Saturday, July 14, 2012

पश्चिमी सभ्यता ने हमारा खानाख़राब कर दिया है ????

अक्सर एक बात सुनने को मिलती है, पश्चिमी सभ्यता ने हमारा खानाख़राब कर दिया है। पश्चिम ने हमें कहीं का नहीं रखा, हमारे देश की सम्पूर्ण संस्कृति मटियामेट हो गयी, सिर्फ इनके कारण। एक बात हम नहीं समझ पाते, क्या पश्चिम के लोगो ने हिन्दुस्तानियों की गर्दन पर बन्दूक रख कर कहा है, कि  तुम हमारी संस्कृति अपनाओ नहीं तो भुगतोगे। जैसे कपडे हम पहनते हैं,  वैसे अगर तुमने अपनी बेटियों को नहीं पहनाया तो परमाणु बम गिरा देंगे। वाह भाई वाह ! दूकान आप जाते हैं, कपडे आप पसंद करते हैं, जेब में हाथ डाल कर आप पैसे निकलते हैं, ख़ुशी-ख़ुशी फुदकते हुए आप घर आते हैं, जब आपकी बेटी वो कपडे पहन कर निकलती है,  तो सीना आपका फूल कर 45 इंच का होता है, जब आपके बच्चे अंग्रेजी में गिटिर-पिटिर करते हैं तो, मूँछों पर ताव आप देते हैं, फिर पश्चिमी लोगों को किस बात का सारा क्रेडिट दे रहे हैं आप ???

अपनी कमियों का दोष, दूसरों पर डालना एक किसिम की कायरता है, पश्चिम वाले नहीं आए थे कहने, कि आप मेरी संस्कृति अपनाएं, वर्ना आप कहीं के नहीं रहेंगे । उसे अपनाना आप का अपना फैसला है । भारतीय विद्वानों, कुछ तो शर्म कीजिये, अपनी गलतियों को स्वीकारने का माद्दा रखिये । ई तो अच्छी रही 'खेत खाए गधा और मार खाए जोलहा '। और जब अपना ही लिया है, तो उसका जो भी अंजाम है, भुगतने के लिए भी तैयार रहिये । क्योंकि उसकी सारी जिम्मेदारी आपकी बनती है । जिसे देखो मुंह उठा कर, पश्चिम को दोष दे देता है । वो अगर ऐसा करते हैं तो ये उनकी अपनी इच्छा है । आप मत करें न नक़ल,  किसने कहा है आपसे 'ओखर चढ़ के बराबरी करने को' ??? पश्चिम ने न हाथ जोड़ कर कहा, कि हम जो-जो करते हैं तुम करते चले जाओ, वड्डी किरपा होगी । आप तो अपनी चीज़ भी तभी अपनाते हैं, जब पश्चिम आपको बताता है, यह चीज़ अच्छी है, फिर चाहे वो 'योग' हो या 'गाँधी' । 

अगर कोई न चाहे, तो नहीं ही अपनाएगा । गांधी जी के ज़माने में जितने अँगरेज़ और जितनी अंग्रेजियत हिन्दुस्तान में थी, उतनी शायद हमारे इस जन्म में नहीं होने वाली है, लेकिन गाँधी जी को वो नहीं अपनाना था, तो नहीं अपनाया उन्होंने । उनके साथ बहुत थे, जिन्होंने उधर का रुख भी नहीं किया। मैनचेस्टर की ईट से ईट बजा कर रख दी थी उन्होंने। सारे विदेशी कपड़ों की होली जला दी थी। एक-एक, भारतीय ने विदेशी कपड़ों का ऐसा बोयकाट किया कि मैनचेस्टर की इकोनोमी चरमरा गयी। आप भी कीजिये ऐसे फैशन का बोयकाट किसने मना किया है। आप अपने बच्चे नहीं सम्हाल पाते और अपनी कमजोरी फट से दूसरों पर लाद देते हैं। अच्छा तरीका है, अपनी कमियों पर पर्दा डालने का।

