Tuesday, July 17, 2012

आवाज़ की दुनिया भी कितनी पारदर्शी होती है...है ना !!! (संस्मरण)

(पुनर्प्रकाशित)
बात आज से ४ साल पहले की होगी...तब मैं रेडियो जॉकी थी, जो मेरा बहुत प्रिय पार्ट टाईम शौक़ भी है, और बहुत प्यारा काम भी.... कनाडा, में ९७.९ FM, पर 'आरोही' मेरा और मेरे सुनने वालों का अपना प्रोग्राम हर दिन शाम ८ बजे से १० बजे तक, सोमवार से शनिवार तक हुआ करता था, मेरी और मेरे सुनने वालों की, सारी की सारी अभिव्यक्ति का बहुत ही प्यारा माध्यम था...हर तरह के प्रोग्राम पेश करके, मैंने ख़ुद को रेडियो की दुनिया में बहुत अच्छी तरह स्थापित कर लिया था...जो आज तक लोग भूल नहीं पाए हैं, श्रोताओं का प्यार आज भी कम नहीं हुआ है, जब भी उनसे मिलती हूँ, एक ही बात वो कहते हैं, सपना जी आप वापिस कब आ रही हैं आवाज़ की दुनिया में...हम आपको बहुत मिस करते हैं...सुनकर सचमुच बहुत अच्छा लगता है...शायद किसी दिन फिर चली भी जाऊं...मेरा क्या भरोसा.. :)

ख़ैर..रेडियो प्रोग्राम करते वक्त मैं हमेशा अपने श्रोताओं को शामिल करना आवश्यक समझती हूँ, इस काम में सिर्फ़ रेडियो का माईक आपके वश में नहीं होता, आपकी आवाज़ के वश में अनगिनत कान होते हैं..और कानों से उतर कर अनगिनत दिलों पर भी आप राज करने लगते हैं...

मेरे श्रोता हर उम्र और हर तबके के लोग थे, मुझे याद है, एकाकी जीवन जीते हुए बुजुर्ग दंपत्ति, हॉस्पिटल में ३ साल से आपाहिज पड़ी महिला, फैक्टरी में रात की ड्यूटी करती हुई हिन्दुस्तानी महिलाएं, और अकेला टोरोंटो से रोज़ ओट्टावा आता हुआ ट्रक ड्राईवर, रात को बर्फ में टैक्सी चलाते टैक्सी ड्राईवर, और घर में नितांत अकेले रहने वाले हमारे बुजुर्ग...जब भी उनके फ़ोन आते थे, और उनको जब भी रेडियो पर मैं लेकर आती थी, उन्हें मैं उनकी अपनी नज़र में ऊँचा उठते देखती थी...उनकी आवाज़ में जो ख़ुशी मैं महसूस करती थी, उसको बयाँ करने की ताब मेरी लेखनी में नहीं है...

मुझे याद है, मेरी आवाज़ ने ३ साल से हॉस्पिटल में बिल्कुल पंगु पड़ी हुई महिला को बहुत बल दिया...रोजाना उन्होंने मेरा प्रोग्राम सुनना शुरू किया...मैं उनसे रोज़ बात करती थी, ये महिला (नाम लेना उचित नहीं होगा) पिछले ३ साल से अपने बिस्तर पर पड़ी थीं,  वो हिल नहीं पातीं थी...प्रोग्राम का वो असर हुआ  कि वो उठ कर बैठने लगीं, फिर एक दिन उन्होंने रेडियो पर ही मुझसे कहा, क्या आप मुझसे मिलने आ सकतीं हैं सपना जी...मैंने रेडियो पर ही उनसे वादा कर दिया...२ दिन बाद मैं हॉस्पिटल पहुँच गई...उन्होंने इतने फ़ोन घुमा दिए कि बता नहीं सकती, भारत में अपने घर के हर सदस्य से मेरी बात करवा दी...उनका उत्साह देखते बनता था, डॉक्टर, नर्स सभी अचम्भित थे...कितनी ख़ुश थीं वो, उस दिन के बाद मैं उनसे हर दिन बाकायदा रेडियो पर बात करने लगी, उनको यह अहसास दिलाया, वो अपने परिवार के लिए कितनी अहम् हैं..और आप यकीन कीजिये...वो अब व्हील चेयर में चल-फिर लेतीं हैं....शुक्रिया और आशीर्वाद के ना जाने कितने बोल उनके परिवार के एक-एक सदस्य ने कहा मुझसे, जिसकी मैं हक़दार भी नहीं थी...मैं तो सिर्फ़ एक माध्यम का सही उपयोग कर रही थी...

