Monday, November 2, 2009

रीढ़ की हड्डी ??? वो क्या होती है ???


पता नहीं क्यूँ हम सो नहीं पाए ....यहाँ कनाडा में रात के ३ बज रहे हैं और हम पोस्ट लिख रहे हैं......शायद अंग्रेजों के बीच रह कर और इनकी असलियत जानकर कुछ बातें नाग बन कर डंसने लगती हैं.....हमारी पोस्ट 'रीढ़ की हड्डी है कि नहीं' पर श्री प्रवीण शाह जी ने एक कमेन्ट दिया.....हम उसका जवाब देने बैठे तो जवाब पोस्ट जितना बड़ा हो गया ....फिर ये भी सोचा ..यह बात बहुतों के दिमाग में होगी....तो क्यूँ न इन बातों को खुले दिल से सोचें .....मैंने अपनी सोच बता दी है..
आप भी कह ही डालिए.

टिप्पणी को मैंने सवाल जवाब के अंदाज में प्रस्तुत किया है....टिप्पणी कुछ इस प्रकार थी :

श्री प्रवीण शाह जी :एक अच्छा मुद्दा उठाया आपने, बदलते वैश्विक परिदॄश्य में भारत को राष्ट्रमंडल का सदस्य बने रहने का कोई लाभ या आवश्यकता है?... इस पर भी एक बहस की जरूरत है आज...

अदा : जी हाँ यह एक अच्छा विषय अवश्य हो सकता है...क्या वास्तव में भारत को राष्ट्रमंडल का सदस्य बने रहना चाहिए ? इस पर बहस की जा सकती है


श्री प्रवीण शाह जी : और हाँ, कोई यह भी तो कह सकता है कि महामहिम राष्ट्रपति महोदया ने खेल प्रेमी होने के कारण लन्दन जाना मंजूर किया होगा।

अदा : मेरे विचार से एक राष्ट्रपति को खेल प्रेमी होने से पहले राष्ट्रप्रेमी होना जरूरी है....
फिर भी अगर वो खेल प्रेमी हैं तो अब तक अपने राष्ट्रपति बनने के बाद, व्यक्तिगत रूप से उनका योगदान, या प्रमाण या कार्य क्या है ...जिससे उनके खेल प्रेमी होने का फायदा देश के खेल प्रदर्शन में हुआ हो.???
अगर ऐसा ही है तो उनके पास अवसर है अब भी भारतीय खिलाड़ियों के साथ जुड़ जाएँ और दिखा दें इस बार एक शानदार प्रदर्शन, तो हम भी उनके खेल प्रेमी होने का जलवा देख लेंगे
लेकिन सौ बात की एक बात ...किसी भी कीमत पर उनका लन्दन जाना तर्कसंगत नही लगता है..


श्री प्रवीण शाह जी :मैं जानता हूँ कि मेरी ओर से यह लगभग बर्र के छत्ते को छेड़ना जैसा होगा पर मैं और मेरे जैसे तमाम लोग मानते हैं कि अपनी तमाम गलतियों और कमियों के बावजूद यह अंग्रेज कौम ही थी जिसने दुनिया और खासतौर पर हमको निम्न विचार दिये:-

अदा : जी हाँ आपकी इस बात से मैं सहमत हूँ....कि आपने बर्रे के छत्ते में ही हाथ डाला है....
अंग्रेजों की बर्बरता ने कई अच्छी बातों कि ओर हमारा ध्यान ज़रूर दिलाया है.....हमें यह सोचने को मजबूर कर दिया कि अगर हम में ये कमियाँ नहीं होतीं तो अंग्रेज हमपर राज नहीं करते......
अंग्रेज तो आज भी हमसे ही सीख रहे सब कुछ.....चाहे वो संस्कृति हो....या परिवार.....योग हो या आयुर्वेद.....पता नहीं आपको कैसे लगा कि निम्नलिखित बातें हमने उनसे सीखी हैं.......
भई !! उनकी तो आदत है वो हमसे सीखते हैं और हमही को सिखाने लगते हैं .....बस नया पैकिंग लगा देते हैं



श्री प्रवीण शाह जी : सबके लिये एक सा न्याय...

अदा : वो हमपर राज करते रहे.....हम गुलाम बने रहे ...यह उनके न्याय प्रेम का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है .....एक छोटी सी कम्पनी 'ईस्ट इंडिया कंपनी' से भारत कैसे ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन चला गया...??
यह उनके न्यायी होने की कहानी चीख चीख कर बताता है...!!!
उन्होंने कभी भी भारतीयों पर 'सबके लिये एक सा न्याय' इसका इस्तेमाल नहीं किया..
उनके राज में भारतीय....अपने देश में ही......ट्रेन के फर्स्ट क्लास डब्बे में सफ़र नहीं कर सकते थे.....रेस्तरां के आगे यह लिखा होना कि 'हिन्दुस्तानियों और कुत्तों को अन्दर आना मना है' भी शायद उनके न्याय प्रेमी होने को नहीं दर्शाता है..
'जनरल डायर' के करतूत की सजा जैसे दी गयी वो भी उनके न्याय प्रेमी होने की एक मिसाल है.....अगर कोई भारतीय अंग्रेजों को भून डालता तो क्या क्या उनकी न्याय प्रणाली ऐसी ही दरियादिकी दिखाती...???


