पशे चिलमन में वो बैठे हैं हम यहाँ से नज़ारा करते हैं
गुस्ताख हमारी आँखें हैं आँखों से पुकारा करते हैं
कोताही हो तो कैसे हो, इक ठोकर मुश्किल काम नहीं
मेरी राह के पत्थर तक मेरी ठोकर को पुकारा करते हैं
पीते हैं बस आँखों से और बदनाम हुए हम जाते हैं
कितने तो उन मयखानों में रात गुजारा करते हैं
हम खानाबदोशों को भी है किसी सायबाँ की दरकार
नज़रें बचाए जाने क्यों हमसे वो किनारा करते हैं
हम खानाबदोशों को भी है किसी सायबाँ की दरकार
नज़रें बचाए जाने क्यों हमसे वो किनारा करते हैं
जब डूबते हैं पहलू में 'अदा' गोशा-गोशा गदराता है
हम हुस्न-ए-मुजसिम लगते हैं वो नज़र उतारा करते हैं