जीवन का हरएक दृश्य, जब प्रत्यक्ष आ जाता है
मन का पाखी बंधनों से, मुक्त हुआ सा जाता है
प्रशांति की ओर कदम तभी, हठात से बढ जाते हैं
अति-धनिष्ठ संबंधों से स्वयं को, उऋण तब पाते हैं
समाधि में ध्यान मग्न, हो जाएगा हृदय जब लीन
जगन्नियंता परम-ब्रह्म में, होगा मन भी विलीन
तब...
एक विचार जो उठता है वो कुछ विचलित कर देता है
'अहम् ब्रह्मा अस्मि'...., कहने वाला दम्भी मानव,
समाधि में ध्यान मग्न, हो जाएगा हृदय जब लीन
जगन्नियंता परम-ब्रह्म में, होगा मन भी विलीन
तब...
एक विचार जो उठता है वो कुछ विचलित कर देता है
'अहम् ब्रह्मा अस्मि'...., कहने वाला दम्भी मानव,
क्यों संघर्षरत ही रहता है..?
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