Thursday, December 9, 2010

ऋतु परिवर्तन .....


....आज....
सुनते हो..!!
मत हो जाना, तुम मौन,
अन्यथा
मन  के भाव,
संचित होकर,
हृदय-भूगर्भ में
उमड़-घुमड़,
न जाने कितने
बंध-अनुबंध,
तोड़ना चाहेंगे ...
देखो ना !!
कितने बादल घिर आये हैं,
मन-आकाश में |

.....कल....
प्रतीक्षारत नयन,
मुखरित हो जायेंगे 
भाव,  झमा-झम बरसेंगे
छटेंगे बादल
संशय के,
पारदर्शी हो जायेंगी दिशायें,
 
हवाएँ सत्य की
हृदय को छूकर गुजरेंगीं   

और
हो जाएगा ऋतु परिवर्तन 
मेरे-तुम्हारे 
मन का..... 

अभी न जाओ छोड़ कर ....ये गीत  सिर्फ़ २ मिनट ४६ सेकेंड का है...बाकी ख़ाली है..असुविधा के लिए खेद है...







11 comments:

  1. bhn ji ritu privrtn pr jivnt rchna he bdhaayi ho rashtriy manvadhikar divs pr kuch likha jayae to mhrbani hogi
    विश्व मानवाधिकार दिवस की नोटंकी कल होगी
    देश भर में विश्व मानवाधिकार दिवस कल दस दिसम्बर को मनाने की नोटंकी की जाएगी इस नोटंकी में देश में कथित रूप से राष्ट्रिय स्तरीय और राज्य स्तरीय कई कार्यक्रम आयोजित कर लाखों रूपये बर्बाद किये जायेंगे लेकिन देश में आज भी मानाधिकार कानून मामले में देश पंगु बना हुआ हे देश में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का गठन वर्ष १९९३ में गठित कर सुप्रीम कोर्ट के जज रंगनाथ मिश्र को इसका अध्यक्ष बनाया गया और इसी के साथ ही राष्ट्रिय मानवाधिकार कानून देश भर में लागू कर दिया गया , रंगनाथ मिश्र ने इस कानून के माध्यम से देश भर में लोगों को न्याय दिलवाया लेकिन फिर सरकार अपने स्तर पर इस आयोग में नियुक्तियां करने लगी और आज देश भर में राष्ट्रिय और राज्य मानवाधिकार आयोग खुद एक सरकारी एजेंसी बन कर रह गये हें आयोग खुद काफी लम्बे वक्त तक खुद की सुख सुविधाओं के लियें लड़ता रहा और फिर जब राजकीय नियुक्तिया इस आयोग में हुई तो आयोग सरकार के खिलाफ कोई भी निर्देश देने से कतराने लगा , राजस्थान में भी मानवाधिकार आयोग हे लेकिन कई ऐसे मामले हें जिनमे सरकार के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं हो सकी हे जब योग और कर्मचारियों तथा पदाधिकारियों की नियुक्ति सरकारी स्तर पर होती हे और वेतन भत्ते सरकार से उठाये जाते हें तो जिसका खायेंगे उसका बजायेंगे की तर्ज़ पर कम होता हे और स्थिति यह हे के देश में १९९३ में बने कानून के तहत आज तक किसी भी हिस्से में मानवाधिकार न्यायालय नहीं खोली गयी हे जबकि अधिनियम में हर जिले में एक मानवाधिकार न्यायायलय खोलने का प्रावधान हे लेकिन सरकार ने नातो ऐसा किया और ना ही पद पर बेठे आयोग के अध्यक्षों ने इस तरफ सरकार पर दबाव बनाया जरा सोचो जब आयोग खुद ही अपने कानून को देश में लागु करवा पाने में असमर्थ हे तो फिर दुसरे कल्याणकारी कानून केसे लागू होंगे ।
    राजस्थान में पुलिस नियम अधिनियम २००७ में पारित हुआ इस कानून के तहत पुलिस और जनता की कार्य प्रणाली पर अंकुश के लियें समितियों और आयोग के गठन का स्पष्ट प्रावधान हे लेकिन आज तक तीन वर्ष गुजरने पर भी समितिया गठित नहीं की गयी हें जबकि थानों पर अंकुश के लियें इन समितियों का गठन विधिक प्रावधान हे इसी तरह मानवाधिकार कानून के तहत जिलेवार प्रतिनिधियों की नियुक्ति नहीं की गयी हे । देश के थानों में आज भी प्रताड़ना का दोर जारी हे हालात यह हें के हिरासत में मोतों का सिलसिला थमा नहीं हे सरकारी मशीनरी कदम कदम पर मानवाधिकारों का शोषण कर रही हे लेकिन आयोग के दायरे सीमित हें स्टाफ और सदस्य सीमित हें जिला स्तर पर कोई प्रतिनिधि नियुक्त नहीं किये गये हें और आयोग मात्र कार ड्राइवर और भत्तों का बन कर रह गया हे कुछ मामलों में आयोग कठोर रुख अपनाता हे तो उसकी पलना नहीं होती हे कोटा जेल के अंदर इन दिनों नियमित हिरासत में मोतें हो रही हें और हालात यह हें के राजस्थान और राष्ट्रिय मानवाधिकार आयोग ने कोटा जेल में मानवीय व्यवस्थाएं करने के लियें एक दर्जन से अधिक मेरी सोसाइटी ह्युमन रिलीफ सोसाइटी की शिकायत पर राज्य सरकार और कोटा के अधिकारीयों को निर्देश दिए हें मुझे गर्व हे के मानवाधिकार क्षेत्र में कार्य करने के लियें मेरी सोसाइटी ह्यूमन रिलीफ सोसिईती १९९२ में बनी और फिर १९९३ में आयोग और राष्ट्री मानवाधिकार कानून बना राजस्थान में कोटा से राष्रीय मानवाधिकार आयोग में सबसे पहली शिकायत मेरी दर्ज की गयी और इस शिकायत पर बाबू इरानी पीड़ित को न्याय दिलवाकर एक थाना अधिकारी को अपराधी बना कर मुकदमा दर्ज करवाने के निर्देश दिए गये और मुआवजा भी दिलवाया गया । कल विश्व मानवाधिकार दिवस पर अप सभी ब्लोगर बन्धु जिलेवार मानवाधिकार कोर्ट खोलने ,समितिया गठित करने पुलिस आयोग और समितिया गठित करने , न्यायालयों और थानों में कमरे लगवाने के मामले में एक एक ब्लॉग अवश्य लिख कर नुब्ग्र्हित करने ताकि देश में कम से कम इस कानून की १७ साल बाद तो क्रियानाविती हो सके । अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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  2. सुन्दर रचना और
    सुन्दर गीत .. स्वर

