चलिए मुश्किल से ही सही कुछ आज लिख पायी हूँ....ये चार शेर आपलोगों की नज़र ......
खिल्ली तो न उड़ाओ मेरे इश्क के अफ़साने की
बस यही आदत रही है इस कम-ज़र्फ़ ज़माने की
आज अपनी तकदीर लेकर हम बैठ गए अंजुरी में
चाह बहुत थी तुमको अपनी किस्मत दिखाने की
दामन सबसे छुड़ा कर सफर में हम चल पड़े
जाने क्यूँ पीछे पड़ी है राख मेरे आशियाने की
अभी तलक उम्मीद की परी लौट कर नही आई
कोशिश तो किया था रुख से सलवटें मिटाने की
अरे कहाँ जा रहे हैं....... एक गाना भी सुनाने का इरादा है.... हालांकि मेरे गाने में थोड़ी कमी रह गयी है....वैसी नहीं हुई जैसी होनी चाहिए....मैं definetely इससे बेहतर कर सकती हूँ .....और आगे से कोशिश भी करुँगी ...,लेकिन कोई बात नहीं ये गाना भी मैंने पहली बार गया....वो भी रात के १२ बजे ....तो चलेगा....और मुझे मालूम है आप लोग माफ़ करने के लिए बहुत बड़ा दिल रखते हैं.....
एक बात की और गुजारिश करनी थी अगर पसंद आ जाए तो कहते हैं ब्लॉग वाणी पर चटका लगाने से और भी अच्छे गाने सुनने को मिलते हैं हा हा हा हा..:):)
चित्रपट : साहिब बीवी और ग़ुलाम
संगीतकार : हेमंत कुमार
गीतकार : शकील बदायूँनी
गायक : गीता दत्त
और यहाँ पर आवाज़ हमारी है जी ...स्वप्न मंजूषा 'अदा'
(पिया ऐसो जिया में समाय गयो रे
कि मैं तन मन की सुध बुध गवाँ बैठी ) \- २
हर आहट पे समझी वो आय गयो रे
झट घूँघट में मुखड़ा छुपा बैठी
पिया ऐसो जिया में समाय गयो रे ...
(मोरे अंगना में जब पुरवय्या चली
मोरे द्वारे की खुल गई किवाड़ियां ) \- २
ओ दैया! द्वारे की खुल गई किवाड़ियां
मैने जाना कि आ गये सांवरिया मोरे \- २
झट फूलन की सेजिया पे जा बैठी
पिया ऐसो जिया में समाय गयो रे ...
(मैने सेंदूर से माँग अपनी भरी
रूप सैयाँ के कारण सजाया ) \- २
ओ मैने सैयाँ के कारण सजाया
इस दर से पी की नज़र न लगे \- २
झट नैनन में कजरा लगा बैठी
पिया ऐसो जिया में समाय गयो रे ...
खिल्ली तो न उड़ाओ मेरे इश्क के अफ़साने की
बस यही आदत रही है इस कम-ज़र्फ़ ज़माने की
आज अपनी तकदीर लेकर हम बैठ गए अंजुरी में
चाह बहुत थी तुमको अपनी किस्मत दिखाने की
दामन सबसे छुड़ा कर सफर में हम चल पड़े
जाने क्यूँ पीछे पड़ी है राख मेरे आशियाने की
अभी तलक उम्मीद की परी लौट कर नही आई
कोशिश तो किया था रुख से सलवटें मिटाने की
अरे कहाँ जा रहे हैं....... एक गाना भी सुनाने का इरादा है.... हालांकि मेरे गाने में थोड़ी कमी रह गयी है....वैसी नहीं हुई जैसी होनी चाहिए....मैं definetely इससे बेहतर कर सकती हूँ .....और आगे से कोशिश भी करुँगी ...,लेकिन कोई बात नहीं ये गाना भी मैंने पहली बार गया....वो भी रात के १२ बजे ....तो चलेगा....और मुझे मालूम है आप लोग माफ़ करने के लिए बहुत बड़ा दिल रखते हैं.....
एक बात की और गुजारिश करनी थी अगर पसंद आ जाए तो कहते हैं ब्लॉग वाणी पर चटका लगाने से और भी अच्छे गाने सुनने को मिलते हैं हा हा हा हा..:):)
चित्रपट : साहिब बीवी और ग़ुलाम
संगीतकार : हेमंत कुमार
गीतकार : शकील बदायूँनी
गायक : गीता दत्त
और यहाँ पर आवाज़ हमारी है जी ...स्वप्न मंजूषा 'अदा'
(पिया ऐसो जिया में समाय गयो रे
कि मैं तन मन की सुध बुध गवाँ बैठी ) \- २
हर आहट पे समझी वो आय गयो रे
झट घूँघट में मुखड़ा छुपा बैठी
पिया ऐसो जिया में समाय गयो रे ...
(मोरे अंगना में जब पुरवय्या चली
मोरे द्वारे की खुल गई किवाड़ियां ) \- २
ओ दैया! द्वारे की खुल गई किवाड़ियां
मैने जाना कि आ गये सांवरिया मोरे \- २
झट फूलन की सेजिया पे जा बैठी
पिया ऐसो जिया में समाय गयो रे ...
(मैने सेंदूर से माँग अपनी भरी
रूप सैयाँ के कारण सजाया ) \- २
ओ मैने सैयाँ के कारण सजाया
इस दर से पी की नज़र न लगे \- २
झट नैनन में कजरा लगा बैठी
पिया ऐसो जिया में समाय गयो रे ...