मेरा घर ही पश्चिम में है, मेरे बच्चे यहीं बड़े हुए हैं। हमने यहाँ की संस्कृति उतना ही अपनाया है, जितना हम पचा सकते हैं, और जितने से हमारी पहचान को कोई ठेस नहीं लगती।  यहाँ का जो भी पहनावा है, वो यहाँ के मौसम के अनुसार है। आप लोग नहीं समझ सकेंगे, आना पड़ेगा यहाँ, और कुछ दिन रहना भी पड़ेगा, तभी बात समझ में आयेगी। 

कितनी अजीब बात है, आज भारतीय पुरुषों का चरित्र, महिलाओं के कपड़ों पर निर्भर करता है। बहुत आसान सा तरीका है, लड़कों ने किसी लड़की को छेड़ दिया, पूछने पर, बहुत बेशर्मी से कारण मिलेगा 'जी इसने कपडे ही ऐसे पहने थे, तो हम क्या करते। वाह क्या दलील है, क्यों नहीं कुछ कर सकते थे आप। वही कपडे अगर अपने घर की कोई लड़की पहन कर निकले, तब तो नियत ख़राब नहीं होती, लेकिन अगर कोई दुसरे घर की लड़की निकले, फट नियत खराब हो जाती है। नियत भी परमिट ले-ले कर खराब होती है। यह सिर्फ और सिर्फ चारित्रिक पतन का द्योतक है, और कुछ नहीं।

पश्चिमी देशों में भी तो लडकियाँ हैं और वो भी अत्याधुनिक हैं, भारत से कहीं ज्यादा । पुरुष भी हैं यहाँ,  लेकिन ऐसी गलीज़ नहीं देखी यहाँ । छेड़-छाड़, ईव-टीज़ जैसी चीज़ यहाँ देखने को आज तक नहीं मिली। बल्कि यहाँ कोई किसी को घूरता भी नहीं है। पुरुष इस तरह की हरकत करने की हिम्मत भी नहीं करते क्योंकि कानून भी बहुत सख्त है। 

महिलाएं, पुरुषों के साथ कंधे से कन्धा मिला कर चल रही हैं | मेरी बेटी यूनिवर्सिटी जाती है, उसकी क्लास रात १० बजे ख़त्म होती है, घर आते आते उसे ११ बज ही जाते हैं...लेकिन मुझे इस बात की फ़िक्र नहीं होती, कि उसके साथ कोई अनुचित हादसा न हो जाए, हाँ मुझे फ़िक्र होती है,तो  रोड एक्सीडेंट की । अब आप बताइये कि इसमें लड़की के आधुनिक होने से, कहाँ कोई दिक्कत आ रही है । यहाँ लडकियाँ हर तरह से सुरक्षित हैं, भारत में क्यों नहीं हैं नारियां सुरक्षित ???? पश्चिमी संस्कृति अगर इतनी ही बुरी होती तो यहाँ भी आए दिन हंगामे होते, क्योंकि पुरुष यहाँ भी हैं और उनमें होरमोंस भी हैं....
 
स्त्री की होड़ पुरुष बनने की कभी नहीं रही है, हो भी नहीं सकती। स्त्री सिर्फ अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर रही है और करती रहेगी, क्योंकि स्त्री भी एक सामाजिक प्राणी है, और इसे आप पुरुषगण  खुद के लिए अभिशाप भी समझ सकते हैं, ईश्वर ने हम स्त्रियों को भी, अच्छा-ख़ासा दिमाग दे दिया है, और हम अपने दिमाग का इस्तेमाल करना चाहती हैं।  स्त्री भी डॉक्टर, ईन्जीनियर, पाइलट सबकुछ बन सकती है, और बनना चाहती है...वो अपने मष्तिष्क को सिर्फ़ घर में रोटी बना कर, बेजा नहीं होने देना चाहती है । पुरुषों को तो ख़ुश होना चाहिए कि स्त्री रोटी बनाने के साथ-साथ और भी बहुत कुछ करके उनका हाथ बँटाना चाहती है । कभी इस नज़रिए से भी तो सोच कर देखें।

27 comments:

  1. निश्चित तौर पर सभ्यता को दोष देना गलत है क्योंकि सभ्यता और असभ्यता व्यक्ति-व्यक्ति पर निर्भर करती है।
    खुद के अंदर झाँकने और खुद को शुद्ध करने की ही आवश्यकता है।

    सादर

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    1. यशवंत,
      तुमने बिल्कुल सही नब्ज़ पकड़ी है..
      ख़ुश रहो

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  2. कल 15/07/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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    1. छोटे हो, धन्यवाद भी कैसे कहें..:)
      यही कह सकते हैं, कि इस आलेख को इस काबिल तुमने समझा, बड़ी बात है..