एक बुजुर्ग हैं, जिनको उनके अपने बच्चे नहीं पूछते, वो नितांत अकेले रहते हैं, सरकार से उनको पेंशन मिलती है, लेकिन उतनी ही मिलती है, जितनी से वो बस अपना गुजारा कर सकते हैं...उन्होंने एक दिन रेडियो पर ही कहा, सपना जी आप ये प्रोग्राम अपने पैसों से चलातीं हैं, कोई विज्ञापन नहीं देतीं, आपका बहुत खर्चा होता होगा, मैं कुछ योगदान करना चाहता हूँ..मैंने कहा भी था उनसे, वर्मा जी जबतक कर सकतीं हूँ करुँगी, आप इसकी चिंता मत कीजिये, लेकिन उन्होंने मेरे प्रोग्राम के लिए पैसे भेज ही दिए...मैंने उतना ध्यान भी नहीं दिया..लेकिन उनका फ़ोन आ गया, सपना जी आपको पैसे मिले या नहीं..आख़िर मैंने पूछ ही लिया वर्मा जी आपने कितने पैसे भेजे हैं...उन्होंने कहा $२०, मैं सकपका कर रह गई...उनकी बातों से मुझे इतना तो महसूस हो ही गया था, कि बेशक मेरे लिए वो रकम बहुत छोटी थी लेकिन उनके लिए बहुत बड़ी थी...उन्होंने जो कहा था,वो हू-ब-हू लिख रही हूँ ..सपना बिटिया मैं जानता हूँ $२० से आपका कुछ नहीं होने वाला है..लेकिन आपका यह रेडियो प्रोग्राम मेरे लिए बहुत ज़रूरी है...मैं बहुत ग़रीब इन्सान हूँ, जो पैसे मैंने आपको भेजे हैं वो मेरी दवा के पैसे हैं...मेरा कलेजा एकदम से मुँह को आ गया, मैं ने बोल ही दिया वर्मा जी आपको ऐसा नहीं करना चाहिए था... लेकिन उन्होंने कहा था सपना बिटिया तुम्हारा ये प्रोग्राम मेरी दवा से ज्यादा ज़रूरी है मेरे लिए...इसलिए इसे अपने पिता की तरफ से आशीर्वाद समझो...आज भी वर्मा जी हर दो-तीन दिन में फ़ोन कर ही देते हैं...कहते हैं मैं हर सुबह तुम्हारे लिए प्रार्थना करना नहीं भूलता हूँ बिटिया....भूल नहीं पाती हूँ ये सारी बातें...
एक  बुजुर्ग दंपत्ति, हर दिन ५ बजे शाम से ही रेडियो के सामने बैठ जाते थे, जब कि मेरा प्रोग्राम ८ बजे शुरू होता था...बार-बार घड़ी को देखते जाते और पूछते जाते एक-दूसरे से 'हल्ले नई होया' ..उनकी देखभाल करने के लिए जो सोशल वर्कर आतीं थीं..वो हर दिन मुझे बतातीं थीं..सपना जी इनकी आखों में इंतज़ार और बेताबी आप अगर देख लें तो अपने प्रोग्राम की टाईमिंग आप बदल देंगीं..

क्या-क्या और कितनी बातें बताऊँ...सैकड़ों बातें हैं...वो ट्रक ड्राईवर जो टोरोंटो से ओट्टावा हर दिन आता था...कहता था मेरा सफ़र ४ घंटे का होता है सपना जी, आपके प्रोग्राम को सुनने के लिए मैं ठीक ८ बजे चलता हूँ टोरोंटो से, आपकी आवाज़ के साथ मेरे २ घंटे, कैसे बीत जाते हैं पाता ही नहीं चलता....या फिर उस दंपत्ति का जिनका तलाक़ होने वाला था और मेरे रेडियो प्रोग्राम ने वो होने नहीं दिया...या फिर उनलोगों का ज़िक्र करूँ, जो अपने बुड्ढ़े माँ-बाप को गराज में रखते थे, और हर सुबह गुरुद्वारे छोड़ आते थे, ताकि उनके खाने का खर्चा बच जाए..(इसके बारे में तफसील से लिखूंगी ), जिनको मैंने इतना लताड़ा, कि वो सुधर ही गए और, उनके माता-पिता की दुआओं ने मेरी झोली भर दी...

