बहुत पुरानी बात है
पृथ्वी के पूर्वी कोने में
एक अति तेजस्वी बालक ने
जन्म लिया
ओजपूर्ण था मुखमंडल उसका
सभ्यता की पहली धोती
उसने ही थी पहनी
ज्ञान-विज्ञान से बना
तन उसका
कीर्ति पताका लहराई
ऊंचे गगन में
यशगान की धुन फ़ैल गयी
संपूर्ण भुवन में
धीरे धीरे वो श्रेष्ठ बालक
अति सुन्दर युवक बन गया
उसकी ज्ञान भरी बातें
लोग गाने लगे
इस कोने से उस कोने तक
पहुँचाने लगे और
धीरे-धीरे अपनी बातें भी
मिलाने लगे
हजारों वर्ष
हो गयी उम्र उसकी
बोल नहीं सकता वह
खो दी उसने अपनी वाणी
आज भी लोग
उसके नाम के गीत गा रहे हैं
अब उसकी नहीं
सिर्फ
अपनी सुना रहे हैं
नाम लेले कर उसका
थोथा ज्ञान फैला रहे हैं
जो बात कभी नहीं कही
उसके नाम उद्धरित करते जा रहे हैं
वह मूक चुप-चाप सब कुछ
देख रहा है
सोचता है-
क्या मैंने कहा था ?
और ये क्या कह रहा है ?
इस आस से कि शायद
उसकी वाणी लौट आये
फिर वो इन मूर्खों
को समझाए
जीए जा रहा है
लांछन उन व्याख्याओं का
जो उसने कभी नहीं दिया
अपने सर लिए जा रहा है
सच्चाई के पत्थरों से
जो सीधी सरल सी राह
उसने बनायीं थी
जिसमें संस्कारों के फूल और
सहिष्णुता कि छाया, छाई थी
उस मार्ग से कई वक्र रास्ते
लोगों ने लिए हैं निकाल
अंधविश्वास, छुआ-छूत
आदि राहों का
बिछा दिया अकाट्य जाल
जिसकी परिधि
ऐसी फैली कि
फैलती ही गयी
सत्य मार्ग धूल-धूसरित होकर
इस चक्रव्यूह में लुप्त हुआ
संस्कारों के फूल मुरझाये
वेद-पुराण सब गुप्त हुआ
सच ही तो है
एक झूठ सौ बार कहो तो
सबने सच मानी है है
हिन्दुत्व !
तेरी भी यही कहानी है....
तुम्हीं मेरे मंदिर.. आवाज़ 'अदा' की...