उस पेज पर रुकना मुहाल था,कमेन्ट लिखने
ReplyDeleteको भी नहीं..और तटस्थ रहना भी सही नहीं.,थैंक्स एक मौका दिया तुमने,अपनी बाट कहने का ... ऐसी भाषा का प्रयोग हर हाल में घोर निंदनीय है.
@ कथित कवि महोदय--रचना जी से असहमति किसी को भी हो सकती थी.और उनका कमेन्ट गैर जरूरी लग सकता था.पर लेख और उस पर कथित अशालीन टिप्पणियों और बाद में कवि महाशय द्वारा बिना नाम लिए अभिव्यक्ति और काव्यात्मक सृजन के नाम पर जो कुछ व्यक्तिश लिखा गया है उसे नीचता के अतिरिक्त कुछ भी नहीं कहा जा सकता है.आप नारी जाति को आहत कर अभिव्यक्ति के नाम पर मर्यादाओं की सभी सीमाएं तोड़े जा रहे हो हम शालीनता के नाम पर सब सुनते रहे.ब्लॉग पर आप इस हद तक गिर कर इतना कह दे कि शायद आपको जन्म देने वाली माँ भी अफ़सोस करने लगे.और फिर कह दे कि मैंने किसी का नाम नहीं लिया था.तो मुझे यह सब नहीं सहना है.ट्रकों के ड्राइवर खलासी भी किसी औरत के सामने गाली नहीं निकालते है और आप औरत को गालियाँ कविता में लिख कर कालिदास महाकवि बनना चाहते है.आपकी गंदगी हमें बर्दाश्त नहीं है.आपके लिए एक ही शब्द है -शर्म करो!
ReplyDeleteअभी अभी लिंक देखा तो गए उस...लिंक तक...
ReplyDeleteअब सभी ने उन्हें कवि ..लेखक मान ही लिया है तो और क्या लिखेंगे वो....???
गलती किसकी है इसमें....?????
ये आप सब को पहले ही देखना सोचना चाहिए के ............
जाने दीजिये...कोई कोई ही समझ सकता है....जो हमें कहना है....
Jo bit gaya so bat gai, filhal...
ReplyDeleteनया साल...नया जोश...नई सोच...नई उमंग...नए सपने...आइये इसी सदभावना से नए साल का स्वागत करें !!! नव वर्ष-2010 की ढेरों मुबारकवाद !!!
आदरणीय अदा दी
ReplyDeleteआपकी मनस्थिति और व्यथा समझ सकता हूँ..पिछले कुछ महीनों के अनुभव से यह जाना है हिंदी चिट्ठाकारी अभी एक परिपक्व दशा मे नही पहुँची है..जहाँ कई लोग सिर्फ़ टिप्पणी, प्रसिध्दि या रैंक लेने के लिये सस्ते हथकंडे अपनाने से नही चूकते...और अभी भी हम अक्सर छिछली और बचका्नी हरकतों के द्वारा एक-दूसरे के व्यक्तिगत जीवन पर कीचड़ फेंकने मे व्यस्त रहते हैं..और इस तरह कई संजीदा और गंभीर ब्लॉगर या पाठकों के हिंदीब्लॉगिंग से विरक्त होने के जिम्मेदार भी बनते हैं..जो इंटर्नेट पर भारतीय भाषाओं के भविष्य के लिये एक अपशकुन है!!!
यह देखते हुए कि इंग्लिश आदि अन्य भाषा संबंधी ब्लॉगों मे भी तमाम विवादों के बावजूद कितने क्वालिटी कंटेंट्स आ रहे हैं..हिंदी ब्लॉगिंग का यह माहौल और विषय-दरिद्रता क्षुब्ध करती है..मैं भी पहले अपनी अल्पबुद्धि के आधार पर विज्ञान व सामाजिक विषयों पर एक ब्लॉग शुरू करने के लिये सोच रहा था..मगर यहा का माहौल देख कर विचार स्थगित करना पड़ा !!
प्रकारांतर से ब्लॉग जगत का यह स्तर हमारे ही समाज के मानसिक स्तर का आईना बनता जा रहा है..मगर तटस्थ रहने से काम नही चलने वाला..हम लोगों को अपनी रचनात्मकता को धार्मिक,लैंगिक या व्यक्तिगत आक्षेपों की बजाय सकारात्मकता और सामूहिक हित की बातों की तरफ़ मोड़ना होगा..
उम्मीद करता हूँ कि ब्लॉगिंग से जुड़े उन विद्वान लोगों को सदबुद्धि आयेगी..और इस नये वर्ष का ब्लॉगिंग मे पिछले वर्ष के जैसी हताशा से अंत नही होगा..
इसी एक आशा और आपकी सकारात्मकता मे विश्वास के साथ आपको सपरिवार नये वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं प्रेषित करता हूँ..
अदाजी
ReplyDeleteहम सब महिला ब्लागर के मन कि bat ko bhut hi achhe tareeke se aapne स्प्ष्ट किया है मै आपका बहूत बहूत आभार मानती हूँ |सचऔर ये तो ये है कि नये साल में यह सब कुछ पढ़कर मन खिन्न हो गया |हमने तो इस माध्यम के जरिये अपना परिवार ही पाया था कितु जब परिवार के लोग ही अपनी सीमाए तोड़ रहे है तो विचारो कि अभिव्यक्ति कैसे संभव होगी ?
नव वर्ष कि बधाई |
albela ji bhale insaan hai. josh me kabhi-kabhi ve atee bhi kar dete hai. lekin adaa ji kee apeel ka asar hoga aur alabela ji vayask kism kee kavitao ka ab nahi layenge, aisa vishvaas hai. ve samajhdaar hai. bura bhi nahi manenge, itana mai janataa hoo. aur bhala ho us blogar ka jis par aapne narajagee jahir ki, air usane post hi hataa dee. yanee abhi bhi logo me insaaniyat hai.
ReplyDeleteअलबेला जी वास्तव में बहुत अच्छे कवी हैं...
ReplyDeleteपर उनकी इस प्रकार की और अन्य भी कई प्रकार की कविताओं पर मुझे दुःख होता है...
ब्लॉग उनका है, लेखनी उनकी वो जो चाहें लिख सकते हैं, उनका अधिकार है...
लेकिन उनका एक पाठक होने के नाते मेरी एक अर्जी अवश्य है की इसके साथ-साथ वे स्वयं ही सैदव पौष्टिक लिखे, यह उन्हें सुनिश्चित करना ही होगा...
भाषा पर मुहं ना बिचकाया जाए तो क्या गलत लिखा है? खुद हर वाक्य में उस शब्द विशेष का चार बार प्रयोग करो, कोई दूसरा करे तो आपत्ति!!
