Saturday, December 4, 2010

चुपके से सो जाते हैं ...



देखा है तुम्हें आज !!
कई सदियों बाद,
उम्र की परछाईयां,
नज़र आती थीं तुम पर,
सवालों के कारवाँ,
उफन पड़े थे,
तुम्हारी निगाहों से
लेकिन !
फेर ली नज़रें
तुमने सबसे बचा कर,
पूछा तो नहीं तुमने, 
मैं फिर भी बताती हूँ
किस्सा-ए-दिल,
अपना हाल सुनाती हूँ,
जिस दिन तुमने,
निगाहें मोड़ी थीं,
उसी दिन,
वफ़ा की मौत हो गई,
सब्र चुपके से खिसक गई,
और
उम्मीद भी फ़ौत हो गई,
हम तेरी जफ़ा से,
कफ़न उतार, 
अपनी वफ़ा को पहना आए थे,
बाद में,
तेरी यादों के साथ,
उसे दफ़ना आये थे,
तब से,
हर रोज़ हम
उस मज़ार पे जाते हैं,
जी भर के तुम्हें,
खरी-खोटी सुनाते हैं,
उसपर भी अगर,
जी नहीं भरता
तो 
अश्कों के दीप जलाते हैं ,
और एक बार फिर,
तेरी जफ़ा ओढ़ कर,
क़ब्र-ए-मोहब्बत में,
चुपके से सो जाते हैं ...


बेकरार दिल तू  गाये जा...आवाज़ 'अदा'
   

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8 comments:

  1. वाह अदा जी वाह
    विचारों का कविता में सतरंगी प्रवाह
    और उसमें इन्‍द्रधनुषीय रंग भरा
    अब तो जाना ही पड़ेगा
    आओ बंधु, गोरी के गांव चलें

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  2. aise mw sahi gungunaya...bekraar dil tu gaye ja ,
    bahut badhiyaa

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  3. क्या कहें, हम तो आपके भाव गुन रहे हैं, अभी तक।

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  4. "जिस दिन तुमने,
    निगाहें मोड़ी थीं,
    उसी दिन,
    वफ़ा की मौत हो गई"

    वाह अदा जी वाह,क्या बात है ज़िक्रे-बेवफ़ाई में.

    मेरी एक ग़ज़ल का मत्ला अर्ज़ है:-

    तेरी ख़ातिर तो ज़माने से दुश्मनी ले ली,
    बेवफ़ा तूने हमारी ही ज़िन्दगी ले ली.

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  5. `देखा है तुम्हें आज !!
    कई सदियों बाद'

    बड़ी लम्बी उम्र पाई :)

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  6. "अश्कों के दीप जलाते हैं ,
    और एक बार फिर,
    तेरी जफ़ा ओढ़ कर,
    क़ब्र-ए-मोहब्बत में,
    चुपके से सो जाते हैं ..."

    खामोश-पाकीज़गी का नमूना है ये पंक्तियाँ, बहुत खूब।
    चित्र और गीत से वंचित हैं आज, कर्टसी हमारा स्लो कनैक्शन।

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  7. 'सब्र चुपके से खिसक गई'

    सब्र चुपके से खिसक गया !

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