श्री प्रवीण शाह जी : लोकतंत्र...

अदा : सारी दुनिया इसे अपना चुकी है...ये तो आज भी उसी रानी को लिए बैठे हैं..



श्री प्रवीण शाह जी : भारत जैसे रजवाड़ों, निजामों, रियासतों, और नवाबों के राज में बंटे भुभाग को एक नेशन-स्टेट होने का सपना और आत्मविश्वास...

अदा : यही एक बहुत ही अच्छी बात हुई उनके आने से कि हम एक हो गए..



श्री प्रवीण शाह जी : हाशिये पर रह रही जातियों को समानता का अधिकार...
अदा : हाशिये पर रह गई जाति ? उनके लिए तो एक ही जाति थी ...'हिन्दुस्तानी' !! अंग्रेजों को अगली-पिछडी जाति का क्या भान भला ..वो तो सबको एक ही लाठी से हांकते रहे ...
अंग्रेजों ने पिछडी जातियों के उद्धार के लिए ऐसा कुछ भी नहीं किया था......उन्हें तो अपनी जेब भरने से ही फुर्सत नहीं थी......
जी हाँ अंग्रेज आये तो गाँधी आये ....और शुरुआत तो गाँधी ने ही की....


श्री प्रवीण शाह जी :आधुनिक शिक्षा व्यवस्था...

अदा : आप भूलते हैं की दुनिया की पहली university भारत में ही थी....तक्षिला, नालंदा, यहाँ पढ़ने न जाने कहाँ कहाँ से लोग आते थे...मेगास्थनीज, फाहियान जैसे दार्शनिक इसका प्रमाण हैं...
गुरुकुल की प्रथा हमारी दी हुई है
शिक्षा के मामले में हम खुद ही इतने समृद्ध थे ये क्या सिखायेंगे हमें ??
आज भी दुनिया भर में हमारी बुद्धि का लोहा माना जाता है...
पहले मुग़ल फिर अंग्रेज .....इतनी बार लुटने के बाद भी, न जाने हमारे कितने पुस्तकालयों को जलाने के बाद भी...हमें शिक्षा से हर तरह से महरूम करने के बाद भी ....आज जब कि मोर्डन teaching टेक्निक सबको उपलब्ध है.....विद्वता में हमारी कोई सानी नहीं रखता...दुनिया भर में हम अग्रणी हैं...और यह अंग्रेजों की देन नही है...हमारी अपनी मेहनत और रगों में दौड़ता हमारे प्रज्ञं और विद्वान् पूर्वजों का खून है....
न जाने कितने आविष्कार जो हिन्दुस्तानियों ने किये थे ...इनलोगों ने अपने नाम कर लिए.
एक उदहारण देती हूँ...
टेलेफोन का आविष्कार....सर जगदीश चन्द्र बोस' ने किया था...यह बात कौन जानता है? लेकिन इसका श्रेय श्री जगदीश चन्द्र बोस के सहायक 'ग्राहम बेल' को गया ...क्यूँ ? कैसे ? इन अंग्रेजों की तथाकथित ईमानदारी और न्याय की वजह से...




श्री प्रवीण शाह जी : प्रशासनिक व्यवस्था का लौह ढांचा...

अदा : इसमें क्या शक है भला !!! भारत में अपने इस गुण का भरपूर सदुपयोग किया.....वर्ना एक व्यापर करनेवाली अदना सी 'ईस्ट इंडिया कंपनी' कैसे पूरे भारत को चंगुल में कर गयी....??


श्री प्रवीण शाह जी : सती प्रथा का उन्मूलन...

अदा : ये न भूले सती प्रथा कि शुरुआत क्यूँ हुई....यह भी गुलामी की ही देन थी.....मुगलों की गुलामी वर्ना, आर्यावर्त में सती नाम की कोई प्रथा नहीं थी, और इसे दूर करने का जिहाद एक हिन्दुस्तानी ने ही शुरू किया 'राम मनोहर राय' ने अगर उनकी भाभी सती प्रथा की बलि न चढ़ती तो ऐसा कुछ भी न होता, अंग्रेजों ने बस साथ दिया था..


श्री प्रवीण शाह जी : ईमानदार, सशक्त, सेक्युलर और अराजनीतिक सेना...

अदा : आप अंग्रेजों की ईमानदारी की बात न करें, उन सेनाध्यक्षों की ईमानदारी और सेकुलरिज्म के क्या कहने !! गोलियों में चर्बी मिलाते हुए भी उन्होंने सेकुलरिज्म का ध्यान रखा , हिन्दुओं के लिए गाय की चर्बी और मुसलामानों के लिए सूअर की चर्बी......
क्या बात है ...!!! अगर वो चर्बी लगी गोलियाँ नहीं बनती ..और उनकी ईमानदारी की पोल न खुलती तो 'सिपाही ग़दर' की शुरुआत कैसे होती भला, और फिर ईमानदारी और अराजनैतिकता का सबसे बड़ा उदाहरण तो हैं ही आपके सामने 'जालियांवाला बाग़', और जनरल डायर के साथ फिरंगी न्याय पालिका की ईमानदारी से की गई दोगली नीति..


