Wednesday, April 14, 2010

कितने तो उन मयखानों में रात गुजारा करते हैं....


पशे चिलमन में वो बैठे हैं हम यहाँ से नज़ारा करते हैं
गुस्ताख हमारी आँखें हैं आँखों से पुकारा करते हैं

कोताही हो तो कैसे हो, इक ठोकर मुश्किल काम नहीं 
मेरी राह के पत्थर तक मेरी ठोकर को पुकारा करते हैं

पीते हैं बस आँखों से और बदनाम हुए हम जाते हैं
कितने तो उन मयखानों में  रात गुजारा करते हैं

हम खानाबदोशों को भी है किसी सायबाँ की दरकार 
नज़रें बचाए जाने क्यों हमसे वो किनारा करते हैं 


जब डूबते हैं पहलू में 'अदा' गोशा-गोशा गदराता है
हम हुस्न-ए-मुजसिम लगते हैं वो नज़र उतारा करते हैं


35 comments:

  1. गुस्ताख हमारी आँखें हैं आँखों से पुकारा करते हैं

    असर हुआ ये कि
    मुकर के अपने वादे से गुस्ताखियाँ दुबारा करते हैं

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  2. जब डूबते हैं पहलू में 'अदा' गोशा-गोशा गदराता है
    हम हुस्न-ए-मुजसिम लगते हैं वो नज़र उतारा करते हैं
    बहुत सुन्दर भाव हैं ! एक खुबसूरत ग़ज़ल के लिए बधाई !

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  3. जब डूबते हैं पहलू में 'अदा' गोशा-गोशा गदराता है
    हम हुस्न-ए-मुजसिम लगते हैं वो नज़र उतारा करते हैं
    बहुत सुन्दर भाव हैं ! एक खुबसूरत ग़ज़ल के लिए बधाई !

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  4. पीते हैं बस आँखों से और बदनाम हुए हम जाते है
    कितने तो उन मयखानों में रात गुजारा करते हैं

    -वाह!! बहुत सुन्दरता से पिरोई है रचना..बहुत खूब!

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  5. इक सिर्फ़ हमी मय को आंखों से पिलाते हैं,
    कहने को दुनिया में मयख़ाने हज़ारों हैं,
    इन आंखों की मस्ती के मस्ताने हज़ारों हैं...

    सुबह सुबह और नशा, राम-राम...

    जय हिंद...

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  6. har sher achchha laga mujhe to(kya karen sher bache hi kam hain bharat me Di :) )

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  7. hnm.....

    padhaa..

    aur ..

    apun ko to chadh gayi...

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  8. पीते हैं बस आँखों से और बदनाम हुए हम जाते हैं
    कितने तो उन मयखानों में रात गुजारा करते हैं..

    क्या बात है ...पीना पिलाना आँखों से ...

    हंगामा है क्यों बरपा थोड़ी सी जो पी ली है....:):)

    खूबसूरत ग़ज़ल ...!!

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  9. दी अपुन भी अभिज़ के अभी सुबह सुबह अदा नामक मयखाने में टुन्न हो गए .................. गुस्ताख हमारी आँखें हैं आँखों से पुकारा करते हैं..........वल्लाह ! पीते हैं बस आँखों से और बदनाम हुए हम जाते हैंकितने तो उन मयखानों में रात गुजारा करते हैं
    दी अभी लड़खड़ा रहा हूँ ...............थोडा वक़्त लगेगा न ................

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  10. बहुत सुन्दर रचना .....हर एक पंक्ति में गज़ब के भाव है .

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  11. नशीली अदाएँ ...मयखाना ए जिंदगी की

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  12. bahut hi sundar likha hai.