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  3. हाँ जी! इनका सब कुछ किसी न किसी ग़ैर ने ही किया है - जिसने अपनी ज़िम्मेदारी कभी पूरी नहीं की वह हर बात के लिये किसी और को दोष दे सकता है। लेकिन ये तार्किक बेईमानी आजकल खूब चल रही है। :(

    पश्चिम में कानून व्यवस्था तो है ही, व्यक्तिगत स्वतंत्रता का आदर और समझदारी का ऊँचा स्तर भी विद्यमान है। हमारे देश में गुंडे भले ही 20% हों, दुर्भाग्य से समाज पर सिक्का उन्हीं का चलता दिखता है। मैने कभी कहा था कि देश की एक ज़रूरत और भी है, "लड़कियों को कराते और लड़कों को तमीज़" सिखाने की।

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    1. हम हिन्दुस्तानियों का प्रिय शगल है, अपना ठीकरा दूसरे के सिर पर फोड़ना...सो लगे हुए हैं फोड़ने में..
      लेकिन ये भूल जाते हैं कि इसमें अपना ही नुकसान कर रहे हैं...
      आपने सही कहा, पश्चिम में कानून व्यवस्था तो है ही, व्यक्तिगत स्वतंत्रता का आदर और समझदारी का ऊँचा स्तर भी विद्यमान है।
      जब तक ये चीज़ें नहीं आएँगी समाज में, हम जहाँ हैं, उससे नीचे ही जाना होगा, ऊपर उठने कि कोई गुंजाईश नहीं है..
      आपका आभार

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  4. पश्चिम की बुराईयाँ तो पूरी सीखीं, अच्छाईयाँ छोड़ दी...

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    1. अच्छाईयाँ सीखने के लिए परिश्रम करना पड़ता है प्रवीण जी...