श्री प्रवीण शाह जी : निम्न और मध्य वर्ग को उंचे उठने के अवसर...

अदा : अच्छा !!.....कितने निम्न वर्ग उठ गए उनके जमाने में ??? जो भी उठे हैं खुद उठें हैं और उनके जाने के बाद ही उठें, उनसे सीख कर नहीं !!

तो ये था मेरा जवाब...अब आप क्या कहते हैं..??

30 comments:

  1. अदा जी
    आपक समर्थन में और प्रवीण शाह जी के उत्तर में मैंने एक पोस्‍ट लिखी है, उसे अवश्‍य पढ़े। मैं अक्‍सर ऐसी पोस्‍ट लिखती नहीं लेकिन जब लोगों ने अंग्रेजों को महिमा मण्डित करना प्रारम्‍भ किया तो मुझे लिखना ही पड़ा।

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  2. अदा जी,
    क्या बात कह दी आपने..
    प्रवीण जी को भारत का इतिहास पढना बहुत ज़रूरी है..इन अंग्रेजो के पास क्या है ? कुछ भी तो नहीं.
    जो अपने माँ-बाप के नहीं होते वो किसी के क्या होंगे. ??
    इन्होने हम पर २०० वर्ष राज किया अब हमारे लोग इनपर २००० वर्षो तक राज करेंगे..देखिये न पूरी इंग्लॅण्ड हिन्दुस्तानियों से भर चूका है, बहुत सही हो रहा है.
    बहुत ही ओजपूर्ण पोस्ट पढ़ी आपकी. बहुत दिनों के बाद आया हूँ.
    और बहुत ख़ुशी हुई है

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  3. अदा जी,
    क्या बात कह दी आपने..
    प्रवीण जी को भारत का इतिहास पढना बहुत ज़रूरी है..इन अंग्रेजो के पास क्या है ? कुछ भी तो नहीं.
    जो अपने माँ-बाप के नहीं होते वो किसी के क्या होंगे. ??
    इन्होने हम पर २०० वर्ष राज किया अब हमारे लोग इनपर २००० वर्षो तक राज करेंगे..देखिये न पूरी इंग्लॅण्ड हिन्दुस्तानियों से भर चूका है, बहुत सही हो रहा है.
    बहुत ही ओजपूर्ण पोस्ट पढ़ी आपकी. बहुत दिनों के बाद आया हूँ.
    और बहुत ख़ुशी हुई है

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  4. aapki ek ek baat ka samarthan kart hun main.
    bilkul sahi kaha hai aapne.

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  5. वृहद विश्लेषण!!

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  6. Jo kuchh karna hai ab hamhee ne karna hai...bahut ho gaya blame game...angrez to chale gaye, ham bache hain, hamne hamaree reedh kee haddee kee taqat dikhanee hogee...aur ye kaam ekjut hone ke bina ho sakta...

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  7. .
    .
    .
    अदा जी,
    आभार आपका कि इस नाचीज को जवाब देने लायक समझा, मेरी कुछ बातों से तो आप सहमत हैं और जिनसे असहमत हैं उन पर कुछ कहना चाहूंगा...
    १- न्याय:- अंग्रेजों से पहले राजपरिवार के लिये अलग कानून होते थे और विभिन्न जातियों के लिये भी अलग अलग... हत्या जैसे अपराध के लिये ब्राह्मण को मात्र एक काला टीका लगाकर राज्य से बाहर कर देने का प्रावधान था कई जगह...
    २- लोकतंत्र- मैं अभी भी मानता हूँ कि हम भारतीय या कहें पूरा भारतीय उपमहाद्वीप लोकतंत्र को पूरी तरह आत्मसात नहीं कर पाये हैं नये राजपरिवार जैसे नेहरू-गाँधी घराना, भुट्टो परिवार,जिया-मुजीब घराने और बंडारानायके घराने तथा बड़ी तादाद में नेता पुत्र-पुत्रियों की संसद में मौजूदगी इस धारणा को पुष्ट करती है।
    ३- दलित जातियों का उत्थान:- इतिहास देखिये तो पता चलेगा कि इस बारे में बड़ी पहल हमारी आजादी से पहले हो चुकी थी।
    ४- शिक्षा- बताईये दुनिया की १०० सर्वश्रेष्ठ यूनिवर्सिटी में कितनी भारतीय हैं... कितने भारतीयों (एन आर आई नहीं) को नोबल मिला आज तक...R&D में क्या हालत है हमारी...कितना ओरिगिनल काम होता है हमारे यहां...आज तक एक पैसेंजर प्लेन नहीं बना पाये हम...न एक भरोसेमंद राईफल ही...
    ५- सेना के बारे में जो मैं कह रहा हूँ उसे आंकने के लिये आप किसी भी भारतीय सेनाधिकारी की राय ले सकती हैं... और हाँ यह चर्बी वाले कारतूस केवल एक अफवाह भर थी... इतिहास देखें इस बारे में...
    ६- मध्य वर्ग तो अस्तित्व में ही ब्रिटिश राज में आया यह एक निर्विवाद सत्य है और इसी वर्ग ने ही सबसे पहले सपना देखा अपने एक आजाद देश का...

