Monday, November 1, 2010

माना कि दरिया में कई क़तरे होते हैं.....


माना कि...
दरिया में कई क़तरे होते हैं,
पर दरिया को मालूम कहाँ,
कितने क़तरे होते हैं,
दरिया के बग़ैर क़तरे की,
न कोई हकीक़त, न ही वज़ूद
फिर भी तेवर लिए हुए,
ये क़तरे होते हैं,
मिटने का ग़ुरूर कहें
या कहें किस्मत इनकी, 
बस ज़ज्ब-दरिया में 
फ़ना क़तरे होते है,
क़तरे से दरिया का
रिश्ता है अजीब,
नाचीज़ क़तरे होते हैं,
जब दरिया से जुदा होते हैं
बेताबी दरिया की,
अब क्या बताये 'अदा'
दरिया का अंजाम भी तो
आख़िर क़तरे होते हैं !!


13 comments:

  1. kise bhulun kise yaad rakhun...
    in katron ko bhi sametna chahti hun, bhej dijiye mujh tak

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  2. दरिया के कतरों में बसा है हर एक दरिया।

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  3. सच है कतरे कतरे से ही तो झरना है...

    भावपूर्ण अभिव्यक्ति...सुन्दर रचना...

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  4. कतरे कतरे ही जिन्दगी बन जाती है मुकम्मल

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  5. ऐसा लगा जैसे...आप कह रही हों...लम्हा लम्हा जिंदगी...धडकन धडकन जिंदगी...सांस सांस जिंदगी...अक्षर अक्षर शब्द और शब्द शब्द कविता ! खूब...बहुत खूब !

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  6. कतरा कतरा ही तो दरिया बनता है
    बहुत अच्छी कविता

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  7. शब्दों से बहुत अच्छे से खेल जाती हैं आप। वाकई अजीब रिश्ता है, दोनों का। दरिया कतरों से है और कतरे का वजूद ही दरिया। बहुत अच्छी रचना लगी आपकी।
    चित्र संयोजन की तो हम पहले से ही तारीफ़ करते हैं, आज और जीवंत कर दिया है आपने।
    आभार।

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  8. बहुत ही सुन्दर कविता.. अभिव्यक्तियों को अच्छे शब्द दिए हैं ....

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  9. मिटने का ग़ुरूर कहें
    या कहें किस्मत इनकी,
    बस ज़ज्ब-दरिया में
    फ़ना क़तरे होते है
    ...bahut sundar bhavpurn rachna

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  10. कतरा कतरा ही जी रहे हैं जिंदगी सब...बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति..

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  11. क्षण और जीवन,रश्मि और प्रकाश बूँद और सागर - कैसा अभिन्न और विचित्र संबंध !

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