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  5. स्वप्र मंजूषा 'अदाÓ जी, आपने जिस बेबाकी से अपने तर्क रखे हैं पश्चिमी संस्कृति की आड़ लेने वाला हर कोई निरुत्तर रह जाएगा। आज भारत के लोगों की जीवन शैली में जो खामियां आईं हैं उनके लिए मैं पश्चिमी संस्कृति को पूरी तरह दोष नहीं देता, लेकिन दोषी तो वह है ही। प्राथमिक दोष तो संस्कृति को स्वीकार करने वाले का ही है। एक और बात संस्कृतियों का आक्रमण सदैव बंदूक या तलवार की नोंक पर नहीं होता। शिक्षा व्यवस्था और बाजारवाद भी इसका एक कारण है। मैकाले पहले ही अपने पत्र में लिखकर मर चुका है कि भारत को गुलाम बनाना है तो उसकी संस्कृति पर चोट करनी होगी और इसके लिए उसकी शिक्षा व्यवस्था को चौपट करना होगा। ब्रिटिश शासन यहां से जाते-जाते अपने कीटाणु यहां छोड़ ही गया। हमारी शिक्षा व्यवस्था और बाजारवाद का ही नतीजा है कि जिस योग का जन्म हमारे यहां हुआ उसकी कद्र हमने तब जानी जब वह पश्चिम की चासनी में लिपटकर आया। इसी तरह आयुर्वेद जब हर्बल हो गया तब हमें ज्ञान हुआ कि ऐलोपैथी से कहीं अधिक श्रेष्ठ हर्बल है।
    इस बात को भी समझ लेना जरूरी है कि हम जैसा खाते हैं और पहनते हैं उसका असर हमारे व्यक्तित्व में भी दिखता है। यहां मैं थोड़ा सा कठोर हो जाउंगा - अर्मादित वेशभूषा को लेकर अब भारत ही नहीं अन्य देशों में भी चिंता जताई जाने लगी है। इस बात से तो कोई भी सहमत नहीं हो सकता कि भारत में ही स्त्रियां असुरक्षित है अन्य देशों में एकदम सुरक्षित हैं। पश्चिम देशों में हंगामे होने का सवाल ही नहीं उठता क्योंकि वहां उन बातों को मान्यता दे दी गई है जिन बातों के लिए भारत का बहुसंख्यक समाज आज भी तैयार नहीं है। यहां कुछेक हाई सोसायटी को छोड़कर आज भी कोई अपनी मां को सेक्सी कहने की हिम्मत नहीं कर सकता, बाप बेटी को हॉट नहीं कह सकता, बेटा अपने मां-बाप के सामने अपनी गर्लफ्रेंड को किस नहीं कर सकता। खैर, जो भी हो भारत की वर्तमान परिस्थितियों के लिए सिर्फ पश्चिम को दोष देने से काम नहीं चलने वाला यही सौ फीसदी सच है। बदलाव लाना है तो कर्म करना पड़ेगा।
    आखिर में स्पष्ट करता चलूं कि मैं स्त्रियों की स्वतंत्रता कट्टर पक्षधर हूं। हाल ही में असम में देर रात बार से लौट रही युवती को बीस लोगों की भीड़ ने सरेआम बेइज्जत किया, उसे नोंचा, उसके कपड़े फाड़े। इस घटना ने मुझे अंदर तक झकझोर कर रख दिया। मैं बयान नहीं कर सकता। यह खबर मैंने रात में देखी थी, सुबह तक आंखों में नींद नहीं थी। भले ही वह लड़की बार से आ रही हो या कम कपड़े पहने हो लेकिन मैं उन भेडिय़ाओं का पक्ष कभी नहीं ले सकता।

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    1. लोकेन्द्र जी,
      हम भी यही कहते हैं, आप वही अपनाइए जो आप झेल सकते हैं, जितनी आपकी टोलेरेंस है..अब अगर अनिल अम्बानी ने अपनी पत्नी को जेट प्लेन उपहार में दिया तो आप भी जेट खरीदने में लग जाएँ, जब कि आपकी न हैसियत है, न गुर्दा तो ग़लत ही होगा ना...पश्चिमी समाज का अपना टोलेरेंस है, वो जो भी कर रहे हैं, उसके साथ ताल मिला कर चलना उनको आता है...हिन्दुस्तानी नहीं झेल सकते तो मत झेलिये ना..किसने कहा है हिन्दुस्तानियों से कि अपनी बेटियों को अल्ट्रा मोडर्न बनाने को...
      दो ही बातें हो सकतीं हैं या तो हम-आप सुधर जाइए या फिर ऐसे बदलाव से परहेज रखें...

      जहाँ तक भाषा का सवाल है, हॉट, सेक्सी यहाँ की आम भाषा है...जैसे गुलजार साहब ने बड़ी कृपा की है भारत में 'कमीना' शब्द को कूल बनाने की...
      स्लैंग तो बदलते ही रहते हैं, पहले हम लिखा करते थे 'I am happy and gay.' लेकिन अब इसके मायने ही बदल गए हैं...इसलिए आज जो भाषा आम है, वो कल नहीं थी, मुझे याद है हमलोग 'मज़ा; शब्द उच्चारित ही नहीं करते थे..लेकिन अब धड़ल्ले से करते हैं...
      जहाँ तक चुम्बन और गले मिलने का प्रश्न है, यह यहाँ अभिवादन का तरीका है, अरब देशों में भी दो आदमी भी, जब आपस में मिलते हैं एक दूसरे को चूमते हैं...हाँ कालान्तर में यह थोड़ा ज्यादा हो गया है यहाँ भी, कई बार गोरे बूढे-बुजुर्गों को नाक-भौं सिकोड़ने भी देखती हूँ...अगर कोई जोड़ा ऐसा रास्ते में कर रहा हो तो लोग शोर भी मचाते हैं ' Get a room ', लेकिन यह भी इक्का-दुक्का ही नज़र आता है....हाँ Hollywood सिनेमा की बात आप कर रहें हैं तो ये बातें उसमें exaggeration ही होतीं हैं...
      जिस घटना का आपने ज़िक्र किया, वो सिर्फ़ चारित्रिक पतन का द्योतक है..
      अच्छा लगा आपने अपने विचार रखे...मैं भी जान पाई कुछ और बातें..
      आपका आभार !

