Tuesday, April 28, 2015

फिर भी कुछ कमी क्यूँ है ...!

आज खुशियाँ थमी क्यूँ है ?
इन आँखों में नमी क्यूँ है ?

जब रखते हो ग़मों का हिसाब 
फाईलों पर धूल जमी क्यूँ है ? 

ख़ुश नज़र आते हो सबको 
फिर दीदों में ग़मी क्यूँ है ?

गर्म तो है मौसम बहुत मगर 
यहाँ ये बर्फ़ जमी क्यूँ है 

धूप में खड़े हो जाने कब से 
फिर चेहरा शबनमी क्यूँ है ?

अच्छे दिन आ गए अब तो 
फिर भी कुछ कमी क्यूँ है ? 



1 comment:

  1. वाह वाह!
    कुछ कमी तो रहती ही है
    धरती भी धूप सहती ही है
    कितना भी उन्नत हो पर्वत
    नदी सागर को बहती ही है

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