रुख़ को कभी फूल कहा, आँखों को कवँल कह देते हैं
जब जब भी दीदार किया, हम यूँ ही ग़ज़ल कह देते हैं
वो परवाना लगता है, और कभी दीवाना सा
जल कर जब भी ख़ाक हुआ, शम्मा की चुहल कह देते हैं
जब आकर खड़े हो जाते हैं वो, सादगी लिए उन आँखों में
वो पाक़ मुजस्सिम लगते हैं, हम ताजमहल कह देते हैं
लगता तो था आज नहीं, हम तो अब उठ पायेंगे
सीने में जो दर्द उठा, चलो उसको अजल कह देते हैं
कितने ही पत्थर क्या जाने हम पर बरसे आज 'अदा'
जिन्हें मंदिर की पहचान नहीं, वो रंग महल कह देते हैं
अजल=मौत
पिया ऐसो जीया में समाय गयो रे...आवाज़ 'अदा' की...
अदा जी,
ReplyDeleteमैं सादगीपसंद आदमी हूँ,ज़ाहिर है मुझे आपका ये शेर बहुत पसंद आया.
जब आकर खड़े हो जाते हैं वो, सादगी लिए उन आँखों में
वो पाक़ मुजस्सिम लगते हैं, हम ताजमहल कह देते हैं
और आज का गाना:-
पिया ऐसो जिया में ........................ , पहले मुझे जितना अच्छा लगता था आज उससे बहुत ज़ियादा अच्छा लगा.मैंने अपने मन से पूछा ऐसा क्यों? मन ने जवाब दिया कि अरे, इसे अदा जी की प्यारी आवाज़ जो मिल गई है.
मन्त्रमुग्ध हो पूरा सुन डाला। जय हो।
ReplyDeleteउफ़...
ReplyDeleteये रोज रोज की तारीफ नहीं होती हमसे...बताईये हमेशा इतना अच्छा लिखियेगा तो कैसे चलेगा...अब से हम नहीं टिपियायेंगे ... चुपचाप पढ़ के निकल लेंगे...
हा हा हा....
अच्छा सुनिए न अपना एगो पुराना कविता पोस्ट किये हैं , आप तो शायद पढ़ी ही होंगी, फिर भी एक बार आकर इस अज्ञानी को खुश कर दीजियेगा.....:))
रुख़ को कभी फूल कहा, आँखों को कवँल कह देते हैं
ReplyDeleteजब जब भी दीदार किया, हम यूँ ही ग़ज़ल कह देते हैं
वो परवाना लगता है, और कभी दीवाना सा
जल कर जब भी ख़ाक हुआ, शम्मा की चुहल कह देते हैं
जब आकर खड़े हो जाते हैं वो, सादगी लिए उन आँखों में
वो पाक़ मुजस्सिम लगते हैं, हम ताजमहल कह देते हैं
wah kya baat hai ...
WAH........SHANDAR GAZAL..............AUR.........
ReplyDeleteJANDAR AWAZ........
PRANAM.
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (23/12/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.uchcharan.com
इतनी उम्दा गज़ल के बाद गीत सुनने का मन नहीं हुआ...
ReplyDeleteबाद में सुन लूंगा.
कितने ही पत्थर क्या जाने हम पर बरसे आज 'अदा'
ReplyDeleteजिन्हें मंदिर की पहचान नहीं, वो रंग महल कह देते हैं
xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx
अब इससे आगे क्या कहूँ .............सब कुछ कह दिया आपने .............शुक्रिया
सुन्दर गायकी--वाह क्या आवाज़ है...
ReplyDeleteजब आकर खड़े हो जाते हैं वो, सादगी लिए उन आँखों में
ReplyDeleteवो पाक़ मुजस्सिम लगते हैं, हम ताजमहल कह देते हैं
munh se waah waah hi nakltaa hai :-)
बहुत खूब मज़ा आ गया पढ़ कर
ReplyDelete"जब जब भी दीदार किया, हम यूँ ही ग़ज़ल कह देते हैं"
ReplyDeleteएल्लो जी, हम वैसे ही आपकी तारीफ़ कर दिया करते थे, गज़ल कहने पर, जबकि असली हकदार तो दीदार जी थे:)
यूँ तो ताजमहल अपनी पसंद की सूची में नहीं रहा, लेकिन ये सिंदूर सा छिड़का ताजमहल वाकई बहुत खूबसूरत लग रहा है।
पिया जिया में, आपकी आवाज सच में मंत्रमुग्ध करने वाली है।
बेहतरीन लाईनें , शुभकामनाएं ।
ReplyDeleteबहुत खूबसूरती से समेटे हैं जज़्बात अपनी गज़ल में
ReplyDeleteजब आकर खड़े हो जाते हैं वो, सादगी लिए उन आँखों में
ReplyDeleteवो पाक़ मुजस्सिम लगते हैं, हम ताजमहल कह देते हैं
बहुत सुन्दर, बेहतरीन रचना !
