Sunday, February 28, 2010

'वाह' पताका फहराते चलो....(पैरोडी: ज्योत से ज्योत जगाते चलो, प्रेम की गंगा बहाते चलो )




 होली है...होली है...होली है...होली है...होली है...होली है...

मैंने ये म्यूजिक ट्रैक डाला है...इसे बजाइए और साथ साथ गाइए ..पूरे सुर में.....आप डाउनलोड भी कर सकते हैं ..कोशिश कीजिये इस पर गाने की ...आप original गाइए या परोडी... अगर किसी ने इसकी रेकॉर्डिंग कर ली तो मुझे भेजिए...मैं एक प्रविष्ठी ही बना दूँगी ...और करवा देते हैं competition ...आज आप इसे सुर में पढिये )

**************************************************

ब्लॉग पे ब्लॉग बनाते चलो -२
पीठ-दर-पीठ थप-थपाते चलो
समझ की झोली भरे ना भरे -२
'वाह' 'वाह' का झोला उठाते चलो
ब्लॉग पे ब्लॉग बनाते चलो

कुछ भी लिख दो, कहीं भी लिख दो
टिप्पणी तो मिल जाएँ
सांझ ढले जब, ब्लाग खुले तब
मन हर्षित हो जाए
क्या सीखाSSSSSSS
क्या सीखा, क्या पाया तूने
सोच के सर बस खुजाते चलो
पीठ-दर-पीठ थप-थपाते चलो


अब तुम मेरे ब्लॉग में आओ
मैं तेरे ब्लॉग में जाऊं
तुम अब मेरी पीठ खुजाओ
अब मैं तेरी खुजाऊं
रचनाSSSSSSSS
रचना पल्ले पड़े न पड़े
वाहक की भीड़ में समाते चलो
पीठ-दर-पीठ थप-थपाते चलो

कौन है उम्दा, कौन है घटिया
यहाँ तो सारे बराबर
अभिव्यक्ति का माध्यम है ये
चिट्ठे छापो धडा-धड़
ज्ञान शिखाSSSSSS
ज्ञान शिखा  जले ना जले
'वाह' पताका फहराते चलो
पीठ-दर-पीठ थप-थपाते चलो

ब्लॉग पे ब्लॉग बनाते चलो -२
पीठ-दर-पीठ थप-थपाते चलो
समझ की झोली भरे ना भरे -२
'वाह' 'वाह' का झोला उठाते चलो
ब्लॉग पे ब्लॉग बनाते चलो


Friday, February 26, 2010

सोलिड है बाप !!!

अरे बिडू !! 
मालूम क्या
उधर कुछ शान पत्ती
गुमराह ख्याल
कुछ लोचा कियेला है
अपुन का ज़हन की
गल्ली में
कब से मस्ती कर रहेली है
मालूम !!
क्या बोला ?
हकीकत भाई समझायेगा
अरे हकीकत से
ख्याल का ३६ का
आंकडा है बाप 
खाली-पिली
भंकस होयेगा
बोला था अपुन 
उधर नई जाने का
अहसास का अक्खा
दीवार है..
सोलिड  !
टकरा जायेंगा
और बहुत पछ्तायेंगा
मान्तायिच नईं 
गयेला उधर को
बिंदास..
और हुआ क्या ?
टकराया न..
और अब कल्टी मार रहेली है !!
बोला चुप करके बैठने का
पण शाणा है
अबी कोई ज़मीर का खोली के
बाजू में राड़ा करेगा तो
लोचा होयेंगा न 
कोंचा भी मिलेंगा
हाँ तो फिर मिला !!!
सोलिड मिला..
फिर अपनी नियत हैं न
अरे नियत !!
उससे पंगा लिया
नियत ने उसका बैंड
बजा डाला
फिर
अपना दीमाग भाई
को मालूम चला
प्यार से बुलाया
इस गधेला ख्याल को
बहुत समझाया
मक्खन का माफिक समझाया
पर क्या समझेगा रे
एकदम धिबचुक है
दीमाग का भी भेजा
खिस्केला है बाप !!!
उसने अबी का अबी
जुबां को ताला मारा
और इस हलकट ख्याल
का उधरिच गेम कर डाला
ह्न्म्म्म
दीमाग भी न...
सोलिड हैं बाप !!!
चल अब तू भी खिसक ले...
.

Thursday, February 25, 2010

कितनी सच्चाई उसके बयानों में थी....Santosh Shail sings ..Sound of Silence...

 
मैं भी कल रात उन दीवानों में थी
मेरी नज़रें तो गुजरे ज़मानों में थी

दिल घबराया ऊँचे मकाँ में बड़ा
फिर सोयी मैं कच्चे मकानों में थी

यूँ तो दिखती हूँ मैं शमा की तरहां
पर गिनती मेरी परवानों में थी

मैंने हर बात पे उसके यकीं कर लिया 
कितनी सच्चाई उसके बयानों में थी

मेरे अपनों ने कब का है छोड़ा मुझे 
शायद लज्ज़त-ए-उल्फत बेगानों में थी

क्या ढूंढें 'अदा' वो तो सब बिक गया
तेरे सपनों की डब्बी दुकानों में थी



SOUND OF SILENCE

Hello darkness, my old friend,
I've come to talk with you again,
Because a vision softly creeping,
Left it's seeds while I was sleeping,
And the vision that was planted in my brain
Still remains
Within the sound of silence.

