'सुयोधन' काहे 'दुर्योधन' बनी जावा
आज कछू हम मगज लागावा
थी दुर्योधन की मात गांधारी
हस्तिना नरेश ध्रितराष्ट्र की प्यारी
नेत्रहीन ध्रितराष्ट्र थे भाई
गांधारी को यह बहुत दुःखदाई
पुत्र हस्तिनापुर युवराज बनी जावा
जतन विविध गांधारी लगावा
कोख पर अनेकों प्रहार कर दिन्हाँ
किन्तु प्रसव आपन समय ही लिन्हाँ
पहिले कुंती ही बालक जन पाई
पाछे गांधारी मात कहाई
बालक सुयोधन के प्राण बची जावा
कोख माहि अनेक प्रहार वो खावा
भीषण प्रहार जो झेली जावे
'सुयोधन' ताहि नामहीं पावे
किये अनीति दौऊ पक्ष जाने
पांच पति द्रौपदी जब किन्हाँ
ताख पर सब नीति रख दिन्हाँ
कर्ण को जब कुंती ने त्याजी
कौन निति की बात किया जी
कर्ण को पांडव नहीं स्वीकारे
दुर्योधन बढ़ी बाँह पसारे
जब पाँचों भाई वरदान से आये
तब काहे कर्ण गए बिसराए
काहे द्रौपदी अपमान किया जी
आँधर का पुत्र आँधर कहा जी
ई कौन सी नीति हमको बताओ
अपनी पत्नी को दाँव पर लगाओ
पत्नी अपनी स्वयं दाँव लगाई
रही कहाँ प्रतिष्ठा जो गंवाई ?
शुरुआत द्रौपदी चीर हरण का
स्वयं धर्मराज युधिष्ठिर कर दीना
दोष लगाये दुर्योधन पर
उसने तो बस विस्तार दिया था
भीष्म को मारन शिखंडी बुलाया
अर्जुन पाछे से बाण चलाया
नार पर वाण भीष्म नहीं मारे
निहत्थे भीष्म को अर्जुन सँहारे
शर शैया पर भीष्म लिटाया
अर्जुन फिर भी वीर कहाया
गुरु द्रोण से अनीति खेली
गोधूलि में 'अश्वस्थामा' नाम ले ली
अश्वस्थामा मारा गया बताया
भेरी बजा सब वाक्य दबाया
हाथी मरा था अश्वस्थामा
द्रोण तक पूरी बात न पहुँचाया
द्रोण पूरा नहीं सुन पावे
पुत्र शोक में प्राण गंवावे
गुरु थे किन्तु थे वो अभागे
शिष्यों के कर प्राण तियागे
आगे भी हम बताए भईया
कौन-कौन छल किये किशन कन्हईया
गांधारी दुर्योधन को बुलाई निज द्वारे
बिना वस्त्र के आना मेरे प्यारे
तब कृष्ण ने भांजी दै मारी
दर्योधन की मति फेर दी सारी
नग्न कैसे जाओगे भ्राता
कुछ भी कहो है वो माता
कृष्ण का छल काम में आया
दुर्योधन संकोची अधो-वस्त्र लगाया
गांधारी देख उसे पाषाण बनाई
बस जंघा प्रदेश नहीं बन पाई
भीम संग गदा युद्ध जब आया
पराजित होता भीम सकुचाया
कृष्ण ने तब एक और अनीति बताई
हाथ मार जंघा दिखा दी
गदा युद्ध का नियम है भाई
कमर के नीचे न कोई चोट पहुँचाई
किन्तु भीम प्रहार कर दीन्हा
युद्ध की नीति अनीति कर दिन्हाँ
ऐसे कितने ही अनीति हुए भईया
दोष दुर्योधन को काहे देवें मईया
पाण्डव कौन दूध के धुले थेकहें अधर्म पर धर्म विजय पावे
हमका अधर्म पर अधर्म नज़र आवे ....