    अंत में एक बात और कहूँगा कि हमारी भारतीय सभ्यता बहुत पुरानी है परंतु देखें तो हमारे यहां यथार्थपरक इतिहास लेखन (विगत ६० सालों को छोड़कर)न के बराबर हुआ है... कारण सिर्फ यही है कि हमें सिर्फ वही इतिहास चाहिये जो हमारी पहले से ही बन चुकी मान्यताओं की पुष्टि करता हो...उससे इतर कुछ भी सुनने या पढ़ने का साहस हम में नहीं रहा है...

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  8. वाह अदा जी..
    अब मजा आ रहा है ब्लोग्गिंग का ..अब हो रहे हैं तर्क ..वो भी सार्थक..और बहस एक सही दिशा में....उधार खुशदीप भाई भी फ़िल्में दिखा दिखा कर एक से एक मुद्दे उठा रहे हैं और संवाद बढ रहा है..मगर विवाद से परे रह कर...यही तो वास्तविक मकसद है ब्लोग्गिंग का..
    रही बात अंग्रेजों के शासन या जैसा कि भाई प्रवीण जी के अनुसार सुशासन की ..तो बेशक इतिहास सही न लिखा गया हो ..मगर जालियांवाला बाग, भगत सिंह, आजाद, नेता जी...और वो करोडों दीवाने जो देश पर कुर्बान हुए...इनके लिये तो किसी इतिहास का मोहताज नहीं होना पडेगा देश को...
    वैसे भी अंग्रेज अभी इतने विवेक वाले नहीं हुए कि ऐसे विचार करें और अपने गुनाहों को मान कर प्रायश्चित करें ..

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  9. प्रवीण जी,
    अच्छी लगी आपकी टिपण्णी..
    अच्छी बात ये हैं कि :
    let us agree to disagree...
    एक बार फिर आपका धन्यवाद...

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  10. waah waah Di.. ise bolte hain Dhobi Pachaad...

    Neevr mind Praveen ji.. just kidding :)