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  3. ‘.....कल....
    प्रतीक्षारत नयन,
    मुखरित हो जायेंगे


    और पढेंगे एक और कविता.......:)

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  4. बहुत गहरे भाव भर दिये आपने अपने शब्दों में.......
    और चित्र लाजवाब.........

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  5. अभी न जाओ छोड़ कर ....ये गीत सिर्फ़ २ मिनट ४६ सेकेंड का है...बाकी ख़ाली है..

    यह संदेश भी कम कवितामय नहीं है :)

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  6. उस कल की प्रतीक्षा में सितारों को नींद कहाँ आई होगी ...
    गीत तो सुन्दर है ही !

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  7. ऋतु परिवर्तन तो मौन ही होता है, आकर प्रकृति पसर जाती है, धीरे से।

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  8. कल,
    कितना विस्तृत शब्द है ये कल.। आता कभी नहीं, लेकिन आशा को जिलाये रखता है।
    आपकी कविता, गीत और चित्र में से सर्वोत्तम का चुनाव करना बहुत कठिन है, कल कोशिश करेंगे:)

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  9. बेहतरीन पोस्ट लेखन के बधाई !

    आशा है कि अपने सार्थक लेखन से,आप इसी तरह, ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।

    आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है-पधारें

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  10. बहुत बढिया। किन्तु ऋतु परिवर्तन में स्वास्थ्य का भी ध्यान रखना पड़ता है।
    ऋतु परिवर्तन

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  11. हमसे भूल हो गई, हमका माफ़ी देईदो...

    जय हिंद...

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