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  6. बिलकुल सही कहा...
    पश्चिमी सभ्यता आगे बढ़कर अपनाओ...उनपर गर्व करो...पर जब अपनी गलती छुपानी हो तो दोष उनके मत्थे मढ़ दो..
    आज गली-गली में अंग्रेजी मीडियम के स्कूल खुल रहे हैं...और फिर हिंदी का रोना रोयंगे कि हिंदी का विकास नहीं हो रहा.

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    1. हिंदी का विकास ?
      ऊ का होता है ?
      ब्लॉग पर ही हिंदी का झंडोतोलन होगा..बकिया गईल भैंस पनिये में...:)

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  7. महिलाओं पर होने वाला ऐसा कोई भी अत्याचार नहीं हैं जो पश्चिम के संपर्क में आने से पहले हमारे यहाँ नहीं होता हो.हम उनके बारे में जो भी राय बनाएँ पर पश्चिम के लोग जानते हैं कि स्त्री पुरुष का रिश्ता दो इंसानों का रिश्ता होता न कि इंसान और भेडिये का.जो लोग छेडछाड या बलात्कार के लिए पश्चिमी सभ्यता को या लडकियों के छोटे कपडों को दोषी ठहरा रहे हैं ये लोग दरअसल मेरी नजर में व्यवस्था के असली गुंडे हैं और ये बात हर ऐसा सोचने वाले पुरुष पर लागू होती है फिर चाहे वो पुरुष मेरे घर परिवार मित्रों या रिश्तेदारों में ही क्यों न हों.आप जिन पश्चिमी पुरुषों की बात कर रही हैं जो महिलाओं की घूरते तक नहीं उनके डीएनए में ही कोई कमी रही होगी इन्हें यहाँ भेज दिया जाए क्योंकि ये अभी सिर्फ पुरुष है हम इन्हें 'मर्द' बनाकर वापस भेजेंगे.

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    1. राजन जी,
      'जो लोग छेडछाड या बलात्कार के लिए पश्चिमी सभ्यता को या लडकियों के छोटे कपडों को दोषी ठहरा रहे हैं ये लोग दरअसल मेरी नजर में व्यवस्था के असली गुंडे हैं और ये बात हर ऐसा सोचने वाले पुरुष पर लागू होती है फिर चाहे वो पुरुष मेरे घर परिवार मित्रों या रिश्तेदारों में ही क्यों न हों.'

      इसको कहते हैं हथौड़ा कील की मुंडी पर मारना...
      अब आते हैं आपकी दूसरी बात पर..

      'आप जिन पश्चिमी पुरुषों की बात कर रही हैं जो महिलाओं की घूरते तक नहीं उनके डीएनए में ही कोई कमी रही होगी इन्हें यहाँ भेज दिया जाए क्योंकि ये अभी सिर्फ पुरुष है हम इन्हें 'मर्द' बनाकर वापस भेजेंगे.'
      तो मेरा जवाब ई है..
      आए थे लोग-बाग़ हिन्दुस्तान, २०० साल तक सबको , रामू, श्यामू, छोटू बना कर, बढ़िया से भद्द पीट कर गए हैं...आज भी लोग रो रहे हैं कि 'Divide and rule' का पलीता लगा कर लगभग ७० साल पहिले गए, और पटाखे आज तक छूट रहे हैं...ई का बनायेंगे मर्द ...एक गोरी नज़र आ जाती है, भारत की सड़कों पर तो, लोगों का सैलाब सिर्फ़ दर्शन करने को उमड़ पड़ता है...

