Tuesday, June 8, 2010

इमेज.....सुहानी चांदनी रातें हमें सोने नहीं देती.....आवाज़ 'अदा' की है ...


हमेशा की तरह इस बार भी कछुवे और खरगोश की दौड़ प्रतियोगिता में, खरगोश हार गया...सबको बहुत हैरानी हुई, सबने सोचा कि अब तक तो खरगोश को सबक सीख ही लेना चाहिए था ...आख़िर क्या वजह है कि ये फिर हार गया ...!  लिहाजा सारे मिडिया वाले पहुँच गए खरगोश से उसकी हार का कारण जानने, 
पेड़ के नीचे लेटा खगोश ने बड़े ही इत्मीनान से जम्हाई लेते हुए कहा ....भाई ! सदियों से हमारे पूर्वजों  ने हारने की परिपाटी बनाई हुई है, मैं क्यूँ इसे बदलूँ....आख़िर मेरे पुरखों की इमेज का भी तो सवाल है.....
हाँ नहीं तो..!!


और अब ये गीत....
आवाज़ 'अदा' की है ...



सुहानी चांदनी रातें हमें सोने नहीं देती
सुहानी चांदनी रातें हमें सोने नहीं देती
तुम्हारे प्यार की बातें हमें सोने नहीं देती

तुम्हारे रेशमी ज़ुल्फ़ों में दिल के फूल खिलते थे
कहीं फूलों के मौसम में कभी हम तुम भी मिलते थे
पुरानी वो मुलाकातें हमें सोने नहीं देती

कहीं एसा न हो लग जाए दिल में आग पानी से
बदल लें रासता अपना घटाएं मेहरबानी से
कि यादों की वो बरसातें हमें सोने नहीं देती

16 comments:

  1. सादर!
    आपने आदत डाल दी है ! अब तो आपको सुनना डेली रूटीन हो गया है!
    और साथ में ये कहानी ! बहुत खूब ..हाँ नहीं तो ..
    रत्नेश त्रिपाठी

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  2. behad sundar rachna..umda



    गाँधी जी का तीन बन्दर का सिद्धांत-एक नकारात्मक सिद्धांत http://bit.ly/b4zIa2

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  3. mukesh ka ye amit geet...aur aapki awaaz.....bahut khoob..agar ijajat ho to ek farmaish hai....ek geet hai 'kisi raah me kisi mod pe...', agar ho sake to kabhi ise apni awaz bhi dijiyega...

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  4. आपकी आवाज सुबह को अब उदास होने नहीं देती
    सुबह का अखबार पढ़ कर भी ठीक से रोने नहीं नहीं देती
    दुखों का बोझ अब मन पर ......हमें ढोने नहीं देती
    आपकी आवाज सुबह को अब उदास होने नहीं देती

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  5. लगता है खरगोश भी परम्पराओं के बोझ तले दबकर मर जाने वाली कौम से है
    सुन्दर आवाज.. मधुर

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  6. kabhi phoolon ke mausam mein , aji ham tum bhi milte the...

    puraani wo mulaaqaatein hamein sone nahin detin.....

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  7. बहुत खूब, लाजबाब !

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  8. धन्यवाद मनु जी ..भूल सुधार के लिए...
    कभी फूलों के मौसम में अजी हम तुम भी मिलते थे ...
    की जगह पर...... कभी फूलों के मौसम में कभी हम तुम भी मिलते थे....
    हो गया है...
    कोशिश करुँगी ठीक करने की ..लेकिन थोडा समय तो लगेगा ही...

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  9. जब भी यह गाना सुनता हूँ, आँखें बंद हो जाती है । आपका गाना सुनकर एक विशेष आत्मिक अनुभूति से निकल कर आया हूँ अभी ।

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  10. भाई ! सदियों से हमारे पूर्वजों ने हारने की परिपाटी बनाई हुई है, मैं क्यूँ इसे बदलूँ....आख़िर मेरे पुरखों की इमेज का भी तो सवाल है.....
    हाँ नहीं तो..!!

    :):):)...

    गीत मधुर है ...जोधपुर में देखी थी यह फिल्म ...!!

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  11. अदा जी,
    एक छोटी सी "प्रार्थना" है,
    कभी एक देश भक्ति गीत (आपकी पसंद का) सुनने को मिल जाए तो बस आनंद आ जाए

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  12. सुहानी चांदनी राते आपको सोने नहीं देतीं तो इसका ये मतलब तो नहीं कि आप दूसरों को रात को उठाकर मधुर आवाज़ में ब्लॉग के ज़रिए गीत सुनने को विवश कर दें...

    वैसे पाबला जी ने बड़े दिनों से आधी रात को फोन करना छोड़ दिया है...

    जय हिंद...

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