    aise healthy arguments hote rahne chhaiye

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  11. आदरणीय अदा दी..सच कहूँ तो बहुत दिनों बाद इतना मजा आया..इतनी स्वस्थ और सारगर्भित चर्चा के लिये..आपके जवाब और प्रवीण जी के प्रश्न बड़े विचारोत्तेजक रहे..रही बात आदरणीय प्रवीण जी के प्रतिप्रश्नों की तो वैसे तो उस पर एक लम्बी सी पोस्ट लिखी जा सकती है विस्तार से जवाब देते हुए.मगर यहाँ पर रपिड-फ़ायर स्टाइल मे कुछ बातों का जवाब अपनी कमअक्ली के साथ देना चाहूँगा..प्रिय प्रवीण जी के तर्को, अभिव्यक्ति के अधिकार और इन्डीविजुअलिटी का सम्मान करते हुए...
    न्याय और समानता: कृपया इंडियन क्रिमिनल ट्राइब एक्ट १८७१ के बारे मे देखें जिसके अंतर्गत भारत की मूल निवासी अनगिनत जातियों/जनजातियों पर जन्मजात क्रिमिनल होने का ठप्पा लगा कर उनके सारे मूलभूत अधिकार छीन लिये गये..जिनकी संख्या आजादी के समय तक डेढ़ करोड़ से ऊपर थी..कारण: संगठित जुझारु जातियों से ब्रिटिश राज को खतरा.
    लोकतंत्र: भारत मे वैशाली व लिच्छिवि विश्व के सर्वप्रथम गणतंत्र माने जाते हैं (काल-चंद्रगुप्त मौर्य के समकालीन )(अनगिनत संदर्भ उपलब्ध..such as Wiki).वैसे भी आधुनिक डेमोक्रेसी की अवधारणा अंग्रेजों की नही वरन्‌ प्लेटो की दी हुई है..और इसे पहली बार ग्रेट ब्रिटेन मे नही वरन्‌ एथेंस मे लागू किया गया था (लगभग ५०० बी सी)..विश्व मे अंग्रेजों ने इम्पीरियलिज्म को बढ़ावा दिया न कि लोकतंत्र को..अमेरिका से अफ़्रीका तक...कामन्वेल्थ उदाहरण हैं..और यह सच है कि भारतीय उपमहाद्वीप मे कुछ परिवारों का असर दूसरों से ज्यादा रहा मगर फिर भी यहाँ किसी भीए परिवार को सत्ता मे आने के लिये हमारे जैसे आम-आदमियों के वोट की दरकार होती है..और पैदा होते ही प्रिंस नही बन जाते हैं.
    शि्क्षा: यह सच हो सकता है कि विश्व की टॉप १०० मे तमाम भारतीय यूनिवर्सिटीज न हों मगर प्रवीण जी यह बताइये कि आई आई टी जैसे किस अन्य विदेशी विश्वस्तरीय तकनीकी संस्थान मे निम्न या सामान्य आयवर्ग का व्यक्ति मात्र ३००० रु प्रति सेमेस्टर मे शिक्षा पा कर विश्वस्तरीय जॉब पाने के सपने देख सकता है (मैं स्वयं भी उदाहरण हूँ)..संस्था का वैश्विक स्तर ही नही वरन्‌ उस तक साधनहीन प्रतिभा की पहँच और विश्व के कल्याण मे उसका योगदान अधिक महत्वपूर्ण होता है..ऐसा मैं समझता हूँ. (वैसे जब आपने विश्व रैंकिग की बात की है तो एक रोचक बात बताऊँ कि एक विश्वस्तर की संस्था द्वारा बनायी ताजा तरीन विश्व के टॉप तकनीकी संस्थानो की लिस्ट मे 157th स्थान प्राप्त IIT दिल्ली को शैक्षिक स्तर, छात्र प्रतिभा, और कंपनियों मे साख के क्षेत्र मे तमाम वैश्विक संस्थाओं से ज्यादा स्कोर मिला, मगर अंतर्राष्ट्रीय फ़ैकल्टीज्‌ व छात्र के इंडेक्स पर बाकी से पिछड़ गया...और यहाँ पर मैं अन्यों की तरह भारत की प्राचीन प्रतिभा व ज्ञान-समृद्धि की बात नही कर रहा..जिसको दीमक सबसे पहले मध्य-पूर्व के मुस्लिम आक्रांताओं के हमलों से लगी (नालंदा विश्वविद्यालय जो उस समय बौद्ध-संस्कृति का केंद्र था के बारे मे फ़ारसी इतिहासकार मिन्हाज-ई-सिराज लिखता है कि तुर्क आक्रांता बख्तियार खिल्जी द्वारा उसे नेस्तनाबूद कर के जलाये जाने के बाद उसका पुस्तकालय लगभग ५ महीनों तक जलता रहा था..जयपुर की कुछ दिनों तक लगी रही आग से हुए नुकसान की एनॉलो्जी ले कर आप उस समय के शिक्षा के नुकसान की तुलना कर सकते हैं, प्रवीण जी)

