बात वो दिल की ज़ुबां पे कभी लाई न गई
चाह कर भी उन्हें ये बात बताई न गई
नीम-बाज़ आँखें भी बरसतीं हैं मेघ लिए
आब तो गिरता रहा पर आग बुझाई न गई
कौन है हम, हैं कहाँ,क्यों हैं ये पूछा तुमने
थी खबर हमको मगर तुमसे बताई न गई
दर्द का दिल पे असर कैसा है मुश्किल गुजरा
बात यूँ बिगड़ी के फिर बात बनाई न गई
जुनूँ-ए-इश्क ने फिर ख़ाक में मिला ही दिया
सलवटें माथे की हमसे तो मिटाई न गई
हम यहाँ आधे बसे, आधे हैं अब और कहीं
ज़िन्दगी बाँट कर भी दूरी मिटाई न गई
राह में उनकी नजर हम है बिछाए बैठे
अब शरर ढूंढें कहाँ, रौशनी पाई न गई
कुछ तो है बात के चेहरे पे कई सोग पड़े
हंसती है कैसे 'अदा' रुख से रुलाई न गई
जुनूँ-ए-इश्क ने फिर ख़ाक में मिला ही दिया
ReplyDeleteसलवटें माथे की हमसे तो मिटाई न गई
जुनूँ-ए-इश्क में खाक में मिलना भी मायने रखता है.
बहुत सुन्दर गज़ल और उसके भाव
हम यहाँ आधे बसे, आधे हैं अब और कहीं
ReplyDeleteज़िन्दगी बाँट कर भी दूरी मिटाई न गई
क्या भाव हैं!
बी एस पाबला
दर्द का दिल पे असर कैसा है मुश्किल गुजरा
ReplyDeleteबात यूँ बिगड़ी के फिर बात बनाई न गई
जुनूँ-ए-इश्क ने फिर ख़ाक में मिला ही दिया
सलवटें माथे की हमसे तो मिटाई न गई
हम यहाँ आधे बसे, आधे हैं अब और कहीं
ज़िन्दगी बाँट कर भी दूरी मिटाई न गई
सुन्दर कविता आभार आपका
एक अच्छी रचना है. बधाई स्वीकारें .
ReplyDelete- विजय
बहुत सुंदर कविता आभार आपका
ReplyDeleteबेहतरीन रचना, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
बहुत बढ़िया गजल है।बधाई।
ReplyDeleteदर्द का दिल पे असर कैसा है मुश्किल गुजरा
बात यूँ बिगड़ी के फिर बात बनाई न गई
हम यहाँ आधे बसे, आधे हैं अब और कहीं
ReplyDeleteज़िन्दगी बाँट कर भी दूरी मिटाई न गई
kamaal ka bhaav hai di..
कौन है हम, हैं कहाँ,क्यों हैं ये पूछा तुमने
ReplyDeleteथी खबर हमको मगर तुमसे बताई न गई
खबर थी तो बताया क्यों नहीं अब तक ..!!
बात हर बिगड़ी बन जाये ...
अदा हमेशा मुस्कुराये ..!!
एक बेहद खुबसूरत ग़ज़ल ..!!
बात वो दिल की ज़ुबां पे कभी लाई न गई
ReplyDeleteचाह कर भी उन्हें ये बात बताई न गई
नीम-बाज़ आँखें भी बरसतीं हैं मेघ लिए
आब तो गिरता रहा पर आग बुझाई न गई
कौन है हम, हैं कहाँ,क्यों हैं ये पूछा तुमने
थी खबर हमको मगर तुमसे बताई न गई
दर्द का दिल पे असर कैसा है मुश्किल गुजरा
बात यूँ बिगड़ी के फिर बात बनाई न गई
जुनूँ-ए-इश्क ने फिर ख़ाक में मिला ही दिया
सलवटें माथे की हमसे तो मिटाई न गई
हम यहाँ आधे बसे, आधे हैं अब और कहीं
ज़िन्दगी बाँट कर भी दूरी मिटाई न गई
राह में उनकी नजर हम है बिछाए बैठे
अब शरर ढूंढें कहाँ, रौशनी पाई न गई
कुछ तो है बात के चेहरे पे कई सोग पड़े
हंसती है कैसे 'अदा' रुख से रुलाई न गई
maafi chahta hoon Di aisa koi sher hi nahin mila jo achchha laga ho, socha koi bahut achchha dhoondha jaye to jo bhi sabse achchha samajh ke uthata turant dimag kahta, 'kyon guru? doosre wale ke sath gaddari?' isliye poori bahut achchhi gazal ko hi yahan pasand bana liya.. :)
Jai Hind
गहन भावों के विह्वल अभिव्यक्ति !