अदा जी ,
ReplyDeleteअभी अभी पाबला जी की पोस्ट से पता चला !!
हिम्मत से काम लीजियेगा ... हम सब आपके साथ है !
हमारी ओर से भी बाबु जी को विनम्र श्रद्धांजलि !!
तरन्नुम में सजे शब्द झूमने के लिए मजबूर कर देते हैं। लयबद्धता ने प्रभावित किया।
ReplyDeleteआपकी आवाज एक अबोध बाला सी लगती है...
ReplyDeleteमाता सरस्वती की अथाह कृपा है आपपर...
लेखनी स्वर और सुन्दरता सब भर भर के दे दिया आपको ईश्वर ने..
सुन्दर गज़ल!
ReplyDeleteशोक की घड़ी में खुद को अकेला न समझें, हम सबकी संवेदना आपके व आपके परिवार के साथ हैं। पिता का साया सर से हटना एक अपूरणीय क्षति है, ईश्वर पर विश्वास रखे व धैर्य बनाये रखें।
ReplyDeletemeri samvaidnaaye aapke sath hain. pita ka saya sir se hat jaye to beti ka dard bakhubi samajh sakti hun..is daur se guzri hun. meri bhaav-bheeni shradhaanjali aapke poojneeye pita ji ko. apna dhairy banaye rakhen.
ReplyDelete‘रुख़ को कभी फूल कहा,’
ReplyDeleteहां जी, कभी खत को फुल बना देते है :)
कितने ही पत्थर क्या जाने हम पर बरसे आज 'अदा'
ReplyDeleteजिन्हें मंदिर की पहचान नहीं, वो रंग महल कह देते हैं
अदा जी बहुत ही अच्छी ग़ज़ल ...........
फर्स्ट टेक ऑफ ओवर सुनामी : एक सच्चे हीरो की कहानी
बाबा को विनम्र श्रद्धांजलि।
ReplyDeleteबस इतना ही कहूँगा की मैंने यह ग़ज़ल कॉपी कर ली
ReplyDeleteAaj pahli bar apka blog dekha aur ab tak na dekh pane ka aphsos hai.Bahut achcha likhti hain aap.Aapki awaj sunkar mujhe kisi bahut hi apne ki yaad aa gai.Comments se aapke Babuji ke nidhan ka pata chala, bahut aphsos hua. Hamari shradhanjali unke liye. Apna dhairya banaye rakhen aur majboot bani rahen. anek shubhkamnayen.
ReplyDeleteसुदूर खूबसूरत लालिमा ने आकाशगंगा को ढक लिया है,
ReplyDeleteयह हमारी आकाशगंगा है,
सारे सितारे हैरत से पूछ रहे हैं,
कहां से आ रही है आखिर यह खूबसूरत रोशनी,
आकाशगंगा में हर कोई पूछ रहा है,
किसने बिखरी ये रोशनी, कौन है वह,
मेरे मित्रो, मैं जानता हूं उसे,
आकाशगंगा के मेरे मित्रो, मैं सूर्य हूं,
मेरी परिधि में आठ ग्रह लगा रहे हैं चक्कर,
उनमें से एक है पृथ्वी,
जिसमें रहते हैं छह अरब मनुष्य सैकड़ों देशों में,
इन्हीं में एक है महान सभ्यता,
भारत 2020 की ओर बढ़ते हुए,
मना रहा है एक महान राष्ट्र के उदय का उत्सव,
भारत से आकाशगंगा तक पहुंच रहा है रोशनी का उत्सव,
एक ऐसा राष्ट्र, जिसमें नहीं होगा प्रदूषण,
नहीं होगी गरीबी, होगा समृद्धि का विस्तार,
शांति होगी, नहीं होगा युद्ध का कोई भय,
यही वह जगह है, जहां बरसेंगी खुशियां...
-डॉ एपीजे अब्दुल कलाम
नववर्ष आपको बहुत बहुत शुभ हो...
जय हिंद...
बहुत खूबसूरती से समेटे हैं जज़्बात अपनी गज़ल में।
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा ; पढ कर खुशी हुई ।
आपको मकर संक्रांति की हार्दिक बधाई ।
धन्यवाद ।
बहुत खूबसूरती से समेटे हैं जज़्बात अपनी गज़ल में।
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा ; पढ कर खुशी हुई ।
आपको मकर संक्रांति की हार्दिक बधाई ।
धन्यवाद ।