लो आ गया है फिर देखो
मौसम तमाज़तों का,
झुलस गया नशेमन मेरा
जो था बिजलियों का,
लतीफों से कुछ ख़याल
मेरे दिल में खिल उठे हैं,
बदल गया चलो मौसम
दिल की वादियों का,
लौट कर आई हूँ मैं
फिर आज बड़ी देर से,
खुलेगा अब दफ़्तर नया
उसकी शिकायतों का,
कहाँ-कहाँ अब छुपाऊं
सबकी नज़र से 'अदा',
रग-रग में है मेरी निशाँ
उसकी उँगलियों का.....
तमाज़तों=गरमी
आओ हुजूर तुमको... आवाज़ 'अदा'
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मौसम का मिज़ाज और रचना शायद पुरानी है, शिकायतें कुछ ताज़ी ताज़ी लग रही है ;)
ReplyDeleteलिखते रहिये ...
यह गीत पहली बार मैंने फाल्गुनी पाठक की आवाज़ में सुना था ।
ReplyDeleteबहुत मनमोहक लगा था ।
आज फिर वैसा ही लगा है ।
सरमा के मौसम में गरमा का ज़िक्र!!!!!! भई वाह :)
ReplyDeleteअच्छा गीत है।
ReplyDeleteपिछली न दो पोस्टें आपकी देख पाया था न ही पिछले दो आपके गाने सुन पाया था.
ReplyDeleteकारण भी बता दूँ अदा जी, 18th सुबह मुझे अचानक साहित्यक कार्य हेतु साहिबगंज(झारखण्ड)
जाना पड़ गया.अभी लौटा हूँ.अब सभी ब्लागर साथियों की पोस्टें देखना शुरू किया है. रूमानी touch लिए हुए आपकी ये पंक्तियाँ मुझे अच्छी लगीं :-
कहाँ-कहाँ अब छुपाऊं
सबकी नज़र से 'अदा',
रग-रग में है मेरी निशाँ
उसकी उँगलियों का...
अभी आपके दोनों गाने,आपकी नज़रों ने समझा..............तथा आओ हुज़ूर तुमको................सुना.
मुझे, आओ हुज़ूर............पहले वाले से ज़ियादा पसंद है अदा जी. आपकी आवाज़ के तो हमेशा की तरह कहने ही क्या.
आज तो आपकी रचना नमक सा छिड़कती लग रही है जी, यहाँ आईसक्रीम जम रही है और आप तमाज़तों का मौसम बता रही हैं। खफ़ा मत होना हमपर, प्रशाद साहब ने शुरुआत की है, चुटकी लेने की:)
ReplyDeleteगाना हमेशा की तरह सुपर डुपर मधुर।
आभार स्वीकारें।
निशान उनकी उँगलियों का। कल्पनाशीलता की गहराई।
ReplyDeleteआपकी आवाज़ सुनकर तोमाज़ा आ जाता है एक गाने को हम कई बार सुनते है
ReplyDeleteआपकी आवाज़ सुनकर मज़ा आ जाता है हम आपके गाये गाने बार बार सुनते हैं
ReplyDeleteअति सुन्दर
ReplyDeleteआखिर तक आते आते कविता दैहिक हो गई !
ReplyDeleteवाह अदा जी गीत सुना
ReplyDeleteअच्छा लगा पोस्ट शाम को
देखूंगा
बोलने का अधिकार बनाम मेरा गधा, और मैं.......!!
गिरीश बिल्लोरे का ब्लाग
aapke geet aur aapke...post..:)
ReplyDeleteरग-रग में है मेरी निशाँ
उसकी उँगलियों का.....
kya kahne....!!
खुलेगा अब दफ्तर नया ...वाह क्या बात है ।
ReplyDeleteरग-रग में है मेरी निशाँ
ReplyDeleteउसकी उँगलियों का.....
दिल क़ी गहराई से लिखी गयी एक रचना , बधाई