ऐसी ही एक शाम थी, मैं रेडियो पर अपने श्रोताओं के साथ मशगूल थी...मेरे पास ७ फ़ोन लाईन्स थे..श्रोता कॉल करते, और मैं एक-एक श्रोता से बात करती जाती, और गाने सुनाती जाती, या फिर किसी ज्वलंत विषय पर चर्चा करती जाती..सारे लाईन हमेशा बिजी ही रहते थे...मुझे सुनने वाले कहीं से भी फ़ोन करते थे....जब कनाडा में रात के आठ बजते तो भारत में सुबह के ५-३० बजता है...उस दिन भी मैंने फ़ोन उठाया था...दूसरी तरफ से आवाज़ आई..सपना मैं प्राण नाथ पंडित बोल रहा हूँ...जीSSSSS !!!! माफ़ कीजिये कौन बोल रहे हैं...??? कॉलर ने दोबारा कहा...मैं प्राण नाथ पंडित बोल रहा हूँ, इंडिया से...सुनते ही मैं खड़ी हो गई थी कुर्सी से...सर आप ?? हाँ मैं....मैं तो बस हकलाने लगी थी...

श्री प्राण नाथ पंडित मेरे अंग्रेजी के प्रोफ़ेसर हैं...अपने गुरु की आवाज़ सुन कर मैं कुर्सी से फट खड़ी हो गई, बैठ ही नहीं पाई...मेरा साउंड इंजिनीयर, जो दूसरी तरफ बैठा था...वो भी घबरा गया...वो बार-बार इशारा करने लगा..क्या हुआ...?? लेकिन मारे घबराहट मैं उसकी बात भी समझ नहीं पा रही थी...ख़ैर, था वो गोरा लेकिन मेरी आवाज़ से समझ गया, डरने की बात नहीं है....मेरे श्रधेय गुरु जी ने कहना शुरू किया..अरे तुम्हारा प्रोग्राम मैं रोज़ इन्टनेट पर सुनता हूँ, बहुत ही अच्छा लगता है...सुबह-सुबह तुम्हारी आवाज़ सुन कर, मन प्रसन्न हो जाता है...और जाने वो क्या-क्या कहते जा रहे थे..और मैं तो बस जी जी करती जा रही थी...मैं पूरी तरह वही छात्रा बन गई थी, जैसी मैं कॉलेज में थी...मेरी हिम्मत ही जवाब देने लगी थी...लग रहा था, जैसे मेरे गुरु मेरे सामने खड़े हैं, बिल्कुल वही घबराहट, वही डर मैंने महसूस किया था,  मेरे लिए यह कितने सम्मान की बात थी, कि उनको मेरा प्रोग्राम पसंद आता है, इतना ही नहीं, उन्होंने अपना कीमती वक्त निकाल कर, मुझे फ़ोन करके न सिर्फ़ यह बताया,  अपना आशीर्वाद भी दिया...यह कितना बड़ा सौभाग्य था मेरा, न जाने कितने हज़ार स्टुडेंट्स उनके जीवन में आए होंगे, लेकिन उन्होंने मुझे याद रखा, मेरे लिए इससे बड़ी खुशकिस्मती की और क्या बात हो सकती है भला !!.....कुछ देर बात करने के बाद,  फ़ोन काटना पड़ा मुझे...इस बीच मैं एक भी फ़ोन नहीं ले पाई, डर के मारे मेरी आवाज़ काँप रही थी...कुछ संयत होकर जब मैंने फ़ोन काल्स लेना शुरू किया...मेरे सुनने वालों ने साफ़-साफ़ बता दिया...सपना जी, आपने जितनी देर अपने गुरु से बात की आप खड़ी थीं , हमें पता चल गया था...आपकी आवाज़ में वो घबराहट, वो आस्था, वो सम्मान था, जिसे हम न सिर्फ़ सुन रहे थे, महसूस भी कर रहे थे...और मैं हैराँ थी, आवाज़ की दुनिया भी कितनी पारदर्शी होती है...है ना !!!
आपकी नज़रों ने समझा प्यार के क़ाबिल मुझे....आवाज़ 'अदा' की 

