Tuesday, November 23, 2010

पेज ३ का अपना ही सच होता है....!


एक ही घर में,
एक ही कमरे में,
एक ही बिस्तर पर,
अलग अलग खामोशियाँ,
हज़ारों मील के फासले पर होतीं हैं,
सालों गुत्थम-गुत्था होने के बावज़ूद 
कहाँ एक हो पातीं हैं,
बनावटी रौशनी के झालरों से 
रौनकों की भीड़ लगा कर,
भ्रम की ज़मीन पर 
कितने एहतियात से,
खिलाये जाते हैं,
खुशियों के
कागज़ी फूल,
जिन्हें बतकही की ख़ुशबू 
से सराबोर करके,
छुपाई जाती है, 
रिश्तों की सड़ांध
और जताया जाता है कि 
सब कुछ ठीक-ठाक है,
इसीलिए तो कहा जाता है,
पेज ३ का अपना 
ही सच होता है....!


8 comments:

  1. उस सच से रू ब रू होना सब चाहता है।

    ReplyDelete
  2. और वह बहुत कड़वा होता है।

    ReplyDelete
  3. पेज थ्री ही नहीं सबके आपने आपने सच होते हैं ! बहरहाल रिश्तों की पर्देदारियों और रिश्तों पर बेहतर कविता ! आपकी भावनाओं से सहमत !

    ReplyDelete
  4. पेज ३ का अपना
    ही सच होता है....!
    मगर कडवा होता है………
    बहुत सुन्दर ।

    ReplyDelete
  5. सच कहा...

    यही तो होता है...

    प्रभावशाली ढंग से आपने सत्य को शब्दों में बाँध रख दिया...

    सुन्दर रचना...

    ReplyDelete
  6. कडवी हकीकतों पर अच्छी कविता !

    ReplyDelete
  7. पेज ३ का सच बहुत कडवा होता है ..पर उसे मिठास की तरह पेश किया जाता है..दूरियां बहुत होती हैं यहाँ पर नजदीकियों का एहसास करवाया जाता है ....शुक्रिया
    चलते -चलते पर आपका स्वागत है

    ReplyDelete
  8. अली साहब सही कहते हैं, सब के अपने सच होते है। अपने अपने सच।

    ReplyDelete