हम चले जिन रास्तों पर, दुरूह थे वीरान थे
हम नहीं उनपर चले, जो रास्ते आसान थे
हम न हो पाये तेरी, नज़्र के क़ाबिल कभी
क्या नज़र आते हैं हम, औ क्या तेरे अरमान थे
हो गए हैराँ-परेशां, हमें देख दश्त के जानवर
सब पूछते हैं क्या हुआ, तुम तो कभी इंसान थे
फूल, चन्दन, धूप-बाती सा महकता देवता
हम ही जाने क्यों मगर, इस ख़ुश्बू से अंजान थे
दिल की बस्ती में उन्होंने, भर ही दी चिंगारियाँ
ख़ाक़ में मिल जाए दिल, इस दिल से वो परेशान थे
दश्त=जँगल
नज़्र = उपहार
BEST SONG EVER......
बहुत सुंदर! दश्त के जानवर बोले तो शुतुर?
ReplyDeleteधन्यवाद अनुराग जी,
Deleteअब जानवर बोले तो जानवर ही होगा।
शुतुर जानवर में आएगा का ? :)
सुना था आप भारत में हैं, आज देख भी लिया।
स्वागत है आपका।
जी आपने दुरुस्त सुना हैं, मैं भारत में था। शुतुर (ऊँट) जानवर ज़रूर है, और दश्त (रेगिस्तान) का जानवर है, इसीलिए कनफर्म कर रिया था। कमेन्ट कविता पढ़ते ही (नीचे लिखे शब्दार्थ देखने से पहले) लिख दिया था।
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