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    2. अदा जी,
      एक तो हम अंग्रेजों के आने से पहले भी नहीं थे अंग्रेजों ने तो बस इस कमजोरी का फायदा उठाया.उनका शासन था सो हमें उनके सामने सर झुकाना ही पडा होगा लेकिन ये मत भूलिए की महिलाओं के मामले में हम सदा से एक थे एक हैं और एक रहेंगे.कश्मीर से कन्याकुमारी तक कोई झगडा नहीं,कोई भी धर्म या जाति से हो किसी भाषा के हों सबकी सोच एक हैं.
      मर्द एकता जिंदाबाद!
      इस मामले में अंग्रेज हमें divide करके दिखाए.दो सौ साल क्या दो हजार साल भी कम पड जाएँगे बल्कि अब तो इसीकी संभावना ज्यादा है कि हम उन्हें ही अपने रंग में रंग लें.ऊ लालूजी का क्लिंटनवा जी से अंग्रेजी सीखने वाला चुटकुला सुने होंगे आप.यही हमको तो हकीकत भी लगती है.
      हाँ नहीं तो...

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    3. इसमें क्या शक़ राजन जी,
      इस मामले में तो 'हिन्दुस्तान की मर्द प्रजाति', वसुधैव कुटुम्बकम की भावना से ओत-प्रोत ही दिख रही है...कोशिश कर देखिये शायद उनपर ये बदरंग, रंग चढ़ जाए, लेकिन, एक बात तो है २०० साल तक भारत में राज करने के बाद भी 'अंग्लो इंडियनस' की जमात उतनी नहीं हुई थी जितनी हो सकती थी...वरना २०० साल का वक्त बहुत होता है...

      चुटकुला हम सुने हैं ऊ बाला..अब एक ठो और सुनिए...
      बुश, मनमोहन और कनाडा का प्राईम मिनिस्टर स्टीवन हारपर मर कर नरक पहुँच गए...
      जब उनको पता चला की ऊ खतम होकर नरक पहुँचे हैं तो, ऊ लोग यमराज पर बहुत गुसियाये, अरे पहले से बोलना था ना..अच्चके आप लोग उठा के ले आते हैं..अपना बाल बच्चा से भी हम नहीं बतिया सके ठीक से, हमको बात करना है अपना बचवन से |
      यमराज बोले, अरे भाई कोई दिक्कत नहीं है हम बात करवा सकते हैं, लेकिन थोड़ा महंगा पड़ेगा, आप लोगों को लॉन्ग डिस्टेंस का बिल देना होगा, पैसा भरना होगा | बुश और स्टीवन बोले भाई केतना बिल होगा, हमलोगों के पास ज्यादा पैसा नहीं है, मनमोहन अपना एकदम चुप थे | ख़ैर उनलोगों को आज्ञा मिल गया बात करने का | बुश और स्टीवन तो जल्दी-जल्दी बात किये, ख़ाली ५-५ मिनट, काहे से कि फ़ोन का मीटर चल रहा था | और मनमोहन अपना आराम से २-४ घंटा बात किये और तब जाके फोन काटे |
      दोसरा दिन बिल आया, बुश को लग गया ५०,००० डॉलर, स्टीवन को लगा २५,००० डॉलर और मनमोहन जी को देना पड़ा ५ रुपैया |
      अब बुश और स्टीवन चिचियाने लगे, ऐसा कैसे हो सकता है, हमलोग सिर्फ़ ५-५ मिनट बात किये, ई मनमोहनवा पता नहीं केतना घंटा बात किया, फिर भी इसका सिर्फ़ ५ रुपैय्या, डॉलर भी नहीं, तो यमराज बहुत शांत भाव से बोले , बिल एकदम ठीक आया है, कोई गड़बड़ी नहीं है , बात ई है कि, नरक से भारत का कॉल लोकल कॉल होता है...:)

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    4. राजन जी,
      बात बेशक ये मजाक में हो रही है, लेकिन जैसी स्थिति होती जा रही है भारत की बहुत ही अफ़सोस की बात है...

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    5. जी अदा जी, ये अफसोस की बात तो है ही लेकिन यहाँ के हालात तो नर्क से भी गए बीते होते जा रहे है नर्क में माहौल जैसा भी हो पर जैसा कि बताया जाता है वहाँ तो बुरे कर्म करने वालों को सजा दी जाती है लेकिन यहाँ तो उल्टा ही हो रहा है.और आपकी इस एंग्लो इंडियन वाली बात से सहमत हूँ.