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  12. (टिप्पणी जारी)
    सेना: आपकी बात से सहमत हूँ कि सेना के प्रोफ़ेशनलिज्म के मामले मे अंग्रेज कहीं आगे थे..मगर क्या यही वजह नही रही कि उन्होने अफ़्रीका से ले कर सुदूर आस्ट्रेलिया तक राज कायम किया और मूल निवासियों को नारकीय परिस्थितियों मे जीने पर विवश किया..और अपने आस पास के देशों जैसे फ़्रांस, पुर्तगाल, जर्मनी आदि से शक्ति संतुलन बने रहने के लिये भी यह आवश्यक रहा...सेना की यह प्रोफ़ेशनलिज्म इंग्लैंड के लिये लाभप्रद रही होगी मगर अधिकांश विश्व के लिये एक अभिशाप.
    मध्यवर्ग/समानता: ज्यादा कुछ न कहते हुए मैं आग्रह करूँगा कि कृपया अंग्रेजों द्वारा भारतीय किसानों को खाद्दान्न उगाने छोड़ कर बल पू्र्वक नील की खेती को विवश करने के संदर्भ चेक करें (जैसे गाँधी जी की प्रथम चंपारण यात्रा का विवरण) और उससे भी बदतर बंगाल के किसानों से बलपूर्वक अफ़ीम की खेती करवा कर उस अफ़ीम की बिक्री छल और बल से चीन मे करा कर ब्रिटेन की रानी के खजाने मे स्वर्ण भरने और चीनियों द्वारा विरोध करने पर उनको सेना द्वारा नष्ट करे जाने के विवरण भी बहुतायत मिलेंगे..निष्पक्ष इतिहास पुस्तकों मे (कृपया चीन के प्रथम व द्वितीय अफ़ीम युद्ध के विवरण देखें..e.g. Wikipedia )..यह जघन्यताएं विश्व के सर्वाधिक शक्तिशाली राष्ट्र की जेन्टलमेन मानी जाने वा्ली सत्ता ने की थी...और समानता के बारे मे कहूंगा कि राजा व जमींदार की परंपरा को अंग्रेजी शासन ने बढ़ावा ही दिया था सदैव..सिर्फ़ उन राजाओं नवाबों का दमन किया गया जिन्होने स्वतंत्रता के संग्राम मे हिस्सा लिया..शेष पिट्ठू-टाइप राजाओं जमीदारों को राजाबहादुर इत्यादि के तमगे दे कर व शासन का सैन्य संरक्षण दे कर उनके द्वारा किये जा रहे अन्यायों को पूर्ण समर्थन दिया गया
    तथ्य अभी और भी बाकी है..विशेष कर अफ़्रीका आदि क्षेत्रों मे दमन और दोहन की भयावह और नारकीय गाथा के बारे मे..अगर बात की जाय तो पूरी किताब बन जायेगी..और बनी हैं कई ऐसी..ऐसा बिल्कुल नही है भारतीयों मे सब कुछ अच्छा ही है या आजादी के बाद सारी समस्याएं खत्म हो गयी हैं..मगर समस्या के हल के लिये खुद का शासन दूसरों (वो भी स्वार्थी और निर्दय शासन)के हाथ मे सौप देना वैसा ही है कि अपनी जमीन और आत्माभिमान छोड़ कर किसी जुल्मी और धनी जमींदार के यहाँ बेगारी करना..जिसके लिये आप भी व्यक्तिगत रूप से सहमत नही होंगे प्रवीण जी..गलतियाँ हुईं हैं..मगर कौन राष्ट्र गलतियाँ नही करता..मगर उनसे सीख लेना जरूरी है..और मैं यह भी कहूँगा कि पर्सनली मुझे अंग्रेजों से कोई दुर्भावना या शिकाय्त नही है..बल्कि कयी बहुत अच्छे स्वभाव वाले ब्रिटिश मेरे मित्र भी हैं..मगर यहाँ पर हमारे लिये अहम्‌ है कि हम अपने इतिहास और आइडेन्टेटी को पहचाने और विकास की राह पर एकरूप हो कर चलें..गर्व और आत्माभिमान के साथ..हाँ हमारी पुरातन समय से एक कमी रही कि हमारा अपना कोई लिखित इतिहास न उपलब्ध होने से हम पश्चिमी इतिहासकारों द्वारा संकलित या गढ़े अपने इतिहास को पढ़ते हैं..और एक वेस्टर्र्नाइज्ड समाज मे पली-बढ़ी एक समूची पीढ़ी आत्मविस्मृति के एक गहन दलदल मे अपनी खुद की खालिस भारतीय पहचान को खोती जा रही है..यहां हमे जरूरत डंका पीट-२ कर स्वयं को और अपनी संस्कृति या देश को विश्व मे सर्वश्रेष्ठ साबित करने की नही वरन्‌ स्वयं हो हेय समझने की या दूसरों द्वारा हमको हेय साबित करने की कोशिशों का पुरजोर विरोध करने की है..वह भी सकारात्मक तरीके से..
    ..बात और भी हो सकती है मगर काफ़ी लम्बी और उबाऊ (मुझे नही लगता कि आप पूरा पढ़ॆगे इसे ) हो जाने और रात्रि का तीसरा प्रहर हो जाने (सु्बह ऑफ़िस जाने का खयाल) से अभी यहीं रुकता हूँ..मेरा आशय आपका विरोध करना या स्वयं को ज्यादा तर्कवान साबित करना बिलकुल भी नही वरन्‌ कुछ महत्वपूर्ण और विचारणीय तथ्यों को टेबल पे रखना है..उ्म्मीद है आप भी विचार करेंगे..और सिर्फ़ तर्क को काटने के लिये नही वरन्‌ उसे और स्पष्ट करे जाने वाली बातों पे विचार कर शेयर करेंगे..स्वस्थ और सकारात्मक चर्चा ही किसी समाज की वैचारिक प्रगति का स्रोत होती है (और अमर्त्य सेन साहब ने आर्ग्युमेंटेटिव ईन्डियन्स मे सिद्ध भी किया है कि हम भारतीय कितने तर्कप्रिय होते हैं )
    आभार आपका व अदादी का !

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  13. सही विवेचना...... साधुवाद..

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  14. बिलकुल करार और सही जवाब दी.... ऐसा ही होना चाहिए था..
    जय हिंद...

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  15. बिन पढ़े ही मजा आ गया....
    किसी दिन जरूर तसल्ल्ली से पढेंगे इस गंभीर पोस्ट को
    सबसे अच्छी बात लगी इस का पेश करने का अंदाज़...
    काफी दिन बाद परिमल जी का कमेन्ट...बहुत बहुत अह्छा लगा.....

    आपको मिस कर रहे थे हम...

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  16. "मेरे विचार से एक राष्ट्रपति को खेल प्रेमी होने से पहले राष्ट्रप्रेमी होना जरूरी है."

    बिल्कुल सत्य एवं उत्तम विचार!

    "सबके लिये एक सा न्याय..."

    थोड़ा शरत् चन्द्र का 'पथ के दावेदार', आचार्य चतुरसेन का 'सोना और खून' जैसी रचनाओं का अध्ययन कर के देखें। पता चल जायेगा कि अंग्रेजों का न्याय कैसा था और करतूत कैसी थी। ('पथ के दावेदार' को तो अंग्रेजों ने बैन भी कर दिया था।)

    "भारत जैसे रजवाड़ों, निजामों, रियासतों, और नवाबों के राज में बंटे भुभाग को एक नेशन-स्टेट होने का सपना और आत्मविश्वास..."

