Saturday, December 18, 2010

आपकी नज़रों ने समझा, प्यार के क़ाबिल मुझे...आवाज़ 'अदा' की.....


आज सिर्फ़ दो शेर मुलाहिज़ा फरमाइए....
धड़कन भी कुछ काबू में हो सांसें भी अब ज़रा संभले
मेरी जाँ ये मेरी उम्र भी इस तूफाँ के मुक़ाबिल ठहरे

जिस दम देखा था उसने पहली बार नज़र भर के
वो लम्हा मेरी ज़ीस्त का इकलौता हासिल ठहरे

ज़ीस्त=जीवन
आपकी नज़रों ने समझा प्यार के क़ाबिल मुझे....

12 comments:

  1. aapki jitni taarif ki jaaye kam hai..bemisaal...bhut sundar

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  2. बहुत खूब अदा जी...
    आपकी आवाज़ का तो मैं कब से कायल हूँ...
    वैसे आप अभी हैं कहाँ...अगर ओटावा में हैं तब तो वहां काफी ठण्ड होगी..
    अपना ख्याल रखियेगा...

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  3. खूबसूरत अशआर, मधुर गीत और मोहक तस्वीर शेयर करने के लिये आभार स्वीकार करें।

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  4. @ शेखर,
    मैं ओट्टावा में ही हूँ..और ठण्ड भी है यहाँ ..लेकिन महसूस नहीं हुई है अभी तक...
    मेरे बारे में सोचा इसके लिए ..शुक्रिया तो नहीं कहूँगी...छोटे हो ...
    कहूँगी ...ख़ुश रहो....!

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  5. वाह अदा जी , सुबह सुबह आपकी मधुर आवाज़ में इतना प्यारा गीत सुनकर आनंद आ गया ।

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  6. इकलौता हासिल तो ठीक है पर वो 'चिडडा' किस के भय से फिसला हुआ है :)

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  7. मिल गयी मंजिल मुझे..
    सुनकर आज गाने का मन कर रहा है।

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  8. आपकी आवाज़ को बार बार सुनने का मन होता है

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