Saturday, November 20, 2010

ब्लॉग जगत रूपी भवसागर में....


पुरानी है जी...

ब्लॉग जगत रूपी भवसागर में,
छद्म नाम फाड़ कर
कोई तो 
रूप गर्विता सच्चाई 
को सामने ले आओ,
कोई तो प्रेम के दर्शन कराओ !
परन्तु तुम्हें क्या !
तुम तो ...
पोस्ट को अदाओं से गरिष्ठ 
और चिटठा जगत में वरिष्ठ बनाओ,
जो कमसुख़न हों 
उन्हें सुख़नवर दिखाओ,
यहाँ बिना कृति के कीर्ति 
और बिना प्रतिभा के प्रतिष्ठा
मिलती है,
कभी-कभी तो
आयु और मेधा 
एक दूसरे से बतियाते तक नहीं,
उच्च पदासीन रहते हैं 
हंगामे और बवाल,
कुछ...
पुरखे ताज़ा-तरीन हैं,
और कुछ बस नीम जिंदा,
कुछ...
खिलाड़ी निर्विवाद हैं,
लेकिन... 
ज्यादा देदीप्यमान हैं
उन्मादी और लफंगे,
ये तो अच्छा है कि 
कनिष्ठों की बहार है,
और...
कुछ वरिष्ठ तारनहार हैं,
बस... 
एक हम जैसे 
दरमियान में आ जाते हैं ,
कहाँ समझ पाते हैं !
हवाओं की खुसुर-फुसुर,
फिलहाल जाने क्यूँ 
दिशाएं सुन्न लग रहीं हैं...!



14 comments:

  1. उच्च पदासीन रहते हैं
    हंगामे और बवाल,
    खिलाड़ी निर्विवाद हैं,
    लेकिन...
    ज्यादा देदीप्यमान हैं
    उन्मादी और लफंगे,....

    कौन नयी बात है ....इन्हें प्रश्रय और बढ़ावा देने वाले आप हममे से ही हैं ...

    एक हम जैसे
    दरमियान में आ जाते हैं ,
    कहाँ समझ पाते हैं !
    हवाओं के खुसुर-फुसुर...

    सच ज्यादा दिन परदे में नहीं रहता ....अँधेरा कितना ही घना हो ...!
    वास्तविक और आभासी दुनिया पर एक बहुत सामायिक पोस्ट...पुरानी है तो क्या ...
    अब देखिये ना... शरद जोशी, हरिशंकर परसाई , बालकवि बैरागी आदि का लिखा आज भी प्रासंगिक ही है !

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  2. बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
    फ़ुरसत में .... सामा-चकेवा
    विचार-शिक्षा

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  3. शायद पहले भी आपकी इस पोस्ट पर कमेन्ट किया था ! शब्दश: कुछ पक्का याद नहीं ! आज भी आपकी भावनाओं / आपके उदगारों से सौ फीसदी सहमत है !

    'पहले भी ज्यादा देदीप्यमान हैं
    उन्मादी और लफंगे'

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  4. ‘यहाँ बिना कृति के कीर्ति
    और बिना प्रतिभा के प्रतिष्ठा
    मिलती है’

    तभी तो इसे ब्लाग जगत कहते हैं:)

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  5. स्थितियों परिस्थितियों को उजागर करती सुन्दर अभिव्यक्ति!!!

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  6. भवसागर से तार दो भगवान।

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  7. bahut hi sunder
    or sahi kaha hai aapne

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  8. "ज्यादा देदीप्यमान हैं
    उन्मादी और लफंगे,’
    नाईस पोस्ट।

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