    कभी संस्कृत साहित्य को भी देख लें। हमारे देश में ऐसे सम्राट होते थे जो राष्ट्र को एक सूत्र में पिरो कर रखते थे।

    अब आगे और लिखूँगा तो टिप्पणी ही पोस्ट बन जायेगी। सही बात तो यह है कि कांग्रेसियों और तथाकथित सेक्युलरों के लिये तो अग्रेज भक्ति और यवनों की तुष्टि ही देशभक्ति का पर्याय रहा था, है और रहेगा।

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  17. मै तो बस इतना ही कहूंगा कि,

    जाकी रही भावना जैसी,

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  18. अदा जी
    आपने प्रवीण शाह जी के प्रश्‍न "रियासतों का एकीकरण" पर अपनी सहमती जतायी है। जबकि वास्‍तविकता यह है कि भारत जब आजाद होने जा रहा था तब अंग्रेजों ने भारत को 565 रियासतों में बाँट रखा था और उन्‍होंने उन्‍हें स्‍वतंत्र देश बनाने की इजाजत दी थी। यदि सरदार पटेल न होते तो आज भारत नहीं होता। वर्तमान में भी भारत में 450 जनजातियां हैं और यू एन ओ ने प्रस्‍ताव पारित किया है कि ये जातियां चाहे तो अपना अलग राष्‍ट्र बना सकती हैं। इसलिए यह कहना कि हम अंग्रेजों के कारण एक हुए, कोरा भ्रम है। जमीदारी प्रथा भी अंग्रेजों की देन है। हमारे यहाँ जमीन पंचायत की होती थी। मेरी अगली पोस्‍ट में मैं उनका और विवरण दूंगी कृपया उसे आप अवश्‍य पढें।

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  19. jyada lamba comment nahi likhunga, sankshep mein bas itna kahunga ki itihaas padhkar dekhein to pata chalta hai ki shiksha, loktantra, nyay, ahimsa, satyadharmita etc etc sabki shuruaat bharat se hi hui... itihaas padh kar dekhein: nalanda, takshashila, vaishali ka; maurya, gupta, harshavardhan ka; Huen Tsang aur FaHiyan ka; aaryabhatta ka, bhashkar ka, ramanujan ka; ved ka, upanishad ka.... list goes too long...

    dalit jaatiyon ka utthaan - ha ha ha.. kuch bolunga nahi, main jyada bol jata hun is topic par bolne lagun to...

    top 100 universities - jinko bhi doubt clear karna ho, gtalk par baat kar sakte hain mujhse!!! ranking procedure se lekar ranking tak, aur ranking ke significance tak sab kuch....

    bahas bahut lambi jaane wali hai sahab.. itna comment mein nahi likh sakta...

    jai hind...

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  20. एक जैसा शीर्षक होने के कारण पोस्ट देर से पढ़ पाई ...
    आज तो कमाल ही लिख दिया है ....कल मैंने कमेन्ट में जो लिस्ट छोड़ दी थी उसे पूरा कर दिया ..
    अंग्रेजों ने क्या दिया ...अरे ...दिया ना ...अत्याचार ..अनाचार ...भ्रष्टाचार ...दुर्विचार ...और सबसे बड़ा हमारी कई नस्लों की रग रग में गुलामी का जहर.... जो पीढी दर पीढी गहराता जा रहा है ...
    बहुत बढ़िया विचारोत्तेजक प्रविष्टि ....हैरान हूँ ...गीत गज़लें लिखने वाली अदा की ये विशिष्टता अब तक किस दडबे में छुपी थी ...!!
    और हमारे जिस इतिहास की दुहाई देते हुए उनके शासन को श्रेष्ठ बताने की कवायद की जा रही है ...उनके लिए उन्ही ऐतिहासिक किताबों का मोल है ...जो अंग्रेजी राज्य के जरखरीद पिठ्ठुओं ने लिखें हैं ...!!

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  21. adaji
    ham to aapki lekhni ke vicharo ke gulam ho gye .
    ye tevar jari rhe
    abhar

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  22. अदा जी,
    सार्थक चर्चा छेड़ने के लिए साधुवाद...उतना ही साधुवाद प्रवीण भाई को कटुता से दूर रह कर संवाद (बकौल शरद कोकास भाई, इसे कोई विवाद न कहे)के लिए...अगर अंग्रेज़ों के भारत में प्रवास का मूल्यांकन किया जाए तो मरहम कम ज़ख्म ही ज्यादा नजर आते हैं...लेकिन ये हमारा काम है कि हम समुद्र में से अमृत अपने लिए निकालते और विष की पहचान कर अलग रख लेते...लेकिन हमने किया क्या...आज़ादी के बाद के 62 सालों में...अंग्रेजों ने क्या किया आज उससे ज़्यादा अहम है कि आज़ादी के बाद के 62 सालों में हमने क्या किया....खैर अभी तो ड्यूटी जाने की जल्दी में हूं...रात को आकर विमर्श बढ़ाने की कोशिश करूंगा...वैसे अजय कुमार झा जी ने ब्लॉगिंग की इस अदा को मेरे नाम के साथ भी जोड़ा...ये उनका बड़प्पन है....

