अदा जी, मैंने समझा रोज़ की तरह आपकी जादुई आवाज में ये गीत भी सुनने को मिलेगा,मगर ये क्या आपने तो original गाना पोस्ट पे लगा दिया वो धीरे धीरे down load होने की प्रक्रिया में ३५-४० मिनट में एक गाना पूरा करता है. आज न मैं आपकी कविता पढ़ पाया न आवाज़ सुन पाया. please दोनों चीज़ों से वंचित न किया करें. मन आज थोड़ा उदास हुआ.
किया बात हे ..... पुराने गीतोँ की .... कित्नी यादोँ के द्रीचे खुल्ते चले ग्ये ...... ब्च्प्न मेँ ज्ब हम सुने के लिये ब्स्त्र पर जाते तो ऑल इंडिया रेडिओ स्र्विस से इन्ही मधुर गीतोँ अवाज़ेँ लोर्याँ बन कर हमेँ नीन्द की आग़ुश मेँ ले जातीँ थी ..... मेरा ख्याल हे के 80 प्र्तिश्त पाकिस्तानी इंड्यन गीत सुंते हूवे हेँ
प्र्क्र्ती ओर उस की चीज़ोँ की सीमाऐँ नहीँ होती हेँ ......... जेसे कि चान्द कि चान्द्नी सीमा के इस ओर या उस ओर ऐक ही हे .... बारिश कि बूँदेँ सीमा के दोनोँ ओर ऐक जेसी होती हेँ ......... कोऐल की कूक, चड्या की चह्कार, बिज्ली की कड्क, बाद्ल की गरज, माँ कि माम्ता, ब्च्प्न कि यादेँ, सारी दुन्या मेँ ऐक सी हेँ ..........
सब् दुख सुख, आँसू , क़ह्क़हे सब ऐक से हेँ ......
अल्लाह भग्वान इश्व्र गाड .........
नामोँ की तक़्सीम द्रअस्ल ज़बानोँ के फर्क़ की वजह से हे........
पानी को आप जल कहेँ या वाट्र ..........
वोह अपनी बुन्यदी शक्ल नहीँ बद्ल्ता ........
वोह सब की पियास बुझात हे....
जो लोग इंसानोँ को तक़्सीम क्र्ते हेँ वोह कभी इंसानोँ का भला न्हीँ चाह्ते हेँ .....
अब इंसनोँ को म्ज़ह्ब ओर क़ोमोँ की सीमाओँ से अगे बद कर सिर्फ इंसान बन कर सोच्ना हो गा......
गाना पहली बार देखा है जी हमने, वरना अभी तक तो सुनकर ही पसंद करते रहे थे। आज हम कुंवर कुसुमेश साहब और डा. दराल साहब के समर्थन में हैं। मौके के अनुसार इससे अच्छा गाना शायद कोई दूसरा नहीं हो सकता था लेकिन आपकी आवाज में होता तो कुछ और ही बात होनी थी।
अदा जी
ReplyDeleteसादर प्रणाम
मुझे भी यह गीत बहुत पसंद है ...बहुत.. बहुत शुक्रिया
मुझे भी बहुत पसन्द है यह गीत।
ReplyDeleteअदा जी,
ReplyDeleteमैंने समझा रोज़ की तरह आपकी जादुई आवाज में ये गीत भी सुनने को मिलेगा,मगर ये क्या आपने तो original गाना पोस्ट पे लगा दिया वो धीरे धीरे down load होने की प्रक्रिया में ३५-४० मिनट में एक गाना पूरा करता है. आज न मैं आपकी कविता पढ़ पाया न आवाज़ सुन पाया. please दोनों चीज़ों से वंचित न किया करें.
मन आज थोड़ा उदास हुआ.
आभार गीत सुनवाने का.
ReplyDeleteधन्यवाद इतना सुन्दर गीत सुनवाने के लिये।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर ।
ReplyDeleteकिया बात हे ..... पुराने गीतोँ की .... कित्नी यादोँ के द्रीचे खुल्ते चले ग्ये ...... ब्च्प्न मेँ ज्ब हम सुने के लिये ब्स्त्र पर जाते तो ऑल इंडिया रेडिओ स्र्विस से इन्ही मधुर गीतोँ अवाज़ेँ लोर्याँ बन कर हमेँ नीन्द की आग़ुश मेँ ले जातीँ थी .....
ReplyDeleteमेरा ख्याल हे के 80 प्र्तिश्त पाकिस्तानी इंड्यन गीत सुंते हूवे हेँ
आदाब जमील साहब,
ReplyDeleteबहुत ख़ुशी हुई की पाकिस्तान में हमारे भाई बहन हिन्दुस्तानी गाने बहुत पसंद करते हैं...आपका बहुत बहुत शुक्रिया..
आभार गीत सुनवाने का.
ReplyDeleteपरिणय बंधन के वर्षगांठ पर दम्पत्ति को बधाई।
ReplyDeleteअदा जी , वैवाहिक वर्षगांठ पर इससे बढ़िया उदगार और क्या हो सकते है ।
ReplyDeleteप्र्क्र्ती ओर उस की चीज़ोँ की सीमाऐँ नहीँ होती हेँ ......... जेसे कि चान्द कि चान्द्नी सीमा के इस ओर या उस ओर ऐक ही हे .... बारिश कि बूँदेँ सीमा के दोनोँ ओर ऐक जेसी होती हेँ ......... कोऐल की कूक, चड्या की चह्कार, बिज्ली की कड्क, बाद्ल की गरज, माँ कि माम्ता, ब्च्प्न कि यादेँ, सारी दुन्या मेँ ऐक सी हेँ ..........
ReplyDeleteसब् दुख सुख, आँसू , क़ह्क़हे सब ऐक से हेँ ......
अल्लाह भग्वान इश्व्र गाड .........
नामोँ की तक़्सीम द्रअस्ल ज़बानोँ के फर्क़ की वजह से हे........
पानी को आप जल कहेँ या वाट्र ..........
वोह अपनी बुन्यदी शक्ल नहीँ बद्ल्ता ........
वोह सब की पियास बुझात हे....
जो लोग इंसानोँ को तक़्सीम क्र्ते हेँ वोह कभी इंसानोँ का भला न्हीँ चाह्ते हेँ .....
अब इंसनोँ को म्ज़ह्ब ओर क़ोमोँ की सीमाओँ से अगे बद कर सिर्फ इंसान बन कर सोच्ना हो गा......
@ डॉ दराल साहब,
ReplyDelete:)
जो पूछने वाली थी , कमेन्ट में जवाब मिल गया ...
ReplyDeleteविवाह की वर्षगांठ की बहुत -बहुत बधाई और शुभकामनायें ....!
गाना पहली बार देखा है जी हमने, वरना अभी तक तो सुनकर ही पसंद करते रहे थे। आज हम कुंवर कुसुमेश साहब और डा. दराल साहब के समर्थन में हैं। मौके के अनुसार इससे अच्छा गाना शायद कोई दूसरा नहीं हो सकता था लेकिन आपकी आवाज में होता तो कुछ और ही बात होनी थी।
ReplyDeleteदोनों प्रस्तुतियां लाजवाब हैं. बतख वाली पोस्ट ने दिल देहला दिया. सच इंसान कितन ज़ालिम है
ReplyDeleteशुभकामनायें!
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