अँधेरे मेरे पुराने दोस्त
मैं फिर आया हूँ तुमसे बात करने
क्यूंकि कुछ प्रतिबिम्ब अहिस्ता से मेरे
अन्दर समा रहे थे, जब मैं सो रहा था
और ये प्रतिबिम्ब अभी भी मेरे दिमाग में
ठहरे हुए हैं...ख़ामोशी की आवाज़ के साथ

In restless dreams I walked alone
Narrow streets of cobblestone,
'neath the halo of a street lamp,
I turned my collar to the cold and damp
When my eyes were stabbed by the flash of a neon light
That split the night
And touched the sound of silence.

वो एक बेचैन सा सपना था
जिसमें में पथरीले और संकरी गलियों में चल रहा था
जहाँ पर स्ट्रीट लाईट थी उसकी गोलाई के नीचे
मैंने अपने कालर ऊपर कर लिए थे क्यूंकि
ठण्ड और नमी थी
ऐसे में ही मेरी आँखें चौंधिया गयीं
रात की उन  रंगबिरंगी बत्तियों से
और उन रौशियों ने छू लिया था
ख़ामोशी की आवाज़ को

And in the naked light I saw
Ten thousand people, maybe more.
People talking without speaking,
People hearing without listening,
People writing songs that voices never share
And no one dare
Disturb the sound of silence.

और उसी नंगी रौशनी में मैंने देखा
दस हज़ार लोगों को या शायद उससे से भी ज्यादा थे वो
वो बिला कुछ बोले बोले रहे थे
बिना कुछ सुने , सुन रहे थे
लोग गीत लिख रहे थे, लेकिन उन गीतों को कोई आवाज़ नहीं मिल रही थी
और किसी ने भी हिम्मत नहीं की
परेशान करने की
ख़ामोशी की आवाज़ को

"fools" said i, "you do not know
Silence like a cancer grows.
Hear my words that I might teach you,
Take my arms that I might reach you."
But my words like silent raindrops fell,
And echoed
In the wells of silence

And the people bowed and prayed
To the neon God they made.
And the sign flashed out it's warning,
In the words that it was forming.
And the sign said, "the words of the prophets

Are written on the subway walls
And tenement halls."
And whisper'd in the sounds of silence.

Wednesday, February 24, 2010

प्रॉब्लम सोल्व करके पोस्ट हुई है. ....पाबला जी का touching moment..

यह पोस्ट समर्पित है , एक बेहद खूबसूरत जज़बा  के नाम  जिसे 'दोस्ती' कहते हैं ..

वर्ष : १९८० 
स्कूल  का आखरी दिन...

  वीरेंदर सिंह पाबला और प्रगट सिंह  बहुत गहरे दोस्त थे, पूरा स्कूल उनकी दोस्ती कि मिसाल देता था, दोनों कि दोस्ती पहली कक्षा से थी , दोनों ने पढ़ाई एक साथ की, बदमाशियां एक साथ की और खेल कूद में भी साथ-साथ ही रहे....
दोनों को पुलिस में जाने का शौक़ था, और आज उनके स्कूली जीवन का आखरी दिन था ...



दोनों  स्कूल से लौटे समय बातें करते हुए आ रहा थे...


पाबला :
भाई ! मैं दूसरे शहर जा रहा हूँ, वहीँ पढूंगा, तुम्हारी बहुत याद आएगी...
प्रगट  
हाँ मुझे भी तुम्हारी बहुत याद आएगी , लेकिन हमारी दोस्ती कभी नहीं ख़तम हो सकती है, हम दोनों साल में एक बार ज़रूर मिला करेंगे...
पाबला: ये हुई ना बात , तो ये बात पक्की रही....उसके बाद दोनों ने अश्रुपूरित नेत्रों से एक दूसरे से विदा लिया...
समय के साथ-साथ दोनों ही अपने कामों में व्यस्त हो गए...पहले के दो साल दोनों ने अपना वायदा पूरा लिया , उसके बाद वो अपनी-अपनी दुनिया में मशगूल हो गए...
दोनों ही पुलिस में भर्ती हो गए , और ऑफिसर बन गए....
 

वर्ष : २०१०
जगह  :
जहाँ पाबला काम करते हैं


ट्रिंग ...ट्रिंग....