ReplyDelete"बात वो दिल की ज़ुबां पे कभी लाई न गई
ReplyDeleteचाह कर भी उन्हें ये बात बताई न गई"
अति सुन्दर रचना!
इस रचना ने तलत महमूद के गाये गीत की याद दिला दीः
हमसे आया न गया तुमसे बुलाया न गया ...
नीम-बाज़ आँखें भी बरसतीं हैं मेघ लिए
ReplyDeleteआब तो गिरता रहा पर आग बुझाई न गई
नीमबाज आँखों का यह मौसम बड़ा दिलकश लगा..
और फिर यह शेर ग़ज़ल का सबसे दिलफ़रेब मोती लगा
हम यहाँ आधे बसे, आधे हैं अब और कहीं
ज़िन्दगी बाँट कर भी दूरी मिटाई न गई
क्या कहूँ..एक पूरी पीढ़ी का सच छुपा कर रख दिया एक शेर मे..
और हाँ अवधिया जी किई तरह पढ़ते पढ़ते सबसे पहले तलत साहब का वह दिलदोज़ नगमा याद आया..और याद आयी उनकी मखमली आवाज..वही सुनने जा रहा हूँ पहले!!!
ada ji,
ReplyDeletebahut bahut shukriya...mujhe correct karne k liye, mujhe bahut achha laga ki aapne meri galti ko notice kiya aur bataaya....
once again thanks very much...
i have corrected the same...
great.
सुन्दर गजल....
ReplyDeleteसुन्दर्।
ReplyDeleteजुनूँ-ए-इश्क ने फिर ख़ाक में मिला ही दिया
ReplyDeleteसलवटें माथे की हमसे तो मिटाई न गई
Behtareen Sher...
जुनूँ-ए-इश्क ने फिर ख़ाक में मिला ही दिया
ReplyDeleteसलवटें माथे की हमसे तो मिटाई न गई
Behtareen Sher...
बात वो दिल की ज़ुबां पे कभी लाई न गई
ReplyDeleteचाह कर भी उन्हें ये बात बताई न गई
नीम-बाज़ आँखें भी बरसतीं हैं मेघ लिए
आब तो गिरता रहा पर आग बुझाई न गई
कौन है हम, हैं कहाँ,क्यों हैं ये पूछा तुमने
थी खबर हमको मगर तुमसे बताई न गई
दर्द का दिल पे असर कैसा है मुश्किल गुजरा
बात यूँ बिगड़ी के फिर बात बनाई न गई
जुनूँ-ए-इश्क ने फिर ख़ाक में मिला ही दिया
सलवटें माथे की हमसे तो मिटाई न गई
हम यहाँ आधे बसे, आधे हैं अब और कहीं
ज़िन्दगी बाँट कर भी दूरी मिटाई न गई
[Photo]
राह में उनकी नजर हम है बिछाए बैठे
अब शरर ढूंढें कहाँ, रौशनी पाई न गई
कुछ तो है बात के चेहरे पे कई सोग पड़े
हंसती है कैसे 'अदा' रुख से रुलाई न गई
gazab ki gazal hai ada ji
ek ek sher bar main neesar ho raha hun
badhai..
sabhi sher laajwaab hain.
ReplyDeleteराह में उनकी नजर हम है बिछाए बैठे
ReplyDeleteअब शरर ढूंढें कहाँ, रौशनी पाई न गई
हम यहाँ आधे बसे, आधे हैं अब और कहीं
ज़िन्दगी बाँट कर भी दूरी मिटाई न गई
bahut khoob ,kya kahoon ?
samajh nahi paa rahi rachna se aage badh nahi paai .
हम यहाँ आधे बसे, आधे हैं अब और कहीं
ReplyDeleteज़िन्दगी बाँट कर भी दूरी मिटाई न गई
waah ji,,,,behtareen gajal...
वाह!
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