Sunday, August 11, 2013

सोचते रहते हैं हम ...!

ज़िन्दगी कैसे बसर हो, सोचते रहते हैं हम 
परेशानी कुछ कमतर हो, सोचते रहते हैं हम 

मीलों बिछी तन्हाई, जो करवट लिए हुए है 
ख़त्म अब ये सफ़र हो, सोचते रहते हैं हम 

गुम गया है वो कहीं या उसने भुला दिया है 
बस उसको मेरी खबर हो, सोचते रहते हैं हम 


वफ़ा की देगची में, हज़ारों इंतज़ार उबल रहे हैं 
अब यहीं मेरा गुज़र हो, सोचते रहते हैं हम

तेरी ऊँचाइयों तक, मेरे हाथ कहाँ पहुंचेंगे 
बस तुझपर मेरी नज़र हो, सोचते रहते हैं हम 

मत कर शुरू नई कहानी ''अदा', रहने दे वर्क पुराने 
तू लौटा अपने घर हो, सोचते रहते हैं हम

20 comments:

  1. तेरी ऊँचाइयों तक, मेरे हाथ कहाँ पहुंचेंगे
    बस तुझपर मेरी नज़र हो, सोचते रहते हैं हम

    वाह बेहतरीन काव्य पंक्तियाँ

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  2. ऊंचाइयों में जो है
    आपकी नजर से ही है

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    1. जो ऊँचें हैं, उनका क़द ही ऊँचा है :)

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  3. वफ़ा की देगची में, हज़ारों इंतज़ार उबल रहे हैं
    अब यहीं मेरा गुज़र हो, सोचते रहते हैं हम

    तेरी ऊँचाइयों तक, मेरे हाथ कहाँ पहुंचेंगे
    बस तुझपर मेरी नज़र हो, सोचते रहते हैं हम ....वाह-वाह अत्यन्त खूबसूरत लेखन .....

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    1. अजय जी,
      बहुत शुक्रिया आपका !

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  4. बहुत अच्छी कविता, जिंदगी की रौ से उलट बहने वाली कविता

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    1. कभी कभी उलटी रौ में बहना भी अच्छा लगता है !

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  5. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि का लिंक आज सोमवार (12-08-2013) को गुज़ारिश हरियाली तीज की : चर्चा मंच 1335....में "मयंक का कोना" पर भी है!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    1. आपका हृदय से धनयवाद शास्त्री जी !

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  6. सुन्दर प्रस्तुति… आभार

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  7. वफ़ा की देगची में, हज़ारों इंतज़ार उबल रहे हैं

    बड़ी ख़ूबसूरत पंक्ति है...पूरी की पूरी ग़ज़ल ही बढ़िया बन पड़ी है

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    1. बहुते दिन गायाब रही तुम, झलक दिखलाने का शुक्रिया कहते हैं :)

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  8. तेरी ऊँचाइयों तक, मेरे हाथ कहाँ पहुंचेंगे
    बस तुझपर मेरी नज़र हो, सोचते रहते हैं हम

    बड़ी कठिन और कड़वी बात कह दी इस तरह नज़रें घुमाना हद हो गई

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    1. वोई तो :)
      हद नहीं बेहद्द है, हाँ नहीं तो !

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  9. उफ, यह सोचना, उस पर सोचने पर सोचना।

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  10. अच्छा है। सुन्दर। गाना मिसिंग। होता त और अच्छा लगता। :)

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