पाबला जी ने फोन उठाया और आश्चर्य मिश्रित ख़ुशी हुई उनको
""पाबला बोल रहो क्या ?"
"जी हाँ आप कौन ?"
" अरे भाई ! मैं प्रगट , अभी पता चला की तुम इस पुलिस स्टेशन में हो "
पाबला  जी  रो पड़े


पाबला :
अरे कहाँ हो तुम ?
प्रगट :
अरे मैं पुलिस स्टेशन के बाहर खड़ा हूँ....बाहर तो आ...

पाबला :
अरे ऐसा क्या ? हुण आया !!!.
 
पाबला जी भागते हुए बाहर गए ..उनकी आँखों से आँसू रुक नहीं रहे थे ...प्रगट से वो पूरे ३० वर्षों के बाद मिल रहे थे ..पाबला जी प्रगट के गले मिलना चाहते थे लेकिन नहीं मिल पा रहे थे....चाहे वो गले नहीं मिल पा रहे थे लेकिन बहुत ही  touching moment था दोनों के लिए....
क्यों यकीन नहीं आ रहा ख़ुद ही देख लीजिये ना......

नीचे .....

.
.
.
.
.
.
नीचे .....
.
.
.
.
.
.
नीचे .....

.
.
.
.
.
.
.
.और नीचे .....
.
.










.
.
.
.
.
बस ...



क्या ऐसा  touching moment देखा है आपने ?
 

Tuesday, February 23, 2010

क्रिकेट टेस्ट ....


उन दिनों  भारत-पकिस्तान के बीच क्रिकेट मैच ज़ोरों पर था ...अब ये मत पूछियेगा किस साल की बात है, मुझे याद नहीं है बस इतना याद है सारा भारत मुँह जोहे मैच ही देख रहा था , सारा आस, विश्वास, आस्था , ना जाने क्या-क्या वहीं लगा हुआ था, कहीं यज्ञं  हो रहे थे कहीं पूजा और कहीं लोग अरदास कर रहे थे, और कहीं नमाज़ कि भगवान् भारत जीत जाए बस...अजीब सा माहौल  था, कोई कुछ काम ही नहीं कर रहा था , सब क्रिकेट के रंग में रंगे हुए,  टी.वी. के सामने बैठे ही हुए थे...घर-बाहर, ऑफिस सड़क हर जगत क्रिकेट का ही नशा था हवाओं में, 

मैं भारत में थी ...और रांची में अपने माँ-पिता जी के घर में  थी, घर का भी माहौल खुशनुमा और क्रिकेटमय था...उस दिन फाइनल  मैच था,  सब उत्तेजना से भरे हुए टी.वी. के सामने बैठे थे...उत्तेजना की पराकाष्ठा ऐसी थी कि मेरे पिताजी कुर्सी के छोर पर  ही बैठे हुए थे....और मेरे फूफाजी, ऐसे  बैठे हुए थे जैसे किसी ने काँटों से बनी कुर्सी में उनको जबरन बिठाया हो...
 
ख़ैर, मैच चल रहा था और हमेशा की तरह मैच उसी जगह पहुँच चुका था ...जहाँ २ बाल और ६ रन वाली हालत होती है....कुल मिला कर माहौल बड़ा ही नाज़ुक था, सबके चेहरे परेशान, पूरा माहौल टेंशन से भरा, रुख़ पर हवाइयाँ उड़ रहीं थी ....

औरर्रर्रर्रर......  सबका डर  सच हो गया भारत की हार हुई... सबके चेहरे लटक गए, पिता जी बिना खाए ही बिस्तर पर चले गए ..मैं भी अपने दुखी फूफा जी को खाने के लिए मनाने लगी....इतने में पटाखों की आवाज़ से चौंक गई....मैंने पूछा  ये कैसी आवाज़ है ...फूफा जी ने बताया की घर से कुछ दूर पर जो बस्ती है, वहां कुछ धर्म विशेष के लोग रहते हैं, वो पकिस्तान के जीतने की ख़ुशी में ज़श्न मना रहे हैं ...थोड़ी देर में पटाखों की आवाज़ तेज़ होने लगी ...अब दूसरी बस्ती में भी खुशियाँ मनाई जा रही थी...

मेरा घर राँची में रातू रोड में है...हमारे घर से ही लगी हुई राँची पहाड़ी है, जिसकी चोटी पर शिव मंदिर हैं , पहाड़ी के दूसरी तरफ, नीचे ही जलील शाह का बारूद का कारखाना और साथ ही धर्म विशेष का मोहल्ला, पटाखों की आवाज़ और ज़श्न भी यहीं मन रहा था, राँची में ही एक और बहुत बड़ा इलाका है हिंदपीढ़ी जहाँ, इसी धर्म विशेष के लोग रहते हैं, जब भी पकिस्तान क्रिकेट में जीतता है, यहाँ रहने वाले कुछ लोग ऐसा ज़श्न मनाते हैं, यहाँ खुशियों का ऐसा माहौल होता है कि शायद पकिस्तान में भी ना हो,  मेरे फूफा जी बताने लगे कि यह हमेशा ही होता है...