30 comments:

  1. बहुत ही उत्तम अदा जी, आपकी आवाज ने लोगो को जो सुकून पहुचाया, आप उसके लिए बधाई की पात्र हैं.

    ReplyDelete
  2. बहुत बढिया संस्‍मरण ..

    पहले भी पढ चुकी हूं ..
    फिर भी दुबारा पढी ..

    एक नजर समग्र गत्‍यात्‍मक ज्‍योतिष पर भी डालें !!

    ReplyDelete
    Replies
    1. संगीता जी,
      आपने दुबारा पढ़ा, शुक्रिया..
      अब हमसे दुबारा मिलने के लिए भी तैयार रहिएगा.. :)

      Delete
  3. संस्कारो से भरी शानदार पोस्ट जहाँ गुरुकुल की खुशबू का एहसास मिला साथ ही कर्ण प्रिय गाना का आनंद आया .

    ReplyDelete
    Replies
    1. रमाकांत जी,
      हमलोगों के लिए गुरुजन तब भी श्रधेय थे, और अब भी |
      इस उम्र में भी उनको देख कर घिघी बंध जाती है...
      आपको पसंद आया, ये मेरा सौभाग्य है,
      धन्यवाद

      Delete
  4. सारे संस्मरण आँखें नम कर देने वाले हैं...
    वो अस्पताल में पड़ी महिला..वो बुजुर्ग..और वो एकाकी बुजुर्ग दंपत्ति..... RJ से एक दिल का रिश्ता सा बन जाता है.
    उनेह घड़ी दो घड़ी की ख़ुशी देकर कितना संतोष मिलता होगा...फिर से इसके प्रसारण के विषय में गंभीरता से सोचो.
    अपने रेडियो सुनने वाले दिन याद आ जाते हैं..कितना जुड़ जाते थे हम बस इक आवाज से.

    और वो इंग्लिश प्रोफ़ेसर वाला संस्मरण तो कमाल का है.
    एक बार दिल दुखता भी है...आजकल अपने गुरु के प्रति उतनी श्रद्धा नहीं देखी जाती...लेकिन फिर ये भी ध्यान आ जाता है कि आज भी स्टुडेंट्स के अपने प्रिय टीचर होते हैं...जींस एमिलने वे स्कूल-कॉलेज से निकल जाने के बाद भी जाते हैं.

    ReplyDelete
    Replies
    1. रश्मि,
      मैं ख़ुद को बहुत भाग्यवान समझती हूँ, कि मुझे इनलोगों ने अपने क़रीब आने दिया, मैं छोटे से तरीके से ही सही, इनके कुछ काम आ पाई...
      कुछ और भी संस्मरण हैं, जिन्हें ब्लॉग पर सहेजना चाहूँगी...
      सच बात तो ये है, कि मैं मेरे गुरुजनों के स्मरण मात्र से ही, कृतज्ञ हो जाती हूँ...अगर वो नहीं देते ऐसी शिक्षा तो, कहाँ पहुँच पाती उस जगह जहाँ इस समय हूँ, और कहाँ लिख पाती उनके ही बारे में...!!

      Delete
  5. sundar sansmaran सार्थक व् सुन्दर प्रस्तुति आभार समझें हम

    ReplyDelete
  6. औपचारिक शिक्षा झूठी सच्ची डिग्रियां देती है, अच्छे संस्कार परिवार और गुरुजन देते हैं| आपके लिखे संस्मरणों में से सर्वोत्तम में से एक|
    अब कभी ऐसा रेडियो कार्यक्रम करें तो सूचित कीजियेगा, हम भी फोन करेंगे| पहचान तो लेंगी न?