    जय हिंद...

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  23. चर्चा अच्छी चल रही है । एक पुरातत्ववेत्ता को तो इसमे कूदना ही होगा। यह सही है कि सही इतिहास हमारे यहाँ कभी नही लिखा गया । ब्रिटिश पीरियड मे जो इतिहास लिखा गय वह एक तरह से उनके द्वारा भारतीय मानसिकता पर हावी होनेऔर उनकी श्रेष्ठता के खिलाफ लिखा गया । उस वक्त यह इसलिये ज़रूरी था कि अपने गौरव गान द्वारा उनपर एक मानसिक दबाव बनाया जा सकता था । यद्यपि इतिहास का बहुत स काम अंग्रेजो ने ही किया । पुरातत्ववेत्ता मार्शल ने यहाँ उत्खनन प्रारम्भ किये । आगे जाकर इतिहास को फिर से लिखा जाना चाहिये था लेकिन वैसा नही हो पाया । इस वज़ह से बहुत सारे तथ्य उभरकर नही आ पाये ।
    वर्तमान मे भौगोलिक उपनिवेश तो सम्भव नही है लेकिन पश्चिम द्वारा आर्थिक उपनिवेश बनाना जारी है । यह केवल भावनात्मक है कि हम उन पर किसी प्रकार का शासन कर सकते है । स्थितियाँ पूरी तरह से बदल गई हैं । अब केवल अपने गौरव गान से भी कुछ हासिल नही होना है , अतीत की सच्चाइयों का सामना करना होगा और वर्तमान और भविष्य के लिये व्याव्हारिकता के साथ निर्णय लेने होंगे ।

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  24. लाजवाब अदाजी एक एक तर्क गोली की गति से जेहन में उतरता गया !!! अंग्रेजों की जीतनी महिमा की जाय कम है !!! सच है हमसे ही सिख के हमें ही सीखा रहा हैं | मजे की बात बात हममे अधिकांश लोग सिखने के लिए व्याकुल भी रहते हैं !!! अगर उनके तोर तरीके वेस्टर्न शैली के हैं तो वो सभ्य है वरना असभ्य !!! अगर खाना कांटेदार चम्मच से खा रहा है तो शालीन और हाथ से निवाले ले रहा है तो जाहिल!!!

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  25. I hate you.
    Your Posts.
    Your Blog.

    So much so that.....

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  26. अपूर्व...
    कहा जाता है की किसी भी व्यक्ति पर उसके नाम का असर होता है.....
    लेकिन यहाँ तो लगता है 'अपूर्व' शब्द ही तुम्हें देख कर बना है....
    You are just too good to be true......!!!
    क्या तुम सच-मुच हो ???
    अदा दी ....

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  27. आदरणीय अवधिया जी,
    सादर प्रणाम,
    शरत् चन्द्र का 'पथ के दावेदार', आचार्य चतुरसेन का 'सोना और खून' इन दोनों पुस्तकों की विवेचना करने की इच्छा है मुझे...परन्तु कहाँ मिलेंगी ये पुस्तकें ये मेरे लिए बहुत बड़ी समस्या है....
    इन चर्चा में आपके योगदान के लिए ह्रदय से आभारी हूँ....

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  28. डॉ अजित गुप्ता जी,
    प्रणाम,
    आपके बहुमूल्य विचार हमलोगों को इस पोस्ट पर प्राप्त हुए....बहुत बहुत आभार....
    आपके अगले पोस्ट की प्रतीक्षा है...

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  29. अपूर्व, अम्बुज,
    आर्शीवाद,
    बहुत अच्छा लगता है जब तुम जैसे नवयुवक इन बातों को समझते हो और स्वस्थ विचार व्यक्त करने की हिम्मत रखते हो....लगता है की देश के भावी कर्णधार सक्षम हैं......
    इस चर्चा में अपने अमूल्य योगदान से मुझे आभिभूत कर दिया तुमदोनो ने ......
    बड़ी हूँ इसलिए कृतज्ञता ज्ञापन नहीं करुँगी...
    बस यही कहूँगी....दोनों खूब खुश रहो..
    अदा दी ....

    P.S.इस बहस को फिर लेकर आना है मुझे बहुत जल्द.......
    बस मेरा यह संस्मरण बहुत दिनों से प्रतीक्षा में था.....इसलिए ज़रा देर के लिए विश्राम ले रहे हैं.....तुम दनो फिर तैयार रहना..

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  30. आदरणीय शरद जी,
    नमस्कार,
    इस चर्चा को थोडी देर के लिए स्थगित किया है मैंने...इस पर हम पुनः चर्चा करेंगे और हमेशा की तरह आपके योगदान और मार्गदर्शन की आवश्यकता होगी हम सबको..
    धन्यवाद...

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