ReplyDeleteलेकिन जब कहा जाता है कि
कहीं स्वाइन फ़्लू जैसा रोग है
कहीं आँगन में पसरा सोग है
कहीं ठण्ड के मारे हड्डियाँ चटक रही हैं
कहीं भूखी बुढ़िया भिक्षा को भटक रही हैं
लेकिन तुम्हें दिखाई नहीं देता
रुदन किसी का सुनाई नहीं देता
देखो ज़रा..........
जग हर्ष मना रहा है
नव वर्ष मना रहा है
और तुम ?
हाँ हाँ तुम !
अपने आपको
भाषा की ज़ंजीरों में जकड़ कर बैठी हो
पुलिंग और स्त्रीलिंग के झगड़े में क्या सार है ?
मेरी आँखों से देख ! इसके अलावा भी संसार है
तो यह यथार्थ नज़र क्यों नहीं आता किसी को? इन पंक्तियों पर कोई मनन नहीं और सिर्फ एक शब्द के दोहराव पर हाय तोबा क्यों?
महिलाएँ कहती हैं कि सोचिए हमें यह देख कर कैसा लगता होगा? कैसा लगता है जब मंदिर में शीश नवाया जाता है? मंदिर में हम जाते हैं तो हमारी भावना सर झुकाती है उसके सामने। कहीं लिखा दिख जाए तो शर्म आती है!!
जब कोई मंदिर में जाता है तो कभी भी मन में वो बात आती ही नहीं है
क्यों? क्या आप बता सकते हैं?
क्योंकि वह मंदिर है। वहाँ उस कुत्सित नज़रिए से सोचा न समझा जाता। वही चीज अगर किसी किताब में हो तो गड़बड़!! कविता में हो तो हाहाकार?
खुद दसियों बार स्त्रीलिंग पुल्लिंग, स्त्रीलिंग पुल्लिंग, स्त्रीलिंग पुल्लिंग, स्त्रीलिंग पुल्लिंग कहा तब नहीं बुरा लगा लोगों को !! उसी शब्द से स्त्री पुरुष को निकाल दिया जाए, कोई जेंडर बायस नहीं तो? हर हिंदी आवेदन पत्र में यह अलग से लिखा रहता है शब्द, तब तो कोई कुछ नहीं बोलता। हटवा दें वहां से वह शब्द!!
जेंडर बायस!! लिखने-पढ़ने में तो बहुत अच्छा लगता है इसे हिन्दी में तो लिखिए!!
कविता के भाव समझे जाते हैं, शब्द का प्रयोग नहीं देखा जाता
सारा मामला नज़रिए का है, वह ठीक तो सब ठीक्। मानसिकता कुत्सित तो हर शब्द अश्लीलता की हद पार करता दिखे।
लेखक की मां-पुत्री-बहन को अपना लिखा दिखाने की चुनौती देने वाले यह तो बताएं कि खुद क्या अपने बाप-भाई से एप्रूव करवा कर लिखते हैं ब्लॉग पोस्ट?
या फिर यही बता दें कि बाप-भाई-पुत्र-पति हैं या नहीं
Alebela ji, ko aisa nahi likhna chahiye tha.
ReplyDeleteपाबला जी,
ReplyDeleteमैंने आपसे कल भी कहा था कि मुझे भी विरोध में आप शामिल समझें लेकिन विरोध करने के तरीके पर नहीं....आपने मंदिर के शिवलिंग की बात कि है तो बता दूँ....यह सही है कि वो मंदिर है इसलिए ऐसे विचार कभी नहीं आते ...सच पूछिए तो कभी आये ही नहीं...आज आपने याद दिलाया तो याद आया है...लेकिन अलबेला जी की कविता का शीर्षक 'लिंग पकड़ कर बैठी हो' पढ़ते साथ ही मेरे मन में 'वही' विचार आया जो मैं कह रही हूँ और आप समझ रहे हैं...अब आप इसे मेरा कुत्सित विचार कहना चाहते हैं तो कह लीजिये....लेकिन बात मुझे 'वही' समझ आई जो मैंने लिखी है ...मैं किसी भी तरह से आपको यह नहीं कहने वाली की उस शीर्षक को पढ़ कर मुझे शिव मंदिर का शिवलिंग याद आया...या फिर बहुत पवित्र विचार आये हैं....
और हाँ..मैंने कभी भी अपने घरवालों से अपना कोई भी आलेख अप्रूव नहीं कराया है.....क्यूंकि इसकी ज़रुरत नहीं पड़ी...इतनी संवेदनशीलता अभी है मुझमें कि मैं स्वयं सोच सकूँ की मुझे क्या लिखना और छापना चाहिए.....अभी तक मैंने २०० से ऊपर पोस्ट्स लिखीं हैं सभी आपके समक्ष हैं आप पढ़ लीजिये और एक भी बता दीजिये....जिसे आप अपने बच्चों के साथ नहीं पढ़ सकते हैं....मैं ऐसी किसी भी कृति में विश्वास नहीं रखती जिसे मैं स्वयं या अपने परिवार के साथ न बाँट सकूँ....
जिस तरह आप सबने एक व्यक्ति विशेष के प्रति अपना विरोध दर्ज कराया है....वो ठीक है....लेकिन अपमानित करना ठीक नहीं.....और पूरे महिला समुदाय कि भावनाओं को दरकिनार करते हुए कदन उठाना तो बिलकुल भी सही बात नहीं है.....एक महिला होने के नाते मुझे भी ठेस पहुंची है...और विरोध दर्ज करना मेरा भी अधिकार है...
एक ही डंडे से हर किसी को हाँकना अब लोगों को बंद करना होगा.......ऐसी कोई भी बात ज़बरदस्ती सब पर लागू करना छोड़ना होगा..
नए वर्ष में सबकी बात मैं नहीं कर सकती लेकिन मैं अपनी तरफ से सौहाद्र का वातावरण बनाये रखने कि पूरी चेष्टा करुँगी....यह मेरा वादा है.....!!
इसी बात पर मैं यह भी दर्ज करना चाहती हूँ कि मुझे कोई भी ''ब्लागर" के आलावा किसी भी नाम से कभी भी संबोधित करने कि चेष्टा न करे..... मैं सिर्फ और सिर्फ 'ब्लागर' हूँ.....पूर्णविराम...!!
आप सभी आये इस पोस्ट पर और अपने अमूल्य विचारों से अवगत कराया ...ह्रदय से आभारी हूँ....
अलबेला जी के प्रति मेरे मन में सम्मान में कोई कमी नहीं आई है...बस कुछ बातें जो बहुत दिनों से कहना चाहती थी कह दिया है...आशा है..उनका स्नेह मुझ पर बना रहेगा...
