Friday, November 26, 2010

उफ़क से ये ज़मीन क्यूँ रूबरू नज़र आए...


तेरा जमाल क्यूँ मुझे, हर सू नज़र आए
इन बंद आँखों में भी, बस तू नज़र आए

सजदा करूँ मैं तेरी, कलम को बार-बार
हर हर्फ़ से लिपटी मेरी, आरज़ू नज़र आए

गुज़र रही हूँ देखो, इक ऐसी कैफ़ियत से
ख़ामोशियों का मौसम, गुफ़्तगू नज़र आए

फासलों में क़ैद हुए हैं, ये दो बदन हमारे 
उफ़क से ये ज़मीन क्यूँ, रूबरू नज़र आए

उफ़क= क्षितिज
जमाल=खूबसूरती
कैफ़ियत= मानसिक दशा
गुफ़्तगू=बातचीत
रूबरू=आमने-सामने 

अजनबी तुम जाने पहचाने से लगते हो...आवाज़ 'अदा' की...

14 comments:

  1. आदरणीय अदा जी
    नमस्कार !
    क्या बात है..बहुत खूब..
    सोचा की बेहतरीन पंक्तियाँ चुन के तारीफ करून ... मगर पूरी नज़्म ही शानदार है ...आपने लफ्ज़ दिए है अपने एहसास को ... दिल छु लेने वाली रचना ...
    मेरी मंजिल.................संजय भास्कर
    नई पोस्ट पर आपका स्वागत है
    धन्यवाद

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  2. अगर आपकी ये ग़ज़ल ताज़ी ताज़ी है तो,
    आप दोबारा पुरानी अदा में हू ब हू नज़र आए ...

    लिखते रहिये ....

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  3. क्षितिज की ओर देखें तो जमीन आसमान मिलते दिखाई देते हैं, क्षितिज से कैसा दिखता होगा, ये तो वही बता सकता है जो वहाँ तक पहुंचा हो। आपने बताया, ज्ञानवृद्धि हुई यकीनन। शायद पहले भी छपी है ये गज़ल,बहुत अच्छी लगी जी।
    तस्वीर है तो अच्छी, लेकिन उफ़क, जमीन..। या फ़िर शायद मैं ही तारतम्य नहीं बैठा सका।
    आपकी आवाज में गाना हमेशा की तरह मधुरम मधुरम।
    आभार।

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  4. गुड मोर्निंग दीदी, इंडिया के हिसाब से :))

    एक दम शानदार रचना है , एक दम मस्त फोटो और बेहतरीन गाना

    ये गानों से आपने पायरेसी के खिलाफ भी जंग छेड़ी हुई है , एक दम ओरिजिनल साऊंड के गाने सीधे कनाडा से इंडिया में सुनाई दे रहे हैं :)
    आज सुबह से अच्छी अच्छी रचनाएँ पढने को मिली है मोर्निंग सच में गुड हो गयी है

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  5. गुज़र रही हूँ देखो, इक ऐसी कैफ़ियत से
    ख़ामोशियों का मौसम, गुफ़्तगू नज़र आए...

    वाह !
    गीत भी खूबसूरत है ..

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  6. ग़ज़ल में आपकी पिन्हा मुहब्बत की खुमारी - सी,
    "अदा" जी आपकी फोटो है कुछ मीना कुमारी - सी

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  7. आवाज़ सुनी आपकी बिलकुल अभी अभी,
    आवाज़ में जादू है,खनक भी है"अदा"जी.

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  8. बहुत सुन्दर नज्म .......

    गुज़र रही हूँ देखो, इक ऐसी कैफ़ियत से
    ख़ामोशियों का मौसम, गुफ़्तगू नज़र आए

    बहुत अच्छी पन्तियाँ .........

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  9. itne behtareen shabd kahan se laati hain, kya urdu dictionery ka upyog bhi kiya ja sakta hai...:P
    bura nahi maniyega.............ham to hindi me jab likhte hain, tab bhi sabdo ki kami rahti hai, jo dimag me chalta hai wo utar hi nahi pata .............bahut koshish ke baad bhi.........aur bahuto baar aisa hota hai, uss topic ko hi chhod dete hain...!!

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  10. बेहद खूबसूरत गज़ल! साथ में आपकी आवाज़ तो चार चाँद लगा देती है पोस्ट में.

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  11. वो जो 'तू' है मुझसे अलग ? मुझसे बेदार कहाँ ?

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  12. गुज़र रही हूँ देखो, इक ऐसी कैफ़ियत से
    ख़ामोशियों का मौसम, गुफ़्तगू नज़र आए

    खूबसूरत भावाभिव्यक्ति. आभार.
    सादर
    डोरोथी.

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  13. उफ्, उफ्, उफ्....बेहतरीन।

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