(इन दिनों थोड़ी सी व्यस्तता है..इस आलेख को अभी छापने का कोई इरादा नहीं था ..लेकिन यह स्वयं ही छपने को तत्पर हो गया ..पता नहीं कैसे मेरी इच्छा के विरुद्ध छप गया...मुझे इसपर और थोड़ा काम करना था...दुर्भाग्यवश नहीं कर पायी हूँ....अब जब छप ही गया है, तो मैंने इसे स्वीकार कर लिया ....आप भी कर लीजिये ...धन्यवाद..)
हम सभी जानते हैं कि .....भाषा अभिव्यक्ति का एक सशक्त माध्यम है जिसके द्वारा मनुष्य अपने विचारों को दूसरों पर प्रकट कर सकता है और दूसरों के विचार जान सकता है, इस संसार में अनेक भाषाएँ हैं, जैसे-हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी, उर्दू, फ्रेंच , चीनी, जर्मन इत्यादि...
हमारी भाषा है ...'हिंदी'.....हिंदी अत्यंत ही सजीव और प्रगतिशील भाषा रही है....क्योंकि जन्मकाल से ही यह जनभाषा रही है...
विशुद्ध हिंदी का अर्थ यह नहीं कि सिर्फ़ 'तत्सम' और 'तद्भव' शब्दों का प्रयोग हो और 'विदेशज' शब्दों का बहिष्कार....
हिंदी ने दूसरी भाषाओँ के शब्दों को अपनाने में कभी कोई कोताही नहीं की है...
और यही ...हिंदी की समृद्धि का बहुत बड़ा कारण है..
अक्सर हमलोग अपनी बोल चाल में ऐसे कितने ही शब्दों को प्रयोग में ले आते हैं...जिनका अविर्भाव या व्युत्पत्ति कहाँ से हुई है, हम जानते ही नहीं हैं...आज मेरे आलेख का उद्देश्य है ऐसे ही शब्दों की पहचान कराना और आपके समक्ष प्रस्तुत करना....साथ ही आप सब से अनुरोध है कि इस आलेख में आप अपनी तरफ से भी ऐसे शब्दों का योगदान करें...ताकि हमारे पाठक इससे लाभ उठा सकें...
विशेष रूप से विदेशज शब्दों की पहचान अगर हम करें तो ...समझ पाएँगे कि हिंदी का हृदय कितना विशाल है....जिसने अपने आँचल में कितनी ही भाषाओँ को जगह दी है...
जैसा कि आप सभी जानते हैं...उत्पत्ति के आधार पर शब्द के निम्नलिखित चार भेद हैं-:
१ . तत्सम- जो शब्द संस्कृत भाषा से हिन्दी में बिना किसी परिवर्तन के ले लिए गए हैं वे तत्सम कहलाते हैं। जैसे-अग्नि, क्षेत्र, वायु, रात्रि, सूर्य, गृह आदि...
२ . तद्भव- जो शब्द रूप बदलने के बाद संस्कृत से हिन्दी में आए हैं वे तद्भव कहलाते हैं। जैसे-आग (अग्नि), खेत(क्षेत्र), रात (रात्रि), सूरज (सूर्य), घर (गृह) आदि...
३ . देशज- जो शब्द क्षेत्रीय प्रभाव के कारण परिस्थिति व आवश्यकतानुसार बनकर प्रचलित हो गए हैं वे देशज कहलाते हैं। जैसे-पगड़ी, गाड़ी, थैला, पेट, खटखटाना आदि..
४ . विदेशी या विदेशज- हिंदी को विदेशियों के संपर्क में आने के कई अवसर मिले हैं और इस कारण उनकी भाषा के बहुत से शब्द हिन्दी में प्रयुक्त होने लगे हैं.. ऐसे शब्द विदेशी अथवा विदेशज कहलाते हैं.. जैसे-स्कूल, अनार, आम, कैंची,अचार, पुलिस, टेलीफोन, रिक्शा आदि...