पाबला जी ...आपका भी स्नेह कम नहीं होगा मुझे पूरा विश्वास है.....आपने अपनी बात कही मैंने अपनी....बस...
@मनु जी,
ReplyDeleteये आप सब को पहले ही देखना सोचना चाहिए के ............
तो आप क्या कर रहे थे...??
क्या आप इस ब्लॉग जगत का हिस्सा नहीं है...??
दूसरी बात ...हिंदी ब्लॉग जगत में हर लिखने वाला परफेक्ट कवि या साहित्यकार नहीं हो सकता ...हम सभी आत्माभिव्यक्ति कर रहे हैं.....मैं भी आप भी...कोई ये नहीं कह सकता कि मैं इस विधा का चैपियन हूँ इस लिए मैं जो कह रहा हूँ वही सही है...
किसी के लेखन विधा पर कुछ कहने के योग्य न मैं हूँ न आप ...हाँ हम किसी रचना के कंटेंट पर आपत्ति करने का कुछ अधिकार रखते हैं...
प्रिय अपूर्व,
ReplyDeleteतुम्हारी कुछ बातों से मैं सहमत हूँ,
शुरू से मैं भी यही देख रही हूँ...कि बस कुछ गुट बने हुए हैं और अपने गुट के लोगों को ही बढ़ावा देते रहते हैं चाहे उनके लेखन में कोई दम हो या नहीं हो...मैं बस नाम नहीं लेना चाहती हूँ....वर्ना टिपण्णी से साफ़ साफ़ पता चल जाता है....अगर एक गुट के व्यक्ति ने टिपण्णी कि है तो दूसरा गुट वहां नहीं आता टिपण्णी करने फिर चाहे वो रचना कितनी भी सार्थक क्यों न हो.....जब मैंने लिखना शुरू किया था मुझे बहुत कम लोगों से मार्गदर्शन मिला.... जिसमें से 'समीर जी' और 'अलबेला जी ' थे....बाकि ने हमेशा मुझसे कन्नी कटा कर रखा .....
लेकिन यह बात बिलकुल सही कह रहे हो...अभी भी यदा-कदा मुझ पर व्यक्तिगत कटाक्ष सुनने को मिल जाते हैं....परन्तु मैंने इन मठाधीशों की कभी परवाह नहीं की....
आज भी मेरे ब्लॉग से मुझे तकरीबन ८ टिपण्णी reject पड़ी क्यूंकि वो सभी तिपन्नियाँ और कुछ नहीं बेहूदा व्यक्तिगत आक्षेप थे जिनका इस आलेख से कुछ भी लेना देना नहीं था.....बस लोग मौके कि तलाश में रहते हैं ...अपना frustration निकालने के लिए....यह बहुत बड़ा कारण है कि मुझे आज फिर moderation लगाना पड़ा...
उम्मीद करती हूँ की आने वाले समय में सार्थक लेखन को पहचान और सम्मान मिलेगा ....
अदा दी..
@गिरिजेश जी,
ReplyDeleteआज मन बड़ा आहत हुआ...
और सच पूछिए तो बस आपकी बातों से ही ज़रा सा मुस्कुरा पाई हूँ ..
वर्ना आज लोगों ने वाट लगाने में कोई कसार नहीं रखी थी...:):)
वैसे सच कहूँ तो आज तक मुझे 'वाट' क्या है ये पता ही नहीं है....बोल देती हूँ ..फिर डर जाती हूँ....कहीं कोई ऐसी वैसी चीज़ तो नहीं....!!!
@वाणी,
सच ! तू है तो फिर क्या ग़म है...!!!
वैसे मैंने एक वाक्य में अपनी बात कह दी थी की हम दूसरों के कृत्य पर जजमेंटल न बना करें ,
ReplyDeleteमगर पाबला जी ने जो कहा उसे शब्दशः मेरी भी अभिव्यक्ति मानी जाय -भाषा की तीन शक्तिओं -
अभिधा ,लक्षणा और व्यंजना मतलब शब्द के सीधे अर्थ और व्यंजित अर्थ में कवि अक्सर व्यंजित अर्थबोध को चुनता है -मैंने उसी अर्थ से कविता पढी थी और अकस्मात मुंह से निकल पड़ा था जबरदस्त....
वह किसी एक व्यक्ति विशेष को लेकर लक्षित नहीं थी ....अलबेला जी की अन्य कृतियाँ ज्यादा भौंडी और विकृतियाँ ले लेती हैं और उन पर मेरी भी सहमति नहीं रहती मगर मैं चुप लगा लेता हूँ क्योंकि वे एक उदित कवि हैं .
लिंग का मतलब अनिवार्यतः पुरुष अंग नहीं होता ...उस कविता का श्लेष ज्यादा ग्राह्य था ...
मैं अब तक यही सीख रहा हूँ - यद्सारभूतम तदोपासनीयम !
@अरविन्द जी,
ReplyDeleteआपने अपनी बात कह दी है...की हम जजमेंटल हो रहे हैं ..
हम भी कह सकते हैं की आप जजमेंटल हो रहे हैं....
आप भी हमारे बुद्धि विवेक को थोडा सम्मान दें....कम से कम इतना तो मान ही लीजिये की सोचने समझने की कुछ क्षमता हम में भी है....!!
so please ....
let's agree to disagree...
"किसी एक की मूर्खता के कारण सब को शर्मिंदा करना कहाँ का न्याय है....!!"
ReplyDeleteबिल्कुल सही बात है!
आशा है कि इस नववर्ष में सभी साथी किसी भी प्रकार के विवाद को भुला कर सार्थक लेखन करेंगे।
आप और अन्य सभी को नववर्ष की मंगल कामनाएँ!
आप को ओर आप के परिवार को नववर्ष की बहुत बधाई nice
ReplyDeleteऐसी कोई भी बात ज़बरदस्ती सब पर लागू करना छोड़ना होगा
ReplyDeleteकिसी एक की मूर्खता के कारण सब को शर्मिंदा करना कहाँ का न्याय है
मुझे समझ में नही आता कि किसी को सीधे यह आरोपित कैसे किया जा सकता है कि उसके किसी कृत्य ने सब को शर्मिन्दा किया या सब पर लागू किया!
यह तो स्वयं ही ओढ़ने-ओढ़ाने वाली बात हुई
बी एस पाबला
क्या करे , जनाव की जुबान कभी -कभार जरुरात से ज्यादा फिसल जाती है !
ReplyDeleteवहाँ पर मेरी टिपण्णी को अन्यथा न लिया जाए क्योंकि मैंने उस दिन नववर्ष की शुभकामनाये सभी ब्लोगर मित्रो को इसी शब्दावली में दिया !