    ReplyDelete
    Replies
    1. जब भी ऐसा कुछ शुरू करुँगी..
      आपको तो ज़रूर ही शामिल होना होगा..:)

      Delete
  7. .

    आपके संस्मरणों के साथ सहभागिता करके भीग गए … … …
    कुर्सी से खड़े हो'कर सर झुका कर तीन ताली बजाई है आपके अभिवादन में !!

    … और "आपकी नज़रों ने समझा प्यार के क़ाबिल मुझे" सुन कर तो किसी और ही दुनिया में पहुंच गए …
    सच्ची !
    … …
    … … …

    कितने समय बाद आपके यहां कमेंट की सुविधा मिली … शुक्रिया !
    अब दरवाज़ा खुला ही रखें …
    :)


    सलाम ! नमन ! शुभकामनाएं !

    ReplyDelete
    Replies
    1. राजेन्द्र भाई,
      तभी मैं कहूँ ये तालियों की गडगडाहट कि आवाज़ कहाँ से आ रही थी :)
      आप तो स्वयं सुर के धनी हैं...आपके सामने मेरी क्या बिसात भला..!
      आपको भी नमन,शुभकामनाएं !

      Delete
  8. ज्यादा कुछ नहीं कहूँगी......
    loved ur writing...ur voice...
    you are a complete package.
    :-)
    भगवान आपको बुरी नज़र से बचाए.

    अनु

    ReplyDelete
    Replies
    1. आप कहतीं हैं ज्यादा नहीं कहूँगी, और इतना कुछ कह दिया..
      अब इससे बेटर के होवे है जी ! :)
      अब जो भी नज़र-गुजर होगी, आपकी इसी टिप्पणी सामना नहीं कर पाएगी...इतने स्नेह के आगे कहाँ टिक पाएगी !
      आपने इस योग्य समझा, कृतज्ञ हूँ..

      Delete
  9. shukhar hai tippni dibba khul gaya....ab to kam se kam meri aawaz nahi to meri baat to tum tak pahunch paayegi.

    mujhe ye awaz kab sunNe ko milegi ji ?

    ReplyDelete
    Replies
    1. आज शुक्र नहीं बुध है, बात करती है..!
      जहाँ तक आवाज़ का प्रश्न है, अब थोड़ी फुर्सत में हूँ, किसी भी दिन टपक जाऊँगी, कौन सा मुझे तुमसे इजाज़त लेना है...
      हाँ नहीं तो..!

      Delete
  10. ऐसे छोटे छोटे सरप्राईजेस ही तो जीवन को रोचक बना देते हैं ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. विवेक जी,
      मेरे लिए ये छोटा सरप्राइज़ नहीं था, अमूल्य सरप्राइज़ था मेरे जीवन की थाती है यह |
      आपने सही कहा 'छोटे छोटे सरप्राईजेस ही तो जीवन को रोचक बना देते हैं ।' लेकिन अमूल्य सर्प्रैज्स जीवन को जीवंत बना देते हैं.
      धन्यवाद !

      Delete
  11. वाह क्या रोचक संस्मरण हैं... लोगों के चेहरे पर मुस्कान लाना, सबसे उत्तम कार्य है. इसके लिए आपको शुभकामनाएं...

    ReplyDelete
  12. बस अपने तरीके से कोशिश करते हैं, लोकेन्द्र जी..
    आपको पसंद आया आलेख,
    धन्यवाद कहते हैं..

    ReplyDelete
  13. यह संस्मरण मैंने पहले भी पढ़ा था। बहुत अच्छा लगा था। आज फ़िर से पढ़ा -बहुत अच्छा लगा।
    अगर आपके पास अपने रेडियो जॉकी वाले कार्यक्रमों की रिकार्डिंग हों तो उनको अपने ब्लॉग पर लगायें।
    गाना सुनते हुये टिपिया रहे हैं। उम्दा आवाज!

    ReplyDelete
    Replies
    1. कहीं न कहीं होंगे वो प्रोग्राम्स भी..
      ढूँढूँगी..
      बुझाता है मल्टीटास्किंग आप बढ़िया कर लेते हैं :)
      आपका आभार

      Delete
  14. Two words! "Awesomeness personified!" :)

    ReplyDelete