मैं आज तक इस मानसिकता को नहीं समझ पायी हूँ इसलिए यह आलेख लिख रही हूँ....आखिर क्या वजह है कि ये मुट्ठी भर लोग हमारे अपने होते हुए भी, हमारे साथ उठते-बैठते, खाते-पीते, जीते हुए भी, भारत के सामाजिक तंत्र का हिस्सा होते हुए भी, यहाँ कि हर सुविधा का लाभ उठाते हुए भी, इस मामले में  हमारे साथ नहीं होते है...आखिर क्यूँ ???  जब भी क्रिकेट का मैच होता है, विशेषकर भारत और पकिस्तान के बीच, हमें  भारत के हर हिस्से में  छोटे-छोटे पाकिस्तान देखने को क्यूँ मिल जाते हैं ....जो हर क्रिकेट मैच के बाद, खुल कर सामने आ जाते हैं....मानो हमें चिढ़ा रहे हों ...आखिर इसकी वजह क्या है ..???  ज़हन में एक बात और आती है..ये तो महज़ क्रिकेट है , क्या देश की सुरक्षा पर अगर कभी आंच आ जाये तो क्या ..??  ईश्वर ना कर कभी पकिस्तान  घुस-पैठ कर जाए तो क्या ये कुछ लोग पकिस्तान के ही हो जायेंगे...??

कोई कह सकता है कि यह अपनी-अपनी पसंद है, किसी को भी कोई टीम पसंद आ सकती है, इसमें बुराई क्या है, जैसे एम्.ऍफ़. हुसैन कि तसवीरें, कहा जा सकता है यह कला की अभिव्यक्ति है, लेकिन कला की अभिव्यक्ति तो ब्लू फिल्म्स में भी होती है, तो क्या उसे भी मान्यता मिल जाए ?? 
क्रिकेट एक बहुत अच्छा मापदंड बन जाता है,  किसी व्यक्ति विशेष के देश के प्रति निष्ठां को मापने का ... यह भी एक उदाहरण हो सकता है, भावनात्मक आतंकवाद का, मैं कनाडा में रहती हूँ, अगर कनाडा और भारत के बीच में कोई मैच हुआ, तो निःसंदेह मुझे बहुत ख़ुशी होगी अगर भारत जीत जाए तो, लेकिन कनाडा की हार को मैं 'सेलेब्रेट' नहीं करुँगी, क्यूंकि भारत मेरी जन्मभूमि है तो कनाडा मेरी कर्मभूमि और मेरी निष्ठां कुछ कनाडा के प्रति भी है...
लेकिन यहाँ जिनकी बात हो रही है, उनके साथ ऐसा रिश्ता भी नहीं है, फिर यह क्या है ?? क्या इसे दूर किया जा सकता है..? क्या यह सोच बदली जा सकती है ?? अगर हाँ तो क्या हमलोग कुछ कार सकते हैं ??

कभी ये भी सोचती हूँ ...क्या पकिस्तान में भी ऐसा ही होता है ??? क्या जब-जब भारत जीतता है, वहाँ भी भारत के प्रति अनुराग रखने वाले, खुशियाँ मनाते होंगे ??? क्या वहाँ भी  ये पटाखा छोड़ पाते होंगे ???  मैं सचमुच जानना चाहती हूँ....
या फिर सिर्फ़ भारत ही एक ऐसा देश है जो सचमुच बहुत सहनशील है....???


नोट  : सबसे पहली बात किसी भी धर्म या जाति में सभी लोग अच्छे या बुरे नहीं होते,  मेरी यह बात सिर्फ़ कुछ मुट्ठी भर लोगों पर लागू है, इसलिए यह बात सब पर लागू नहीं होती... मेरा यह लेख किसी का भी दिल दुखाने या किसी भी प्रकार की ग़लत भावना पर नहीं लिखा गया है...मैंने वही लिखा है जो देखती रही हूँ, अगर मेरी सोच ग़लत है..तो आप सबसे विनती करुँगी, जो सही बात है वही मुझे बताइए...साथ ही अपनी टिप्पणी देते वक्त इस बात का भी ख्याल रखियेगा कि सभी एक सामान नहीं हैं, भाषा में शालीनता होनी ही चाहिये ताकि सभी आपकी अमूल्य टिप्पणी पढ़ सकें...



Monday, February 22, 2010

जानते हो !!


जानते हो !!
जिस पल तुमने मुझे
छूआ था
मैं अँकुरा गई 
तुम्हारे प्रेम की
जडें मेरी शाखाएँ 
बन कर
मेरे वजूद को
वहीँ खड़ा कर गईं 
जहाँ तुम्हारी
बाहों में मेरी साँसें 
पत्तों की तरह
लरजती हैं 
मेरे होठों के फूल 
मुस्कुरा उठते हैं
और उनकी ख़ुशबू 
बिखर जाती है
तुम्हारे आस-पास
कौन रोकेगा मुझे
तुम्हारी साँसों 
में उतरने से 
तुम्हारे पोर-पोर में
में बसने से ?
मैं कहीं नहीं हिलूँगी
इतना जान लो तुम....