आज कछू हम मगज लागावा
थी दुर्योधन की मात गांधारी
हस्तिना नरेश ध्रितराष्ट्र की प्यारी
नेत्रहीन ध्रितराष्ट्र थे भाई
गांधारी को यह बहुत दुःखदाई
पुत्र हस्तिनापुर युवराज बनी जावा
जतन विविध गांधारी लगावा
कोख पर अनेकों प्रहार कर दिन्हाँ
किन्तु प्रसव आपन समय ही लिन्हाँ
पहिले कुंती ही बालक जन पाई
पाछे गांधारी मात कहाई
बालक सुयोधन के प्राण बची जावा
कोख माहि अनेक प्रहार वो खावा
भीषण प्रहार जो झेली जावे
'सुयोधन' ताहि नामहीं पावे
पांडू श्राप से ग्रसित थे भाई
पुत्र प्राप्ति में थी कठिनाई
तब कुंती के वरदान काम आवा
'धर्म', 'वायु, अरु 'इन्द्र' बुलावा
कुन्ती-पुत्र युधिष्ठिर जाना
पांडू पुत्र नहीं ऊ माना
रक्त कुरु नाही युधिष्ठिर पावे
बात याही पर दुर्योधन भीड़ जावे
बात उसकी हमहूँ यही माने
राजा का पुत्र 'राजा' हम जाने
बहुत अनीति हुई हम मानेकिये अनीति दौऊ पक्ष जाने
पांच पति द्रौपदी जब किन्हाँ
ताख पर सब नीति रख दिन्हाँ
कर्ण को जब कुंती ने त्याजी
कौन निति की बात किया जी
कर्ण को पांडव नहीं स्वीकारे
दुर्योधन बढ़ी बाँह पसारे
जब पाँचों भाई वरदान से आये
तब काहे कर्ण गए बिसराए
काहे द्रौपदी अपमान किया जी
आँधर का पुत्र आँधर कहा जी
ई कौन सी नीति हमको बताओ
अपनी पत्नी को दाँव पर लगाओ
पत्नी अपनी स्वयं दाँव लगाई
रही कहाँ प्रतिष्ठा जो गंवाई ?
शुरुआत द्रौपदी चीर हरण का
स्वयं धर्मराज युधिष्ठिर कर दीना
दोष लगाये दुर्योधन पर
उसने तो बस विस्तार दिया था
भीष्म को मारन शिखंडी बुलाया
अर्जुन पाछे से बाण चलाया
नार पर वाण भीष्म नहीं मारे
निहत्थे भीष्म को अर्जुन सँहारे
शर शैया पर भीष्म लिटाया
अर्जुन फिर भी वीर कहाया
गुरु द्रोण से अनीति खेली
गोधूलि में 'अश्वस्थामा' नाम ले ली
अश्वस्थामा मारा गया बताया
भेरी बजा सब वाक्य दबाया
हाथी मरा था अश्वस्थामा
द्रोण तक पूरी बात न पहुँचाया
द्रोण पूरा नहीं सुन पावे
पुत्र शोक में प्राण गंवावे
गुरु थे किन्तु थे वो अभागे
शिष्यों के कर प्राण तियागे
आगे भी हम बताए भईया
कौन-कौन छल किये किशन कन्हईया
गांधारी दुर्योधन को बुलाई निज द्वारे
बिना वस्त्र के आना मेरे प्यारे
तब कृष्ण ने भांजी दै मारी
दर्योधन की मति फेर दी सारी
नग्न कैसे जाओगे भ्राता
कुछ भी कहो है वो माता
कृष्ण का छल काम में आया
दुर्योधन संकोची अधो-वस्त्र लगाया
गांधारी देख उसे पाषाण बनाई
बस जंघा प्रदेश नहीं बन पाई
भीम संग गदा युद्ध जब आया
पराजित होता भीम सकुचाया
कृष्ण ने तब एक और अनीति बताई
हाथ मार जंघा दिखा दी
गदा युद्ध का नियम है भाई
कमर के नीचे न कोई चोट पहुँचाई
किन्तु भीम प्रहार कर दीन्हा
युद्ध की नीति अनीति कर दिन्हाँ
ऐसे कितने ही अनीति हुए भईया
दोष दुर्योधन को काहे देवें मईया
पाण्डव कौन दूध के धुले थेकहें अधर्म पर धर्म विजय पावे
हमका अधर्म पर अधर्म नज़र आवे ....
वादियाँ मेरा दामन, रास्ते मेरी बाहें....आवाज़ 'अदा' की...