ReplyDeleteएक बात और कहना चाहूंगा कि कुछ बातो पर दूसरा पक्ष भी आदतन जरुरत से ज्यादा तूल देता है, अब पता नहीं वजह क्या है ? Best way is to ignore!
ReplyDeleteआपकी चिंता जायज है। लेकिन ब्लाग जगत में वैसा ही तो होगा जैसा समाज में हो रहा है। मजे की बात देखिये कि लोग आपकी बात का अपने मन माफ़िक मतलब समझा के जा रहे हैं। किसी का एक शेर याद आ रहा है:
ReplyDeleteमैं सच बोलूंगी हार जाऊंगी,
वो झूठ बोलेगा लाजबाब कर देगा।
@वाह पाबला जी,
ReplyDeleteक्या बात कही आपने ..
मुझे समझ में नही आता कि किसी को सीधे यह आरोपित कैसे किया जा सकता है कि उसके किसी कृत्य ने सब को शर्मिन्दा किया या सब पर लागू किया!
यह तो स्वयं ही ओढ़ने-ओढ़ाने वाली बात हुई
एक बिलियन आबादी वाले भारत देश के दस खिलाड़ी मैच हार कर आ जाते हैं ...तब पूरी एक बिलियन को शर्मिंदा होने की क्या ज़रुरत है ..ये भी तो ओढने-ओढाने की बात हुई...
लेख से तो कोई असहमति थी ही नहीं मगर इन टिप्पणियों ने मेरे अब तक के बहुत से अवलोकन पक्के कर दिए.
ReplyDeleteअदा जी !
ReplyDeleteधन्यवाद ।
हा हा
ReplyDeleteअदा जी,
अगर 10 खिलाड़ियों वाली टीम से आपका तात्पर्य क्रिकेट टीम से है तो यह जान लीजिए कि वह 10 खिलाड़ियों की टीम भारत देश के लिए नहीं खेलती अपने बोर्ड को मुनाफा दिलवाने के लिए खेलती है। और वह खिलाड़ी ठेके, कॉंट्रेक्ट पर रखे जाते हैं जिनका भुगतान किया जाता है उन्हें, मुनाफा लाने पर। हाँ कभी कभी बोनस भी दिया जाता है, जैसा एक कर्मचारी को दिया जाता है। यह बात शपथपत्र देकर खुद खिलाड़ी और बोर्ड, अदालत में कह चुके हैं। तलाशने वाले इस तथ्य की खुद पुष्टि कर लें।
और लोग इन कर्मचारियों के 'हार' जाने पर विलाप करते हैं :-)
और यह भ्रम मत पालिए कि पूरी 1 बिलियन आबादी शर्मिंदा होती है। 1 बिलियन में से कुछ हजार ही मातम मनाते हैं।
अरे जिसके पास अपनी शाम की रोटी का जुगाड़ नहीं, जो अपने खेतों में पसीना बहाते हैं हमारे लिए, जो हमारे मकानों के लिए पत्थर तोड़ते हैं, जो हमारी सीमायों की रक्षा में हैं, जो हमारा जीवन बचाने में हैं उन्हें फुर्सत नहीं किसी किसी कम्पनी के लिए दो-दस करोड़ रूपए ना ला पाने खिलाड़ियों के कथित हार जाने से
यह तो फुरसतियों का काम है
प्रिय अदा...शुभाशीष,
ReplyDeleteआपकी हिम्मत पर हमें गर्व है..... हम सब इस तमाशे को देख रहे हैं ..कुछ पक्ष में जा रहे हैं और कुछ विपक्ष में... हम जैसे लोग इस लिए खामोश हैं कि जानते हैं यहाँ सच सुनने की हिम्मत कम ही लोगों में है । आपने अपने विवेक और व्यक्तित्व के बल पर एक ऐसा स्थान बना लिया है कि आप घर के झगडों को सुलझवा सकती हैं । हमारे घरों में जब भाई, पिता की सम्पत्ति के लिए कोर्ट कचहरी की और दौडने लगते हैं तो बहने ही उन्हें यह याद दिलाती हैं कि इस परिवार की कुछ मान्यताएं भी हैं...आपने उस दायित्व को बखूबी निभाया है । शालीनता चरित्र और लेखन दोनों में ही ज़रूरी है । पता नहीं क्यों टी आर पी के लिए हम इतने निर्लज्ज हो जाते हैं । कुछ लोगों को तो हम कभी नहीं बदल पाएंगे पर मिथिलेश जैसे ऊर्जावान युवाओं को सही मार्गदर्शन दें तो ये लोग समाज के लिए कुछ बेहतर कर सकते हैं । ब्लाग पर स्त्री-पुरुष विभेद करना भी अच्छी बात नहीं है क्यों हम सभी जानते हैं हम इस जीवन को अपनी माता और पिता दोनों के सौजन्य से ही पा सके हैं । स्त्रियां इस लिए अधिक सम्मान की पात्र हैं क्योंकि इस जगत से जुडने के प्राम्भिक संस्कार हम अपनी माता से ही पाते हैं...और भटक जाने पर आप जैसी कृपालु बहन के माध्यम से । ईश्वर सभी को सद्बुद्धि दे ।
करीब जाकर छोटे लगे... वो लोग जो आसमान थे..
ReplyDeleteबहस को विराम दिया जाए.
ReplyDeleteयहाँ कुछ लोग अपनी बात को बिना मनन किये ही सही ठहरा रहे हैं. पाबला जी और अरविन्द जी की बातों से सहमत नहीं हुआ जा सकता. पाबला जी कहते हैं कि सिर्फ एक शब्द निकाल दो. अरे पाबला जी मैं भी कहिये तो आपको एक पत्र लिखूं ..... पूरे पत्र में आपकी प्रशंसा होगी ...बस 5-6 जगह कमीना लिखूंगा .... आपको ऐतराज तो नहीं होगा न ? आप उसको हटाकर पढ़ लेना !
देखिये पुरुष मानसिकता ही सदैव से यही रही है कि नारी को गाली-गलौज करके ...द्विअर्थी शब्दों का प्रयोग करके उसको नीचा दिखाया जाये. पुरुष जानता है कि कोई नारी उसी भाषा में उसको जवाब नहीं देगी. मजे की बात तो यह है कि अगर नारी उसी भाषा में जवाब दे तब भी उसकी हार है ..... तब तो पूरा पुरुष समाज उसको पतित, आवारा, बदचलन और न जाने क्या-क्या घोषित कर देगा.
विचारों से असहमति है तो शालीनता से आप विरोध दर्ज करा सकते हैं. अदा जी ने जो कुछ भी कहा पूर्णतयः सही है.