Sunday, February 21, 2010

कहाँ है हमारा घर ???


(एक पुरानी प्रविष्ठी)

लड़की !
यही तो नाम है हमरा....
पूरे २० बरस तक माँ-पिता जी के साथ रहे...सबसे ज्यादा काम, सहायता, दुःख-सुख में भागी हमहीं रहे... कोई भी झंझट पहिले हमसे टकराता था फिर हमरे माँ-बाउजी से ...भाई लोग तो सब आराम फरमाते होते थे.....बाबू जी सुबह से चीत्कार करते रहते थे उठ जाओ, उठ जाओ...कहाँ उठता था कोई....लेकिन हम बाबूजी के उठने से पाहिले उठ जाते थे...आंगन बुहारना ..पानी भरना....माँ का पूजा का बर्तन मलना...मंदिर साफ़ करना....माँ-बाबूजी के नहाने का इन्तेजाम करना...नाश्ता बनाना ...सबको खिलाना.....पहलवान भाइयों के लिए सोयाबीन का दूध निकालना...कपडा धोना..पसारना..खाना बनाना ..खिलाना ...फिर कॉलेज जाना....
और कोई कुछ तो बोल जावे हमरे माँ-बाबूजी या भाई लोग को ..आइसे भिड जाते कि लोग त्राहि-त्राहि करे लगते.....
हरदम बस एक ही ख्याल रहे मन में कि माँ-बाबूजी खुश रहें...उनकी एक हांक पर हम हाज़िर हो जाते ....हमरे भगवान् हैं दुनो ...

फिर हमरी शादी हुई....शादी में सब कुछ सबसे कम दाम का ही लिए ...हमरे बाबूजी टीचर थे न.....यही सोचते रहे इनका खर्चा कम से कम हो.....खैर ...शादी के बाद हम ससुराल गए ...सबकुछ बदल गया रातों रात .....टेबुलकुर्सी, जूता-छाता, लोटा, ब्रश-पेस्ट, लोग-बाग.......हम बहुत घबराए.....एकदम नया जगह...नया लोग....हम कुछ नहीं जानते थे ...भूख लगे तो खाना कैसे खाएं......बाथरूम कहाँ जाएँ.....किसी से कुछ भी बोलते नहीं बने.....
जब 'इ' आये तो इनसे भी कैसे कहें कि बाथरूम जाना है.....इ अपना प्यार-मनुहार जताने लगे और हम रोने लगे.....इ समझे हमको माँ-बाबूजी की याद आरही है...लगे समझाने.....बड़ी मुश्किल से हम बोले बाथरूम जाना है....उ रास्ता बता दिए हम गए तो लौटती बेर रास्ता गडबडा गए थे ...याद है हमको....
हाँ तो....हम बता रहे थे कि शादी हुई थी......बड़ी असमंजस में रहे हम .....ऐसे लगे जैसे हॉस्टल में आ गए हैं....सब प्यार दुलार कर रहा था लेकिन कुछ भी अपना नहीं लग रहा था.....

दू दिन बाद हमारा भाई आया ले जाने हमको घर......कूद के तैयार हो गए जाने के लिए...हमरी फुर्ती तो देखने लायक रही...मार जल्दी-जल्दी पैकिंग किये... बस ऐसे लग रहा था जैसे उम्र कैद से छुट्टी मिली हो.....झट से गाडी में बैठ गए ..और बस भगवान् से कहने लगे जल्दी निकालो इहाँ से प्रभु.......घर पहुँचते ही धाड़ मार कर रोना शुरू कर दिए ....माँ-बाबूजी भी रोने लगे ...एलान कर दिए की हम अब नहीं जायेंगे .....यही रहेंगे .....का ज़रूरी है कि हम उहाँ रहें.....रोते-रोते जब माँ-बाबूजी को देखे तो ....उ लोग बहुत दूर दिखे........माँ-बाबूजी का चेहरा देखे ....तो परेसान हो गए ...बहुत अजीब लगा......ऐसा लगा उनका चेहरा कुछ बदल गया है.......थोडा अजनबीपन आ गया है.....रसोईघर में गए तो सब बर्तन पराये लग रहे थे......सिलोट-लोढ़ा, बाल्टी....पूरे घर में जो हवा रही....उ भी परायी लगी ...अपने आप एक संकोच आने लगा.......जोन घर में सबकुछ हमरा था ....अब एक तिनका उठाने में डरने लगे.... लगा इ हमारा घर है कि नही !..........ऐसा काहे ??? कैसे ??? हम आज तक नहीं समझे....
यह कैसी नियति ??......कोई आज बता ही देवे हमको ....कहाँ है हमरा घर ??????