ऐसे कुछ विदेशी या विदेशज शब्दों की सूची नीचे दी जा रही है :
अंग्रेजी- कॉलेज, पैंसिल, रेडियो, टेलीविजन, डॉक्टर, लैटरबक्स, पेन , टिकट, मशीन, सिगरेट, साइकिल, बोतल, ब्लॉग, चैनल, वेबसाईट आदि...
फारसी- अनार,चश्मा, जमींदार, दुकान, दरबार, नमक, नमूना, बीमार, बरफ, रूमाल, आदमी, चुगलखोर, गंदगी, चापलूसी आदि...
अरबी- औलाद, अमीर, क़त्ल , कलम, कानून, ख़त , फ़क़ीर , रिश्वत, औरत, क़ैदी , मालिक, ग़रीब आदि...
तुर्की- कैंची, चाकू, तोप, बारूद, लाश, दारोगा, बहादुर आदि...
पुर्तगाली- अचार, आलपीन, कारतूस, गमला, चाबी, तिजोरी, तौलिया, फीता, साबुन, तंबाकू, कॉफी, कमीज आदि...
फ्रांसीसी- पुलिस, कार्टून, इंजीनियर, कर्फ्यू, बिगुल आदि...
चीनी- तूफान, लीची, चाय, पटाखा आदि...
यूनानी- टेलीफोन, टेलीग्राफ, ऐटम, डेल्टा आदि...
जापानी- रिक्शा आदि...
बहुत उम्दा और जानकारीपूर्ण आलेख.आपका आभार.
ReplyDeleteअदा जी,
ReplyDeleteहिंदुस्तान नाम के गुलदस्ते में तरह-तरह के फूल खिलना ही इसकी विशिष्टता है...
हिंदू धर्म का सहिष्णुता के साथ सभी धर्मों का सम्मान करना ही इसकी विशेषता है...
हिंदी का विशाल हृदय वाली मां की तरह दूसरी भाषा के शब्दों को अंगीकार करना इसकी विनम्रता है...
हिंदी को विद्वत जनों की ही नहीं जन-जन की भाषा बनाने के लिए इसका सरल और सुगम होना ज़रूरी है...जो शब्द, चाहे वो किसी भी भाषा का क्यों न हो, अगर बहुप्रचलित है तो उसे हिंदी में समाहित करने में कोई बुराई मुझे नज़र नहीं आती....
ये तो रहा मेरा विचार...अब बताता हूं, एक सच्चा किस्सा...
बचपन में मेरठ में रामलीला देखा करता था...वहां मंच पर एक बार दृश्य दिखाया गया...वन में एक ऋषि महाराज राम-लक्ष्मण बने पात्रों से कहते हैं...बेटा, थक गए हो, थोड़ा रेस्ट कर लो...लेकिन पहले थोड़े फल-फ्रूट खा लो...
तो क्या उस वक्त भी अंग्रेज़ी भाषा...
जय हिंद...
वाह यह है हिन्दी की जायका पसन्दगी और पाचन क्षमता -बहुत अच्छा संग्रह किया है स्वप्न आपने !
ReplyDeleteइन दिनों मैं सोच रही हूँ कि हिंदी में स्नातकोत्तर परीक्षा तूने पास की है या मैंने ...?
ReplyDelete:) ..:) ....अब हिंदी को समृद्ध होने से कौन बचा सकता है ...!!
एक सार्थक लेख
ReplyDeleteबी एस पाबला
कई भाषाओ के शब्दो को सन्ग्रह कर बनी हिन्दी और उर्दू आज मर रही है यह सच है . हिन्दी की दुर्गति का सबसे ज्वलंत उधारण यह है हिन्दुस्तान की सर्वोच्च न्यायलय हिन्दी मे काम करने को ठुकराती है .
ReplyDeleteबेहद जानकारी भरा लेख...
ReplyDeleteदीदी चरण स्पर्श
ReplyDeleteअरे वाह क्या बात है , देर आये लेकिन सालिड पोस्ट लाये । बेहद उम्दा व जानकारीं से पूर्ण लेख रहा।
वाह अदाजी,
ReplyDeleteहम तो बहुत सारे शब्दों को खालिस हिन्दी का समझते थे पर ये तो दूसरी भाषा के निकले। भेद तो हम भूल ही गये थे आज फ़िर याद हो आये। :)
एक बहुत ही अच्छा पोस्ट!