जैसे-जैसे ब्लॉग जगत में लोग बढ़ रहे हैं, वैसे-वैसे इस तरह के लफड़े तो बढ़ेगे ही। अदा जी, महिलाओं को यह कविता बुरी लगी, उसका कारण समझ में आ रहा है। पर अगर गहराई से देखें, तो यह सब टी0आर0पी0 बटोरने का चक्कर है, जिसके वशीभूत होकर लोग तरह तरह के प्रयोग करते रहते हैं, फिर चाहे वे अलबेला खत्री हों अथवा अनूप शुक्ल। अलबेला खत्री जी को लगता है कि वे इस तरह के शब्द किसी अच्छी कविता में इस्तेमाल करके अपना ट्राफिक बढ़ा सकते हैं, सो उन्होंने कर डाला और अनूप शुक्ला जी को लगता है कि वे अलबेला खत्री की टिप्पणियाँ न छाप कर अथवा अपने 'चिट्ठा चर्चा' में महिलाओं (आशा है मुझे इसके लिए स्पष्टीकारण देने की आवश्यकता नहीं होगी)और अपने खास लोगों की पोस्टों को स्थान दे सकते हैं, सो वे देते हैं। यही काम हम और आप भी करते हैं, बस हमारा एंगल अलग होता है। वह हमें बुरा नहीं लगता क्योंकि उसे हम कर रहे होते हैं। उदाहरण के लिए नारी ब्लॉग कि हाल की पोस्ट, जिसमें लिखा है (शायद) 'एक बहुत जरूरी पोस्ट' और बताया गया है कपडा धुलने के बारे में। हम 'ब्लॉगवाणी' से हेडिंग देखकर वहां तक जाते हैं और बेवकूफ बनकर चले आते हैं, लेकिन कुछ नहीं कहते। तो अगर हम नारी ब्लॉग की उक्त पोस्ट का विरोध नहीं कर रहे हैं, तो फिर मेरी समझ से इस तरह की कविताओं पर भी विरोध करने का कोई तुक नहीं है। सीधी सी बात है, हमें कोई चीज पसंद नहीं आ रही है, तो हम उसे नहीं पढें। हम किसी को लाख कहें, कोई हमारे कहने पर नहीं बदलने वाला, बेहतर हो कि हम स्वयं को बदल लें। मेरी समझ से स्वयं को खुश रखने का यही बेहतर तरीका है।
ReplyDelete--------
लखनऊ बना मंसूरी, क्या हैं दो पैग जरूरी?
2009 के ब्लागर्स सम्मान हेतु ऑनलाइन नामांकन चालू है।
Ada ji ! aapne yahan har mahila ke dil ki baat kah di hai...bas isse jyada kya kahun main.
ReplyDeleteनमस्कार अदा जी बहुत ही सार्थक बात की है आप ने बहस का मुद्दा सार्थक और सकारात्मक होने के साथ साथ भाषा भी सयंमित होनी चहिये
ReplyDeleteलेकिन ये बात केवल एक पक्ष के लिए लागू नहीं होती सभी को समझना होगा
सादर
प्रवीण पथिक
सम्भवतः आपके ब्लॉग पर यह मेरी पहली टिप्पणी है.
ReplyDeleteआपके पोस्ट में एक बात देखी, मुझे बताएं किसी को भाई बहन बनाना या बना कर ही बात करना जरूरी है क्या? महिलाएं इतनी "असुरक्षित" क्यों महसुस करती है?
रही बात उस बेकार कविता की तो कोई कुछ भी कहे वह एक घटियापन था. लिखने वाले को पता था कि क्या लिख रहा है, उसका क्या अर्थ होता है, लोग क्या समझेंगे.
हम अगर भूल से भी कुछ दिख दें और किसी का अपमान हो जाए तो क्षमा माँग लेते है. यहाँ.....
महिलाओं को सजा देने का अच्छा तरीका है, चीर हरण नहीं कर सकते तो चरित्र हनन कर दो...
आपने सही पोस्ट लिखी है.
आपको नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteकविता तो जो थी सो थी। बहुत सी माताओं, बहनों ने हाल ही में अपने एक बिगड़े लाडले की पीठ तब थपथपाई थी जब उसने स्त्रियों को एक टिप्पणी में काफी बुरा कहते हुए, जैसे, गेहुँआ साँप आदि, ३०० लड़कियों को अच्छे से जानने के बाद , अपने को फ्लर्ट कहा और पुरुष तो होता ही ऐसा है, जो नहीं है वह शीमेल है आदि कहा था और ठीक उसके बाद संस्कारों की बात करते हुए पोस्ट लिखकर सबको निहाल कर दिया था। जब हम ही ऐसी बातें करने वाले पुरुषों को प्रोत्साहित करते हैं, उन्हें बेटा भाई कहते हैं तो फिर वे और क्या लिखेंगे?
विरोध न भी करें तो कमसे कम ऐसों को इतना लाड़ देकर बिगाड़ें तो नहीं। घर में तो हम अपने लाड़लों की हर बत्तमीजी पर लाड़ का उपहार देती ही हैं, यहाँ नेट पर भी हम उन्हें प्रोत्साहित कर रही हैं।
मैं यह सब क्यों लिख रही हूँ, बेकार में है जानते हुए भी? पता नहीं।
खैर!
घुघूती बासूती
प्रिय Anonymous जी,
ReplyDeleteआपने पूछा है इसलिए कह रहा हूँ कि
मुझे उस पत्र का इंतज़ार आपके ब्लॉग या अपने ईमेल इनबॉक्स में रहेगा
आपने नाम लेकर मुझे पुकारा है, मेरा मन भर आया है। चाह रहा हूँ कि आपको भी नाम लेकर पुकारूँ। लेकिन आप नकाब पहन कर निकले हैं आखिर कोई मज़बूरी होगी आपकी भी, सबके सामने कैसे नाम ले लूँ।
स्नेह बनाए रखिएगा
दीदी चरण स्पर्श
ReplyDeleteसभी लोगो की टिप्पणी अपेक्षा कृत रहीं , और सच बताऊं अच्छा भी लगा सभी को इक मत होकर , शायद यह जरुरी भी था , अदा दीदी ने लहजे में रहकर वो बातें की जो मुश्किल लग रही थी , और उन्होनें ने बखूबी लिखा । मुझे जितना प्यार अदा दीदी से मिला , शायद ही किसी और से मिला हो । इन्होंने हमेशा ही मेरा साथ दिया और उच्च मार्गदर्शन भी किया । मेरी पोस्ट को पढ़कर आप नाराज थी , इसलिए मैंने वो पोस्ट डीलिट कर दिया , क्योंकि चाहे मुझे ब्लोगिंग छोड़ना पड़ा लेकिन मैं अपनो से विवाद या रिश्तो में दरार नहीं चाहता ।
इन सब वाकयो को देखकर सच बता रहा हूँ कि मैं बहुत दुखी हुआ , मुझे इकदम अच्छा नहीं लगा कि मैंने अपनी प्यारी दीदी को नाराज किया । जैसा की प्रवीण जी ने कहा कि दोनो पक्ष देखना चाहिए , और मैं अदा दीदी से यही उम्मिद भी करता हूँ ।
अभी-अभी इस ब्लोग पर मेरी नजर पड़ी , जिसे देखकर मै हैरान रह गया , और वहाँ की टिप्पणी देखकर और भी हैरान हुआ । पोस्ट का लिकं ये रहा , यहां पर क्या कहा जाये रहा देखें , देखें कैसे पुरुषो को गालियाँ दी जा रही है , वहां आप लोगो में से किसी की टिप्पणी मुझे नहीं जो अलबेला जी या अन्य का विरोध कर रहे हैं
वहां क्या लिखा गया है कुछ अंश दिखाता हूँ
" मुझे आश्चर्य होता है उन पुरुषों को देखकर जिनके जीवन का एक प्रमुख उद्देश्य नारी-मर्यादा का व्याख्यान है. इतने चितिंत हैं यह, इतने परेशान. क्या इन दूर, अकल्पनीय opinionated नारियों में इन्हें अपने परिवार की स्त्रियों का भविष्य दिखाई देता है?