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  8. मैं जहाँ काम करता हूँ, वहाँ मेरा रोजाना २५-३० देशों के ५५-६० लोगों से मिलना बतियाना होता है।
    आपकी बात से उतना सहमत जितना अधिकतम हुआ जा सकता है।

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    1. अरे वाह ! क्या बात है अविनाश, ऊ का कहते हैं "प्रत्यक्षम किम प्रमाणं" ??
      बहुत अच्छी बात कह दी तुमने ..
      जीयो जीयो...

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  9. वहा के पुरुषो में केवल होरमोंस है वो भी अच्छी क़िस्म का नहीं होगा यहाँ तो होरमोंस के साथ ही जानवर भी बैठा है जो बड़ा समझदार है हमेसा दूसरो की बहु बेटियों को देख कर ही जागता है | अब उस जानवर का क्या करे, है तो जानवर किन्तु रहता है सभ्य समाज में मानवों के बीच , अब समझ नहीं आ रहा है की इनके लिए नया जंगल बनाया जाये या जू बना कर वहा रखा जाये |

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    1. अंशुमाला जी,
      हम माएं कितनी घबडा जातीं हैं ये सब देख-सुन कर...दिल करता है पता नहीं क्या कर जाएँ...
      ऐसे घृणित लोगों के घृणित कारनामे सचमुच हमारी सोच को बदल देते हैं,
      जब तक पुरुष वर्ग अपनी सोच नहीं बदलेगा तब तक कोई सुधार की अपेक्षा नहीं कर सकते हैं हम...

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  10. आपकी बातों से सहमत होते हुए भी थोड़ी अपनी बात कहना चाहूँगा . अपना सामान खुले में छोड़कर अन्य से इमानदारी की अपेक्षा कितना
    न्याय संगत होगा स्वयम विचार करें .मूल कथन हम भी अपनी जिम्मेदारी को समझते हुए दायित्वों का निर्वहन करें

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    1. रमाकांत जी,
      अच्छे समाज के बारे में मेरे मन में जो भी छवि है, उसके अनुसार, किसी का सामान अगर खुला रखा हो, तब भी आप उधर न देखें, उन्नत चरित्र इसे ही कहेंगे और यकीन कीजिये ऐसी दुनिया इसी दुनिया में है..क्योंकि मैं ख़ुद ऐसी दुनिया में रहती हूँ...
      मैंने एक पोस्ट भी लिखी है..'साईकिल की सवारी...!! '
      http://swapnamanjusha.blogspot.ca/2012/04/blog-post_10.html
      आपने अपने विचार व्यक्त किये...बहुत बहुत धन्यवाद

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  11. पोस्ट से और इस पर आये कमेंट्स से बहुत हद तक सहमत| लोकेन्द्र जी और रमाकांत सिंह जी के कमेंट्स गौरतलैब हैं और सिर्फ महिलाओं पर या पश्चिमी संस्कृति पर दोषारोपण नहीं करते, बल्कि जब तक एक स्वस्थ समाज का निर्माण नहीं होता तब तक वलनरेबल सेक्टर को सावधानी बरतने की ही सलाह देते दीखते हैं| मुझे इसमें कोई गलती नहीं लगती| ऐसे कमेंट्स करने वालों को इस ब्लॉग पर या कहीं और अगर उन भेड़ियों का समर्थन करने वाला समझा जाए तो ये समझने वाले के स्वयं पूर्वाग्रहग्रस्त होने की तरफ इशारा करता है|

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  12. कैसे कहा जाये कि लोग अपने समाज के आधे हिस्से को किसी न किसी बहाने दोष देते हुये उसके खिलाफ़ साजिश करते हैं! ठीक लिखा है। हां नहीं तो टाइप!

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    1. अजी, आप हमरी आधी बात मान गए, वोही बहुत है...नहीं तो हीयाँ कोई एक छटाक भी, कोई किसी की बात लेवे तो हम मान जावें..:)
      हाँ नहीं तो..!

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