और अब एक गीत ...असल में इस गीत को गाया रफी साहब ने है...लेकिन आज हम कोशिश कर रहे हैं..और बताइयेगा ज़रूर कैसा लगा !!
'आपके हसीं रुख पर आज नया नूर है, मेरा दिल मचल गया तो मेरा क्या कुसूर है'


मेरा और वाणी का ........बुढ़ापा

वैसे तो हमारा (मेरा और वाणी) का बुढ़ापा आने से रहा, अरे हम जैसों को बुढ़ापा कहाँ आता है, वो भी तो बेचारा घबराता होगा (मतलब हमें ऐसा लगता है...ये हमारी खुशफहमी भी हो सकती है :):)) 
फिर भी अगर भूले भटके...बुढ़ापे को हमारे बिना दिल ना लगा...और आ ही जाए तो ...परवा इल्ले:):)
कुछ सौन्दर्य प्रसाधन हम भी यूसिया लेंगे ...और नहीं तो का....
और तब जो हमारे मन में जज्बा होगा.....आपको बताते हैं हम....ये देखिये....

नोट :: एक बात और ये मत समझिये कि बायीं तरफ हम हैं और दाई तरफ वाणी ....जी नहीं, बिलकुल  भी नहीं.....वैसे अगर सोच भी लिया तो कोई बात नहीं.....लेकिन ना ही सोचें तो बेहतर होगा....हाँ नहीं तो...:):)


दर्पण हिल उठे, घरवालों ने भृकुटी तानी थी
ब्यूटी क्वीन बनने की उसने अपने मन में ठानी थी  
खोयी हुई खूबसूरती की कीमत आज उसने पहचानी थी
दूर बुढ़ापा हो जाए इस सोच की मन में रवानी थी 
चमकी डोल्लर सत्तावन में खंडहर वो जो पुरानी थी
सौन्दर्य प्रसाधनों के मुख से हमने सुनी कहानी थी 
टोटा-टोटा बन जाए कल तक वो  जो नानी थी 

कानपुर का झाँवा मिलाया और मिटटी मंगाई बरेली की
लखनऊ का नीम्बू निचोड़ा और रस मिलाई करेली की 
फेस पैक स्वर्गीय बना है बस चूको मत छबीली जी
पाउडर रूज आईलाइनर मसखरा बस यही आपकी सहेली जी  
शहनाज़ के सारे नुस्खे उसको याद ज़बानी थी
सौन्दर्य प्रसाधनों  के मुख से हमने सुनी कहानी थी 
टोटा-टोटा बन जाए कल तक वो जो नानी थी 
हम अपना ख्याल रखेंगे.....:)

टोटा=खूबसूरत लड़की 

मालूम है आप सुन चुके है इस गीत को...तो क्या हुआ , रेडियो पर दिनभर में एक ही गीत को दस बार सुन लेते हैं आप...और हम सुना दें तो शिकायत ??  ना जी दोबारा सुनिए....प्लीज...
आवाज़ वही....क्या कहते हैं ...'अदा' की... और गीत भी वही ...'नैनों में बदरा छाये''

Saturday, February 20, 2010

उड़ान


उसने फिर
अपने वजूद को
झाडा, पोंछा,
उठाया
दीवार पर टंगे
टुकडों में बंटें
आईने में
खुद को
कई टुकडों में पाया
अपने उधनाये हुए
बालों पर कंघी चलायी
तो ज़मीन कुछ
उबड़-खाबड़ लगी
जिसपर उसने एक
लम्बी सी माँग खींच दी
जो अनंत तक जा
पहुंची
जहाँ घुप्प अँधेरा था
और
शून्य खडा था
उसने
लाल डिबिया को देखा
तो अँधेरे, चन्दनिया गए
होठ मुस्का गए
उँगलियों ने शरारत की
लाली की दरदरी रेत
माँग में भर गयी
आँखों ने शिकायत
का काज़ल
झट से छुपा लिया
होठों ने रात का कोलाहल
दबा दिया
अंजुरी भर आस पीकर
निकल आई वो घर से
अब शाम तक
पीठ पर दफ्तर की
फाइल होगी
या
सर पर आठ-दस ईटें
या कोई भी बोझा
ड्योढी के बाहर
आते ही
मन उड़ गया
पर मन
उड़ पायेगा ?
शाम तक तो उडेगा
फिर सहम जाएगा
जुट जाएगा
इंतजार में
एक और
कोलाहल के
जो आएगा
उसी अनंत
अँधेरे से...
फिर  रात में...

गीत सुनिए चंदा ओ चंदा\...आवाज़ 'अदा' की है...

Friday, February 19, 2010

इंटेलेक्चुअल आतंकवाद क्या होता है.???