दिक्कत की बात यह है कि जिन तर्कों से यह स्त्रियों की choices पर सवाल लगाते हैं, यह नहीं देख पाते की उनमें कहीं-न-कहीं एक कमीना पुरुष भी लिप्त हैं."
उनके लिये असहनीय होती है एक ऐसी स्त्री जो किसी पुरुष के आधीन न हो, जो आत्मनिर्भर होकर पुरुषों कि दुनिया में अस्तित्व बनाये रखे और उस पर हद यह कि उसके पास 'opinion' हो. Opinionated women उन्हें एक ऐसी बीमारी कि तरह लगती हैं जिसे कैसे भी करके दबाना, हराना है क्योंकि वो उन्हें अपने पुंसत्व पर एक सवालिया निशान कि तरह दिखती हैं.
ReplyDeleteI think there can be no better answer then this which i hv copied from the post
http://wohchupnahi.blogspot.com/2010/01/blog-post.html
मुझे आश्चर्य होता है उन पुरुषों को देखकर जिनके जीवन का एक प्रमुख उद्देश्य नारी-मर्यादा का व्याख्यान है. इतने चितिंत हैं यह, इतने परेशान. क्या इन दूर, अकल्पनीय opinionated नारियों में इन्हें अपने परिवार की स्त्रियों का भविष्य दिखाई देता है?
ReplyDeleteदिक्कत की बात यह है कि जिन तर्कों से यह स्त्रियों की choices पर सवाल लगाते हैं, यह नहीं देख पाते की उनमें कहीं-न-कहीं एक कमीना पुरुष भी लिप्त हैं." तो ये क्या मान लिया जाये कि जितने लोग महिलाओं को लेकर लिखते है वह सब कमिने है , शायद पहला नाम मेरा ही हो , तो आप सभी महानुँभाओ से निवेदन है कि इस लेख को देखें ।
http://wohchupnahi.blogspot.com/2010/01/blog-post.html
साथ वहां टिप्पणी कारों को भी देखे , कि कैसे दोंनो तरफ हाँ में हाँ कह रहे हैं ।
आदरणीय घुघूती बासूती जी,
ReplyDeleteआपको भी नव वर्ष की हार्दिक शुभकामना !!!
आपने अपने विचार रखें हैं बहुत ही अच्छा लगा है...
यह भी अच्छा हुआ की आपने एक व्यक्ति विशेष की चर्चा की है....यह भी सच कहा आपने की हम अपने लाडलों की हर गलती माफ़ कर देतीं हैं ...और यही होना भी चाहिए.....बड़ों का काम भी यही है......लेकिन बड़ों का यह भी है उनको सुधारना.....और आज कल मैं भी इसी काम में जुटी हुई हूँ.......जैसे मिथिलेश, वो मेरे बच्चे जैसा है....बहुत अच्छा लिखता है लेकिन कभी-कभी उन बातों पर भी लिख देता है जो उसके दायरे में नहीं आते....जरूरत थी उसे मार्गदर्शन की ...जो उसकी निर्भीक और सार्थक लेखनी को थोडा सा सही रास्ता दिखाए.....मैंने मिथिलेश को कस कर डांट लगाई है और उसे यह बात समझाई...वो बात मान कर माफ़ी भी मांग चुका साथ ही आइन्दा ऐसा कुछ नहीं करने की कोशिश भी करने का वादा कर चुका है...मुझे बहुत हर्ष हुआ और उसपर नाज़ भी....
अब बात करते हैं उस व्यक्ति विशेष की वो भी बच्चा है और लाडला भी...उसकी सभी रचनाएँ तारीफ के काबिल रहीं हैं.......उसने ऐसी-ऐसी बातें लिखीं है जो हमारे बुजुर्गों तक ने हमें कभी बताना उचित नहीं समझा...जाहिर सी बात है...इस कारन वो सबका लाडला बन गया.....इधर कुछ दिनों पहले उसने बहुत बड़ी गलती की ..इस तरह की टिपण्णी देकर जिसका जिक्र आपने किया.....हम सभी आहत हुए.उसकी इस हरक्कत से लेकिन हम यह भी जानते थे कि वह बुरा नहीं है.....क्योंकि उसे आज से काफी दिनों से हम सभी पढ़ रहे हैं.......वह बेशक भटक रहा है...... उसे सही रास्ते पर लाने कि ज़रुरत थी ...उस तथाकथित टिपण्णी के बाद उसने भी बहुत डांट खाई है.....और उसमें भी बहुत बहुत सुधार हुआ है....सच पूछिए तो मेरी ही डांट का असर उसपर हुआ है...वैसे भी मैंने हमेशा बुरे में अच्छा ढूँढने की कोशिश की है.....शायद यही वजह है की रावन, शकुनी और शूर्पनखा जैसे पात्रों को भी समझने की कोशिश करती हूँ...फिर यह व्यक्ति विशेष भला कैसे अपवाद रहता....
आज भी इस आलेख से मैं माननीय अलबेला जी से उनकी लेखनी में सुधार कि ही गुजारिश कर रही हूँ......यही कविता उनके ब्लॉग कि शान बन सकती थी अगर ....उनकी लेखनी अनुशासित रहती......आगे पूरा विश्वास है हमें उनकी अच्छी-अच्छी कृतियाँ पढने को मिलेंगी...
