ये ज़मीं खून से नहाई है
देख अब आसमाँ की बारी है
लाशों के ढेर से मैं लिपटी रही
उसमें क़िस्मत मेरी बेचारी है
नींद आ जायेगी सुकूँ से मुझे
दिल में उसने छुरी उतारी है
है मकानों का क्या वो बनते रहे
संग तेरे जीयें जिद्द हमारी है
आँखें काजल बिना हसीं हैं 'अदा'
इन में तस्वीर जो तुम्हारी है
"नींद आ जायेगी सुकूँ से मुझे
ReplyDeleteदिल में उसने छुरी उतारी है"
वाह!
नींद आ जायेगी सुकूँ से मुझे
ReplyDeleteदिल में उसने छुरी उतारी है
बेहतरीन,
ये तो चीर निद्रा की तैयारी है
बसंत पंचमी की शुभकामनाएं
ये ज़मीं खून से नहाई है
ReplyDeleteदेख अब आसमाँ की बारी है
बहुत खूब ग़ज़ल कही है.....खूबसूरत अभिव्यक्ति...
है मकानों का क्या वो बनते रहे
ReplyDeleteसंग तेरे जियें जिद्द हमारी है
हज शे’र उत्तम है। पर यह विशेष पसंद आया क्यूं कि यह ज़िद मैं भी पालता हूं।
बहुत सुन्दर !
ReplyDeleteHarek pankti gazab hai!
ReplyDeleteNamaste,
ReplyDeleteAdaa ne jiss adaa se likha hai wo kaabil-e-tareef hi nahi parr ruuh tak ko hila deta hai...
Puri tasveer mann mein bann jati hai padne ke baad... issi ko shayad khoobsurati kehte honge :)
Bahut sundar likha hai...
Prem Sahit,
Dimple
http://poemshub.blogspot.com
प्रणाम अदा जी बहुत ही खूब हर लायन सारगर्भित सी अपने में अनेक अर्थ (वैसे मेरे देखने का नजरिया भी हो सकता है )समेटे हुए
ReplyDeleteखाश कर ये लायन
नींद आ जायेगी सुकूँ से मुझे
दिल में उसने छुरी उतारी है
सादर
प्रवीण पथिक
9971969084
बहुत सुन्दर रचना. वसन्तपंचमी की शुभकामनायें.
ReplyDeleteआँखें काजल बिना हसीं हैं 'अदा'
ReplyDeleteइन में तस्वीर तुम्हारी है
kya khoob likha di..
गजल पढूं की चित्र देखूं -शफ्फाक ये शब्द कौंध रहा है मन में अभी तो आफिस में हूँ घर जाकर देखता हूँ इसके मतलब क्या है -आप हैं इसलिए रिस्क लेता हूँ दुसरे के ब्लॉग पर तो खदेड़ लिया जाउंगा
ReplyDeleteबेहतरीन गज़ल ! ये लाइनें ज्यादा सुन्दर लगीं -
ReplyDelete"है मकानों का क्या वो बनते रहे
संग तेरे जियें जिद्द हमारी है ।"
आभार ।
मै कोई काव्य का विश्लेषक नही लेकिन पढ कर जो मुझे सकून देता है वही मेरे लिये अच्छा है और आपकी कविताये सच मे दिल के करीब होती है
ReplyDeleteबहुत सुन्दर तरीके से आपने एक व्यथा का वर्णन किया है. अति सुन्दर.
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना सच सी लगती है.
ReplyDeleteबसंत पंचमी की शुभकामनाएं
आज कल आप का ब्लांग खुलने मै बहुत समय लेता है कभी कभार हेंग भी हो जाता है.
आँखें काजल बिना हसीं हैं 'अदा'
ReplyDeleteइन में तस्वीर जो तुम्हारी है
ek la-jawaab sher.....waah !!
aur ye..
लाशों के ढेर से मैं लिपटी रही
उसमें क़िस्मत मेरी बेचारी है
...??....??
jane kyu...(??)aisa hote hue bhi
achhaa lagaa...
):
बहुत खूब...
ReplyDeleteतेरी हर अदा पे कुर्बान ,
ReplyDeleteसमझा नहीं अब तक मैं,
कौन सी कम , और ,
कौन सी ज्यादा प्यारी है ॥
अजय कुमार झा
बह्र में है अदा जी..
ReplyDelete९९.९९ %...बह्र में.
रदीफ़ काफिये कि तो हम कोई परवाह नहीं करते हैं...
लेकिन जरा जल्दी में कही गयी है...
bahut khubsurat gazal hai Adaji ! bahut hi badhiya.
ReplyDeleteहै मकानों का क्या ...बनते रहे ...
ReplyDeleteसंग तेरे जिए जिद हमारी है ...
यही तो है मकानों को घर बनाने वाली अदा ....
आँखें काजल बिन कारी हैं ...कोई कारा बसा है नैनन में ..:)
है मकानों का क्या वो बनते रहे
ReplyDeleteसंग तेरे जीयें जिद्द हमारी है
Extremely profound thoughts!
And the verse saahab kya kahana!
Sir you have told more than what you wrote.
Namaste!
आपकी ये ख़ूनी अदा भी ज़बरदस्त है...
ReplyDeleteजय हिंद...
है मकानों का क्या वो बनते रहे
ReplyDeleteसंग तेरे जीयें जिद्द हमारी है
आँखें काजल बिना हसीं हैं 'अदा'
इन में तस्वीर जो तुम्हारी है
अदाजी,
पंक्तिया बांधने वाली और कुछ उदासी लिए भी थी.तस्वीर में संगमरमर सी मूरत किसकी है!
है मकानो का क्या वो बनते रहे ..अच्छी पंक्ति है ।
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