साभार : http://bharhaas.blogspot.com/2010/01/blog-post_7783.html
कहीं पढ़ा था इंटेलेक्चुअल आतंकवाद क्या होता है...सोचा मेरी समझ में जो आया बता दूँ...
आप क्या कहते हैं  ? 
ये है इंटेलेक्चुअल आतंकवाद...?
एम्. ऍफ़. हुसैन की पेंटिंग्स ...मेरी नज़र में इंटेलेक्चुअल आतंकवाद का बहुत बड़ा उदाहरण हैं ...और हाल-फिलहाल शाहरुख़ का पकिस्तान के प्रति स्नेह भी इसी श्रेणी में आता हैं...जबकि कसाब और उसके साथियों के कारनामों की यादें अभी धुंधली नहीं पड़ी हैं...
देखिये और ज़रा सोचिये....
आभार...
देवी दुर्गा अपने वाहन सिंह के साथ नग्नावस्था में लैंगिक जुड़ाव के साथ
हज़रत मोहम्मद पैगम्बर की बेटी बीबी फ़ातिमा पूरे वस्त्रों में सज्जित
देवी लक्ष्मी भगवान गणेश के सिर पर नग्नावस्था में पैर रखे हुए
खुद मक़बूल फिदा हुसैन द्वारा बना्या अपनी मां का चित्र
देवी सरस्वती का नग्न चित्रांकन
मदर टेरेसा पूरे कपड़ों में चित्रित

नग्नावस्था में श्री-पार्वती
स्वयं हुसैन की बेटी का चित्र जो कि पूरे कपड़ों में है
नग्न द्रौपदी
पूरे वस्त्रों में आधुनिक मुस्लिम महिला
नग्न हनुमान और निर्वस्त्र देवी सीता को रावण की जांघ पर बैठा चित्रित करा गया है
शायर ग़ालिब और फ़ैज पूरे कपड़ॊं में चित्रित करे गये है
पूरे कपड़ों में सज्जित मुस्लिम बादशाह और नग्न ब्राह्मण जो कि चित्रकार द्वारा हिंदुओं के नंगे चित्र बनाने की सोच को साफ़ बता रहा है
भारतमाता का नग्न चित्र जिनके अंगों पर राज्यों के नाम लिखे गये हैं साथ ही अशोक चक्र जैसे राष्ट्रीय सम्मानित प्रतीक का भी इस चित्र में समावेश करा गया है

गांधी  जी  की गर्दन ही उडा दी है....

जग मग दीप जले.....एक भजन


एक भजन लिखने की कोशिश की थी...

जग मग दीप जले
दीप जले दीप जले
राम नाम का दीप जले
जग में सारे जहान

ओ री आत्मा कर तू पुकार
निज स्वामी का कभी न बिसार
राम नाम का हो संचार
जग में सारे जहान
कर तू कर्म सदा निष्काम
ध्यान लगा तू प्रभु के नाम
राम नाम हो हर परिणाम
जग में सारे जहान

जग मग दीप जले
दीप जले दीप जले
राम नाम का दीप जले
जग में सारे जहान

( सुर में अगर सुनना हो तो यहाँ सुनिए )

Thursday, February 18, 2010

ब्लाग दुआरे सकारे गई उहाँ पोस्ट देखि के ही मन हुलसे



ब्लाग दुआरे सकारे गई उहाँ पोस्ट देखि के मन हुलसे
अवलोक हूँ कभी सोंचत हूँ अब कौन सा पोस्ट पढूँ झट से
घूंघरारी लटें समरूप  दिखें  कविता ग़ज़लें लगि झूलन सी
कहीं नज़्म दिखे कुछ मुक्तक हैं  कई पोस्ट पे स्निग्ध कपोलन सी 
परदन्त की पंगति कथ्य दिखे धड़ाधड़ पल्लव खोलन सी
चपला सम कछु संस्मरण लगे जैसे मोतिन माल अमोलन सी
कभी गीत दिखे संगीत दिखे कभी हास्य कभी खटरागन भी
कभी राग दिखे, अनुराग दिखे, कभी आग लगाव बुझावन भी
कभी व्याध लगे, कभी स्वाद लगे, ई अगाध सुधारस पावन भी
कभी मीत मिला, कभी जीत मिली, कभी खोवन है कभी पावन भी
धाई आओ सखी अब छको जरा कुछ ईद पे कुछ फगुनावन पर
न्योछावरी प्राण करे है 'अदा' बलि जाऊं लला इन ब्लागन पर

ऊपर श्री पद्म सिंह जी द्वारा सुधार की गई प्रस्तुती है ....
और अब यह कविता बेहतर हो गई है..
श्री पद्म सिंह जी का हृदय से आभार..
एक सार्वजनिक सूचना है ....
वैसे तो गिरिजेश जी मेरे पीछे झाड़ू-झौवा लेके पड़े रहते हैं वर्तनी सुधार कार्यक्रम के अंतर्गत...लेकिन पता नहीं आजकल (वेलेंटाइन डे) के बाद से,  नज़र नहीं आ रहे हैं...अगर कहीं वो मिलें तो उनसे कहें कि मेरी कई रचनाएँ उनकी प्रतीक्षा कर रही हैं ...