ReplyDeleteअंग्रेजी के कुछ शब्दों के रूप को बदल कर भी अपनाया है हिन्दी ने जैसे कि कैंडल से कंदील, आफीसर से अफसर आदि।
बहुत खूब , ज्ञान परख जानकारिया !
ReplyDeleteबहुत ग्यानवर्द्धक आलेख है। शुभकामनायें
ReplyDeleteअदा जी ,
ReplyDeleteआपका ये लेख हिंदी भाषा की बहुत अच्छी जानकारी दे रहा है...इसके लिए आपको बधाई .
आपने उत्तपति के आधार पर शब्दों के चार वर्ग बताये हैं , इसमें एक वर्ग और शामिल किया जाता है.
और वो है ---- संकर - शब्द
जब दो विभिन्न भाषाओँ के मेल से कोई शब्द बनाया जाता है तब उसे संकर शब्द कहते हैं .
हिंदी में ऐसे शब्दों के अनेक उदाहरण हैं .
खून पसीना ---- फारसी + हिंदी
पान दान ------ फारसी + हिंदी
छाया दार ---- हिंदी + फारसी
टिकट घर ----- अंग्रेजी + हिंदी
रेल गाड़ी ----- अंग्रेजी + हिंदी
लाठी चार्ज ----- हिंदी + अंग्रेजी
सील बंद ----- अंग्रेजी = फारसी
ये कुछ उदाहरण मैंने प्रस्तुत करने की कोशिश की है....
इस तरह की चर्चा से निश्चय ही ज्ञानवर्धन होता है.....शुक्रिया
Saarthak lekh Ada ji!
ReplyDeleteयह आलेख और संगीता स्वरूप जी की टिप्पणी -
ReplyDeleteदोनों ही बहुत महत्त्वपूर्ण तथा उपयोगी लगे!
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ओंठों पर मधु-मुस्कान खिलाती, कोहरे में भोर हुई!
नए वर्ष की नई सुबह में, महके हृदय तुम्हारा!
संयुक्ताक्षर "श्रृ" सही है या "शृ", मिलत, खिलत, लजियात ... ... .
संपादक : सरस पायस
aapki bahumukhi pratibha ...kamaaaal hai.sukhad
ReplyDeleteबड़ी अच्छी जानकारी दी,हिंदी के बारे में.... कई सारी बातें पता
ReplyDeleteआजकल आप के आलेख बहुत श्रम व विचार पूर्वक आ रहे हैं
ReplyDeleteबधाई - खुशी हुई इन्हें पढ़कर
स स्नेह,
- लावण्या
संगीता जी,
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत धन्यवाद ..
आपने बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी दी है...
आपका हृदय से धन्यवाद..
औरों से भी यही आग्रह किया था मैंने...अगर संभव हो तो अपने ज्ञान से कृतार्थ करें..
धनयवाद....
इस शिक्षाप्रद जानकारी के लिए धन्यवाद । हिंदी को समृद्ध बनाने में हिंदी ब्लागर महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं ।
ReplyDeleteज्ञानवर्धक पोस्ट के लिए धन्यवाद.
ReplyDeleteआपके परिश्रम को चार-चाँद लगा दिया संगीता जी की टिपण्णी ने.
बहुत बार प्रयोग करने के बाद भी यह समझना कठिन काम है कि यह शब्द अरबी,तुर्की,पुर्तगाली या चीनी है.सभी हिंदी ही लगते हैं.
सुन्दर रचना अच्छी जानकारी
ReplyDeleteआभार
awesome post!!!!!!!
ReplyDeleteapki her - ek prastuti....... dil ko chhu lene wali hoti....... hai.....
aur dil kah udta hai...."Wah kya baat hai"
Thanks........
aapke baad sangeeta swaroop ji ka comment padhnaa aur bhi sukhad lagaa adaa ji....