यह ब्लॉग जगत एक परिवार बन चुका है...और कभी-कभी कोई सदस्य गुमराह होने लगे तो उसे सम्हालना हमारा कर्तव्य हो जाता है....न कि उसे त्याग देना......ऐसा करने से न जाने कितनी अच्छी कृतियों से हम वंचित रह जायेंगे....अब देखिये न.....वो संस्कार वाली रचना......हम थोड़े ही पढ़ पाते अगर.....उस नालायक को न समझाते.....
अलबेला जी ने शीर्षक गलत डाला ... इसकी मैं भर्त्सना करता हूँ....
ReplyDelete@ घुघूती बासूती...
आपको बुरा लगा है... मैं क्षमा चाहता हूँ.
आदरणीय डॉ. अनुराग,
ReplyDeleteमुझसे बहुत भारी गलती हो गई है....
अनजाने में आपका कमेन्ट डिलीट हो गया है...
आपसे करवद्ध प्रार्थना है अगर आप उचित समझें तो मुझे दुबारा भेज दें...
मैं ह्रदय से क्षमाप्रार्थी हूँ.....
@संजय बेगानी जी,
ReplyDeleteआपके पोस्ट में एक बात देखी, मुझे बताएं किसी को भाई बहन बनाना या बना कर ही बात करना जरूरी है क्या? महिलाएं इतनी "असुरक्षित" क्यों महसुस करती है?
आप शायद भूल रहे हैं हम हिन्दुस्तानी हैं....अपने मोहल्ले में भी हाँ चाचा-ताऊ का ही रिश्ता रखते हैं.....किसी को भाई-बहन बनाना असुरक्षा का द्योतक नहीं प्रगाड़ता या करीब होने को दर्शाता है....
सबसे तो नहीं लेकिन कुछ लोगों से ऐसे सम्बन्ध जुड़ ही जाते हैं...
अच्छा लगा एक महिला ब्लोगर सामने आयी...वरना हम अक्सर समझदारी भरी तटस्थ चुप्पिया ओढ़कर शब्दों की इन हिंसा को इग्नोर करते है .....रचना जी ने जो बहस शुरू की थी वो एक अनर्थक ओर उबाऊ बहस थी .पर उसके बाद की प्रतिक्रिया भोंडी दुखद ओर व्यक्तिगत थी ...असहमतिया पूर्व में भी हुई है पर व्यक्तिगत ओर इस तरह नहीं...असहमति में हम अक्सर इन्सान को अच्छी तरह से पहचान सकते है ... .....
ReplyDeleteनेट एक बड़ा आइना है......किसी को भी पहचानना आसान है उसकी लिखी पोस्टे लगातार पढ़िए ओर सभी जगह किये गये कमेंट्स को भी ...यक़ीनन एक खाका खड़ा होगा ...आखिर में एक बात मन्नू भंडारी ने एक बार कहा था प्रशंसा से आप किसी की भी जीत सकते है ओर आलोचना से किसी को भी हार ...यही ब्लॉग जगत में है ...पर क्या हम किसी की गलतिया सिर्फ इसलिए नजरअंदाज कर दे क्यूंकि वो हमें लगातार कमेन्ट देता है ....कभी कभी चुप्पिया भी अपराध होतीहै
जैसी आपकी इच्छा। परन्तु ये लाड़ले और यह लाड़ ही इन्हें आगे चलकर कुछ स्त्रियों को छोड़कर अन्य सभी का अनादर करना, उन्हें वस्तु समझने को उकसाता है। वैसे आपको जो उचित लगता है वह करिए। अन्य स्त्रियों के प्रति उनका व्यवहार कैसा है और उनकी सोच कैसी है इस बात का महत्व सबके लिए अलग है। मेरे आपके लिए भी। मैं तो भारतीय समाज में जो हो रहा है और जैसा प्रश्रय हम माताएँ व बहनें उन्हें दे रही हैं उस ही के आधार पर कह रही हूँ। आपका अनुभव व विचार अलग हो सकते हैं।
ReplyDeleteशायद आपकी उनके लिए डाँट वाली पोस्ट पढ़ने से मैं चूक गई। अन्यथा यह टिप्पणी ही नहीं करती।
क्षमा कीजिएगा।
उत्तर देने व स्पष्टीकरण के लिए आभार।
घुघूती बासूती
चलिये अनूप शुक्ल आ गये।इनकी तो यह पुरानी आदत रही हि कि दो नाराज दोस्तों में से एक को दुलारो,पुचकारो,कुछ ऐसा कह दो कि दोनों मे गलतफहमी हो जाये।फिर अपनी गोटिया खेलो।अपने गुट मे लेने का नाटक करो।जिससे वह भविषय मे इनकी मौज लेने की आदत पर कुछ ना कहे।तमाम पुराने भुक्तभोगी इनकै चाल समझते है
ReplyDeleteजाकिर अली को शाबाश
अदा जी,
ReplyDeleteमैं आपके ब्लॉग पर पहली बार आयी हूँ. वस्तुतः मेरे पास इन्टरनेट यूज़ करने का समय बहुत कम होता है. मैं आपकी बातों से पूरी तरह सहमत हूँ. ब्लॉगजगत एक परिवार की तरह है, जहाँ हम विचार-विनिमय करते हैं, अपनी भावनाओं को बाँटते हैं और अनजाने में ही एक रिश्ते से बँध जाते हैं. परिवार में सबका स्वभाव एक जैसा नहीं होता, अतः मतभेद भी होते हैं, नाराज़गी भी होती है. पर क्या हम वहाँ ऐसी भाषा का प्रयोग करते हैं? इसलिये जब कोई ऐसी भाषा का प्रयोग करता है, विशेषतः नारी के लिये, जिसे हमारे शास्त्रों में पूजनीय कहा गया है, तो दुःख होता है.
अदा जी,
ReplyDeleteहम क्या कर रहे थे....????
हम ब्लोगर जरूर हैं ..लेकिन इस ब्लॉग=जगत का हिस्सा नहीं...
लगभग दस हजार हिंदी ब्लॉग होंगे....कैसे बन सकते हैं हम हिस्सा....????
हमारा मानना बस इतना ही है...के जैसे ये सारा विश्व एक परिवार है...वैसे ही ब्लॉग जगत भी एक परिवार है...
और ये सारा विश्व जैसा परिवार है...वो सभी लोग भली भाँती जानते हैं...आप भी.....!
और चैम्पियन होने ना होने की तो कोई बात ही नहीं है..
सवाल अच्छे या खराब लेखन का नहीं है...हर कोई हर वक्त अच्छा या खराब ही नहीं रचता....
कविता/अकविता पर भी अब हम पहले जैसा नहीं किलसते....
