क्यूँ अश्क बहते-बहते, यूँ आज थम गए हैं
इतने ग़म मिले कि, हम ग़म में ही रम गए हैं
तुम बोल दो हमें वो, जो बोलना है तुमको
फूलों से मार डालो, हम पत्थर से जम गए हैं
रंगीनियाँ लिए हैं, ग़मगीन कितने चेहरे
अफ़सोस के रंगों में, वो सारे रंग गए हैं
तकतीं रहेंगी तुमको, ये बे-हया सी आँखें
जीवन भी रुक रहा है, कुछ लम्हें थम गए हैं
हम थे ऐसे-वैसे तुम सोचोगे कभी तो
जब सोचने लगे तो हम खुद ही नम गए हैं
जीने का हौसला तो, पहले भी 'अदा' कहाँ था
मरने के हौसले भी, मेरे यार कम गए हैं
आपके हसीन रुख़ पर आज नया नूर है.....आवाज़ 'अदा' की....
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"क्यूँ अश्क बहते-बहते, यूँ आज थम गए हैं
ReplyDeleteइतने ग़म मिले कि, हम ग़म में ही रम गए हैं"
ग़ज़ल का मत्ला अच्छा है अदा जी,
एक सलाह भी ,
अच्छे लिखने वालों ली ग़ज़लें पढ़ें ज़रूर और ग़ज़ल के शिल्प पर ध्यान दें.
आपकी क़लम में बहुत कुछ कहने की ताक़त है.
बहुत खूबसूरत गज़ल ...
ReplyDeletewah wah
ReplyDeleteक्यूँ अश्क बहते-बहते, यूँ आज थम गए हैं
ReplyDeleteइतने ग़म मिले कि, हम ग़म में ही रम गए हैं
बहुत भावपूर्ण गज़ल ...आभार
hamesha ki tarah behtareen "ada"
ReplyDeleteshabdon me bhi,aawaaz me bhi...
kunwar ji,
मुझे तो यह शेर सबसे अच्छा लगा...
ReplyDeleteतुम बोल दो हमें वो, जो बोलना है तुमको
फूलों से मार डालो, हम पत्थर से जम गए हैं
बहुत ही सुन्दर रचना।
ReplyDeleteहम थे ऐसे-वैसे तुम सोचोगे कभी तो
ReplyDeleteजब सोचने लगे तो हम खुद ही नम गए हैं...
हम खुद सोच कर नम हो ले ...मानो कही हम बचे तो हैं ...
सुन्दर !
शायद रास्ते में उड़ गया मेरा कमेंट। मेहनत बेकार गई।
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति लगी यह भी, देखने में, सुनने में और पढ़ने में।
आभार स्वीकार करें।
तुम बोल दो हमें वो, जो बोलना है तुमको
ReplyDeleteफूलों से मार डालो, हम पत्थर से जम गए हैं
बहुत ही खूबसूरत पंक्तियां ....।
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी इस रचना का लिंक मंगलवार 30 -11-2010
ReplyDeleteको दिया गया है .
कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
बहुत सुंदर ग़ज़ल
ReplyDeleteअफ़सोस का ठहराव कुछ ज्यादा ही है इस गज़ल में ,यहाँ तक कि वो जीने मरने के दरम्यान भी ठहरा हुआ है !
ReplyDeleteबेहतरीन ग़ज़ल के साथ आप की आवाज़ की बात ही कुछ और है ..
ReplyDeleteसादर
तकतीं रहेंगी तुमको, ये बे-हया सी आँखें
ReplyDeleteजीवन भी रुक रहा है, कुछ लम्हें थम गए हैं
एक नाज़ुक अंदाज़ में उफनते सूनामी को देखते ही बनता है।
अच्छी ग़ज़ल... आभार.
ReplyDeleteआपकी आवाज बड़ी मधुर है... बधाई. (शुक्रिया चर्चामंच)
फूलों से मार डालें...। क्या "अदा" है। वाकई आपही की अदा है। यूं तो आज के जमाने में फूलों से मारना भी खता है। मुझे एक पंक्ति याद आई-हासे नाल सजना ने फुल मारया गोरे गालां उत्ते नील पया। उम्दा रचना।
ReplyDeleteसुन्दर गज़ल!
ReplyDeleteगजब की गज़ल . गज़ब की पंक्तियाँ . बधाई .
ReplyDeleteचर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी (कोई पुरानी या नयी ) प्रस्तुति मंगलवार 14 - 06 - 2011
ReplyDeleteको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
साप्ताहिक काव्य मंच- ५० ..चर्चामंच