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  13. कई बार कहा उनसे , यूं कत्ल न हमारा किया करो,
    हर बार हम मर जाते हैं,वो यही काम दोबारा करते हैं

    जाने कौन जतन नहीं किए , सजाने को दिखाने को,
    सब फ़ीके, वो बस सब कुछ शब्दों से संवारा करते हैं

    आपकी रवानी में उतर कर डूबने का आनंद ही अलौकिक है जी । सुबह सुबह ही खुमारी सी छा गई है

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  14. बहुत अच्छी प्रस्तुति।

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  15. पीते हैं बस आँखों से और बदनाम हुए हम जाते है
    कितने तो उन मयखानों में रात गुजारा करते हैं

    ये आँखें भी बहुत कुछ कह जाती हैं।

    आज की शायरी बहुत पसंद आई जी ।
    आनंदमयी।

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  16. अदा जी बहुत बढ़िया ग़ज़ल प्रस्तुत की आपने....अच्छी लगी..बधाई

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  17. सुन्दर शब्दों का सुन्दर प्रयोग ।

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  18. मयखाने में जो मिलती है, उसका असर अल्पकालिक होता है।
    आंखों से जो पी जाती है, उसका असर बहुत गहरा होता है।

    आज तो मधुशाला ही खोल रखी है जी।

    बहुत सुंदर रचना।

    नशा हो रहा है पढ़कर ही।

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  19. वाह .. क्‍या बात है !!

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  20. कोताही हो तो कैसे हो, इक ठोकर मुश्किल काम नहीं
    मेरी राह के पत्थर तक मेरी ठोकर को पुकारा करते हैं
    ....bahut khoobsurati se manobhawon ko vyakt kiya aapne..
    Bahut shubhkamnayne.

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  21. पीते हैं बस आँखों से और बदनाम हुए हम जाते हैं
    कितने तो उन मयखानों में रात गुजारा करते हैं

    ये कव्वाली तो बहुत बढ़िया रही!

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  22. कमाल हो गया ...जिसे पढ़ कर दिल झूम जाए वही खूबसूरती है ! शुभकामनायें !

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  23. पीते हैं बस आँखों से और बदनाम हुए हम जाते हैं
    कितने तो उन मयखानों में रात गुजारा करते हैं

    jane hum kaise hai jo wahi kaam dubara karte hai

    Bahut hi khoobsurat

    -Shruti

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  24. शब्दों का बेहद, उचित जगह चयन,यह कहना आपके लिए छोटी बात होगी...लेकिन सच्चाई तो कहनी ही होगी ,,बहुत सुन्दर रचना

    विकास पाण्डेय
    www.vicharokadarpan.blogspot.com

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  25. बेहद सुंदर रचना. शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  26. Hello ji,

    What a marvellous work!!
    "पशे चिलमन में वो बैठे हैं हम यहाँ से नज़ारा करते हैं
    गुस्ताख हमारी आँखें हैं आँखों से पुकारा करते हैं"

    AND

    "हम हुस्न-ए-मुजसिम लगते हैं वो नज़र उतारा करते हैं"

    Waaaaah!! Waahh!! Waaah!!

    Regards,
    Dimple
    http://poemshub.blogspot.com

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  27. kamal ho gaya...

    itni gehre ankho k kajal se kaise
    gazal likh leti ho..
    meri kalam ka roya roya bhi
    jhoom uthta hai..
    aur tum katle aam kar jati ho.

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  28. वाह! क्षमा कीजिएगा. मैंने आपका ब्लॉग दूसरी ही बार पढ़ा है. मगर, आपके लिखने और सोच का माशाल्लाह! कायल हो गया हूँ.बुरा न मने तो एक बात पूछना चाहूँगा, कहाँ से लती हैं अप ऐसी नायब सोच........?

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  29. "पशे चिलमन में वो बैठे हैं हम यहाँ से नज़ारा करते हैं
    गुस्ताख हमारी आँखें हैं आँखों से पुकारा करते हैं"-
    शुरुआत ही क्या धुआँधार कर दी आपने ! गज़ल पर लौटना सुकून भरा है !
    अपनी अनुपस्थिति को कोस रहा हूँ ! उस वक़्त पढ़ना और फिर कहने लायक कहना - यह ज्यादा जरूरी है !

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  30. @ पीते हैं बस आँखों से और बदनाम हुए हम जाते हैं
    कितने तो उन मयखानों में रात गुजारा करते हैं..
    .... एक शेर याद आ रहा है ,
    '' वो क़त्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होती ,
    हम आह भी भरते हैं तो हो जाते हैं बदनाम | ''
    सुन्दर प्रविष्टि ...... आभार ,,,

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