Tuesday, August 6, 2013

हो जाएगा नव-निर्माण हमारे मन के वृन्दावन का...!


विष वृक्ष की तरह फैलते 
इस डाह में,
भर दो अणु अस्त्रों की आग,
जिसकी लपट से 
झुलसे चेहरों को,
अपनी असलियत पर आने दो,
गलाने पर जो तुले हैं
हमारी अस्मिता-तरु को,
उन सांप्रदायिक डालियों को काट डालो।
ख़ूब लड़ें हम आओ मिलकर,
मगर टूटने की बात न करें 
हो जाने दो हाहाकार,
बस एक बार,
कर लो हर फसाद,
बह जाने दो हर मवाद,
द्वेष की काली काई निकल जाने दो,
उज्जवल स्फटिक पथ बन जाने दो,
आलोकित हो जाएगा
रास्ता उत्थान का,
फिर हो जाएगा नव-निर्माण 
हमारे मन के वृन्दावन का...

24 comments:

  1. विषाक्त परिवेश में कोमलता और सरलता बद्ध अनुभव करती है, हाहाकार आवश्यक है। सुन्दर पंक्तियाँ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी हाँ प्रवीण जी तात्पर्य तो यही है.…

      Delete
  2. आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति बुधवारीय चर्चा मंच पर ।।

    ReplyDelete

  3. कलुषित करनेवाला विष का मवाद का निकलना ही उचित है
    latest post: भ्रष्टाचार और अपराध पोषित भारत!!
    latest post,नेताजी कहीन है।

    ReplyDelete
  4. सच में मुक्ति पानी होगी इससे, बिना हाहाकार यह संभव भी नहीं ..... अनुकरणीय भाव

    ReplyDelete
  5. अणुशस्त्र जी जगह शायद अणुअस्त्र होना चाहि‍ए ...

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत धन्यवाद काजल जी, इस गलती की ओर ध्यान दिलाने के लिए, सही कहा आपने।

      Delete
  6. उज्‍जवल रास्‍ता जरुर मिलेगा। बहुत गहरी विचारणीय रचना।

    ReplyDelete
    Replies
    1. कब मिलेगा ?
      अब तो लगता है देर होने लगी है.।

      Delete
  7. द्वेष की काली काई निकल जाने दो,
    उज्जवल स्फटिक पथ बन जाने दो,
    आलोकित हो जाएगा
    रास्ता उत्थान का,
    फिर हो जाएगा नव-निर्माण
    हमारे मन के वृन्दावन का...

    गहन चिंतन, प्रेरणा देती

    ReplyDelete
  8. शांतिप्रियता को जब दुर्बलता मान लिया जाये तो विध्वंस आवश्यक ही है। कामना ही नहीं विश्वास भी है कि मन के वृंदावन का नवनिर्माण उपयुक्त समय पर होगा।

    ReplyDelete
  9. बहुत सुंदर, लंबे अंतराल के बाद आपको पढ़ना सुखद अनुभव है।

    ReplyDelete
    Replies
    1. मुझे भी तुम्हें यहाँ देख कर बहुत हुई !

      Delete
  10. ओजपूर्ण आह्वान गीत

    ReplyDelete
    Replies
    1. जहाँ काम न आवे सुई वहाँ करे तलवार :)

      Delete
  11. बहुत प्रेरक

    ReplyDelete