ReplyDeleterochak....
hindi ke baare me itne vistaar se aur behtrin jaankaari dene ke liye main aapki dil se aabhari hoon ,shukriyaan ada ji dil se .
ReplyDeleteदिलचस्प और ज्ञानवर्धक पोस्ट। कुछ शब्दों ने वाकई हैरान किया जैसे कि लीची और पटाखा और चाय ने कि ये चीनी हैं....
ReplyDeleteहे भगवान कितना कम जानते हैं हम।
...और संगीता जी की टिप्पणी ने सोने पे सुहागा का काम किया है।
बेहद खूबसूरत प्रविष्टि । वाणी जी की टिप्पणी सही है । आभार ।
ReplyDeleteपुरानी यादें ताजा करा दीं आपने... भाषाज्ञान
ReplyDeleteHindi ki jaankaari is tarah logon tak pahuchata dekh kar bahut achcha laga
ReplyDeleteisi tarah ke aur aalekh nayi peedhi ka gyaan badhayegenge
likhte rahe
ada ji, sangeeta ji..aapko dono dwara di gayi is bahumulye jaankari ke liye bahut bahut dhanyewad. kshama chaahti hu ki me is aalkekh me koi gyanvardhak jankari de kar apna yogdaan nahi kar pa rahi hu.
ReplyDeleteअब हम कछु कहेंगे तो आप कहेंगी कि बहाना बना रहे हैं - वही मोबाइल नेट । बस पोस्ट कर पाते हैं और बहुत कुछ मिस कर जाते हैं।
ReplyDelete______________________
इतने विद्वान लोग इतना कुछ कह गए, अब ये नॉन टेक्निकल आदमी का कहे?
भारत की दूसरी राष्ट्र भाषाओं के भी शब्दों को बताइए जो हिन्दी को समृद्ध किए:
टपाल, खलास, टपोरी - मराठी ।
कुछ संस्कृत शब्द भी इतर भाषाओं से होते हुए हिन्दी में आए:
किंकर्तव्यविमूढ़ - मराठी
गलदश्रु - बंगला
इस सम्बन्ध में अन्ना(बालसुब्रमण्यम जी) का ब्लॉग http://jaihindi.blogspot.com पठनीय है।
बड़े लोगों पर क्या बड़ी टिप्पणी !
ReplyDeleteहम जैसे लाभान्वित हो , और क्या !
हिन्दी तो समृद्ध है ही ..... संग संग पोस्ट और ब्लॉग भी .... आभार ,,,
आपने हिंदी पर कई सुंदर आलेख लिखे हैं. मैंने बिना किसी आलस्य के उनका छपते ही पाठ किया और आनंद उठाया है. कुछ स्थितियां ऐसी थी कि टिप्पणी नहीं कर पाया. जीवन के उत्तरार्ध में आते ही मनुष्य की गति कुछ बढ़ जाती है शायद वह कुछ भी छूटने नहीं देना चाहता, इसी अभिलाषा से पीड़ित कहीं दौड़ धूप में लगा रहा हूँ ये इसलिए बता रहा हूँ कि आप समझ सकें कि आपके आलेख कितने आवश्यक थे जिन पर तुरंत सहमती जताना मेरे लिए जरूरी था.
ReplyDeleteइस जानकारी के लिए आभार तो कहना ही पडेगा।
ReplyDelete--------
खाने पीने में रूचि है, तो फिर यहाँ क्लिकयाइए न।
भातीय सेना में भी है दम, देखिए कितना सही कहते हैं हम।
अदाजी बहूत ही अच्छी जानकारी दे रही है आप ?
ReplyDeleteलाइन +बंद =कतार बद्ध
हथियार +लैस =
ये कोनसी श्रेणी में आएगा ?
नेट प्राब्लम दे रहा है ,बड़ी मुश्किल से इतना ही लिख पाई हूँ |
शोभना जी,
ReplyDeleteआपका योगदान बहुत अच्छा रहा...
आपका बहुत आभार....!!
बहुत खूब , ज्ञान परख जानकारिया !
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