लेकिन आप लोग जिन बातों को रचना पढ़कर जानते हैं....हम कभी कभी......बल्कि..अक्सर कुछ और ही पढ़कर जान लेते हैं उन्हें...
हमारे ऑफिस में कितने ही कहते हैं के हमारे भी ब्लॉग बनवा दीजिये....
एकाध का बनवाया भी है.....पर क्या फायदा.......???
अब वो जो गंदगी सिर्फ हमारे आस पास बिखेरता था...अब सारे नेट में बिखेर रहा है.....
डॉ. अनुराग,
ReplyDeleteपर क्या हम किसी की गलतिया सिर्फ इसलिए नजरअंदाज कर दे क्यूंकि वो हमें लगातार कमेन्ट देता है ....कभी कभी चुप्पिया भी अपराध होतीहै...
आपकी इस बात से मुझे घोर आपत्ति हैं...अगर आपका इशारा मेरी तरफ है तो...
न तो मुझे कभी भी टिपण्णी का लोभ रहा है नहीं उसे पाने का प्रयास....यह आपका मुझ पर दोष है ..और मुझे मंज़ूर नहीं...
और जहाँ तक किसी की गलतियों को नज़र अंदाज़ करने का प्रश्न है तो शायद....मैं ही एक ऐसी ब्लाग्गर सदस्य हूँ जिसने सही मायने में न सिर्फ आपत्ति जताई है....बल्कि इस दिशा में सुधार लाने कि कोशिश की है.... एक पोस्ट भी लिखा था...और इसके गवाह बहुत सारे लोग हैं...
@अन्य महानुभावों के लिए ...
मेरी इस पोस्ट को बहुत सारे लोगों ने अपना व्यक्तिगत वैमनस्य और भड़ास निकालने के लिए उपयोग में लाने की कोशिश की है...
सच कहूँ तो जिस व्यक्ति विशेष कि तिपन्नियों की आप बात कर रहे हैं उससे भी भयानक टिपण्णी इस ब्लॉग पर आई हैं...अगर मैं प्रकाशित करती तो वो लोग क्या जवाब देंगे तो उसी टिपण्णी में घोर आपत्तिजनक भाषा का प्रयोग करके यह कह रहे हैं कि किसी की भाषा सही नहीं है...
माफ़ी चाहूंगी...लेकिन ये दोगलापन है....
मुद्दा अलबेला जी की कविता का है....कृपा करके उसी पर बने रहिये...
प्रवीण शाह जी,
ReplyDeleteआपकी टिपण्णी का मंतव्य मुझे समझ में तो आ गया है लेकिन मेरी पोस्ट इस बात के लिए नहीं ......
और इस बात का जवाब मैं कई बार इसी पोस्ट दे चुकी हूँ...हालांकि जवाब देने के लिए मैं बाध्य भी नहीं थी.....आखिर ९५ (टिपण्णी के हिसाब से ) समर्थकों में से मैं एक हूँ.....बाकि ९४ शायद मुझसे ज्यादा विद्वान् उम्र वाले और समझदार है....फिर भी मैंने अपनी बात कह दी है....
मैंने अलबेला जी की कविता की भाषा पर आपत्ति दर्ज करायी है....यह पोस्ट उसी के लिए लिखी गयी है ...कृपा करके उसी बात पर बात करें....
पाबला जी बुरा मत मानियेगा आपका मैं सम्मान करती हूँ .....पर ये कविता मैंने पढ़ी और ये सरासर महिलाओं को इंगित कर अपमानजनक शब्दों में लिखी गयी कविता है .....यही नहीं इनकी मैंने पहले भी एक कविता ऐसी ही पढ़ी थी तभी मैंने इनके ब्लॉग पे जाना छोड़ दिया था ......अदा जी आपने जो इतनी हिम्मत के साथ ये कदम उठाया है आप प्रशंसा की हक़दार हैं ......!!
ReplyDeleteदी..हैटस आफ़..इसके लिये नही कि आपने आवाज उठायी..इसके लिये कि आपने उनके खिलाफ़ आवाज़ उठायी जिन्होने आपके ब्लाग पर न जाने कितनी टिप्प्णिया की और ये करके आपने ग्रुपिज़्म करने वालो को एक करारा तमाचा दिया है...टिप्प्णिया ही सब कुछ नही होती, हमारे उसूल होते है, सन्स्कार होते है..और हमे इनके खिलाफ़ हमेशा बोलना है..वैसे ही ज़िन्दगी चुपचाप रखती है कई मौको पर, यहा चुप रह गये तो हिन्दी ब्लाग का इतिहास धिक्कारेगा..
ReplyDeleteआपको मेरा नमन..
अरे बाप रे,
ReplyDeleteइतना कुछ हो गया और हम बरेली में झुमका ही ढूंढते रह गए...अरे भाई, मुझे तो लगता है एक सीरियल एनाउंस करना ही पड़ेगा...अदा जी को गुस्सा क्यों आता है...
अरे भाई इतने लोग अदा जी को गुस्सा दिलाने वाले हैं...कोई हमारे जैसा मसखरा हंसाने वाला भी तो होना चाहिए न...
रही बात विरोध की तो अदा जी शायद आपको याद हो मैंने एक पोस्ट लिखी थी, मैं शर्मसार हुआ, आप हुए क्या...लिखी थी...बाकी मुझे और कुछ नहीं कहना...
जय हिंद...
अदा जी यहा मै आपके विरोध का समर्थन करता हू एक एतराज के साथ. जिन्हे आप सुधारने की बात कह रही है वो सब मुखौटे क खेल है कुछ लोग अच्छे बच्चे होने का जीवन पर्यन्त अभिनय करते है और कभी कभी उनके अभिनय की पोल खुल जाती है.
ReplyDeleteमैने सिर्फ़ सर्फ़िन्ग के लिएय अल्बेला जी की बहुत सी कविता सी पोस्ट पढी है और शायद आगे भी पढू लेकिन उनमे कविता कहा है ये अभी मेरे लिये शोध का बिषय है.
जिस शब्द पे आपत्ति की गयी है वो कोई बहुत ही अप्रयुक्त शब्द नही है लेकिन जिस अन्दाज़ मे की गई है वही सारे झगडे की जड है.
मेरा पहला विरोध अलबेला जी को कवि मानने पर है और दूसरा किसी खास व्यक्ति को निशाना बनाने पर. मै टेलीविजन नही नही देखता क्रिकेट के अलावा लेकिन ये जानता हू कि श्री अल्बेला जी सफ़ल हन्सोड है उतना उनका मै सम्मान करता हू बाकि पिछली पोस्टो मै उन्होने कवियो की बहुत खिल्ली उडाई है जो उनके अल्पग्यान से भरी हुई है, भगवान उन्हे सद्बुद्धि दे.