ब्लाग दुआरे सकारे गई उहाँ पोस्ट देखि के ही मन हुलसे 
अवलोकहूँ कभी सोंचू हूँ कि अब कौन सा पोस्ट पढूँ झट से
घूंघरारी लटें सम दिसें ग़ज़ल कविता भी लगी है झूलन सी
कहीं नज़्म दिखे कुछ मुक्तक दिखे कई पोस्ट पे सुन्दर कपोलन सी 
परदन्त की पंगति कथ्य दिखे धड़ाधड़ पल्लव खोलन सी
चपला सम कछु संस्मरण लगे जैसे मोतीन माल अनमोलन सी
कभी गीत दिखे संगीत दिखे कभी हास्य कभी खटरागन भी
कभी राग दिखे, अनुराग दिखे, कभी आग लगावन बुझावन भी
कभी व्याध लगे, कभी स्वाद लगे, ई अगाध सुधा सुहावन भी
कभी मीत मिला, कभी जीत मिली, कभी खोवन है कभी पावन भी
धाई आओ सखी अब छको जरा कुछ ईद पे कुछ फगुनावन पर
न्योछावरी प्राण करे है 'अदा' बलि जाऊं लला इन ब्लागन पर

अरे भई ई कविता के बाँचे के कोसिस कियें हैं..सुनियेगा तनी..

Wednesday, February 17, 2010

ब्लॉगर चिंतन इति..............



ब्लॉगर हौं तो बस एही बतावन बसौं कोई गुट के छाँव मझारन 

नाहीं तो पसु बनिके फिरोगे आउर खाओगे नित रोज लताड़न  

पाहन बनौ कि गिरि बनौ नहीं धरोगे धैर्य कठिन है ई धारण

फिन खग बनि इक पोस्ट लिखोगे औ करोगे अभासीजगत से सिधारन 



क्यूँ करुँ मैं गिला अब तुमसे भला
जब तुम सुन रहे हो तो करार आये

वो जो गुज़री थी कल रात शाने में तेरी
अब गोशे-दर-गोशे में बहार आये

बच जायेंगे अंजाम-ए-इश्क से ये परवाने   
ग़र शम्मा को उन पर भी प्यार आये

जुनूँ की हदों तक है मुझे तुमने चाहा
बस निभा दो न जानम तो एतबार आये

मोहब्बत का ऐसा असर हमने देखा
मुस्कुराते हैं काँटे जब निखार आये

Tuesday, February 16, 2010

ज़रुरत है हिंदी पुरस्कारों के लिए


ज़रुरत है हिंदी पुरस्कारों के लिए
कवियों, लेखकों और साहित्यकारों की
एक कवयित्री चाहिए
जिसका रंग गोरा, कद ५ फीट ३ इंच
बायें गाल पर तिल हो
जिसने ख़ूब खूबसूरती पाई हो
और अपनी हर कविता में
मर्दों की की धुनाई हो
ऐसा हो तो अच्छा है 
और उसके हर लेख में
नारी शक्ति की ही चर्चा हो
एक युवा कवि चाहिए
जो लगभग ५५ का हो
जो भी उसने लिखा हो  
कोई समझ न पाया हो
पहले उसने कुछ भी लिखा हो
पर अब क्षेत्रीयता विरोध अपनाया हो
और यह पक्का कर लेना
वो यू.पी., बिहार का जाया हो  
दलित वर्ग का भी कवि देखो
यह पैदायशी दलित होना चाहिए  
मोटा-ताज़ा ना हो
दलित ही दिखना चाहिए
एक और कैटेगोरी आई है
जो धर्म निरपेक्षता कहलाएगी 
और इसमें सिर्फ़ और सिर्फ़ 
मुसलमान कवि ही आएगा 
जो अलीगढ़ के आस-पास 
ही पाया जाएगा 
कैसे  भी पकड़ कर ले आओ 
उसको मेरे पास
बस हिन्दू-विरोधी न हो
यही बात होवे ख़ास
बाल कवियों की भी श्रेणी है
ये उस जगह पाओगे  
जहाँ बच्चे ग़ायब होते ज्यादा 
ढूँढने का बस कर लो इरादा
मझोले कद का हो और शक्ल से
शरीफ लगता हो
अन्दर से चाहे घाघ हो
पर ऊपर से ख़ूब जंचता हो
इतने से ही हमारा सारा 
काम चल जाएगा
वर्ना हिंदी-विकास का कोटा
साफ़-साफ़ रुल जाएगा  
अरे जल्दी कुछ करो भाई
वर्ना समझो कि शामत आई
मार्च महीना आया है
और ट्रेजरी ने याद दिलाया है
अगर ये राशि नहीं खर्ची तो 
वो सारे पैसे ले जायेगी
और हिंदी साहित्य पुरस्कार की
नैयाँ ऐवें ही डूब जायेगी 
हिंदी विकास का धंधा 
फिर मंदा हो जाएगा
और मेरे-तुम्हारे घर का चूल्हा
भी ठंडा हो जाएगा ...